Saturday, 4 June 2022

बालश्रम का नासूर

 

बालश्रम का नासूर



क्‍या अंतरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें

क्‍या दीमकों ने खा लिया हैं

सारी रंग बिरंगी किताबों को

क्‍या काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं सारे खिलौने

क्‍या किसी भूकंप में ढह गई हैं

सारे मदरसों की इमारतें

पर दुनिया की हज़ारों सड़कों से गुज़रते हुए


बच्‍चे, बहुत छोटे छोटे बच्‍चे


काम पर जा रहे हैं।

हमारे देश में बालश्रम को रोकने के लिए कई नियम और कानून हैं, लेकिन उनका सख्ती से पालन नहीं होता। यही वजह है कि भारत में बालश्रम मुख्य समस्याओं में से एक है। ऐसा नहीं कि बालश्रम को खत्म नहीं किया जा सकता। अगर लोगों में जागरूकता बढ़ाई जाए और कानूनों का सही तरीके से पालन हो, तो देश से बाल मजदूरी को पूरी तरह खत्म किया जा सकता है।

भारत दशकों से बालश्रम का नासूर झेल रहा है। देश का बचपन अपने सुनहरे सपनों की जगह कभी झाड़ू-पोंछे से किसी के घर को चमका रहा होता तो कभी अपने नाजुक कंधों पर बोझा ढोकर अपने परिवार का पेट पाल रहा होता है। हमारे यहां कहने को बच्चों को भगवान का रूप माना जाता है, पर उनसे मजदूरी कराने में कोई गुरेज नहीं होता। सरकारें बाल मजदूरी को खत्म करने के लिए बड़े-बड़े वादे और घोषणाएं करती हैं, पर नतीजा वही ढाक के तीन पात निकलता है। इतनी जागरूकता के बाद भी भारत में बाल मजदूरी के खात्मे के आसार दूर-दूर तक नहीं दिखते।

हालांकि बालश्रम केवल भारत तक सीमित नहीं, यह एक वैश्विक घटना है। आज दुनिया भर में, लगभग 21.8 करोड़ बच्चे काम करते हैं, जिनमें से ज्यादातर को उचित शिक्षा और सही पोषण नहीं मिल पा रहा है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक विश्व में इक्कीस करोड़ अस्सी लाख बालश्रमिक हैं, जबकि अकेले भारत में इनकी संख्या एक करोड छब्बीस लाख छियासठ हजार से ऊपर है। दुखद बात यह है कि वे खतरनाक परिस्थितियों में काम करते हैं। उनमें से आधे से अधिक बालश्रम का सबसे खराब स्वरूप है, जैसे- हानिकारक वातावरण, गुलामी या मजबूर श्रम के अन्य रूपों, मादक पदार्थों की तस्करी और वेश्यावृत्ति सहित अवैध गतिविधियों, सशस्त्र संघर्षों तक में शामिल होते हैं।

पढ़ाई और खेलकूद की उम्र में वे काम करते हुए अपना बचपन गंवा देते हैं। यह ठीक है कि हमारे देश में बालश्रम को रोकने के लिए कई नियम और कानून हैं, लेकिन उनका सख्ती से पालन नहीं होता। यही वजह है कि भारत में बालश्रम मुख्य समस्याओं में से एक है। ऐसा नहीं कि बालश्रम को खत्म नहीं किया जा सकता है। अगर लोगों में जागरूकता बढ़ाई जाए और कानून का सही तरीके से पालन हो, तो देश से बाल मजदूरी को पूरी तरह खत्म किया जा सकता है। मगर देश में बालश्रमिकों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है और उनसे खतरनाक काम भी कराए जाते हैं। वैसे तो बालश्रम के अनेक कारण हो सकते हैं, पर प्रमुख कारण देखा जाए तो गरीबी ही है।

गरीब लोग अपने परिवार का पालन-पोषण करने के लिए अपने बच्चों को मजदूरी पर भेजते हैं, यह उनकी मजबूरी होती है। वे अपने बच्चों को विद्यालय भेजने की स्थिति में नहीं होते, इसलिए वे बच्चों को काम पर भेजते हैं। कई बच्चों के माता-पिता न होने के कारण वे बचपन में ही मजदूरी कर अपना पेट भरते हैं। कई बालश्रमिकों के परिवार की स्थिति पढ़ाई के अनुकूल होने के बाद भी मजदूरी के लालच में वे काम पर जाते हैं। मौजूदा समय में गरीब बच्चे सबसे अधिक शोषण का शिकार हो रहे हैं। आलम यह है कि जो गरीब बच्चियां होती हैं, उनको पढ़ने भेजने के बजाय घर में ही उनसे बालश्रम यानी घरेलू काम कराया जाता है। इसके अलावा बढ़ती जनसंख्या, सस्ती मजदूरी, शिक्षा का अभाव और मौजूदा कानून का सही तरीके से पालन न कराया जाना बाल मजदूरी के लिए जिम्मेदार है। बाल मजदूरी इंसानियत के लिए अभिशाप है। देश के विकास में बड़ा बाधक भी है।

स्वस्थ बालक राष्ट्र का अभिमान है। आज का बालक कल का भविष्य है। ये उक्तियां स्पष्ट करती हैं कि देश की उन्नति का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण तत्व बच्चे ही हैं। मगर तब हम उन्हीं कल के भविष्यों को चाय की दुकानों, ढाबों तथा उन क्षेत्रों में कार्य करते हुए देखते हैं, जहां पर उनकी शारीरिक और मानसिक क्षमता का दुरुपयोग किया जाता है, तो हम शर्मसार हो जाते हैं। भारतीय संविधान के अनुसार किसी उद्योग, कल-कारखाने या किसी कंपनी में मानसिक या शारीरिक श्रम करने वाले पांच से चौदह वर्ष की उम्र के बच्चों को बालश्रमिक कहा जाता है। भारत में 1979 में सरकार द्वारा बाल मजदूरी को खत्म करने के उपाय सुझाने के लिए गुरुपाद स्वामी समिति का गठन किया गया था। तब बालश्रम से जुड़ी सभी समस्याओं के अध्ययन के बाद उस समिति द्वारा सिफारिश पेश की गई थी, जिसमें गरीबी को मजदूरी के मुख्य कारण के रूप में देखा गया और सुझाव दिया गया कि खतरनाक क्षेत्रों में बाल मजदूरी पर प्रतिबंध लगाया जाए और उन क्षेत्रों के कार्य के स्तर में सुधार किया जाए।

समिति द्वारा बाल मजदूरी करने वाले बच्चों की समस्याओं के निराकरण के लिए बहुआयामी नीति की जरूरत पर भी बल दिया गया। वहीं 1986 में बालश्रम निषेध और नियमन अधिनियम पारित हुआ, जिसके अनुसार खतरनाक उद्योगों में बच्चों की नियुक्ति गैरकानूनी है। भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों में शोषण और अन्याय के विरुद्ध अनुच्छेद 23 और 24 को रखा गया है। अनुच्छेद 23 खतरनाक उद्योगों में बच्चों के रोजगार पर प्रतिबंध लगाता है और अनुच्छेद 24 के अनुसार चौदह साल से कम उम्र का कोई भी बच्चा किसी फैक्ट्री या फिर खदान में काम करने के लिए और न ही किसी अन्य खतरनाक काम के लिए नियुक्त किया जाएगा। कानून के मुताबिक चौदह वर्ष से कम उम्र के बच्चों का नियोजन निषिद्ध किया गया है। जबकि धारा 45 के अंतर्गत देश के सभी राज्यों को चौदह साल से कम उम्र के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देना अनिवार्य किया गया है। फिर भी इतने कड़े कानूनों के होने के बावजूद होटलों और दुकानों में बच्चों से दिन-रात काम कराया जाता है। भारत में बालश्रम व्यापक स्तर पर है। यहां बाल मजदूरी के लिए बच्चों की तस्करी भी की जाती है।

देश के चहुंमुखी विकास में बच्चों का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। यही वे महत्त्वपूर्ण धरोहर हैं, जो एक देश का भविष्य तय करते हैं। इसलिए प्राथमिक रूप से किसी भी देश की सरकार का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य यह होना चाहिए कि वह उन्हें शारीरिक और मानसिक स्तर पर विकास करने का समुचित अवसर उपलब्ध कराए। समाज का प्रयत्न होना चाहिए कि वह ऐसा वातावरण बनाए, जो बच्चों की शिक्षा, विकास और प्रगति की संभावनाओं से भरपूर हो। उन्हें उनकी विकास की अवस्था के दौरान ऐसी शारीरिक और मानसिक कठिनाइयों से बचाया जाना चाहिए, जो उनके प्राकृतिक विकास में बाधा पहुंचाने तथा भविष्य को अंधकारमय बनाने का कारण बनती हो। भारत में बालश्रम की समस्या व्यापक रूप ग्रहण किए हुए है। पिछले सात दशकों में अनेक योजनाओं, कल्याणकारी कार्यक्रमों, विधि निर्माण तथा प्रशासनिक प्रयासों के बावजूद देश की बाल जनसंख्या का एक बड़ा भाग दुख और कष्ट भोग रहा है। देश में अधिकांश परिवारों में माता-पिता द्वारा उपेक्षा, संरक्षकों द्वारा मारपीट तथा मालिकों द्वारा लैंगिक दुर्व्यवहार की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। फिर भी हैरानी है कि इसे गंभीर समस्या नहीं माना जाता है।

बाल मजदूरी देश के विकास में सबसे बड़ी बाधा है। किसी भी देश के बच्चे उस देश का आने वाला भविष्य होते हैं और अगर उन्हीं बच्चों का भविष्य सुरक्षित नहीं होगा, तो वे देश के भविष्य का निर्माण कैसे कर सकेंगे। इसलिए समाज को जागरूक होकर इसे रोकने के लिए और सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है। यह न सिर्फ उन गरीब मासूम बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ है, बल्कि उनके मानवाधिकारों का भी हनन है। इसके लिए सरकारों को कुछ व्यावहारिक कदम उठाने होंगे। आम जनता की भी इसमें सहभागिता जरूरी है। हर व्यक्ति जो आर्थिक रूप से सक्षम है, अगर ऐसे एक बच्चे की भी जिम्मेदारी लेने लगे, तो सारा परिदृश्य ही बदल जाएगा। बहरहाल, बालश्रम पर अंकुश लगाने के लिए कई संगठन, आईएलओ आदि प्रयास कर रहे हैं। 2025 तक बालश्रम को समाप्त करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इससे बेहतरी की उम्मीद स्वाभाविक है।

कोहरे से ढँकी सड़क पर बच्‍चे काम पर जा रहे हैं

सुबह सुबह

बच्‍चे काम पर जा रहे हैं

हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह

भयानक है इसे विवरण के तरह लिखा जाना

लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह

काम पर क्‍यों जा रहे हैं बच्‍चे?

 

 

मीता गुप्ता

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