Saturday, 11 June 2022

डैडी, क्या लिखूं आपके लिए ?

 

डैडी, क्या लिखूं आपके लिए?








डैडी, क्या लिखूं आपके लिए ?

डैडी,

क्या लिखूं आपके लिए ?,

कभी जो समझ ना आए,

आया बस इतना ही समझ,

करते रहे समझौते,

हमारे लिए,

अपनी ख़ुशियों का,

अपनी इच्छाओं का,

करते रहे दमन,

पता नहीं कैसे कंधे थे,

कभी थकते ही नहीं थे,

बोझ उठाते,

डैडी,

पीते रहे हलाहल,

शिव की तरह,

कल्याण हेतु करने को,

उत्सर्जन प्राण सतत

जब डांटते थे,

तो लगता था बुरा,

कि क्यों टोकते थे

हर बात पर?

ज़रा सी ग़लती पर,

देते थे इतनी सज़ा,

थे कितने निष्ठुर?

कभी नहीं आती थी क्या दया ?

आख़िर हमारी इच्छाओं का,

नहीं है कोई मूल्य,

हर बात में निर्णय,

क्या उन्हीं का अधिकार था?

उनके अपने सपनों को,

पूरा करने का माध्यम,

क्या हम हैं ?

इन सारे सवालों का,

जवाब ढूंढ़ते-ढूंढते,

बीत गया बचपन,

संघर्ष के युवा दिनों में,

जब संकल्पों को तोड़ने,

आईं आंधियां,

तब समझ आया कि

क्यों सिखाया था निष्ठुर संसार से लड़ना

क्यों अपनी डांट के,

रक्षा कवच से,

बनाया था इतना मज़बूत,

वह उनकी निष्ठुरता नहीं थी,

एक पत्थर को,

एक भव्य मूर्ति बनाने का ,

उनका शिल्पकर्म था,

एक ऐसा शिल्पी,

जो जानता था कि,

बिना चोट मारे (कभी धीरे, कभी तेज़),

गढ़ ही नहीं सकती,

सुंदर मूर्ति,

निर्णय ज्ञान से नहीं,

लिए जाते हैं अनुभवों से,

क्योंकि ज्ञान किताबी है,

और अनुभव,

संसार की वास्तविकता

का परिणाम,

इसलिए उनका हर निर्णय,

जिसके लिए थे प्रश्नचिह्न,

उस समय,

हुए सब सही साबित,

वक़्त के साथ-साथ

वे अपने सपने लादते नहीं थे,

बल्कि दिखाते थे सपने,

भरने देते थे उड़ान,

ताकि कहीं हम,

विश्राम की अंधी गलियों में

खो न जाएं,

आज जाना,

डैडी ऐसे ही होते हैं,

क्योंकि उनके लिए सबसे ज़रूरी होता है,

संतान के सृजन, पुष्पन,

पल्लवन का असीम उत्तरदायित्व,

इसलिए नहीं बैठ सकते वे,

कभी चैन से,

आज जाना,

कि मेरे डैडी सही थे,

हर कदम पर,

क्योंकि उन्हीं के,

नक़्शे-क़दम पर चलकर ही,

उठा पा रही हूं,

अपने उत्तरदायित्वों को,

वरना कब के झुक चुके होते,

मेरे कंधे

जैसे-जैसे बीत रहा है वक़्त,

और आ रही है,

जिंदगी की सांझ नज़दीक,

त्यों-त्यों जान पा रही हूं,

कि कितने महान थे मेरे डैडी,

क्योंकि डैडी ही,

पीते हैं हलाहल,

और चलते हैं,

अनवरत,

अथक,

अप्रतिहत,

संतान की आंखों के सपनों को,

अपनी आंखों में बसाए,

नमन शत-शत,

नमन शत-शत ।


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