Tuesday, 6 August 2024

आइए, स्वतंत्रता का पर्व मनाएं

 

आइए, स्वतंत्रता का पर्व मनाएं



 

अपि स्वर्णमयी लंका न मे लक्ष्मण रोचते।

जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी॥

अर्थात- हे लक्ष्मण! यद्यपि यह लंका सोने की बनी है, फिर भी इसमें मेरी कोई रुचि नहीं है। (क्योंकि) जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान है।

स्वतंत्रता की 78वीं वर्षगांठ पर यह याद रखना जरूरी है कि साम्राज्यों के समय के दौरान स्वतंत्रता दी नहीं जाती थी, उसे लिया जाता था। इसे, महान शख्सियतों की एक पूरी पीढ़ी ने प्राप्त किया था, जिनका नेतृत्व महामानव महात्मा गांधी ने किया था, जिन्होंने इतिहास में सबसे शक्तिशाली ताकत के विरुद्ध यह लड़ाई अटल विश्वास के साथ लड़ी। उनकी नैतिक ताकत ने राजनीतिक चिंतन की धारा ही बदल दी और उसकी अनुगूंज आज हमारे चारों ओर के महान घटनाक्रमों में सुनाई देती है। जहां, यूरोपीय उपनिवेशवाद की शुरुआत 18वीं सदी के भारत में हुई वहीं, 1947 में ‘जय हिंद’ के उद्घोष ने इसकी समाप्ति की घोषणा की। विजय का अंतिम उद्घोष ‘जय हिंद’ सुभाष चंद्र बोस द्वारा दिया गया था, जिन्हें हर एक भारतीय प्यार से ‘नेताजी’ के नाम से जानता है। पंडित जवाहरलाल नेहरू, बाबा साहेब अंबेडकर, सरदार वल्लभभाई पटेल, मौलाना अबुल कलाम आजाद, सरोजनी नायडू तथा अन्य बहुत से लोगों ने आजाद भारत के विकास का रास्ता तैयार किया। इन असाधारण पुरुषों और महिलाओं ने हमारे कल के लिए, अपने आज को बलिदान किया। वह कल आ गया है और हमें अपने आप से एक सवाल पूछना होगा : क्या हमने एक राष्ट्र और एक समाज के रूप में इन महापुरुषों की महान परिकल्पना का सम्मान किया है? जी हाँ!

जब स्वतंत्रता एक स्वप्न सा लगता था, खुद पर, अपने नेताओं पर, अहिंसा की ताकत पर तथा डर पर जीत पाने वाले भारतीयों के साहस पर हमारे विश्वास ने  हमें अविचल बनाए रखा। लेकिन हमें तब यह पता था, जैसा कि अब भी है, कि स्वतंत्रता का अर्थ रोटी और स्वप्न दोनों ही है। उनका विश्वास था कि आस्था की स्वतंत्रता, लैंगिक समानता तथा सभी के लिए न्याय के द्वारा अनुप्राणित  भारत एक आधुनिक राष्ट्र बनेगा। छोटे-मोटे अपवादों से यह बात नहीं छुप सकती कि भारत एक ऐसा ही आधुनिक देश बन रहा है।

हमारा उत्पादक श्रमजीवी वर्ग,  हमारे अनुकरणीय किसान, जिन्होंने अकाल से ग्रस्त इस धरती को ऐसा देश बना दिया है, जहां अन्न का ज़रूरत से अधिक उत्पादन होता है, हमारे कल्पनाशील औद्योगिक उद्यमी, चाहे वे निजी क्षेत्र के हों या सार्वजनिक क्षेत्र के, हमारे बुद्धिजीवी, हमारे शिक्षाविद् तथा हमारा राजनीतिक वर्ग, सभी ने मिल-जुलकर एक ऐसे आधुनिक राष्ट्र का निर्माण किया है, जो कुछ ही दशकों में आर्थिक उन्नति तथा प्रगतिशील सामाजिक कानून के क्षेत्र में कई सदियों की दूरी को पार कर गया है।

अर्थव्‍यवस्‍था विकास का महत्‍वपूर्ण भाग है। शिक्षा इसका नितांत जरूरी अंग है। सुदृढ़ शिक्षा प्रणाली बेहतर समाज की रीढ़ है। हमारे शैक्षणिक संस्‍थानों का यह दायित्‍व है कि वे गुणवत्‍तायुक्‍त शिक्षा प्रदान करें और विद्यार्थियों को अपनी मातृभूमि के प्रति प्रेम, सभी के लिए सौहार्द्रपूर्ण भावना, बहुवाद के लिए सहिष्‍णुता, महिलाओं का सम्‍मान, अपने दायित्‍वों का निर्वहन, जीवन में ईमानदारी, बर्ताव में स्‍वाभिमान, कार्यों में जवाबदेही और युवा मस्तिष्‍क में अनुशासन जैसे महत्‍वपूर्ण सभ्‍य मूल्‍यों की शिक्षा दें। परंतु क्‍या हम यह कहने में सक्षम होंगे कि हमने बेहतर नागरिक और सफल व्‍यवसायी बनने के लिए हमारे बच्‍चों को गुणवत्‍तायुक्‍त शिक्षा और कौशल प्रदान किया है? जी हाँ!

 यदि हमारी अर्थव्यवस्था ने बुनियादी क्षमता प्राप्त कर ली है, तो इसे अब अगली छलांग लगाने के लिए लांचिग पैड का काम करना होगा। हमें अब दूसरे स्वतंत्रता संग्राम की ज़रूरत है इस बार  यह सुनिश्चित करने के लिए कि भारत हमेशा के लिए भूख, बीमारी और निर्धनता से मुक्त हो जाए।

यदि प्रगति, बढ़ती आकांक्षाओं, खासकर युवाओं  के मुकाबले पिछड़ जाती है, तो रोष होना स्वाभाविक है। हमारा एक ऐसा देश हैं जो कि आयु और जोश दोनों में युवा होता जा रहा है, यह एक अवसर भी है और चुनौती भी। युवा ज्ञान पाना चाहते हैं जो कि उनके कौशल को बढ़ाएगा और ऐसे अवसर चाहते हैं जो भारत को प्रथम विश्व की ओर तेजी से ले जाएंगे। उनके पास सामर्थ्य है, उन्हें मौका चाहिए। शिक्षा बीज है और अर्थव्यवस्था उसका फल। अच्छी शिक्षा प्राप्त करें, बीमारी, भूख और निर्धनता समाप्त हो जाएगी। हमारा ध्येय होना चाहिए- ज्ञान के लिए सब और सब के लिए ज्ञान।

हमारे पर्यावरण की रक्षा और आर्थिक विकास के बीच कोई अन्तर्विरोध नहीं है। हम तब तक सुरक्षित रहेंगे, जब तक हम गांधी जी के इस महान उपदेश को याद रखेंगे- संसार में मनुष्य की ज़रूरत के लिए पर्याप्त साधन हैं, परंतु उसके लालच के लिए नहीं। हमें प्रकृति के साथ सौहार्द्र से रहना सीखना होगा। प्रकृति सदैव एक समान नहीं रह सकती, परंतु हमें प्रचुरता के दौरान उसकी भेंट को सहेजकर रखना चाहिए ताकि कभी-कभार आने वाले अभाव के दौरान हम उससे वंचित न रह जाएं।

 भारत एक सम्पन्न देश है, भारत की एक सम्मोहक, उन्नत सभ्यता है, जो न केवल हमारी भव्य कला में, बल्कि नगरों और गांवों के रोजमर्रा के जीवन की व्यापक रचनाशीलता और मानवता में भी अपनी चमक बिखेरती है। आइए हम, घृणा, हिंसा और क्रोध के मार्ग का त्याग करें, अपने छोटे-मोटे झगड़ों और मतभेदों को भूल जाएं, अपने राष्ट्र के लिए वैसी ही श्रद्धा से काम करें, जिस प्रकार की श्रद्धा बच्चे में मां के प्रति होती है।

अंत में अपने देश भारत के गौरव का गुणगान में-

जगद्गौरवं भारतं शोभनीयं

सदास्माभिरेतत्तथा पूजनीयम्।

भवेद् देशभक्तिः समेषां जनानां

परादर्शरूपा सदावर्जनीया।।

अर्थात भारत देश शोभनीय और संसार का गौरव है और यह भूमि हमेशा पूजनीय रही है। यहाँ के सभी लोगों की देशभक्ति सदैव आकर्षणीय, श्रेष्ठ और आदर्श स्वरूप है। विश्व इसके समक्ष नतमस्तक है। हर व्यक्ति में देशभक्ति की तीव्र भावना है। सभी देश की रक्षा के लिए तन-मन-धन से समर्पित हैं। इसके आदर्श आचरण के कारण यह सदैव शोभनीय और वंदनीय है।

जय हिंद!

 

डॉ मीता गुप्ता

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