भारत-गान
अमरपुरी से भी बढ़कर के जिसका गौरव-गान है,
तीन लोक से न्यारा अपना प्यारा हिंदुस्तान है।
गंगा-यमुना-सरस्वती से सिंचित कीर्ति जिसकी
अशेष है,
सजला, सफला, शस्य-श्यामला जिसकी धरा विशेष है।
ज्ञान-रश्मि जिसने बिखेर कर किया विश्व-कल्याण
है,
सतत-सत्य-रत, धर्म-प्राण
वह ला रहा नया विहान है,
यहीं मिला आकार ज्ञेय को, मिला नया उपहार है,
इसके दर्शन का प्रकाश ही युग के लिए उपकार है।
वेदों के मंत्रों से गुंजित स्वर जिसका
निर्भ्रांत है,
प्रज्ञा की गरिमा से दीपित जग-जीवन अक्लांत है।
अंधकार में डूबी संसृति को दी जिसने दृष्टि है,
तपोभूमि वह जहाँ कर्म की सरिता,धर्म-वृष्टि है।
इसकी संस्कृति शुभ्र, न
आक्षेपों से धूमिल कभी हुई,
अति उदात्त आदर्शों की सभी निधियों से परिपूरित
हुई।
योग-भोग के बीच बना संतुलन जहाँ निष्काम है,
जिसकी धरती की आध्यात्मिकता का शुचि रूप ललाम
है।
निस्पृह स्वर गीता-गायक के गूँज रहे अब भी जहाँ,
कोटि-कोटि जन्मभूमि को श्रद्धानत सब होते यहाँ।
यहाँ नीति-निर्देशक तत्वों की सत्ता सराहनीय है,
ऋषि-मुनियों का देश अमर यह भारतवर्ष वंदनीय है।
क्षमा, दया, धृति के पोषण का इसी भूमि को श्रेय है,
सात्विकता की मूर्ति मनोरम इसकी गाथा गेय है।
बल-विक्रम का सिंधु, चरणों
में सिर झुकाता है,
स्वर्गादपि गरीयसी जननी अपराजिता माता है।
यह समता, ममता
और एकता का पावन वितान है,
देवोपम जन-जन है इसका, हर
पत्थर भगवान है।
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