Saturday, 30 December 2023

वर्ष नव,हर्ष नव

 

वर्ष नव,हर्ष नव

नए वर्ष की प्रातः सबसे अनूठी है। हो भी क्यों नहीं, आज ही तो सुबह की सबसे पहली किरण के साथ नया वर्ष हमारे घर-आंगन में, हमारे जीवन में आया है। समूची सृष्टि में विधान बनकर वही चहुं ओर छाया है। नव वर्ष के आगमन की खुशी में प्राची में उषा ने अपना प्राचीन आंचल उतार फेंका है। इसका मुख दिव्य रक्तकमल की भांति उद्भासित है और हर क्षण स्वर्ण की कांति का दसों दिशाओं में विकिरण कर रहा है। वसुंधरा के आंगन में नए सूरज का उदय हुआ है। नए सूरज की हर किरण में नई संभावनाओं की झिलमिल है, जागृत आत्माओं की अंतर्चेतना में एक एहसास, एक अनुभूति है कि जगत और जीवन में इस नए वर्ष में बहुत कुछ नया प्रस्तुत होगा। भौतिक पदार्थ एवं परिस्थितियों की अप्रत्याशित उलट-पुलट के बीच कुछ नया दिखेगा, वह आध्यात्मिक अंतर्चेतना में एक नए आलोक का अवतरण करेगा। समूची सृष्टि को अपनी स्वर्णिम किरणों से ज्योतिर्मय कर रहे आज के सूर्य का यही संदेश है।

यह सूर्य दिव्य चेतना से चेतन है। इसके प्रकाश में परिस्थितियों के भविष्य स्वरूप की आध्यात्मिक अंतर्संभावनाओं की अनेक झांकियां झलक रही हैं। सर्वज्ञ चेतना में उठने वाले नए वर्ष की विशेषताओं को, विशिष्टताओं को साफ-साफ देखा जा सकता है। बहुत ही स्पष्ट ढंग से देश और धरती में कुछ नया अवतरित होता हुआ नजर आ रहा है। संभावनाओं का ज्वार सब और जोर-जोर से उमग रहा है। बाहर और आंतरिक जीवन की ओर भागी चली आ रही ये संभावनाएं तो बड़ी ही प्यारी हैं, पर यह सच्चे ढंग से साकार तभी होंगी, जब हमारी साधना इन्हें बड़ी ही भावपूर्ण रीति से छुएगी।

आज के दिन हम एक नए युग में, स्वर्णिम युग में प्रवेश कर रहे हैं। यह घड़ी युगांतर की है। प्राचीन पीछे छूट रहा है, नवीन जो स्वर्णिम है, आंतरिक प्रसन्नता दे रहा है। हमें चाहिए कि नव वर्ष के आगमन की इस भव्य बेला में अपनी चिंतनधारा को विस्तृत करें, उसे ऊंचा उठाएं, उसे उर्ध्वमुखी बनाएं, अपने हृदय के द्वार खोल उसे विश्व प्रेम से भरपूर करें, धार्मिक और जातीय सीमाओं का अतिक्रमण कर मानवमात्र की सेवा करें, संपूर्ण मानवता को खोखली मान्यताओं से बाहर लाएं और महान विचारकों-विद्वानों द्वारा अनुभूत सत्य को अपने विचारों का आधार बनाएं।

नए वर्ष की मांगों के अनुसार साधना करते हुए अपने स्वभाव में नमनीयता लाएं और विकसित होती हुई मानवता के साथ अपने चिंतन एवं दर्शन का भी विकास करें। शास्त्रों के मौलिक सत्य को और परिवर्तित रखते हुए उसके व्यावहारिक पक्ष को यथोचित ग्रहण करें, नए क्षितिजों में प्रवेश संभव बनाएं, जीवन के प्रति नया दृष्टिकोण अपनाएं, जो जीवन के त्याग में नहीं, उसे आध्यात्मिक स्तर पर उठाने की सच्ची सफलता मानता है, ऐसा मंत्र, जो एक नए आलोक को सजाने-संवारने में पुरुषार्थ की सार्थकता समझता है।

नव वर्ष पर अवतरित होती हुई आध्यात्मिक चेतना के प्रति अगर हम आज सचेतन बने, इसके आलोक में जीवन-मार्गों पर अग्रसर हों, तो उज्ज्वल भविष्य की स्थापना अवश्य हो पाएगी। धरती का कोना-कोना प्रकाशपूर्ण चेतना से भर उठेगा। संपूर्ण मानव जाति में युगांत्रीय चेतना के प्रति उद्घाटन होगा, जिसके द्वारा संसार अपनी सब समस्याओं का समाधान कर सकता है। इससे हमें ज्ञान और अज्ञान के मिश्रित वर्तमान जीवन से ऊपर उठने ऊपर उठाने में समर्थ होगा, तभी हमारी चेतना आध्यात्मिक विकास कर सकेगी, देश और धरती का भी कल्याण हो सकेगा, नव वर्ष की प्रातः उदय हो रहे सूर्य का यही संदेश है कि उसकी झिलमिलाहट से संसार जगमग हो, उसके प्रभाव,प्रकाश और दीप्ति संसार को आलोकित कर दे और उसकी ऊष्मा सारी संभावनाओं के द्वार खोल दे, यही नव वर्ष का सदुपदेश है-

वर्ष नव,
हर्ष नव,
जीवन उत्कर्ष नव।
नव उमंग,
नव तरंग,
जीवन का नव प्रसंग।
नवल चाह,
नवल राह,
जीवन का नव प्रवाह।
गीत नवल,
प्रीत नवल,
जीवन की रीति नवल,
जीवन की नीति नवल,
जीवन की जीत नवल!

मीता गुप्ता

नव वर्ष में होगा ‘यूँ ही कोई मिल गया’ पॉडकास्ट का डिजिटल लॉंच

 





नमस्कार दोस्तों,मैं मीता गुप्ता.....लेकर आ रही हूँ अपनी वाचिक प्रस्तुति.....'यूँ ही कोई मिल गया'.....बस चंद घंटे शेष....कल नव वर्ष के नूतन विहान में...स्नेह दीजिए....आशीर्वाद दीजिए....मेरे चैनल को सब्सक्राइब कीजिए yunhikoimilgaya.com

नव वर्ष में होगा ‘यूँ ही कोई मिल गया’ पॉडकास्ट का डिजिटल लॉंच
डॉ मीता गुप्ता बरेली की जानी-मानी साहित्यकार हैं। वे एक हिंदी शिक्षिका होने के साथ-साथ यूट्यूबर, ब्लॉगर, समाजसेविका भी हैं। हाल ही में उन्होंने पॉडकास्टिंग के क्षेत्र में पदार्पण करने के विषय में सोचा तो हमने उनसे भेंट कर उनसे चंद प्रश्न पूछे। सबसे पहले हम यह जानना चाहते थे कि पॉडकास्टिंग का विचार उनके मन में कैसे आया? उन्होंने ने बताया कि उन्हें हर उसे कार्य को करने में आनंद आता है, जो चुनौतीपूर्ण हो। उन्होंने अपने जीवन में शिक्षण के साथ-साथ कई साहित्यिक ऑनलाइन और ऑफलाइन परिचर्चाओं और कवि गोष्ठियों में भाग लिया, युट्यूबिंइग, ब्लॉगिंग आदि कार्य वे वर्षों से कर रही हैं, पर पॉडकास्टिंग के कार्य ने उन्हें इसलिए लुभाया क्योंकि यह उनके लिए एक नई चुनौती थी और हिंदी के प्रचार और प्रचार का एक सहज और सक्षम माध्यम था। इसलिए वे अपने पहले पॉडकास्ट यानी वाचिक प्रस्तुति ‘यूँ ही कोई मिल गया’ को लेकर 1 जनवरी 2024 को आ रही हैं। इस पॉडकास्ट की कुल मिलाकर 25 कड़ियां होंगी, जिसका आरंभ 1 जनवरी 2024 को होगा और अंतिम कड़ी 1 जनवरी 2025 को प्रसारित होगी। उनकी वेबसाइट का नाम है- yunhikoimilgaya.com इसी वेबसाइट के माध्यम से पॉडकास्ट की सभी ऐप जैसे स्पॉटिफाई, गूगल पॉडकास्ट, एप्पल पॉडकास्ट, यूट्यूब, कुकु एफ़ एम, ऑडिबल आदि पर सुना जा सकता है।
जब उनसे पूछा कि आपका इस पॉडकास्ट की थीम क्या है तो उन्होंने बताया कि समय-सरिता के अजस्र प्रवाह में बहता जीवन अनुभवों और अनुभूतियों की पोटली होता है। इन्हीं में से कुछ प्रसंगों को उन्होंने अपनी वाचिक प्रस्तुति में समेटा है। अनुभव ही मेरे सृजन की शक्ति रहे हैं, अनुभव जो हृदय को आलोड़ित-विलोड़ित कर आत्म-मंथन की स्थिति तक पहुँचा दें ।जीवन की राह पर चलते-चलते मुझे प्रेम रसायन मिल गया, जो युगों-युगों से शाश्वत है। यही है जो आसमान को झुकाता है। धरती को महकाता है। कहीं पहाड़, तो कहीं वृक्ष बन जाता है। कहीं बूँद बन कर बहता है, कहीं रेत बन कर सिमटता है। कहीं गीत बन कर सजता है, कहीं साज़ बन कर बज उठता है। कहीं रीत, कहीं प्रीत, कहीं हार और कहीं जीत बन कर ढलता रहा है और ढलता रहेगा। कृष्ण की बाँसुरी ने कभी किसी को आवाज़ देकर नहीं पुकारा लेकिन यकीनन उस बाँसुरी में यह रसायन सुर बन कर ढला होगा। राम के पवित्र पैरों से कोई पत्थर क्या यूँ ही स्त्री बन गया होगा? शिव की जटा पर गंगा किस रसायन की वजह से थमी होगी ? दिखता नहीं पर यक़ीनन महसूस होता है। यह नसों में बहता है लहू बनकर। आसमानों से बरसता है बूँद बन कर, धड़कनों में बसता है साँस बन कर। दिलों में सिसकता है आह बन कर, तो आँखों से टपकता है अश्रु बन कर। गालों पर चिपके तो खारा लगता है। होठों पर सजे तो मीठा-सा...
प्रेम-रसायन, अध्यात्म, मानव-प्रेम, ईश-वंदना, सच्चाई, अहंकार, सरलता, इश्क और सामाजिक सरोकारों जैसे नवरत्नों से जड़ा है यह पॉडकास्ट। उनका मानना है कि जिसे ईश्वर में विश्वास है, प्राणिमात्र से प्रेम है और हिंदी भाषा के लिए आदर-भाव है, उसे यह पॉडकास्ट खूब भाएगा।
यह QR कोड yunhikoimilgaya.com वेबसाइट का है, जिसको स्कैन करके 1 जनवरी 2024 से हर पंद्रह दिनों में नया एपिसोड निःशुल्क सुना जा सकता है।
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Meeta Gupta

Saturday, 23 December 2023

क्रिसमस का त्योहार: शांति और सद्भावना का प्रतीक

क्रिसमस का त्योहार: शांति और सद्भावना का प्रतीक 

क्रिसमस एक बड़ा धार्मिक और सांस्कृतिक त्योहार है जो हर साल 25 दिसंबर को मनाया जाता है। यह यीशुइयों का सबसे बड़ा त्योहार है। इसी दिन यीशु मसीह (जीसस क्राइस्ट) का जन्म हुआ था, इसलिए इसे बड़ा दिन भी कहते हैं। क्रिसमस के पहले वाली रात में गिरजाघरों में प्रार्थना सभा की जाती है, जो रात के 12 बजे तक चलती है। अगली सुबह चर्च में होने वाली प्रार्थना के बाद, लोग एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं और शुभकामनाएं देते हैं।
क्रिसमस शांति का संदेश लाता है। पवित्र शास्त्र में यीशु को शांति का राजकुमार कहा गया है। यीशु हमेशा अभिवादन के रूप में कहते थे कि शांति तुम्हारे साथ हो, शांति के बिना किसी का अस्तित्व संभव नहीं है। घृणा, संघर्ष, हिंसा और युद्ध का धर्म को इस धर्म में कोई जगह नहीं दी गई है। शायद यही वजह है कि क्रिसमस किसी एक देश या राष्ट्र में नहीं, बल्कि दुनियाभर में धूमधाम से मनाया जाता है। क्रिसमस के दौरान यीशु मसीह की प्रशंसा में लोग कैरोल गाते हैं। इस दिन लोग अपने घरों को क्रिसमस ट्री से सजाते हैं। घर के हर एक कोने को रोशन कर देते हैं। इस दिन के अवसर पर लोग एक दूसरे को गिफ्ट देते हैं और एक-दूसरे के साथ अपनी खुशियों को साझा करते हैं।
क्रिसमस के दिन लोग चर्च में जाकर विशेष प्रार्थनाएं करते हैं और यीशु मसीह के जन्म के अवसर पर उनकी महत्ता को याद करते हैं। क्रिसमस का त्योहार सामाजिक एकता, सद्भावना, दानशीलता, और प्रेम की भावना को बढ़ाता है और लोगों को एक-दूसरे के साथ जुड़ने और मिलने के लिए प्रोत्साहित करता है।यह दिन खुशी, प्रेम, समर्पण, और दान के भाव से मनाया जाता है।
क्रिसमस का त्योहार क्रिसमस ट्री और सेंटा क्लॉज  के साथ जुड़ा हुआ है। क्रिसमस ट्री एक विशेष पेड़ को संकेतित करता है, जिसे क्रिसमस के अवसर पर घरों में सजाया जाता है। इस पर रंग-बिरंगे लाइट्स, गहरे रंग के गोलियां, शीशे, और विभिन्न सजावटी सामग्री जैसे कि तार, झूमर, गुब्बारे, इत्यादि लगाए जाते हैं। यह परंपरागत रूप से जर्मनी से उद्भूत है, लेकिन आजकल यह दुनिया भर में मान्यता प्राप्त किया है। क्रिसमस ट्री को विशेष रूप से क्रिसमस इव  पर सजाया जाता है। सेंटा क्लॉज एक प्रसिद्ध पारंपरिक चरित्र है, जो बच्चों के लिए खुशी और उपहार लाने वाला दिव्य व्यक्ति होता है। उन्हें लाल वस्त्रों, सफेद दाढ़ी, और ढेर सारे उपहारों की बोरी लेकर चित्रित किया जाता है। यह पौराणिक कथाओं और क्रिसमस की कहानियों का हिस्सा है। क्रिसमस ट्री और सेंटा क्लॉज क्रिसमस के त्योहार को रोशनी, आनंद, और उत्साह के साथ मनाने में मदद करते हैं और इसे और भी रंगीन बनाते हैं।
क्रिसमस के अवसर पर हमें इतिहास के पन्नों पर दृष्टि डालनी होगी। 2000 साल पहले, पैलेस्टाइन के एक अव्यस्त गाँव के अस्तबल में, एक बच्चे का जन्म हुआ। आज पूरा संसार यीशु मसीह के जन्म का उत्सव मना रहा है, और उनके जीवन ने इतिहास का मार्ग बदल दिया। यीशु मसीह का परमेश्वर से सम्बंध इतना गहरा था कि उसने कहा कि उसे जानना प्रभु को जानना था, उसे देखना प्रभु को देखना था, उसपर विश्वास करना प्रभु पर विश्वास करना था, उसे ग्रहण करना प्रभु को ग्रहण करना था, उससे बैर रखना प्रभु से बैर रखना था और उसका आदर करना प्रभु का आदर करना था।
यीशु के जीवन अद्वितीय नैतिक चरित्र व उनकी जीवन शैली इस तरह की थी कि वह अपने शत्रुओं को अपने प्रश्नों द्वारा चुनौती दे सकते थे, “तुम में से कौन मुझे पापी ठहरा सकता है?”उन्हें चुप्पी मिली (कोई कुछ ना बोल सका)।

यीशु मसीह  जीवन को उद्देश्य और दिशा देते हैं। “जगत की ज्योति मैं हूँ,” वह कहते हैं। “जो मेरे पीछे हो लेगा वह अन्धकार में न चलेगा, परन्तु जीवन की ज्योति पाएगा।”कई लोग सामान्य रूप से जीवन के उद्देश्य, और विशेष रूप से अपने स्वयं के जीवन के बारे में, अंधेरे में हैं। ऐसा महसूस होता है जैसे की वो अपने जीवन में बत्ती जलाने वाला स्विच खोज रहे हैं। जो कोई भी अंधेरे में, या किसी अपरिचित कमरे में रहा है, वह असुरक्षा की भावना के बारे में बहुत अच्छे से जनता है। लेकिन, जब बत्ती जलती है, तो एक सुरक्षा की भावना होती है। ठीक ऐसे ही महसूस होता है जब हम अंधेरे से, यीशु मसीह की ज्योति में कदम रखते हैं।
आप यीशु के साथ एक घनिष्ट संबंध इसी समय स्थापित कर सकते हैं। आप पृथ्वी पर, इस जीवन में परमेश्वर को व्यक्तिगत रूप से जान सकते हैं, और मरने के बाद अनंत काल में। यहाँ परमेश्वर का वायदा है, जो उसने हमसे किया है: “क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उसने अपना इकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उसपर विश्वास करे, उसका नाश न हो, परन्तु वह अनन्त जीवन पाए।” यीशु ने हमारे पापों को, क्रूस पर, अपने ऊपर ले लिया। हमारे पापों के लिए उन्होंने दंड स्वीकार किया, ताकि हमारे पाप उनके और हमारे बीच में दीवार न बन सकें। क्योंकि उन्होंने हमारे पापों का पूरा भुगतान किया, वह हमें पूर्ण क्षमा और अपने साथ एक रिश्ता प्रदान करते हैं। यीशु ने कहा, “देख, मैं [तेरे हृदय के] द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूं; यदि कोई मेरा शब्द सुन कर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके घर में प्रवेश करूँगा…।



मीता गुप्ता

Wednesday, 13 December 2023

दरकते पर्वत, कराहता जीवन

दरकते पर्वत, कराहता जीवन
मेरे नगपति! मेरे विशाल!
साकार, दिव्य, गौरव विराट्,
पौरुष के पुन्जीभूत ज्वाल!
मेरी जननी के हिम-किरीट!
मेरे भारत के दिव्य भाल!
मेरे नगपति! मेरे विशाल!

राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ द्वारा रचित इन पंक्तियों को जब=जब याद करती हूं, मानो हृदय में कुछ दरक जाता है, दरकते हिमालय पर्वत की तरह्। पर्वतों की वादियां जितनी हसीन होती हैं, उतनी ही खतरनाक भी। खूबसूरत पर्वतों की ज़िंदगी की तस्वीर बेहद भयावह है। गरीबी, बेरोज़गारी के साथ ही आपदा का कहर कब यहां के निवासियों को अपने आगोश में ले लेगा, यह कोई नहीं जानता। पर्वत सिर्फ बरसात में ही नहीं दरकते, बल्कि सामान्य दिनों में भी भू-स्खलन का दंश झेलते हैं। दरकते पर्वत सालभर इंसानी ज़िंदगी को निगलते रहते हैं। यूं तो पर्वतों का दरकना कोई नई बात नहीं है, लेकिन व्यवस्था की अनदेखी और अंधाधुंध अनियोजित विकास ने इंसानी ज़िंदगी के नुकसान में कई गुना इज़ाफ़ा किया है। हर साल सैकड़ों लोग अपनी जान गंवाते हैं। इनमें से कुछ सरकारी फाइलों में दर्ज हो जाते हैं और कुछ गुमनाम ही रह जाते हैं। हज़ारों लोगों के आशियाने उजड़ जाते हैं और जाने कितने लोग भूख से दम तोड़ देते हैं। सरकारी दस्तावेजों में इनकी दुश्वारियां कहीं दर्ज नहीं हो पातीं। सबसे अधिक दुश्वारियां सीमांत क्षेत्र के निवासियों को झेलनी पड़ती हैं। खास तौर पर हिमाचल और उत्तराखंड के सीमावर्ती गांव के लोगों को।
उत्तराखंड के पिथौरागढ़, पौड़ी गढ़वाल और टिहरी गढ़वाल के कई गांव ऐसे हैं, जहां तक प्रशासन भी नहीं पहुंच सका है। इन गांवों में पहुंचने के लिए आज भी 10 से 15 किमी पैदल कच्चे रास्तों पर चढ़ाई चढ़नी पड़ती है। पिथौरागढ़ जिले के एक गांव नामिक इन्हीं दुश्वारियों की गवाही देता है। इस गांव के लोगों को वोट डालने के लिए आज भी मतदान के लिए 24 किमी का पैदल सफर तय करना पड़ता है। हिमाचल प्रदेश के लाहौल स्पीति के दर्जनों गांव छह माह तक पूरे प्रदेश से कटे रहते हैं। आपदा के साथ ही सबसे बड़ी दुश्वारी बर्फीले पर्वतों में कड़ाके की ठंड के बीच पेट की आग बुझाने की होती है। इन पहाड़ी गांवों में दैनिक उपयोग के किसी भी सामान या खाद्य पदार्थ के लिए मैदानी इलाकों की तुलना में कई गुना अधिक कीमत चुकानी पड़ती है। मसलन, नमक का एक किलो का जो पैकेट मैदानी इलाकों में 25 से 30 रुपये में मिल जाता है, पहाड़ी शहरों में उसकी कीमत 40 से 45 रुपये हो जाती है, कस्बों में यही नमक 60 से 70 रुपये किलो तक बिकता है और सीमांत इलाकों में पहुंचते-पहुंचते इसकी कीमत डेढ़ सौ से दो सौ रुपये तक पहुंच जाती है। यही हाल अन्य खाद्य पदार्थों का भी होता है।
दस साल पहले जून 2013 में जब उत्तराखंड के केदारनाथ में आपदा ने कहर बरपाया था, तो कुमाऊं के सीमावर्ती एवं सीमांत इलाकों में भी भारी तबाही आई थी। उस आपदा से मिले ज़ख्मों को आज तक सरकारी व्यवस्था कुरेदने में लगी हुई है। केदारनाथ के बाद भी कई आपदाएं आईं, लेकिन वह मीडिया की सुर्खियां नहीं बटोर सकीं और खूबसूरत वादियों में ही दफ़न हो गईं। उत्तराखंड आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केंद्र के आंकड़ों के अनुसार, 2014 से 2020 के बीच राज्य में आई प्राकृतिक आपदाओं में करीब 600 लोगों की जान गई, जबकि 500 से अधिक घायल हुए। 2021 में उत्तराखंड में ऋषिगंगा में अचानक आई बाढ़़ से 200 से अधिक लोगों की मौत हो गई। इसके अलावा चमोली जिले के रेणी और तपोवन इलाकों में भारी तबाही हुई, जहां दो जल विद्युत परियोजनाओं को भी नुकसान उठाना पड़ा। पिछले साल हिमाचल में जुलाई में किन्नौर की सांगला घाटी में भी ऐसी ही तबाही देखने को मिली थी। फिर जोशीमठ के दरकते पर्वत और अब हिमाचल प्रदेश के मंडी, सोलन और शिमला सहित विभिन्न जिलों में कुदरत ने जो कहर बरपाया है उसके लिए कुदरत के साथ ही सरकारी तंत्र भी जिम्मेदार है।
वर्ष 1970 और इसके बाद अलकनंदा नदी में कई बार बाढ़ आई है, जिस कारण जोशीमठ में भू-धंसाव और घरों में दरार पड़ने की घटनाएं सामने आईं। तब अलकनंदा नदी की बाढ़ ने जोशीमठ समेत अन्य स्थानों पर तबाही मचाई थी। वर्ष 1976 में गढ़वाल के तत्कालीन मंडलायुक्त की अध्यक्षता में कमेटी गठित की। कमेटी ने 47 साल पहले ही ऐसे खतरों को लेकर सचेत कर दिया था। लेकिन सरकारी तंत्र ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। कहते हैं पर्वत का पानी और पर्वत की जवानी कभी पर्वत के काम नहीं आती। इसकी सबसे बड़ी वजह दरकते पर्वतों के बीच खौफ़ज़दा ज़िंदगी ही है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) और डाउन टू अर्थ पत्रिका की एक रिपोर्ट के अनुसार, हिमाचल प्रदेश में वर्ष 2022 में प्राकृतिक आपदा से देश में सर्वाधिक 359 लोगों की मौत हुई। वहीं, 31 जुलाई 2000 की मध्यरात्रि को सतलुज घाटी में एक भीषण आपदा आई। इससे तिब्बती पठार से लेकर गोविंद सागर झील तक लगभग 250 किमी तक सतलुज नदी का जलस्तर 60 फीट तक बढ़ गया।
अनेक  वर्षों में पहली बार ऐसी बाढ़ आई थी। इससे लगभग 200 किमी लंबी सड़क क्षतिग्रस्त हो गई। लगभग दो दर्जन पुल बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए थे। लगभग 1,000 सिंचाई, सीवरेज, बाढ़ सुरक्षा और जल आपूर्ति योजनाएं ध्वस्त हो गई थीं। पर्वतों से जन-पलायन की सबसे बड़ी वजह यही प्राकृतिक आपदाएं हैं। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के गांव के गांव अब खाली हो चुके हैं। कुछ लोगों को आपदा निगल गई तो कुछ रोज़ी-रोज़गार की तलाश में पलायन कर गए। कई गांव ऐसे हैं जो अंतिम सांसें गिन रहे हैं। ये आधे से ज्यादा खाली हो चुके हैं। जो यहां रह रहे हैं, वे भी पलायन का इंतजार कर रहे हैं। सरकारी उपेक्षा का दंश झेल रहे पर्वतों के निवासियों की सिसकियां इन्हीं पर्वतों में दफ़न होती जा रही हैं। क्या यही है सुंदर पर्वतों का भविष्य ?
दरकते पहाड़ ने कहा
मुझे संभाल मैं गिर रहा हूँ...
पत्थर के सौदागर ने कहा, तू गिर
तुझे बेचकर ही खाऊंगा मैं...।।
इन मशीनी हाथों से
छिन्न-भिन्न जो कर दिया है तुझे मैंने...
तेरा कद छोटा जो रोज़ हुआ जा रहा है...
फिर बेच आऊंगा तुझे टुकड़ो में दलालों के पास,
पैसा-पैसा जोड़ कर फिर तेरा अस्तित्व ही मिटाना
है मुझे...।।
मत रोना रो अपने गिरने का
तुझसे मेरा कारोबार चल रहा है...
न रुकूँगा मैं तब तक,
जब तक तू पहाड़ से मैदान नहीं हो जाता है...।।





मीता गुप्ता

Tuesday, 12 December 2023

डीपफेक से सब हैरान..परेशान

डीपफेक से सब हैरान..परेशान
क्या है डीपफेक?
 डीपफेक एआई एक प्रकार की कृत्रिम बुद्धिमत्ता है, जिसका प्रयोग ठोस छवियां, ऑडियो और वीडियो धोखाधड़ी बनाने के लिए किया जाता है। यह शब्द प्रौद्योगिकी और फर्जी सामग्री दोनों का वर्णन करता है, और यह डीप लर्निंग और फेक यानी झूठ का एक सम्मिश्रण है। डीपफेक अक्सर मौजूदा स्रोत सामग्री को बदल देते हैं, एक व्यक्ति को दूसरे से बदल दिया जाता है। वे पूरी तरह से मौलिक सामग्री भी बनाते हैं, जहां किसी को कुछ ऐसा करते या कहते हुए दर्शाया जाता है जो उन्होंने नहीं किया या कहा नहीं। डीपफेक द्वारा उत्पन्न सबसे बड़ा खतरा झूठी जानकारी फैलाने की उनकी क्षमता है जो विश्वसनीय स्रोतों से आती प्रतीत होती है। उदाहरण के लिए, 2022 में यूक्रेनी राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की का एक डीपफेक वीडियो जारी किया गया था जिसमें वे अपने सैनिकों को आत्मसमर्पण करने के लिए कह रहे थे। डीपफेक के कई उल्लेखनीय उदाहरण हैं, जिन्होंने दुनिया पर अपना प्रभाव छोड़ा है जैसे, फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग एक डीपफेक का शिकार हुए थे, जिसमें उन्हें इस बारे में शेखी बघारते हुए दिखाया गया था कि फेसबुक अपने प्रयोगकर्ताओं का "मालिक" कैसे है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन,पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा और डोनाल्ड ट्रम्प भी डीपफेक वीडियो के शिकार हुए हैं, कुछ गलत सूचना फैलाने के लिए और कुछ व्यंग्य और मनोरंजन के लिए। ऐसे में डीपफेक गंभीर खतरे पैदा करते हैं, वैसे उनके वैध प्रयोग भी होते हैं, जैसे वीडियो गेम ऑडियो और मनोरंजन, और ग्राहक सहायता और कॉलर प्रतिक्रिया एप्लिकेशन, जैसे कॉल फ़ॉरवर्डिंग और रिसेप्शनिस्ट सेवाएं।
आइए, अब डीपफेक एआई तकनीक के इतिहास पर बात करते हैं...
डीपफेक एआई एक अपेक्षाकृत नई तकनीक है, जिसकी उत्पत्ति एडोब फोटोशॉप जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से तस्वीरों के हेरफेर से हुई । 2010 के मध्य तक, सस्ती कंप्यूटिंग शक्ति, बड़े डेटा सेट, एआई और मशीन लर्निंग तकनीक सभी ने मिलकर गहन शिक्षण एल्गोरिदम के परिष्कार को बेहतर बनाया।
2014 में, डीपफेक के केंद्र में स्थित GAN तकनीक को मॉन्ट्रियल विश्वविद्यालय के शोधकर्ता इयान गुडफेलो द्वारा विकसित किया गया था। 2017 में, "डीपफेक" नाम के एक गुमनाम Reddit प्रयोगकर्ता ने मशहूर हस्तियों के डीपफेक वीडियो जारी करना शुरू किए, साथ ही एक GAN टूल भी जारी किया, जो प्रयोगकर्ताओं को वीडियो में चेहरे बदलने की सुविधा देता है। ये इंटरनेट और सोशल मीडिया पर बहुत वायरल हुए।
डीपफेक सामग्री की अचानक लोकप्रियता ने फेसबुक, गूगल और माइक्रोसॉफ्ट जैसी तकनीकी कंपनियों को डीपफेक का पता लगाने के लिए उपकरण विकसित करने में निवेश करने के लिए प्रेरित किया। डीपफेक से निपटने और डीपफेक का पता लगाने की चुनौती से निपटने के लिए तकनीकी कंपनियों और सरकारों के प्रयासों के बावजूद,यह  प्रौद्योगिकी लगातार आगे बढ़ रही है और तेजी से विश्वसनीय डीपफेक छवियां और वीडियो तैयार कर रही है।
यह जानना अत्यंत रोचक होगा कि डीपफेक काम कैसे करते हैं?
डीपफेक नकली सामग्री बनाने और परिष्कृत करने के लिए दो एल्गोरिदम - एक जनरेटर और एक  विभेदक - का प्रयोग करता है। जनरेटर वांछित आउटपुट के आधार पर एक प्रशिक्षण डेटा सेट बनाता है, प्रारंभिक नकली डिजिटल सामग्री बनाता है, जबकि discriminator विवेचक विश्लेषण करता है कि सामग्री का प्रारंभिक संस्करण कितना यथार्थवादी या नकली है। इस प्रक्रिया को दोहराया जाता है, जिससे जनरेटर को यथार्थवादी सामग्री बनाने में सुधार करने की अनुमति मिलती है और जनरेटर को सही करने के लिए त्रुटियों को पहचानने में विभेदक अधिक कुशल हो जाता है।
जनरेटर और विभेदक एल्गोरिदम का संयोजन एक जेनरेटिव प्रतिकूल नेटवर्क बनाता है। एक जेनरेटिव एडवरसैरियल नेटवर्क, जो एक मशीन लर्निंग का एक रूप है, वास्तविक छवियों में पैटर्न को पहचानने के लिए गहन शिक्षण का प्रयोग करता है और फिर नकली बनाने के लिए उन पैटर्न का प्रयोग करता है। डीपफेक तस्वीर बनाते समय, GAN प्रणाली सभी विवरणों और दृष्टिकोणों को पकड़ने के लिए लक्ष्य की तस्वीरों को विभिन्न कोणों से देखती है और व्यवहार, गति और भाषण पैटर्न का भी विश्लेषण करती है। अंतिम छवि या वीडियो को ठीक करने के लिए इस जानकारी को discriminator के माध्यम से कई बार चलाया जाता है।
डीपफेक वीडियो दो तरीकों से बनाए जाते हैं। वे लक्ष्य के मूल वीडियो स्रोत का प्रयोग कर सकते हैं, जहां व्यक्ति को वो बातें कहने और करने के लिए कहा जाता है जो उन्होंने कभी नहीं कहीं या कभी नहीं कीं; या वे उस व्यक्ति के चेहरे को किसी अन्य व्यक्ति के वीडियो से बदल सकते हैं, जिसे फेस स्वैप भी कहा जाता है। डीपफेक बनाने के कुछ विशिष्ट तरीकों में  स्रोत वीडियो डीपफेक, ऑडियो डीपफेक,लिप सिंकिंग डीपफेक आदि हैं। मशीन लर्निंग, डीप लर्निंग और न्यूरल नेटवर्क कुछ प्रमुख प्रौद्योगिकियां हैं जिनका प्रयोग डीपफेक विकसित करने के लिए किया जाता है। दरअसल, एक एल्गोरिदम को मूर्ख बनाना डीपफेक की सफलता की कुंजी है।
आइए, अब बात करते हैं कि आमतौर पर डीपफेक का प्रयोग कैसे किया जाता है?
डीपफेक का प्रयोग काफी भिन्न तरीके से होता है, जैसे किसी कलाकार के काम के मौजूदा हिस्सों का प्रयोग करके नया संगीत उत्पन्न करने के लिए डीपफेक का प्रयोग किया जाता है। ब्लैकमेल और प्रतिष्ठा को नुकसान के उदाहरण तब होते हैं जब किसी लक्षित छवि को गैरकानूनी, अनुचित या अन्यथा समझौता करने वाली स्थिति में रखा जाता है, जैसे कि जनता से झूठ बोलना, यौन कृत्यों में संलग्न होना या ड्रग्स लेना। इन वीडियो का प्रयोग किसी पीड़ित से जबरन वसूली करने, किसी व्यक्ति की प्रतिष्ठा को बर्बाद करने, बदला लेने या सीधे तौर पर उन्हें साइबर धमकी देने के लिए किया जाता है। सबसे आम ब्लैकमेल या बदला लेने का प्रयोग गैर-सहमति वाला डीपफेक पोर्न है, जिसे रिवेंज पोर्न के रूप में भी जाना जाता है। कॉलर प्रतिक्रिया सेवाओं के अंतर्गत कॉल करने वाले के अनुरोधों पर वैयक्तिकृत प्रतिक्रियाएँ प्रदान करने के लिए डीपफेक का प्रयोग करती हैं जिनमें कॉल फ़ॉरवर्डिंग और अन्य रिसेप्शनिस्ट सेवाएँ शामिल होती हैं। ग्राहक फ़ोन सहायता सेवाएँ खाते की शेष राशि की जाँच करने या शिकायत दर्ज करने जैसे सरल कार्यों के लिए नकली आवाज़ों का प्रयोग करती हैं। मनोरंजन के क्षेत्र में फिल्मों और वीडियो गेम में कुछ दृश्यों के लिए अभिनेताओं की आवाज़ का क्लोन बनाते हैं और उसमें हेरफेर करते हैं। मनोरंजन माध्यम इसका प्रयोग तब करते हैं जब किसी दृश्य को शूट करना कठिन होता है, पोस्ट-प्रोडक्शन में जब कोई अभिनेता अपनी आवाज़ रिकॉर्ड करने के लिए सेट पर नहीं होता है, या अभिनेता और प्रोडक्शन टीम का समय बचाने के लिए। डीपफेक का प्रयोग व्यंग्य और पैरोडी सामग्री के लिए भी किया जाता है, जिसमें दर्शक समझते हैं कि वीडियो वास्तविक नहीं है, कानूनी मामले में अपराध या निर्दोषता का संकेत देने वाले सबूत के रूप में किया जा सकता है।
•धोखा देने के उद्देश्य से डीपफेक का प्रयोग किसी व्यक्ति की पर्सनली आइडेंतेफाइएबल इनफॉर्मेशन (पीआईआई), जैसे बैंक खाता और क्रेडिट कार्ड नंबर प्राप्त करने हेतु प्रतिरूपण करने के लिए किया जाता है। इसमें कभी-कभी संवेदनशील जानकारी तक पहुंचने के लिए कंपनियों के अधिकारियों या अन्य कर्मचारियों का प्रतिरूपण करना शामिल हो सकता है, जो एक बड़ा साइबर सुरक्षा खतरा है।
• गलत सूचना और राजनीतिक हेरफेर के उद्देश्य से राजनेताओं या विश्वसनीय स्रोतों के डीपफेक वीडियो का प्रयोग जनता की राय को प्रभावित करने के लिए किया जाता है 
• स्टॉक में हेरफेर करने में किसी कंपनी के शेयर मूल्य को प्रभावित करने के लिए डीपफेक सामग्रियों का प्रयोग किया जाता है। 
क्या डीपफेक कानूनी हैं?
डीपफेक आम तौर पर कानूनी होते हैं, और गंभीर खतरों के बावजूद, कानून प्रवर्तन उनके बारे में बहुत कम बात करता है। डीपफेक केवल तभी अवैध हैं जब वे बाल पोर्नोग्राफ़ी, मानहानि या घृणास्पद भाषण जैसे मौजूदा कानूनों का उल्लंघन करते हैं।
डीपफेक के खिलाफ कानूनों की कमी का कारण यह है कि ज्यादातर लोग नई तकनीक, उसके प्रयोग और खतरों से अनजान हैं। इस वजह से डीपफेक के ज्यादातर मामलों में पीड़ितों को कानून के तहत सुरक्षा नहीं मिल पाती है।
डीपफेक कैसे खतरनाक हैं?
डीपफेक काफी हद तक कानूनी होने के बावजूद महत्वपूर्ण खतरे पैदा करते हैं, जैसे:
• ब्लैकमेल और प्रतिष्ठा को नुकसान जो लक्ष्यों को कानूनी रूप से समझौतावादी स्थितियों में डाल देता है।
• राजनीतिक गलत सूचना जैसे कि राष्ट्र राज्यों के ख़तरनाक अभिनेता इसका प्रयोग नापाक उद्देश्यों के लिए कर रहे हैं।
• चुनाव में हस्तक्षेप, जैसे उम्मीदवारों के फर्जी वीडियो बनाना।
• स्टॉक हेरफेर जहां स्टॉक की कीमतों को प्रभावित करने के लिए नकली सामग्री बनाई जाती है।
• धोखाधड़ी जहां एक व्यक्ति को वित्तीय खाते और अन्य पीआईआई चुराने के लिए प्रतिरूपित किया जाता है।
कैसे पता करें डीपफेक का?
आमतौर पर डीपफेक हमलों को समझना काफ़ी मुश्किल है, फिर भी कुछ संकेतों को समझा जा सकता है, जैसे,चेहरे की असामान्य या अजीब स्थिति, चेहरे या शरीर की अप्राकृतिक हरकत, अप्राकृतिक रंग, ऐसे वीडियो जो ज़ूम इन या आवर्धित करने पर अजीब लगते हैं।असंगत ऑडियो, इसमें लोग पलकें नहीं झपकाते, गलत वर्तनी,ऐसे वाक्य जो स्वाभाविक रूप से प्रवाहित नहीं होते, संदिग्ध स्रोत ईमेल पते,वाक्यांश जो कथित प्रेषक से मेल नहीं खाता। हालाँकि, ए आई इनमें से कुछ संकेतकों पर लगातार काबू पा रहा है, परंतु अभी बहुत कुछ करना शेष है।
अब बात आती है कि डीपफेक से कैसे बचाव करें?
कंपनियां, संगठन और सरकारी एजेंसियां, जैसे कि अमेरिकी रक्षा विभाग की रक्षा उन्नत अनुसंधान परियोजना एजेंसी, डीपफेक की पहचान करने और उसे रोकने के लिए तकनीक विकसित कर रही हैं। कुछ सोशल मीडिया कंपनियां वीडियो और छवियों को अपने प्लेटफॉर्म पर अनुमति देने से पहले उनके स्रोत को सत्यापित करने के लिए ब्लॉकचेन तकनीक का प्रयोग करती हैं। इस तरह, विश्वसनीय स्रोत स्थापित होते हैं और नकली को रोका जाता है।
डीपफेक सुरक्षा सॉफ्टवेयर कई कंपनियों से उपलब्ध हैं, जैसे, एडोब, माइक्रोसॉफ्ट आदि
पिछले दिनों 29 नवंबर 2023 को एशिया पैसेफिक ,गूगल के वाइस प्रेज़िडेंट और हेड ऑफ़ और सेफ्टीश्री सैकेत मित्रा ने बताया कि गूगल रचनाकारों को 'सिंथेटिक' या डीपफेक सामग्री के उचित प्रयोग के साथ-साथ इसके दुरुपयोग को रोकने के बारे में शिक्षित करने के लिए एक नीति तैयार कर रहा है। यह नीति यूट्यूब जैसे प्लेटफार्मों पर कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई)-जनित सामग्री के प्रयोग को विनियमित करेगी।
व्यक्तिगत स्तर पर हमें मैसेज या वीडियो पर सहज ही विश्वास नहीं करना है और बिना सोचे-समझे उसे फॉवर्ड तो बिलकुल नहीं करना है। निश्चित तौर पर, चुनौती तो बहुत बड़ी है, पर आने वाले समय में इस समस्या का समाधान भी अवश्य होगा,ऐसी आशा हम सब कर रहे हैं।



मीता गुप्ता

Wednesday, 6 December 2023

‘बाबुल की दुआएं लेती जा, जा तुझको सुखी संसार मिले’

 



बाबुल की दुआएं लेती जा, जा तुझको सुखी संसार मिले-भारतीय समाज में, विवाह में बेटी को विदा करते समय बाबुल भावनात्मक रूप से कई विचार और भावनाएं अनुभव करते हैं। कुछ भावनाएं सामान्य रूप से उनके मन में उत्पन्न होती हैं, जैसे  बाबुल अपनी बेटी पर गर्व करते हैं कि उन्होंने अपनी बेटी को शिक्षा, संस्कार और सामाजिक मूल्यों से युक्त किया है और वह अब एक नए जीवन की शुरुआत के लिए तैयार है। उनका दिल विदा करते समय दुखी भी होता है। वे अपनी बेटी के बिना अकेलेपन का अहसास करते हैं और उन्हें याद करने का दुःख महसूस करते हैं। वे अपनी बेटी से गहरा प्यार करते हैं और नए जीवन के लिए उसे शुभकामनाएं और आशीर्वाद देते हैं। बाबुल का दिल विवाह के समय संवेदनशील होता है। वह बेटी के भविष्य के लिए चिंतित भी हो सकते हैं, लेकिन उन्हें अपनी बेटी का सबसे अच्छा भविष्य चाहिए। साथ ही वे चिंतित भी होते हैं कि उनकी बेटी का नया जीवन न जाने कैसा होगा? वह वहां खुश रहेगी या नहीं, उसकी सुरक्षा और सुख-शांति का ध्यान कौन रखेगा ? वे अपनी बेटियों की विदाई पर कभी उत्साह,  कभी उदासी, कभी प्रेम, कभी आशा और कभी रोमांच के भाव से परिपूरित हो जाते हैं।।

बेटी में भी विदाई के समय पर अनेक भावनाएं हो सकती हैं, जैसे कि उत्सुकता, दुख, प्रसन्नता, असमंजस आदि। यह एक बड़ा पल होता है, जिसमें वह एक नये जीवन की शुरुआत के लिए अपने पिता के बिना घर से बाहर जा रही होती है। इस समय पर वह अपने परिवार और अपने पिता से जुड़ी यादें और विचारों को भी साथ लेती है। कुछ बेटियां उत्सुकता और नई जिंदगी के संदेश के साथ इसे देखती हैं। इस समय पर बेटी अपने पिता की सीख, प्यार और समर्थन को भी याद करती हैं और इसके साथ ही नए संबंध और जीवन की नई चुनौतियों का सामना भी करती हैं।

सामाजिक, सांस्कृतिक और व्यक्तिगत परिस्थितियों के आधार पर, हर बेटी की भावनाएं और सोच अलग-अलग हो सकती हैं। इन सभी भावनाओं का मिश्रण विवाह के समय बेटी के मन में उत्पन्न होता है। वह इस नई यात्रा को अपने जीवन का महत्त्वपूर्ण हिस्सा मानती है और उम्मीद करती है कि वह इसमें खुशियों और समृद्धि से भरा होगा।

 

और न जाने क्या-क्या?

 कभी गेरू से  भीत पर लिख देती हो, शुभ लाभ  सुहाग पूड़ा  बाँसबीट  हारिल सुग्गा डोली कहार कनिया वर पान सुपारी मछली पानी साज सिंघोरा होई माता  औ...