दिव्यांग दिवस पर विशेष
दिव्यांग लोगों की काउंसलिंग और उन्हें समाज की मुख्य धारा में जोड़ने तथा समाज उनके प्रति समाज की सोच को बदलने की आवश्यकता है । आज न केवल सरकार बल्कि समाज तथा लोगों में भी दिव्यांगों के प्रति सहानुभूति के साथ-साथ समानुभूति का भाव भी जगा है । समाज में उनके आत्म सम्मान, उनकी प्रतिभा के विकास ,उनकी शिक्षा , सेहत और अधिकारों के प्रति लोग सजग हुए हैं और जीवन के हर क्षेत्र में, चाहे वह राजनीतिक हो अथवा आर्थिक, सामाजिक हो अथवा सांस्कृतिक हर क्षेत्र में उन्हें शामिल करने के प्रयास किया जा रहे हैं ।
किसी भी प्रकार की शारीरिक अथवा मानसिक दिव्यांग ता एक चुनौती तो जरूर है परंतु यह अभिशाप नहीं है । ऐसा माना जाता है कि यदि हमारी एक इंद्री काम करना बंद करती है तो उसके बदले हमारी सारी इंद्रियां और अधिक सशक्त और सक्षम होकर कार्य करती हैं इसलिए इस बात को याद रखा जाना चाहिए कि वह भी हमारे समाज के अभिन्न अंग हैं हमारी ही परिवारों के सदस्य हैं और उन्हें आज सक्षम और सबल बनाने की आवश्यकता है ना कि उनकी बेबसी या लाचारी पर सहानुभूति दिखाने की लिए इस दिव्यांगता दिवस पर यह संकल्पनी कि हम उन्हें सक्षम बनाएंगे और हर क्षेत्र में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करेंगे
आज देश को यदि आगे ले जाना है तो हमें एक समावेशी समाज की परिकल्पना करनी होगी एक ऐसा समाज जहां हर प्रकार के लोग खुशहाल रह सके और देश की प्रगति में अपनी हिस्सेदारी कर सके ऐसे में हम शारीरिक या मानसिक रूप से सक्षम लोगों के साथ-साथ दिव्यांग लोगों को भी शामिल करें तभी हमारा समाज एक समावेशी समाज बन पाएगा ।
नई शिक्षा नीति के अंतर्गत भी समावेशी शिक्षा पर बल दिया गया है जिससे एक ऐसे समाज का निर्माण हो सके जहां सभी सब कुशल और सक्षम बना सकें। जब विद्यार्थी ऐसी चुनौतियों को झेल रहे विद्यार्थियों को अपनी कक्षा में पाते हैं तो वे उनकी प्रतिभाओं और क्षमताओं को बेहतर ढंग से पहचानते हैं और उनके साथ एक अद्वितीय संबंध बनाते हैं , जिससे देश के नागरिक बनकर जब देश को संवारने निकलते हैं तो वे योजनाएँ बनाते हुए उन्हें भी मुख्यधारा में लाने के लिए प्रयत्नशील रहेंगे।
आज हम हर उसे क्षेत्र में दिव्यांग लोगों की का प्रतिनिधित्व पाती हैं जहां कुछ वर्ष पहले सोचा नहीं जा सकता था विशेष तौर पर खेल के क्षेत्र में अनेक ओलंपियाड केवल दिव्यांगों के लिए ही आयोजित किए जाने लगे हैं दिव्यांगों की बात करते हुए हम स्टीफन हॉकिंग को कैसे भूल सकते हैं जिनके द्वारा दिए गए विज्ञान के सिद्धांत सारे संसार में माने जाते हैं अतः संवेदनशील बनें, उनकी लाचारी पर हँसे नहीं , उनका आदर करें , उनकी क्षमताओं को पहचाने और उन्हें उनके अधिकार लेने में जो मदद कर सकते हैं , वे करें।
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