विलुप्त होते बन्ना बन्नी गीत
"बन्नो तेरी अखियां सुरमेदानी" जैसे लुभावने और रसीले गीत आज कहां ? भारतीय संस्कृति और हिंदू रीति में विवाह के संस्कार और रीति रिवाज़ अपना महत्व रखते हैं । इन रीति रिवाज़ों में बन्ना बन्नी गीत मानो विवाह का सबसे बड़ा आकर्षण हुआ करते थे । लगभग महीने भर पहले गांव में घरों में ढोलक बैठा दी जाती थी और अपने दिन भर के कामकाज को पूरा करके महिलाएं शादी की तैयारी नाचते-गाते-ढोलक बजाते और बन्ना बन्नी गीत गाते हुए पूरी करती पर । बन्ना बन्नी गीत न केवल सुरीले थे बल्कि यह सामाजिकता ,सौहार्द आपसी प्रेम का प्रतीक भी थे । महिलाएं शादी के घर में एकत्र होती और मठरी लड्डू आदि बनाते हुए भंडार घर को संभालते हुए सिलाई कढ़ाई सीने पिरोने का काम भी पूरा करती थी। पूरे गांव में इस बात की धूम होती और बजने वाली ढोलक इस बात की घोषणा करती कि गांव में एक विवाह का एक उत्सव मनाया जाने वाला है ।परंतु बदलते हुए समय के साथ जहां लोगों के पास समय की कमी होने लगी है, विवाह के उत्सव आधुनिकता के कुहासे में कहीं खोने लगे हैं और बन्ना बन्नी गीत भी गुम हो गए हैं ।आज विवाह के अवसर पर डीजे पर गीत बजाकर नृत्य करने में लोग अपनी शान समझते हैं । इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि लोग बहुत भौतिकतावादी हो गए हैं । विवाह में जाने का अर्थ है लिफाफा पकड़ना और खाना खाना तथा वापस आना, भावनात्मक तौर पर कोई किसी से जुड़ा नहीं है, तो फिर बन्ना बन्नी गीत मिलकर गाने का तो कोई अर्थ ही नहीं है । समाज में अपनी प्रतिष्ठा दिखाने के लिए हजारों रुपए के कोरियोग्राफर घर बुलाए जाते हैं और वे घर वालों को नाचना सीखते हैं, मानो विवाह नहीं ,कोई प्रदर्शनी हो, जिसमें सब अव्वल आना चाहते हैं, चाहे वे दूल्हे के चाचा- चाची हो या मामा-मामी या फिर दादा-दादी ही क्यों ना हो ? वह ढोलक जो महीने भर बजा करती थी आज डीजे के शोर में कहीं गुम हो गई है । उसके गुम होने के साथ-साथ हम आधुनिकता की अंधी दौड़ में दौड़ते हुए अपनी भारतीय परंपराएं और रीति रिवाज भूलते जा रहे हैं । क्यों ना शादियों के इस मौसम में गुम हो गए बन्ना बन्नी गीतों को याद करें?
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