नमस्कार दोस्तों,मैं मीता गुप्ता.....लेकर आ रही हूँ अपनी वाचिक प्रस्तुति.....'यूँ ही कोई मिल गया'.....बस चंद घंटे शेष....कल नव वर्ष के नूतन विहान में...स्नेह दीजिए....आशीर्वाद दीजिए....मेरे चैनल को सब्सक्राइब कीजिए yunhikoimilgaya.com
नव वर्ष में होगा ‘यूँ ही कोई मिल गया’ पॉडकास्ट का डिजिटल लॉंच
डॉ मीता गुप्ता बरेली की जानी-मानी साहित्यकार हैं। वे एक हिंदी शिक्षिका होने के साथ-साथ यूट्यूबर, ब्लॉगर, समाजसेविका भी हैं। हाल ही में उन्होंने पॉडकास्टिंग के क्षेत्र में पदार्पण करने के विषय में सोचा तो हमने उनसे भेंट कर उनसे चंद प्रश्न पूछे। सबसे पहले हम यह जानना चाहते थे कि पॉडकास्टिंग का विचार उनके मन में कैसे आया? उन्होंने ने बताया कि उन्हें हर उसे कार्य को करने में आनंद आता है, जो चुनौतीपूर्ण हो। उन्होंने अपने जीवन में शिक्षण के साथ-साथ कई साहित्यिक ऑनलाइन और ऑफलाइन परिचर्चाओं और कवि गोष्ठियों में भाग लिया, युट्यूबिंइग, ब्लॉगिंग आदि कार्य वे वर्षों से कर रही हैं, पर पॉडकास्टिंग के कार्य ने उन्हें इसलिए लुभाया क्योंकि यह उनके लिए एक नई चुनौती थी और हिंदी के प्रचार और प्रचार का एक सहज और सक्षम माध्यम था। इसलिए वे अपने पहले पॉडकास्ट यानी वाचिक प्रस्तुति ‘यूँ ही कोई मिल गया’ को लेकर 1 जनवरी 2024 को आ रही हैं। इस पॉडकास्ट की कुल मिलाकर 25 कड़ियां होंगी, जिसका आरंभ 1 जनवरी 2024 को होगा और अंतिम कड़ी 1 जनवरी 2025 को प्रसारित होगी। उनकी वेबसाइट का नाम है- yunhikoimilgaya.com इसी वेबसाइट के माध्यम से पॉडकास्ट की सभी ऐप जैसे स्पॉटिफाई, गूगल पॉडकास्ट, एप्पल पॉडकास्ट, यूट्यूब, कुकु एफ़ एम, ऑडिबल आदि पर सुना जा सकता है।
जब उनसे पूछा कि आपका इस पॉडकास्ट की थीम क्या है तो उन्होंने बताया कि समय-सरिता के अजस्र प्रवाह में बहता जीवन अनुभवों और अनुभूतियों की पोटली होता है। इन्हीं में से कुछ प्रसंगों को उन्होंने अपनी वाचिक प्रस्तुति में समेटा है। अनुभव ही मेरे सृजन की शक्ति रहे हैं, अनुभव जो हृदय को आलोड़ित-विलोड़ित कर आत्म-मंथन की स्थिति तक पहुँचा दें ।जीवन की राह पर चलते-चलते मुझे प्रेम रसायन मिल गया, जो युगों-युगों से शाश्वत है। यही है जो आसमान को झुकाता है। धरती को महकाता है। कहीं पहाड़, तो कहीं वृक्ष बन जाता है। कहीं बूँद बन कर बहता है, कहीं रेत बन कर सिमटता है। कहीं गीत बन कर सजता है, कहीं साज़ बन कर बज उठता है। कहीं रीत, कहीं प्रीत, कहीं हार और कहीं जीत बन कर ढलता रहा है और ढलता रहेगा। कृष्ण की बाँसुरी ने कभी किसी को आवाज़ देकर नहीं पुकारा लेकिन यकीनन उस बाँसुरी में यह रसायन सुर बन कर ढला होगा। राम के पवित्र पैरों से कोई पत्थर क्या यूँ ही स्त्री बन गया होगा? शिव की जटा पर गंगा किस रसायन की वजह से थमी होगी ? दिखता नहीं पर यक़ीनन महसूस होता है। यह नसों में बहता है लहू बनकर। आसमानों से बरसता है बूँद बन कर, धड़कनों में बसता है साँस बन कर। दिलों में सिसकता है आह बन कर, तो आँखों से टपकता है अश्रु बन कर। गालों पर चिपके तो खारा लगता है। होठों पर सजे तो मीठा-सा...
प्रेम-रसायन, अध्यात्म, मानव-प्रेम, ईश-वंदना, सच्चाई, अहंकार, सरलता, इश्क और सामाजिक सरोकारों जैसे नवरत्नों से जड़ा है यह पॉडकास्ट। उनका मानना है कि जिसे ईश्वर में विश्वास है, प्राणिमात्र से प्रेम है और हिंदी भाषा के लिए आदर-भाव है, उसे यह पॉडकास्ट खूब भाएगा।
यह QR कोड yunhikoimilgaya.com वेबसाइट का है, जिसको स्कैन करके 1 जनवरी 2024 से हर पंद्रह दिनों में नया एपिसोड निःशुल्क सुना जा सकता है।
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