कुछ सपने बोए थे
उसने कुछ सपने बोए थे,
की ज़मीन की गुडाई थी,
खेत की मुंडेर बनाई थी,
बहुत की सिंचाई
थी,
फिर बो दिए सपनों के बीज…..!
सपने बेटे की पढाई के...
बेटी की सगाई के...
माँ-बाबा की दवाई के...
चूड़ी भरी बीबी की कलाई के...
रोंप दिए थे नन्हें पौधे |
उम्मीद भी यही थी –
कि कल जब ये पेड़ पनपेंगे
तो सपने भी जवान होंगे
धीमे-धीमे परवान होंगे
और मिलेंगे सुंदर फल |
सपने सब बड़े हो रहे थे
आँखों के सामने खड़े हो रहे थे,
कोपलें मुस्करा रही थीं
नन्ही कलियाँ खिलखिला रही थी
सपने बढ़ने जो लगे थे
बेटे की उम्मीद की अमराई-सी
बेटी के
मन की नई-नई अंगडाई-सी
माँ-बाबा
की आंखों में रंगीन सपनाई-सी
खनकती चूड़ियों से भरी बीबी की कलाई-सी
सपने हज़ार
यौवन का खुमार
रंग
बेशुमार
इंद्रधनुष बारंबार...
अचानक सपने झुलसने लगे,
ठंडी आग में लहकने लगे,
अश्क बन आँखों से ढलकने लगे,
शुष्क रेत से दरकने लगे ,
आँखों आँखों में आँखों ने
तब कई बातें
की थीं ,
जिन सपनों में रंग भरने को,
कितनी जवां रातें थी दी ,
वो सारे सपने आँखों के
स्याह अंधेरे ने आ घेरे थे |
सिर्फ एक सवाल था मन में
कैसे होगी बेटे की पढ़ाई?
कौन करेगा अब बेटी से सगाई?
माँ-बाबा की दवा नहीं आई...!
सूनी रहेगी बीबी की कलाई
सिर्फ एक आभास था अब,
कुछ नहीं हाथ था अब ,
बोए हुए कुछ सपनों की,
अब भी तलाश थी,
ज़िंदगी बना रही परिहास थी |
आज सबकी भूख मिटाने वाला ,
अपनी ही भूख से
डर गया,
आँखों में बसे स्वप्न क्या टूटे,
बिखरे सपने देख फिर किसान
क्या वक़्त से पहले वह बिखर गया ?
क्या कोई हाथ नहीं ऐसा
जो बढ़ता आगे और कहता
मैं तेरे साथ हूं, ग्राम-देवता
तू ख्वाब
नए फिर बो
रार अपनी तू न खो
कुछ सपनों के टूट जाने पर भी
सपनों की
उर्वर-शक्ति को जान लेना
सपनों की
दूब को फिर हरितिमा देना
सपनों को
फिर ज़िंदगानी देना ।
सपनों को
फिर ज़िंदगानी देना ।
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