वर दे वीणावादिनी! वर दे
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति-रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
अर्थात जो देवी सब प्राणियों में शक्ति रूप में स्थित हैं, उनको नमस्कार, नमस्कार, बारंबार
नमस्कार है। माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को देवी सरस्वती का अवतरण हुआ था।
इसलिए इस दिन ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। इस दिन को सरस्वती और
लक्ष्मी देवी का जन्म दिवस भी माना जाता है। इस पंचमी को बसंत पंचमी कहा जाता है
क्योंकि बसंत पंचमी के दिन से ही बसंत ऋतु का आगमन होता है, जो सभी ऋतुओं का राजा होता है| हिंदू धर्म में वसंत पंचमी मनाने को लेकर कई मान्यताएं हैं।
बसंत ऋतु और वसंत पंचमी का महत्व भी अलग है। इस दिन मां सरस्वती का आह्वान कर कलश
की स्थापना की जाती है और उसकी पूजा की जाती है। आइए जानें बसंत पंचमी का इतिहास, महत्व और मान्यताएं...
बसंत पंचमी माघ माह की शुक्ल पंचमी के दिन मनाई जाती है।
कहा जाता है कि इसी दिन कामदेव मदन का जन्म हुआ था। लोगों का दांपत्य जीवन सुखमय
हो इसके लिए लोग रतिमदन की पूजा और प्रार्थना हैं। देवी सरस्वती का जन्म बसंत
पंचमी को हुआ था; इसलिए उस
दिन उनकी पूजा की जाती है, और इस
दिन को लक्ष्मी जी का जन्मदिन भी माना जाता है; इसलिए इस तिथि को 'श्री पंचमी' भी कहा जाता है। इस दिन सुबह अभ्यंग स्नान किया जाता है और
पूजा की जाती है। बसंत पंचमी पर, वाणी
की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की पूजा और प्रार्थना का बहुत महत्व है। ब्राह्मण शास्त्रों
के अनुसार, वाग्देवी सरस्वती
ब्रह्मस्वरूप, कामधेनु और सभी
देवताओं की प्रतिनिधि हैं। वह विद्या, बुद्धि और ज्ञान की देवी हैं। अमित तेजस्विनी और अनंत गुण
शालिनी देवी सरस्वती की पूजा और आराधना के लिए माघ मास की पंचमी तिथि निर्धारित की
गई है।
जब ब्रह्मांड के निर्माता ब्रह्माजी ने जीवों और मनुष्यों
की रचना की। और जब उन्होंने सृजित सृष्टि को देखा, तो उन्होंने महसूस किया कि यह निस्तेज है । वातावरण बहुत
शांत था तथा उसमें कोई आवाज या वाणी नहीं थी। उस समय, भगवान विष्णु के आदेश पर, ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल से पृथ्वी पर जल छिड़का। धरती पर
गिरे जल ने पृथ्वी को कम्पित कर दिया तथा एक चतुर्भुज सुंदर स्त्री एक अद्भुत
शक्ति के रूप में प्रकट हुई। उस देवी के एक हाथ में वीणा दूसरे हाथ में मुद्रा तथा
अन्य दो हाथों में पुस्तक व माला थी। भगवान ने महिला से वीणा बजाने का आग्रह किया।
वीणा की धुन के कारण पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीवों, मनुष्यों को वाणी प्राप्त हुई। उस क्षण के बाद, देवी को सरस्वती कहा गया। देवी सरस्वती ने वाणी सहित सभी
आत्माओं को ज्ञान और बुद्धि प्रदान की। ऐसा माना जाता है कि इस पंचमी को सरस्वती
की जयंती के रूप में मनाया जाता है क्योंकि यह घटना माघ महीने की पंचमी को हुई थी।
इस देवी के वागेश्वरी, भगवती, शारदा, वीणा
वादिनी और वाग्देवी जैसे अनेक नाम हैं। संगीत की उत्पत्ति के कारण, उन्हें संगीत की देवी के रूप में भी पूजा जाता है। वसंत
पंचमी के दिन ज्ञान और बुद्धि देने वाली देवी सरस्वती की पूजा की जाती है।
वसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती देवी की उपासना की जाती है।
शास्त्रों में भगवती सरस्वती की पूजा व्यक्तिगत रूप से करने का वर्णन है; लेकिन वर्तमान में सार्वजनिक पूजा स्थलों पर देवी सरस्वती
की मूर्ति स्थापित कर पूजा करने की प्रथा शुरू हुई है। चूंकि यह ज्ञान का त्योहार
है,
इसलिए छात्र शिक्षण संस्थान को सजाते हैं। विद्यारंभ
संस्कार के लिए यह सबसे अच्छा दिन है।
वसंत पंचमी का दिन सभी प्रकार के शुभ कार्यों के लिए बहुत
ही शुभ माना गया है। पुराणों में भी वसंत पंचमी को मुख्य रूप से नई शिक्षा और गृह
प्रवेश के लिए बहुत ही शुभ माना गया है। वसंत पंचमी को शुभ मानने के अनेक कारण
हैं। यह त्योहार आमतौर पर माघ महीने में आता है। माघ मास का विशेष धार्मिक और
आध्यात्मिक महत्व भी है। इस महीने तीर्थ क्षेत्र में स्नान का विशेष महत्व माना
गया है।
इस दिन का उद्देश्य, सृष्टि में नव चेतना और नव निर्माण के कारण हुए आनंद को
व्यक्त करना और आनंदित होना है। वसंत पंचमी का कृषि संस्कृति से संबंध है ऐसा
ध्यान में आता है। इस दिन नवान्न इष्टी यह एक छोटा यज्ञ किया जाता है। इस दिन
खेतों में उगाई गई नई फसल को घर में लाया जाता है और भगवान को अर्पित किया जाता है
। राजस्थान, मथुरा तथा वृंदावन
में इस दिन विशेष त्यौहार मनाए जाते हैं। इस दिन गणपति, इंद्र, शिव
और सूर्यदेव से प्रार्थना भी की जाती है। वसंत ऋतु में वृक्षों में नए पल्लव आते
हैं । प्रकृति के इस बदलते स्वरूप के कारण मनुष्य उत्साही और प्रसन्नचित्त हो जाता
है। यह पर्व संक्रमण का प्रतीक है। कुंभ मेले के अवसर पर वसंत पंचमी का दिन खास
माना जाता है। इस दिन कुंभ मेले में शाही स्नान होता है ।
सखि वसन्त आया ।
भरा हर्ष वन के मन,
नवोत्कर्ष छाया ।
मीता
गुप्ता
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