मैं गीत हूँ...मैं मीत हूँ
मैं वह गीत हूँ, जो हर पक्षी को गाता है
मैं वह पत्ता हूँ, जो ज़मीन को उर्वर बनाता है
मैं वह फूल हूँ, जो जग को महकाता है
मैं वह वृक्ष हूँ, जो झूमता-झुकता-लहराता है
मैं वो बादल हूँ, जो धरती को महकाता है
मैं वह ज्वार हूँ, जो चंद्रमा को हिलाता है
मैं वह धारा हूँ, जो रेत को संवारती है
मैं वह पृथ्वी हूँ, जो सूरज को रोशन करती है
मैं वो आग हूँ, जो पत्थर से लगती है
मैं वह मिट्टी हूँ, जो हाथ से आकार पाती है
मैं वह नदी हूँ, जो तटों को बनाती है
मैं वह मयूर हूँ, जो पंख पसार थिरकता है
मैं वह राग हूँ, जो मन-मंदिर में बजता है
मैं वह सागर हूँ, जो रत्नाकर कहलाता है
मैं वह शब्द हूँ, जो जन-जन बोलता है
मैं वह मीत हूँ, जो अपने स्नेहिल स्पर्श से
कभी वृक्ष, कभी बादल, कभी आग,कभी मिट्टी,
कभी नदी, कभी मयूर, कभी राग, कभी फूल,
और कभी शब्द बनकर दिलों में बस जाता है॥
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