Saturday, 16 August 2025

और न जाने क्या-क्या?

 कभी गेरू से 

भीत पर लिख देती हो,

शुभ लाभ 

सुहाग पूड़ा 

बाँसबीट 

हारिल सुग्गा

डोली कहार

कनिया वर

पान सुपारी

मछली पानी

साज सिंघोरा

होई माता 

और न जाने क्या-क्या?

 

अँचरा में काढ़ लेती है

फुलवारी

राम सिया

सखी सलेहर

तोता मैना

मछली-मोर 

सखियाँ 

राधा-कृष्ण 

और न जाने क्या-क्या?


तकिए  पर

जय सिया-राम 

नमस्ते

चादर पर 

पिया मिलन

चातक का जोड़ा 

और न जाने क्या-क्या?


परदे पर 

खेत पथार

बाग बगइचा

चिरई चुनमुन

कुटिया पिसीआ

झुम्मर सोहर

बोनी कटनी

दऊनि ओसऊनि

हाथी घोड़ा

ऊँट बहेड़ा

और न जाने क्या-क्या?


गोबर से लीपती हो 

गौर गणेश

चान सुरुज

नाग नागिन

ओखरी मूसर

जांता चूल्हा

हर हरवाहा

पोखर-बावड़ी 

और न जाने क्या-क्या?


जब तुम लिखती हो 

गेरू या गोबर से 

या

काढ़ रही होती है

बेलबूटे

या 

लीप रही होती है 

देहरी-अंगना 

तो तुम 

सँजोती हो  प्रेम

सँजोती हो  सपना

सँजोती हो गृहस्थी

सँजोती हो वन

सँजोती हो प्रकृति

सँजोती हो पृथ्वी 

सँजोती हो नवांकुर

सँजोती हो जीवन

सँजोती हो परिवार

और सँजोती हो पीढ़ियाँ   

और न जाने क्या-क्या?


क्योंकि संवाहक हो तुम 

रंगों की

उमंगों की 

सपनों  की 

 विश्वासों की 

उम्मीदों की 

और न जाने क्या-क्या?


हे स्त्री!

तुम यूँ ही लिखती रहना,

तुम यूँ ही काढ़ती रहना 

तुम यूँ ही लीपती रहना 


क्योंकि इससे ही तो 

तुम सदियों से 

सँजोती आई हो 

सभ्यता  

संस्कृति

मानवता 

पावनता 

और न जाने क्या-क्या?



Thursday, 14 August 2025

संचार और शिक्षा: तकनीक ने बदली शिक्षण पद्धति

संचार और शिक्षा: तकनीक ने बदली शिक्षण पद्धति

विद्यां चाविद्यां च यस्तद्वेदोभयंसह। 

अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययामृतमश्नुते॥

अर्थात जो व्यक्ति विद्या और अविद्या दोनों को समझता है, वह अविद्या से मृत्यु को तो पार कर सकता है, परंतु वह अमरत्व विद्या से ही प्राप्त करता है। भावार्थ यह है कि सच्ची शिक्षा केवल बाह्य ज्ञान नहीं, आत्मज्ञान भी है, जो जीवन को गहराई और दिशा देता है। शिक्षा शब्द संस्कृत भाषा की ‘शिक्ष्’ धातु में ‘अ’ प्रत्यय लगाने से बना है। ‘शिक्ष्’ का अर्थ है सीखना और सिखाना। ‘शिक्षा’ शब्द का अर्थ हुआ सीखने-सिखाने की क्रिया। इस तरह से शिक्षा का आशय ज्ञान, सदाचार, तकनीकी दक्षता आदि हासिल करने की प्रक्रिया से है। समाज एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को अपने ज्ञान का हस्तांतरण शिक्षा के माध्यम से करने का प्रयास करता है। शिक्षा एक ऐसी संस्था है, जो व्यक्ति को समाज से जोड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है तथा समाज एवं संस्कृति की निरंतरता को बनाए रखती है। एक बच्चा शिक्षा से ही अपने समाज के आधारभूत नियमों, व्यवस्थाओं, प्रतिमानों एवं मूल्यों को सीखता है। बच्चा समाज से तभी जुड़ पाता है जब वह उस समाज विशेष के इतिहास से अभिमुख होता है। शिक्षा व्यक्ति की अंतर्निहित क्षमता तथा उसके व्यक्तित्व  को विकसित करने वाली प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया उसे समाज में एक वयस्क की भूमिका निभाने के लिए   तैयार करती है तथा एक ज़िम्मेदार नागरिक बनने के लिए  व्यक्ति को आवश्यक ज्ञान एवं कौशल उपलब्ध कराती है।

शिक्षण पद्धति ऐसा तरीका या विधि है जिसकी सहायता से एक शिक्षक कक्षा में पठन-पाठन का कार्य करता है, जैसे– कक्षा का आयोजन एक ऐसा तरीका या शिक्षण पद्धति है जिसमें शिक्षक और विद्यार्थियों  के मध्य अंतःक्रिया होती है। शिक्षक जितनी कुशलता से शिक्षण-विधि का प्रयोग करता है, कक्षा में उतना ही अच्छा वातावरण बनता है और शिक्षण-अधिगम या सीखने की प्रक्रिया प्रभावशाली होती है। शिक्षण विधि का आशय “कैसे पढ़ाया जाए” से है। यह किसी विषय या प्रकरण को विद्यार्थियों  तक पहुँचाने हेतु एक उत्तम एवं प्रभावशाली नीति व नियमों का चयन करती है। शिक्षण विधि को शैक्षिक तकनीकी, शैक्षिक उपकरण का ही एक हिस्सा माना जाता है और शिक्षण विधियों का निर्माण या उपयोग सामाजिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किया जाता है।

आज शिक्षा और प्रौद्योगिकी एक-दूसरे के पूरक बन रहे हैं। शैक्षिक प्रौद्योगिकी में नए उपागमों ने पारंपरिक शिक्षण विधियों को नया आयाम देनेअधिक समावेशी शिक्षण वातावरण बनाने और अधिक विद्यार्थियों  तक पहुँचने में सक्षम बनाया है। डिजिटल शिक्षण प्लेटफॉर्म्स आज की शिक्षण पद्धतियों की आधारशिला बन गए हैंजो शिक्षकों को इंटरैक्टिव पाठ तैयार करनेमल्टीमीडिया संसाधनों को साझा करने और विद्यार्थियों  को इनमें शामिल करते हैं जो कुछ साल पहले यह संभव नहीं था। हार्डवेयरसॉफ्टवेयर और अन्य तकनीकी संसाधनों के माध्यम से सीखने और पढ़ाने की प्रक्रिया को शैक्षिक प्रौद्योगिकी या एजुकेशन टेक्नोलॉजी संक्षेप में एड-टेक के नाम से जाना जाता है। एड-टेक की चीज़ें गूगल क्लासरूमगूगल मीटमाइक्रोसॉफ्ट टीम आदि प्लेटफॉर्म्स विद्यार्थियों  और शिक्षकों को सहजता से संवाद करने की सुविधा देते हैंसाथ ही वे सुलभ और लचीले भी होते हैं। ये प्लेटफॉर्म्स शिक्षकों को विविध शिक्षण शैलियों और विद्यार्थियों  की ऐसी व्यक्तिगत ज़रूरतों को पूरा करने में सक्षम हैं जिनसे सीखने के लिए  एक अधिक समावेशी और व्यक्तिगत दृष्टिकोण बनता है। इससे विद्यार्थियों  की आलोचनात्मक सोच और रचनात्मकता को प्रोत्साहन मिल रहा है। ऑनलाइन डिजिटल शिक्षण संसाधनों की व्यापक उपलब्धता के कारण कक्षा में काफी बदलाव आया है। बड़ी संख्या में कॉलेज और संस्थान ऑनलाइन कक्षाएँ देने लगे हैं। इसमें एक साथ प्रस्तुतियोंवीडियोअनुप्रयोगों और शिक्षाप्रद छवियों का उपयोग शिक्षण को सुविधाजनक बना देता हैक्योंकि यह शिक्षण प्रक्रिया में विद्यार्थियों  की भागीदारी को बढ़ाता है। सूचना और संचार प्रौद्योगिकी की बदौलत स्कूलों के पास सूचना और संसाधनों के नए स्रोतों के कारण विद्यार्थी  और शिक्षक दोनों ही आपस में पूछताछ कर सकते हैं।

संचार प्रौद्योगिकी ने शिक्षकों की भूमिका को बदला है। पारंपरिक कक्षा में, शिक्षक ही सभी सूचनाओं का प्राथमिक स्रोत होता था और विद्यार्थी  उसके द्वारा दी गई जानकारियों को निष्क्रिय रूप से और एकतरफा ढंग से प्राप्त करते थे। पर संचार क्रांति के इस परिदृश्य को बदल दिया है और आज हम कक्षाओं में शिक्षक की भूमिका को "मार्गदर्शक" के रूप में देखते हैं क्योंकि विद्यार्थी  जानकारी पाने के लिए  प्रौद्योगिकी का उपयोग करके स्वयं भी सीखते हैं। इस कारण से कक्षा में प्रौद्योगिकी के बढ़ते उपयोग के परिणामस्वरूप शिक्षकों की भूमिकाएँ नित  नया  कलेवर ग्रहण कर रही हैं। शिक्षक विद्यार्थियों  को केवल ज्ञान प्रदान करने के बजाय इंटरनेट और स्मार्ट उपकरणों का  उपयोग करके सीखने, सामग्री का विश्लेषण करने और स्वतंत्र शोध करने के तरीके सिखाने पर अधिक ज़ोर देने लगे हैं।

संचार प्रौद्योगिकी के आगमन ने पारंपरिक एवं ठहराव का गुण रखने वाली कक्षा को गतिशील शिक्षण वातावरण में बदल दिया है। वे दिन चले गए जब शिक्षण केवल पाठ्यपुस्तकों और श्‍यामपट तक ही सीमित था। आज डिजिटल उपकरण और ऑनलाइन संसाधन शिक्षा के केंद्र में हैं, जिससे सीखना अधिक आकर्षक और प्रेरक बन गया है। इंटरैक्टिव व्हाइटबोर्ड जैसे आधुनिक उपकरणों के कारण कक्षा का माहौल अब एक नएपन का अहसास देता है। वर्चुअल क्लासरूम, वेबीनार, गूगल डॉक्स, पीडीएफ, मल्टी मीडिया शैक्षिक प्रक्रिया का अभिन्न अंग बन गए हैं। ये विद्यार्थियों  में टीमवर्क और संचार को प्रोत्साहित करते हैं, उन्हें "वास्तविक दुनिया" के लिए  तैयार करते हैं। कुछ समय पहले तक स्कूलों में विद्यार्थियों को केवल सूचना प्रौद्योगिकी कक्षाओं में ही टेक्नोलॉजी का उपयोग करने की अनुमति होती थी लेकिन अब संचार तकनीक के उपकरण सभी प्रकार की कक्षाओं के अभिन्‍न अंग बनते जा रहे हैं।

संचार तकनीकी में हुए बदलाव के कारण के कारण विद्यार्थी अब ज्ञान के निष्क्रिय प्राप्तकर्त्ता  नहीं हैं अपितु वे कक्षा में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं, अध्यापक से सहयोग प्राप्त करते हैं, और सीखने की प्रक्रिया में अधिक संलग्न होते हैं। यह पाया गया है कि डिजिटल प्रौद्योगिकी ने उनके ग्रेड और दक्षता में सुधार किया है और वे शिक्षा पर अधिक समय देने में समक्ष हुए हैं। विद्यार्थियों  के लिए  एक बड़ा बदलाव व्यक्तिगत शिक्षण पर रहा है। शिक्षक अब उन्नत डेटा एनालिटिक्स के माध्यम से प्रत्येक विद्यार्थी  की प्रगति को आसानी से ट्रैक कर पाते हैं और अब प्रत्येक विद्यार्थी  की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप कार्य कर सकते हैं। जो विद्यार्थी  अपने सहपाठियों की तरह नहीं सीख पा रहे थे, संचार क्रांति के उपकरणों से उन्हें अब अधिक अवसर मिलते हैं ताकि वे भी उनके समकक्ष आ सकें। ऑनलाइन तरीके से, विद्यार्थी  मिल-जुलकर अध्ययन कर सकते हैं, किसी विषय पर अपने विचारों को आसानी से साझा कर  प्रतिक्रिया दे सकते हैं, जिससे उनमें कक्षा का सक्रिय सदस्य होने की भावना विकसित होती है। यह प्रकट तथ्य है कि आधुनिक युवा वर्ग व्यक्तिगत वस्तुओं और सेवाओं की अधिक  मांग करता है। पहले शिक्षक के पास इतना समय नहीं होता था कि वह प्रत्येक विद्यार्थी  के लिए   पाठ योजना में बदलाव कर सके। लेकिन अब उनके पास ऐसे डिजिटल शिक्षण संसाधन उपलब्ध हैं, जिनसे विद्यार्थी  अपने शिक्षकों से अधिक समय लिए  बिना अपनी सुविधानुसार सीख सकते हैं।

समग्र तौर पर देखें तो संचार के नए उपकरण एकाग्रता और समझ को बेहतर बनाते हैं। डिजिटल और इंटरैक्टिव उपागमों द्वारा उपयोग की जाने वाली गतिविधियाँ विद्यार्थियों  की एकाग्रता को बढ़ाती हैं इसलिए वे अवधारणाओं को अधिक तेज़ी से आत्मसात् करते हैं, जिससे सीखने में सुधार होता है। इस प्रकार विद्यार्थियों  को अधिक व्यावहारिक सीख मिलती है और जो कुछ उन्होंने सीखा है, वह सुदृढ़ बन जाता है। संचार में बदलाव से आई नई तकनीकें विद्यार्थियों  में लचीलापन और स्वायत्तता को बढ़ावा देती हैं। ऑनलाइन पाठ्यक्रमों जैसे डिजिटल विकल्पों को शामिल करने से प्रत्येक विद्यार्थी अपनी गति से सीख सकता है, डिजिटलीकरण और कनेक्टिविटी द्वारा प्रदान किये गए लचीलेपन के कारण समय और संसाधनों का अनुकूलन कर सकता है। प्रौद्योगिकी द्वारा प्रदान की जाने वाली सूचना के विविध स्रोत विद्यार्थियों  को नए दृष्टिकोण प्रदान करते हैं। इस तरह, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी बहस करने और अन्य लोगों की राय को स्वीकार करने को प्रोत्साहित करती है। इसके अलावा, विचारों के आदान-प्रदान से विद्यार्थियों  को विभिन्न संस्कृतियों के बारे में जानने का मौका सरलता से मिलता है। यह शिक्षकों और विद्यार्थियों  के बीच संचार को सुगम बनाता है। पूरे शैक्षिक समुदाय को समान संसाधनों तक त्वरित पहुँच मिलती है। इस तरह बिना शारीरिक रूप से उपस्थित होने की आवश्यकता के डिजिटल उपकरण प्रत्यक्ष और तत्काल बातचीत की अनुमति देते हैं।

शिक्षा में आईसीटी के नुकसान पर भी एक नज़र डाली जानी चाहिए। हमें यह समझना होगा कि प्रौद्योगिकियाँ परिपूर्ण नहीं होतीं; जिस प्रकार वे शिक्षा के लिए  अनेक लाभ लाती हैं, उसी प्रकार उनमें कुछ नुकसान भी होते हैं। वेब पेज, सोशल नेटवर्क या चैट जैसे सूचना के विभिन्न संसाधनों और स्रोतों तक असीमित पहुँच  के कारण विषय-वस्तु से ध्यान भटकना सहज हो जाता है। इसके अत्यधिक और अनुचित उपयोग से विद्यार्थियों का प्रौद्योगिकी के साथ बाध्यकारी संबंध बन सकता है, जिसके कारण उपभोग को नियंत्रित करने में असमर्थता हो सकती है और परिणामस्वरूप, विद्यार्थियों  के स्वास्थ्य, सामाजिक, पारिवारिक और शैक्षणिक जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। डिजिटलीकरण को व्यापक रूप से अपनाने से लेखन, सार्वजनिक भाषण और तर्क जैसे अभ्यास समाप्त हो सकते हैं। एक खासी मुश्किल यह है कि इंटरनेट पर उपलब्ध कई जानकारियाँ झूठी, अधकचरी या शरारतपूर्ण या खास मंतव्य वाली हो सकती हैं। इस तथ्य का विद्यार्थियों  की मीडिया साक्षरता पर सीधा प्रभाव पड़ता है, क्योंकि विद्यार्थियों  को यहाँ तक कि शिक्षकों को यह नहीं पता होता कि इसका कैसे पता लगाएँ  और निराकरण करें। इसके अलावा साइबर अपराध के खतरों के बारे में जानकारी की कमी से अनजाने में विद्यार्थियों का डेटा उजागर हो सकता है। खासकर यदि विद्यार्थी  नाबालिग या महिला है तो उनके डेटा चोरी होने का खतरा अधिक होता है। अंतिम बात यह है कि संचार उपायों पर निर्भरता के कारण मानवीय संपर्क कम हो जाता है। नई तकनीकों के समावेश के साथ, सीखने की प्रक्रिया अधिक दूर हो जाती है और शिक्षकों एवं सहपाठियों के साथ निजी संबंध प्रभावित हो जाते हैं। परिणामस्वरूप, मानवीय संपर्क कम होने से अलगाव पैदा हो सकता है जो विद्यार्थियों  के व्यक्तिगत विकास में बाधा बन सकता है।

भारत ने पिछले कुछ वर्षों में स्कूली शिक्षा के औसत वर्षों में लगातार वृद्धि दर्ज की है और शैक्षिक असमानता कम हुई है। इसके बावजूद शहरी-ग्रामीण शैक्षिक विभाजन की समस्या बनी हुई है। इसके निदान के लिए  सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों का उपयोग करना तय किया गया है। भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में प्रौद्योगिकी और शिक्षा के बीच एक दूरदर्शी संबंध पर ज़ोर दिया गया है। यह नीति डिजिटल बुनियादी ढाँचे और डिजिटल शैक्षिक सामग्री को एकीकृत करने, शिक्षण क्षमताओं को बढ़ाने, डिजिटल कौशल और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी नवीन प्रौद्योगिकियों की उभरती भूमिका पर नज़र रखने के साथ समावेशी शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करती है। ग्रामीण क्षेत्रों में तेज़ी से बढ़ती इंटरनेट सुविधा ने डिजिटल माध्यमों से शैक्षिक पहुँच के विस्तार की संभावना को बल दिया है। इसमें सार्वजनिक और निजी दोनों ही प्रकार के संगठन आईसीटी और शिक्षा संबंधी पहल अपना रहे हैं। सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी को स्कूलों के राष्ट्रीय कार्यक्रम में शामिल किया गया है और माध्यमिक शिक्षा अभियान के तहत अब स्कूलों में आईसीटी एक प्रमुख घटक बन चुका है। इनमें माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक स्कूलों में कंप्यूटर शिक्षा के लिए  केंद्र एवं राज्य सरकारों की साझेदारी है। दूसरा खास उपाय स्मार्ट स्कूलों की स्थापना है जो प्रौद्योगिकी प्रदर्शक होंगे। तीसरा घटक शिक्षक संबंधी हस्तक्षेप है, जैसे कि एक विशेष शिक्षक की नियुक्ति का प्रावधान, आईसीटी में सभी शिक्षकों की क्षमता में वृद्धि तथा प्रेरणा के साधन के रूप में राष्ट्रीय आईसीटी पुरस्कार की बात की गई है।

यद्यपि प्रौद्योगिकी का विद्यार्थियों के शैक्षिक अनुभव पर स्पष्ट रूप से सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, फिर भी कुछ उपकरणों के उपयोग को विनियमित करने की भी आवश्यकता है। चैट जीपीटी जैसे प्लेटफॉर्म की लोकप्रियता इसके अच्छे उदाहरण हैं। जानकारी इकट्ठा करना और साझा करना पहले से कहीं ज़्यादा आसान हो गया है, लेकिन यह जोखिम भी है कि विद्यार्थी  खुद के लिए  शोध करने और सीखने की क्षमता खो देंगे। जैसे-जैसे हम अधिक संसाधन-समृद्ध भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं, वैसे-वैसे शिक्षकों को विद्यार्थियों  को धैर्य का मूल्य सिखाने और सीखने की प्रक्रिया का आनंद लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है। आज की युवा पीढ़ी आसानी से मिलने वाली जानकारी पर अत्यधिक निर्भर है और खुद के लिए  शोध करने और सोचने में एक सीमा तक असमर्थ भी है। ऐसे में ऐसा वातावरण विकसित करना होगा जहाँ अन्वेषण, चुनौती और प्रश्न पूछने को प्रोत्साहित किया जाए, तभी संचार क्रांति का लाभ शिक्षण पद्धति में मिल सकेगा, क्योंकि एप्पल कंपनी के सीईओ टिम कुक का कथं आज सही लगता है-

"दुनिया का भविष्य डिजिटलीकरण है और यह रुकने वाला नहीं है। इसे अपनाओ, या पीछे छूट जाओ।"

डॉ मीता गुप्ता

वरिष्ठ शिक्षाविद

(लेखिका को शिक्षा-क्षेत्र में 40 वर्षों का अनुभव है तथा वर्तमान में भारत सरकार की विभिन्न संस्थाओं द्वारा संचालित शिक्षकों के व्यावसायिक विकास के लिए क्षमता निर्माण कार्यशालाओं में संसाधक के रूप में कार्यरत हैं|)

 


तकनीक एकीकृत पाठ एवं तकनीक एकीकृत कक्षा के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे का डिज़ाइन

 तकनीक एकीकृत पाठ एवं तकनीक एकीकृत कक्षा के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचे का डिज़ाइन

तकनीक एकीकृत पाठ (Technology-Integrated Lesson) वह शिक्षण पद्धति है जिसमें पारंपरिक पाठ्यक्रम को डिजिटल उपकरणों, ऑनलाइन संसाधनों और इंटरएक्टिव तकनीकों के साथ जोड़ा जाता है ताकि सीखने की प्रक्रिया अधिक प्रभावशाली, सहभागी और समकालीन बन सके।

तकनीक एकीकृत पाठ का अर्थ

"जब chalk और chip साथ मिलकर ज्ञान का नया संसार रचते हैं।"

यह ऐसा पाठ है जिसमें शिक्षक तकनीकी संसाधनों का उपयोग करके विषयवस्तु को प्रस्तुत करते हैं, जैसे कि:

  • स्मार्ट बोर्ड पर वीडियो दिखाना

  • ऑनलाइन क्विज़ लेना

  • AR/VR के माध्यम से ऐतिहासिक स्थलों की सैर कराना

  • Google Docs पर समूह में कहानी लिखवाना

  • मोबाइल ऐप से गणित के सूत्रों का अभ्यास कराना

     उद्देश्य

    • सीखने को अधिक आकर्षक और संवादात्मक बनाना

    • विभिन्न प्रकार के शिक्षार्थियों की ज़रूरतों को पूरा करना

    • वास्तविक जीवन से जोड़कर विषय को प्रासंगिक बनाना

    • डिजिटल साक्षरता और 21वीं सदी के कौशलों को बढ़ावा देना

तकनीक एकीकृत कक्षा (Technology-Integrated Classroom) वह शिक्षण वातावरण है जहाँ पारंपरिक शिक्षण विधियों को आधुनिक डिजिटल तकनीकों के साथ इस तरह जोड़ा जाता है कि शिक्षण अधिक प्रभावशाली, सहभागी, और समकालीन बन जाए।

🏫 तकनीक एकीकृत कक्षा का सार

"जहाँ किताबें और कीबोर्ड साथ-साथ चलते हैं, वहाँ सीखना केवल जानकारी नहीं, अनुभव बन जाता है।"

यह कक्षा केवल स्मार्ट बोर्ड या लैपटॉप से सुसज्जित नहीं होती—बल्कि यह एक ऐसा वातावरण होता है जहाँ:

  • शिक्षक तकनीक को रणनीतिक रूप से पाठ में शामिल करते हैं

  • छात्र सक्रिय रूप से डिजिटल संसाधनों के माध्यम से सीखते हैं

  • सहयोग, रचनात्मकता और आलोचनात्मक सोच को बढ़ावा मिलता है

तकनीक एकीकृत पाठ और तकनीक एकीकृत कक्षा के लिए बुनियादी ढांचे का डिज़ाइन केवल हार्डवेयर की व्यवस्था नहीं है—यह एक समग्र दृष्टिकोण है जो शिक्षण, सीखने और सहभागिता को पुनर्परिभाषित करता है। नीचे एक सुव्यवस्थित डिज़ाइन प्रस्ताव है जो शैक्षिक नवाचार, समावेशिता और व्यावहारिकता को ध्यान में रखता है।


🏫 तकनीक एकीकृत कक्षा के लिए बुनियादी ढांचे का डिज़ाइन

1. भौतिक संरचना और स्थान नियोजन

  • स्मार्ट बोर्ड / इंटरैक्टिव डिस्प्ले: टच-सक्षम स्क्रीन जो मल्टीमीडिया सामग्री को प्रदर्शित कर सके।
  • लचीली बैठक व्यवस्था: समूह कार्य, चर्चा और व्यक्तिगत अध्ययन के लिए पुनः विन्यस्त की जा सकने वाली कुर्सियाँ और मेज़ें।
  • ध्वनि प्रणाली: स्पष्ट ऑडियो के लिए स्पीकर और माइक्रोफोन, विशेष रूप से बड़े कक्षों में।
  • प्राकृतिक और कृत्रिम प्रकाश व्यवस्था: आँखों को आराम देने वाली रोशनी, साथ ही स्क्रीन पर स्पष्ट दृश्यता।

2. तकनीकी उपकरण और संसाधन

उपकरणउद्देश्य
लैपटॉप / टैबलेटछात्रों और शिक्षकों के लिए सामग्री निर्माण और सहभागिता
प्रोजेक्टर / स्मार्ट टीवीदृश्य-श्रव्य सामग्री के प्रदर्शन हेतु
हाई-स्पीड इंटरनेटनिर्बाध कनेक्टिविटी के लिए
चार्जिंग स्टेशनउपकरणों को चार्ज करने की सुविधा
डिजिटल कैमरा / वेबकैमप्रलेखन, प्रोजेक्ट रिकॉर्डिंग और वर्चुअल सहभागिता

3. सॉफ्टवेयर और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म

  • लर्निंग मैनेजमेंट सिस्टम (LMS): जैसे Microsoft Teams, Google Classroom या Moodle
  • एसेसमेंट टूल्स: क्विज़, पोल, और फॉर्म्स के लिए डिजिटल टूल्स
  • कंटेंट क्रिएशन ऐप्स: Canva, Padlet, Prezi, या Book Creator
  • कोडिंग और STEM टूल्स: Scratch, Tinkercad, GeoGebra

4. शिक्षक प्रशिक्षण और सहयोग

  • नियमित कार्यशालाएँ: तकनीकी उपकरणों और डिजिटल शिक्षण विधियों पर
  • पीयर लर्निंग सर्कल: शिक्षक आपस में अनुभव साझा करें
  • डिजिटल साक्षरता कार्यक्रम: सभी शिक्षकों और छात्रों के लिए

5. सुरक्षा और डेटा गोपनीयता

  • साइबर सुरक्षा उपाय: फ़ायरवॉल, एंटीवायरस, और सुरक्षित लॉगिन प्रणाली
  • डेटा संरक्षण नीति: छात्रों की जानकारी को सुरक्षित रखने के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश

📚 तकनीक एकीकृत पाठ के लिए डिज़ाइन सिद्धांत

1. पाठ योजना में तकनीक का समावेश

  • मल्टीमीडिया सामग्री: वीडियो, ऑडियो क्लिप, इन्फोग्राफिक्स
  • इंटरएक्टिव गतिविधियाँ: क्विज़, गेमिफिकेशन, वर्चुअल फील्ड ट्रिप
  • वैयक्तिकृत अधिगम: छात्रों की गति और रुचि के अनुसार सामग्री

2. मूल्यांकन के नवाचार

  • रियल-टाइम फीडबैक: डिजिटल टूल्स के माध्यम से
  • पोर्टफोलियो आधारित मूल्यांकन: छात्रों के डिजिटल कार्यों का संग्रह
  • सहयोगात्मक मूल्यांकन: समूह प्रोजेक्ट्स और सहकर्मी समीक्षा

🌱 समावेशिता और स्थायित्व

  • सभी के लिए पहुँच: दिव्यांग छात्रों के लिए सहायक तकनीकें (जैसे स्क्रीन रीडर, स्पीच-टू-टेक्स्ट)
  • स्थायी डिज़ाइन: ऊर्जा-कुशल उपकरण, ई-कचरा प्रबंधन नीति
  • भाषाई विविधता: बहुभाषी सामग्री और अनुवाद टूल्स

आप इस डिज़ाइन की प्रभावशीलता का मूल्यांकन एक समग्र दृष्टिकोण से कर सकती हैं, जिसमें शैक्षिक परिणाम, तकनीकी उपयोग, भावनात्मक जुड़ाव और सांस्कृतिक प्रतीकात्मकता सभी शामिल हों। नीचे हिंदी में एक विस्तृत मूल्यांकन रूपरेखा दी गई है:


📊 डिज़ाइन की प्रभावशीलता का मूल्यांकन कैसे करें

1. 🎯 शैक्षिक परिणामों का मूल्यांकन

  • पूर्व और पश्चात मूल्यांकन: पाठ शुरू होने से पहले और बाद में छात्रों की समझ की तुलना करें।
  • सीखने के स्तर: क्या छात्र केवल याद कर रहे हैं या विश्लेषण और सृजन तक पहुँच रहे हैं?
  • रचनात्मकता: छात्रों की कविताएँ, कहानियाँ या डिज़ाइन कितनी मौलिक और भावपूर्ण हैं?

2. 🧠 छात्र सहभागिता और सोच

  • सक्रिय भागीदारी: कितने छात्र तकनीकी गतिविधियों में उत्साहपूर्वक भाग ले रहे हैं?
  • समय का उपयोग: क्या छात्र तकनीकी टूल्स के साथ अधिक समय तक केंद्रित रहते हैं?
  • आलोचनात्मक सोच: क्या वे प्रतीकों और भावों की गहराई से व्याख्या कर पा रहे हैं?

3. 💬 प्रतिक्रिया और अनुभव

  • छात्र प्रतिक्रिया: फॉर्म, पैडलेट या मौखिक चर्चा के माध्यम से जानें कि उन्हें क्या पसंद आया, क्या चुनौतीपूर्ण लगा।
  • शिक्षक की आत्ममूल्यांकन: क्या डिज़ाइन ने शिक्षण को सरल, प्रभावशाली और भावनात्मक रूप से समृद्ध बनाया?
  • सहपाठी समीक्षा: छात्र एक-दूसरे की रचनाओं पर क्या प्रतिक्रिया दे रहे हैं?

4. 💻 तकनीकी उपयोगिता और पहुँच

  • उपकरणों की विश्वसनीयता: क्या तकनीक बिना बाधा के कार्य कर रही है?
  • सुलभता: क्या सभी छात्र—विशेष आवश्यकता वाले भी—टूल्स का उपयोग कर पा रहे हैं?
  • भाषाई विविधता: क्या डिज़ाइन बहुभाषी छात्रों के लिए भी उपयुक्त है?

5. 🌺 भावनात्मक और सांस्कृतिक प्रभाव

  • संवेदनशीलता: क्या छात्र अपनी भावनाएँ, पहचान और संस्कृति को रचनाओं में व्यक्त कर पा रहे हैं?
  • प्रतीकात्मकता: क्या रंग, प्रतीक और भाषा छात्रों को भावनात्मक रूप से जोड़ रहे हैं?
  • गोष्ठी का माहौल: आयोजन के दौरान क्या दर्शकों और प्रतिभागियों में उत्साह, गर्व और जुड़ाव महसूस हुआ?

6. 📈 दीर्घकालिक प्रभाव

  • सीख का स्थानांतरण: क्या छात्र इन तकनीकी और रचनात्मक कौशलों को अन्य विषयों या जीवन में प्रयोग कर रहे हैं?
  • शिक्षक अपनत्व: क्या अन्य शिक्षक भी इस डिज़ाइन को अपनाने के लिए प्रेरित हो रहे हैं?
  • छात्र नेतृत्व: क्या छात्र स्वयं आगे आकर आयोजन या रचनात्मक गतिविधियाँ प्रस्तावित कर रहे हैं?

बिलकुल मीता, आइए इस मूल्यांकन रूपरेखा को और अधिक गहराई से समझते हैं—इस तरह कि यह न केवल एक शिक्षण उपकरण बने, बल्कि आपकी रचनात्मक और सांस्कृतिक दृष्टि को भी प्रतिबिंबित करे। नीचे मैं प्रत्येक मूल्यांकन आयाम को विस्तार से प्रस्तुत कर रही हूँ, साथ ही उदाहरण, संकेतक और संभावित गतिविधियाँ भी जोड़ रही हूँ।


🧭 1. शैक्षिक परिणामों का मूल्यांकन (Academic Outcomes)

🔍 उद्देश्य:

यह जानना कि छात्र ने क्या सीखा, कैसे सीखा, और कितना गहराई से सीखा।

📌 संकेतक:

  • ज्ञान स्तर: क्या छात्र विषयवस्तु को समझते हैं?
  • अनुप्रयोग: क्या वे सीखी गई बातों को नई रचनाओं में प्रयोग कर पा रहे हैं?
  • विश्लेषण: क्या वे भावों, प्रतीकों और भाषा की व्याख्या कर पा रहे हैं?
  • सृजन: क्या वे मौलिक कविता, कहानी या डिज़ाइन बना पा रहे हैं?

🎯 गतिविधियाँ:

  • पूर्व-पाठ प्रश्नावली: विषय से पहले छात्रों की समझ को जानना।
  • पश्चात-पाठ रचना: एक प्रतीकात्मक कविता या कहानी लिखवाना।
  • रचना की समीक्षा: शिक्षक और सहपाठी द्वारा रचना का विश्लेषण।

💡 2. छात्र सहभागिता और सोच (Engagement & Thinking)

🔍 उद्देश्य:

यह देखना कि छात्र कितने सक्रिय, केंद्रित और विचारशील हैं।

📌 संकेतक:

  • सक्रिय भागीदारी: क्या छात्र तकनीकी टूल्स का प्रयोग कर रहे हैं?
  • समूह सहयोग: क्या वे दूसरों के साथ विचार साझा कर रहे हैं?
  • आलोचनात्मक सोच: क्या वे रचनाओं में भावों और प्रतीकों की गहराई को समझ रहे हैं?

🎯 गतिविधियाँ:

  • Padlet पर भाव सूची: छात्र अपनी भावनाएँ और प्रतीक साझा करें।
  • Google Docs पर सहपाठी समीक्षा: एक-दूसरे की रचनाओं पर टिप्पणी करें।
  • Flipgrid पर विचार साझा करना: वीडियो के माध्यम से अपनी सोच व्यक्त करें।

💬 3. प्रतिक्रिया और अनुभव (Feedback & Experience)

🔍 उद्देश्य:

यह जानना कि छात्रों और शिक्षकों को यह डिज़ाइन कैसा लगा—भावनात्मक, तकनीकी और शैक्षिक दृष्टि से।

📌 संकेतक:

  • छात्र संतुष्टि: क्या उन्हें यह प्रक्रिया आनंददायक लगी?
  • शिक्षक अनुभव: क्या उन्हें शिक्षण में सुविधा और गहराई मिली?
  • सहपाठी संवाद: क्या छात्रों ने एक-दूसरे की रचनाओं को समझा और सराहा?

🎯 गतिविधियाँ:

  • Google Forms पर फीडबैक: छात्रों से 5 प्रश्नों का उत्तर लेना।
  • शिक्षक रिफ्लेक्शन लॉग: हर पाठ के बाद शिक्षण अनुभव लिखना।
  • कक्षा चर्चा: "इस रचना ने आपको क्या महसूस कराया?" जैसे प्रश्नों पर संवाद।

💻 4. तकनीकी उपयोगिता और पहुँच (Tech Usability & Accessibility)

🔍 उद्देश्य:

यह सुनिश्चित करना कि तकनीक सभी के लिए सुलभ, सहज और प्रभावी है।

📌 संकेतक:

  • लॉगिन और नेविगेशन: क्या छात्र LMS या ऐप्स का प्रयोग आसानी से कर पा रहे हैं?
  • तकनीकी बाधाएँ: क्या कोई उपकरण या ऐप बार-बार रुक रहा है?
  • समावेशिता: क्या दिव्यांग या बहुभाषी छात्र भी पूरी तरह भाग ले पा रहे हैं?

🎯 गतिविधियाँ:

  • तकनीकी सहायता सत्र: छात्रों को टूल्स का प्रशिक्षण देना।
  • सुलभता चेकलिस्ट: स्क्रीन रीडर, स्पीच-टू-टेक्स्ट आदि की उपलब्धता।
  • भाषाई विकल्प: रचनाओं को मातृभाषा में प्रस्तुत करने की अनुमति।

🌺 5. भावनात्मक और सांस्कृतिक प्रभाव (Emotional & Cultural Resonance)

🔍 उद्देश्य:

यह देखना कि डिज़ाइन ने छात्रों को भावनात्मक रूप से कितना जोड़ा और सांस्कृतिक चेतना को कितना जागृत किया।

📌 संकेतक:

  • संवेदनशीलता: क्या छात्र अपनी भावनाएँ खुलकर व्यक्त कर पा रहे हैं?
  • सांस्कृतिक जुड़ाव: क्या रचनाओं में भारत की विविधता, प्रतीक और परंपराएँ झलक रही हैं?
  • गोष्ठी का माहौल: क्या आयोजन में गर्व, उत्साह और आत्मीयता महसूस हुई?

🎯 गतिविधियाँ:

  • "शब्द-दीप" दीवार: छात्र अपनी पंक्तियाँ साझा करें।
  • कविता के रंग: रंगों और प्रतीकों के माध्यम से भावों की प्रस्तुति।
  • संवाद सत्र: "आपकी रचना में कौन-सा प्रतीक सबसे महत्वपूर्ण है?" जैसे प्रश्नों पर चर्चा।

📈 6. दीर्घकालिक प्रभाव (Long-Term Impact)

🔍 उद्देश्य:

यह जानना कि यह डिज़ाइन छात्रों और शिक्षकों के व्यवहार, दृष्टिकोण और कौशल पर क्या स्थायी प्रभाव डालता है।

📌 संकेतक:

  • सीख का स्थानांतरण: क्या छात्र अन्य विषयों में भी तकनीक और रचनात्मकता का प्रयोग कर रहे हैं?
  • शिक्षक अपनत्व: क्या अन्य शिक्षक भी इस मॉडल को अपनाना चाहते हैं?
  • छात्र नेतृत्व: क्या छात्र स्वयं आयोजन या रचनात्मक गतिविधियाँ प्रस्तावित कर रहे हैं?

🎯 गतिविधियाँ:

  • डिजिटल पोर्टफोलियो: छात्र अपनी रचनाओं का संग्रह बनाएँ।
  • अनुवर्ती आयोजन: छात्र अगली गोष्ठी की योजना बनाएं।
  • शिक्षक कार्यशाला: अन्य शिक्षकों को यह डिज़ाइन सिखाना।

तकनीक एकीकृत कक्षा को सफलतापूर्वक लागू करना एक प्रेरणादायक लेकिन चुनौतीपूर्ण कार्य है। यह केवल उपकरणों की उपलब्धता तक सीमित नहीं है, बल्कि शिक्षण दृष्टिकोण, मानसिकता, प्रशिक्षण और समावेशिता से भी जुड़ा हुआ है।


⚠️ तकनीक एकीकृत कक्षा में आने वाली प्रमुख चुनौतियाँ

1. 📶 अवसंरचना और संसाधनों की कमी

  • सभी छात्रों के पास स्मार्टफोन, टैबलेट या लैपटॉप नहीं होते
  • इंटरनेट की गति या स्थायित्व ग्रामीण क्षेत्रों में बाधा बन सकती है
  • स्मार्ट बोर्ड, प्रोजेक्टर या चार्जिंग सुविधाओं की अनुपलब्धता

2. 🧑‍🏫 शिक्षक प्रशिक्षण और आत्मविश्वास की कमी

  • कई शिक्षक तकनीकी उपकरणों के प्रयोग में सहज नहीं होते
  • प्रशिक्षण कार्यक्रम अक्सर सतही या एक बार के होते हैं
  • नई तकनीक के साथ पाठ्यवस्तु को जोड़ने में कठिनाई होती है

3. 🧠 छात्रों की डिजिटल साक्षरता में अंतर

  • कुछ छात्र तकनीक में दक्ष होते हैं, जबकि अन्य को मूलभूत संचालन भी कठिन लगता है
  • तकनीक के प्रति अत्यधिक निर्भरता से सतही सीखने का खतरा

4. 🔐 डेटा सुरक्षा और गोपनीयता

  • छात्रों की व्यक्तिगत जानकारी ऑनलाइन साझा होने का जोखिम
  • साइबर सुरक्षा के प्रति जागरूकता की कमी
  • अनुचित ऐप्स या वेबसाइटों तक पहुँच का खतरा

5. 🕰️ समय प्रबंधन और पाठ्यक्रम दबाव

  • तकनीकी गतिविधियाँ अधिक समय ले सकती हैं
  • बोर्ड परीक्षाओं या सिलेबस पूरा करने की चिंता में नवाचार दब जाता है

6. 🧩 समावेशिता और पहुंच

  • दृष्टिबाधित, श्रवणबाधित या अन्य विशेष आवश्यकताओं वाले छात्रों के लिए तकनीक का अनुकूलन आवश्यक
  • भाषा और सांस्कृतिक विविधता को ध्यान में रखकर डिजिटल सामग्री तैयार करना

7. 💬 मानसिकता और प्रतिरोध

  • “पुरानी पद्धति ही बेहतर है” जैसी सोच से बदलाव में बाधा
  • तकनीक को केवल मनोरंजन या दिखावे का माध्यम समझना

🌱 समाधान की दिशा

यदि आप चाहें, तो मैं अगली बार इन चुनौतियों के व्यावहारिक समाधान और रणनीतियाँ भी साझा कर सकती हूँ—जैसे:

  • कम संसाधनों में तकनीक का रचनात्मक उपयोग
  • शिक्षक और छात्र दोनों के लिए माइक्रो-ट्रेनिंग मॉडल
  • स्थानीय भाषा और सांस्कृतिक संदर्भों में डिजिटल सामग्री का निर्माण
  • समावेशी डिज़ाइन और डेटा सुरक्षा के लिए दिशानिर्देश



🌟 तकनीक एकीकृत कक्षा के लिए समाधान और कार्य योजना

1. 🧑‍🏫 शिक्षक सशक्तिकरण: प्रशिक्षण को अनुभव से जोड़ना

  • माइक्रो-लर्निंग मॉड्यूल: छोटे-छोटे वीडियो या वर्कशॉप जो एक-एक तकनीक पर केंद्रित हों (जैसे Canva, Google Forms, Padlet)
  • सहयोगी शिक्षण: अनुभवी शिक्षक नए शिक्षकों को मेंटर करें
  • “शिक्षक प्रयोगशाला”: महीने में एक बार स्कूल में तकनीकी नवाचार साझा करने का मंच

2. 📱 सीमित संसाधनों में नवाचार

  • BYOD (Bring Your Own Device) नीति: जिनके पास मोबाइल है, वे समूह में काम करें
  • ऑफलाइन ऐप्स और सामग्री: जैसे Diksha, ePathshala, जो बिना इंटरनेट के भी चलें
  • प्रोजेक्टर के बिना कक्षा: QR कोड आधारित गतिविधियाँ, पोस्टर पर डिजिटल लिंक

3. 🧠 छात्रों की डिजिटल साक्षरता बढ़ाना

  • डिजिटल नैतिकता और सुरक्षा पर कक्षा चर्चा
  • “डिजिटल साथी” कार्यक्रम: तकनीकी रूप से दक्ष छात्र दूसरों को मदद करें
  • खेल आधारित सीखना: Kahoot, Quizizz जैसे टूल्स से सीखना रोचक बनाना

4. 🔐 डेटा सुरक्षा और गोपनीयता

  • सुरक्षित प्लेटफॉर्म का चयन: केवल सरकारी या प्रमाणित ऐप्स का प्रयोग
  • छात्रों को साइबर सुरक्षा के मूल नियम सिखाना
  • अभिभावकों को जागरूक करना: एक छोटा सत्र या पर्चा जिसमें डिजिटल सुरक्षा के सुझाव हों

5. 🕰️ पाठ्यक्रम और तकनीक का संतुलन

  • ब्लेंडेड लर्निंग मॉडल: कुछ अवधारणाएँ तकनीकी माध्यम से, कुछ पारंपरिक तरीकों से
  • “5 मिनट तकनीक”: हर कक्षा में 5 मिनट का डिजिटल टच (वीडियो, क्विज़, एनिमेशन)
  • पाठ योजना में तकनीक का स्थान तय करना: कौन-सी अवधारणा को डिजिटल रूप में पढ़ाना है, पहले से तय करें

6. 🧩 समावेशिता और विविधता

  • वॉयस ओवर और स्क्रीन रीडर: दृष्टिबाधित छात्रों के लिए
  • स्थानीय भाषा में सामग्री: हिंदी, उर्दू, या क्षेत्रीय भाषाओं में वीडियो और पीडीएफ
  • सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील डिज़ाइन: त्योहारों, कहानियों और स्थानीय प्रतीकों को तकनीकी गतिविधियों में शामिल करना

🎨 एक प्रेरणादायक पहल: “कक्षा संवाद मंच”


  • हर महीने एक डिजिटल प्रोजेक्ट बनाएं (जैसे स्वतंत्रता संग्राम पर इंटरेक्टिव पोस्टर)
  • तकनीकी नवाचार साझा करें
  • स्थानीय कहानियों को डिजिटल रूप में प्रस्तुत करें (वीडियो, पॉडकास्ट, स्लाइड)


Wednesday, 13 August 2025

प्रौद्योगिकी के साथ कार्य-आधारित शिक्षा

 

प्रौद्योगिकी के साथ कार्य-आधारित शिक्षा

भूमिका-

आज शिक्षा और प्रौद्योगिकी एक-दूसरे के पूरक बन रहे हैं। शैक्षिक प्रौद्योगिकी में नए उपागमों ने पारंपरिक शिक्षण विधियों को नया आयाम देने, अधिक समावेशी शिक्षण वातावरण बनाने और अधिक छात्रों तक पहुँचने में सक्षम बनाया है। डिजिटल शिक्षण प्लेटफॉर्म्स आज की शिक्षण पद्धतियों की आधारशिला बन गए हैं, जो शिक्षकों को इंटरैक्टिव पाठ तैयार करने, मल्टीमीडिया संसाधनों को साझा करने और छात्रों को इनमें शामिल करते हैं जो कुछ साल पहले यह संभव नहीं था। हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर और अन्य तकनीकी संसाधनों के माध्यम से सीखने और पढ़ाने की प्रक्रिया को शैक्षिक प्रौद्योगिकी या एजुकेशन टेक्नोलॉजी संक्षेप में एड-टेक के नाम से जाना जाता है। एड-टेक की चीज़ें गूगल क्लासरूम, गूगल मीट, माइक्रोसॉफ्ट टीम आदि प्लेटफॉर्म्स छात्रों और शिक्षकों को सहजता से संवाद करने की सुविधा देते हैं, साथ ही वे सुलभ और लचीले भी होते हैं। ये प्लेटफॉर्म्स शिक्षकों को विविध शिक्षण शैलियों और छात्रों की ऐसी व्यक्तिगत ज़रूरतों को पूरा करने में सक्षम हैं जिनसे सीखने के लिये एक अधिक समावेशी और व्यक्तिगत दृष्टिकोण बनता है। इससे छात्रों की आलोचनात्मक सोच और रचनात्मकता को प्रोत्साहन मिल रहा है। ऑनलाइन डिजिटल शिक्षण संसाधनों की व्यापक उपलब्धता के कारण कक्षा में काफी बदलाव आया है। बड़ी संख्या में कॉलेज और संस्थान ऑनलाइन कक्षाएँ देने लगे हैं। इसमें एक साथ प्रस्तुतियों, वीडियो, अनुप्रयोगों और शिक्षाप्रद छवियों का उपयोग शिक्षण को सुविधाजनक बना देता है, क्योंकि यह शिक्षण प्रक्रिया में छात्रों की भागीदारी को बढ़ाता है। सूचना और संचार प्रौद्योगिकी की बदौलत स्कूलों के पास सूचना और संसाधनों के नए स्रोतों के कारण छात्र और शिक्षक दोनों ही आपस में पूछताछ कर सकते हैं।

परिचय

प्रौद्योगिकी को कार्य-आधारित शिक्षा में शामिल करने से सीखने को वास्तविक परिदृश्यों से जोड़कर कौशल की प्रासंगिकता बढ़ती है और विद्यार्थी व्यावहारिक चुनौतियों का सामना करते हुए आत्मविश्वास से लैस होते हैं।

कार्य-आधारित शिक्षा वह दृष्टिकोण है जिसमें शिक्षार्थी सीधे कार्यस्थल या उसके जैसे वातावरण में व्यावहारिक अनुभव के माध्यम से सीखते हैं।

प्रौद्योगिकी इस प्रक्रिया को सुदृढ़ बनाती है, क्योंकि डिजिटल औजार वास्तविक समय में फीडबैक, सामूहिक सहयोग और व्यक्तिगत अनुकूलन प्रदान करते हैं।

कार्य-आधारित शिक्षा के प्रमुख मॉडल

•    इंटर्नशिप और अप्रेंटिसशिप

इंटर्नशिप वह अल्पावधि का कार्यक्रम है जिसमें छात्र या नवोदित पेशेवर किसी संगठन में एक अस्थायी पद पर कार्य करते हैं। यह अनुभव आम तौर पर तीन से छह महीने तक का होता है और अनुसंधान, परियोजना कार्य या सहायक भूमिका तक सीमित रह सकता है।

अप्रेंटिसशिप वह दीर्घकालिक प्रशिक्षण कार्यक्रम है जिसमें औपचारिक तौर पर प्रशिक्षु (एप्रेंटिस) और उद्योग/गुणवैद प्रशिक्षक (मास्टर) के बीच अनुबंध होता है। यह कार्यक्रम आम तौर पर 1–4 वर्ष तक चलता है, जिसमें कार्यस्थल पर अनुभव के साथ-साथ तकनीकी या पेशेवर कोर्स शामिल होते हैं।

•    परियोजना-आधारित शिक्षण (PBL)

परियोजना-आधारित शिक्षण एक शिक्षण पद्धति है जिसमें विद्यार्थी किसी वास्तविक, जटिल और अर्थपूर्ण समस्या या प्रश्न पर काम करते हैं। वे एक विस्तारित समयावधि में शोध, योजना, निर्माण और प्रस्तुति के माध्यम से सीखते हैं। यह पद्धति ज्ञान को केवल याद करने के बजाय उसे प्रयोग में लाने पर केंद्रित होती है।

•    सह-अनुभवात्मक शिक्षण (Cooperative Education)

"शिक्षा केवल पुस्तकों तक सीमित नहीं है—यह अनुभवों से परिपक्व होती है।”

सह-अनुभवात्मक एक ऐसी शिक्षण पद्धति है जिसमें विद्यार्थी कक्षा में सीखी गई बातों को वास्तविक कार्यस्थल पर जाकर अनुभव करते हैं। यह शिक्षा और कार्य का संगम है—जहाँ विद्यार्थी पढ़ाई के साथ-साथ किसी उद्योग, संस्था या संगठन में काम करते हैं और व्यावहारिक कौशल अर्जित करते हैं।

•    वर्चुअल कार्य-स्थल सिमुलेशन

VR (वर्चुअल रियलिटी) का अर्थ-

VR एप्लिकेशन एक पूर्णतः आभासी वातावरण तैयार करते हैं, जिसे विशेष हेडसेट या गॉगल्स के माध्यम से अनुभव किया जाता है। उपयोगकर्ता इस आभासी दुनिया में 360° घूम सकते हैं, हाथों से ऑब्जेक्ट्स को पकड़ने या नियंत्रित करने के लिए कंट्रोलर का प्रयोग कर सकते हैं।

AR (ऑगमेंटेड रियलिटी) का अर्थ

AR एप्लिकेशन असली दुनिया के दृश्य पर डिजिटल जानकारी (टेक्स्ट, इमेज, मॉडल) ओवरले करते हैं। यह सुविधा खासकर स्मार्टफोन या टैबलेट कैमरा, AR गॉगल्स या हेडअप डिस्प्ले के माध्यम से मिलती है।

•    लर्निंग मैनेजमेंट सिस्टम (LMS)

"शिक्षा को कहीं भी, कभी भी, किसी भी डिवाइस पर सुलभ बनाना।“

लर्निंग मैनेजमेंट सिस्टम (LMS) एक डिजिटल मंच है जो शिक्षण, प्रशिक्षण और सीखने की प्रक्रिया को व्यवस्थित, संचालित और ट्रैक करने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह शिक्षक और विद्यार्थी दोनों के लिए एक केंद्रीकृत स्थान प्रदान करता है जहाँ पाठ्यक्रम, सामग्री, मूल्यांकन, संवाद और प्रगति—all एक ही जगह पर उपलब्ध होते हैं।

•    मोबाइल और वेब एप्लिकेशन

मोबाइल और वेब एप्लिकेशन आज के डिजिटल युग में शिक्षा, संस्कृति, कला और संचार को नया आयाम देने वाले उपकरण बन चुके हैं। ये एप्लिकेशन न केवल जानकारी प्रदान करते हैं, बल्कि सहभागिता, रचनात्मकता और अनुभव को भी समृद्ध करते हैं।

लाभ

•    वास्तविक समय फीडबैक से कौशल तीव्रता से निखरता है

•    व्यक्तिगत लर्निंग पथ तय करने में शिक्षार्थी की समाविष्टि बढ़ती है

•    दूरस्थ कार्य-स्थल अनुभव तक पहुंच संभव होती है

•    डेटा-आधारित मूल्यांकन से शिक्षण की गुणवत्ता निरन्तर सुधार होती है

•    सहयोगी वातावरण में रचनात्मक समस्या-समाधान को बढ़ावा मिलता है

क्लासरूम में कार्य-आधारित शिक्षा के साथ प्रौद्योगिकी का कार्यान्वयन

क्लासरूम में प्रौद्योगिकी-संचालित कार्याधारित शिक्षा लागू करने के लिए एक स्पष्ट रोडमैप तैयार करें, जिसमें पूर्व-तैयारी से लेकर मूल्यांकन तक के चरण शामिल हों।

1. पूर्व-तैयारी और अवसंरचना मूल्यांकन

1.1. इंटरनेट एवं उपकरण उपलब्धता जांचें

1.2. LMS या कोर्स मैनेजमेंट प्लेटफॉर्म चुनें (जैसे Moodle या Google Classroom)

1.3. मोबाइल-प्रथम दृष्टिकोण अपनाएं—यदि स्मार्टफोन अधिक आम हैं, तो ऐप आधारित टूल्स प्राथमिकता दें

1.4. न्यूनतम तकनीकी साक्षरता वाले शिक्षार्थियों के लिए ओरीएंटेशन सेशन आयोजित करें

2. पाठ्यक्रम एवं परियोजना डिज़ाइन

2.1. वास्तविक समस्या चुनें जो स्थानीय रूप से प्रासंगिक हो (उदा. आस-पास के किसान, कुटीर उद्योग)

2.2 . सीखने के लक्ष्य प्राथमिकता में रखें—क्या विद्यार्थी को डेटा विश्लेषण सीखना है या डिजाइन थिंकिंग?

2.3. परियोजना-आधारित या इंटर्नशिप मॉडल से जोड़ें:

2.4 . समूह बनाकर मीरा फूड स्टार्टअप के लिए सोशल मीडिया कैम्पेन तैयार करना

2.5 स्थानीय कलाकारा के साथ क्लास का वर्चुअल इंटरव्यू और पोर्टफोलियो बनाना

2.6  प्रत्येक मॉड्यूल के अंत में रिफ्लेक्शन सेशन रखें: विद्यार्थी अपने अनुभव, चुनौतियाँ और सीख साझा करें

3. उपयुक्त तकनीकी औजारों का चयन

________________________________________

4. परियोजना आरंभ एवं मेंटोरिंग

4.1. उद्योग या स्थानीय विशेषज्ञ से मेंटोरिंग लिंक करें

4. 2. पहले सप्ताह में स्कोप और अपेक्षाएँ स्पष्ट करें

4. 3. छोटे-छोटे मिलस्टोन निर्धारित करें, हर मिलस्टोन पर डिजिटल रिपोर्ट या वीडियो अपडेट मांगें

4. 4. सहकर्मी समीक्षा सत्र आयोजित करें जहाँ विद्यार्थी एक-दूसरे को फीडबैक दें

5. मूल्यांकन और प्रतिक्रिया

5. 1. डेटा-आधारित ट्रैकिंग—LMS में एंगेजमेंट मेट्रिक्स देखें

5. 2. डिजिटल बॅज या माइक्रो-क्रेडेंशियल जारी करें जब विद्यार्थी किसी खास कौशल पर महारत हासिल करें

5. 3. अंत में एक पिच सेशन—विद्यार्थी अपनी परियोजना का प्रेजेंटेशन स्थानीय उद्योग प्रतिनिधियों के सामने दें

5. 4. रिफ्लेक्शन रिपोर्ट में स्वयं-और संयोजक मूल्यांकन शामिल करें

6. निरंतर सुधार और स्केलेबिलिटीस्केलेबिलिटी (Scalability) का मतलब है —

किसी सिस्टम, मशीन, नेटवर्क, बिज़नेस, या सॉफ़्टवेयर की क्षमता जो यह तय करती है कि वह बढ़ती हुई मांग, काम का बोझ, या उपयोगकर्ता संख्या को बिना परफ़ॉर्मेंस घटाए संभाल सकता है या नहीं।

आसान उदाहरण

रेस्टोरेंट में स्केलेबिलिटी: अगर ग्राहकों की संख्या अचानक दोगुनी हो जाए और रेस्टोरेंट बिना क्वालिटी या सर्विस स्लो किए सभी को खाना दे सके, तो वह स्केलेबल है।

वेबसाइट में स्केलेबिलिटी: अगर एक वेबसाइट पर रोज़ 100 लोग आते हैं और अचानक 10,000 लोग आ जाएँ फिर भी वह तेज़ी से चलती रहे, तो वह स्केलेबल है।

तकनीक-संवर्धित कार्य-आधारित शिक्षण को लागू करने में संभावित चुनौतियाँ

कार्य-आधारित शिक्षण में तकनीक का एकीकरण आपकी कक्षा को बदल सकता है, लेकिन यह व्यावहारिक, शैक्षणिक और संगठनात्मक बाधाओं का एक समूह भी लाता है।

1. बुनियादी ढाँचा और पहुँच

असमान कनेक्टिविटी

कुछ छात्रों के घर या परिसर में इंटरनेट की उपलब्धता अविश्वसनीय हो सकती है, जिससे समकालिक सत्रों या क्लाउड-आधारित उपकरणों में बाधा आ सकती है।

हार्डवेयर की उपलब्धता

हर शिक्षार्थी के पास संगत स्मार्टफ़ोन, टैबलेट या लैपटॉप नहीं होता; स्कूल द्वारा प्रदान किए गए उपकरण सीमित या लॉक हो सकते हैं।

तकनीकी सहायता की बाधाएँ

जब उपकरण क्रैश हो जाते हैं या प्लेटफ़ॉर्म में गड़बड़ी होती है, तो ऑन-साइट आईटी सहायता की कमी पूरी परियोजना टीमों को रोक सकती है।

2. डिजिटल साक्षरता अंतराल

शिक्षकों की बदलती प्रवाहशीलता

यहाँ तक कि तकनीक-प्रेमी शिक्षकों को भी नई एलएमएस सुविधाओं, एआर/वीआर किट या डेटा-विश्लेषण ऐप्स में महारत हासिल करने के लिए समय और प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है।

छात्र कौशल असमानताएँ

कुछ शिक्षार्थी सहयोगात्मक दस्तावेज़ों और ई-पोर्टफोलियो को आसानी से पढ़ लेते हैं, जबकि अन्य बुनियादी नेविगेशन में संघर्ष करते हैं, जिससे भागीदारी का अंतर बढ़ता जाता है।

3. पाठ्यक्रम संरेखण और मूल्यांकन

पाठ्यक्रम की अधिकता

गहन, प्रामाणिक परियोजना समय निकालना अनिवार्य पाठ्यपुस्तकों, परीक्षाओं या राज्य मानकों के साथ टकराव पैदा कर सकता है।

सॉफ्ट स्किल्स का सत्यापन

डिजिटल वातावरण में सहयोग, समस्या-समाधान और रचनात्मकता को मापने के लिए नए रूब्रिक और मूल्यांकनकर्ता अंशांकन की आवश्यकता होती है।

4. उद्योग साझेदारी की जटिलताएँ

मार्गदर्शक की उपलब्धता

स्थानीय पेशेवरों का कार्यक्रम अप्रत्याशित होता है; अतिथि व्याख्यानों या रीयल-टाइम फीडबैक लूप का समन्वय करना एक जटिल प्रक्रिया हो सकती है।

कार्यक्षेत्र का बेमेल होना

कंपनी के लक्ष्य आपके सीखने के परिणामों के साथ ठीक से संरेखित नहीं हो सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप परियोजनाएँ कमज़ोर हो सकती हैं या दोनों पक्षों में निराशा हो सकती है।

5. डेटा गोपनीयता, सुरक्षा और नैतिकता

छात्र डेटा संरक्षण

संलग्नता मीट्रिक और पोर्टफ़ोलियो एकत्र करने से यह सवाल उठता है कि उस डेटा का स्वामी कौन है और उसे सुरक्षित रूप से कैसे संग्रहीत किया जाता है।

ज़िम्मेदार तकनीक का उपयोग

एआर/वीआर हेडसेट और IoT सेंसर संवेदनशील जानकारी एकत्र कर सकते हैं—सहमति प्रक्रियाएँ और नैतिक दिशानिर्देश आवश्यक हैं।

6. वित्तीय और स्थायित्व संबंधी बाधाएँ

सॉफ़्टवेयर लाइसेंसिंग लागत

प्रीमियम एलएमएस प्लगइन्स, क्लाउड-लैब सदस्यताएँ, या वीआर टूलकिट के लिए अक्सर आवर्ती बजट की आवश्यकता होती है जिसे बनाए रखना मुश्किल हो सकता है।

रखरखाव का अतिरिक्त खर्च

उपकरणों को अपडेट, प्रतिस्थापन और समय-समय पर मरम्मत की आवश्यकता होती है; एक स्पष्ट समर्थन योजना के बिना, आपका तकनीकी पारिस्थितिकी तंत्र ख़राब हो सकता है।

7. समानता, समावेशन और पहुँच

दिव्यांग शिक्षार्थी

एआर सिमुलेशन, वीडियो डेमो, या मोबाइल ऐप सुलभ होने चाहिए (कैप्शन, स्क्रीन-रीडर संगतता) या विकल्प उपलब्ध कराए जाने चाहिए।

भाषा और सांस्कृतिक बाधाएँ

एक भाषा या संदर्भ में डिज़ाइन किए गए उपकरण बहुभाषी कक्षाओं को अलग-थलग कर सकते हैं, जब तक कि उन्हें सोच-समझकर स्थानीयकृत न किया जाए।

8. परिवर्तन प्रबंधन और सहभागिता

नई विधियों का प्रतिरोध

व्याख्यानों के आदी शिक्षक और छात्र, दोनों ही स्व-निर्देशित, तकनीक-संचालित परियोजनाओं से कतरा सकते हैं।

संस्थागत जड़ता

प्रशासनिक अनुमोदन प्राप्त करना, समय-सारिणी समायोजित करना, या मूल्यांकन नीतियों में बदलाव करना कई सेमेस्टर का प्रयास हो सकता है।

 

इन चुनौतियों से निपटने के लिए चरणबद्ध कार्यान्वयन, निरंतर व्यावसायिक विकास, सभी हितधारकों के साथ स्पष्ट संचार और एक फीडबैक लूप की आवश्यकता होती है जो आपको उपकरणों, परियोजना डिज़ाइनों और समर्थन संरचनाओं पर पुनरावृत्ति करने की अनुमति देता है। इन समस्याओं का पहले से अनुमान लगाकर, आप बाधाओं को गहन शिक्षण और अधिक लचीले कक्षा पारिस्थितिकी तंत्र के अवसरों में बदल सकते हैं।

सफल एकीकरण के लिए रणनीतियाँ

1. अवसंरचना एवं पहुंच में सुधार

•    स्थानीय एनजीओ या सरकारी स्कीमों के साथ साझेदारी करके किफायती उपकरण जुटाएँ।

•    स्कूल कैम्पस में एक समय-सूचीबद्ध टेक हब बनाएं, जहाँ विद्यार्थी डिवाइस और इंटरनेट का उपयोग कर सकें।

•    ऑफ़लाइन-मोड सपोर्ट वाले ऐप्स और डाउनलोडेबल लर्निंग पैकेट विकसित करें ताकि कम बैंडविड्थ में भी सीखना जारी रहे।

2. डिजिटल साक्षरता बढ़ाना

•    ‘टेक अप’ वर्कशॉप आयोजित करें जहाँ एडवांस क्लास के छात्र सहयोगी तरीके से बाकी विद्यार्थियों को उपकरणों का उपयोग सिखाएँ।

•    कोर्स में छोटे-छोटे माइक्रो-लर्निंग मॉड्यूल जोड़ें जो LMS, वर्चुअल लैब या AR/VR किट्स का परिचय कराएँ।

•    जस्ट-इन-टाइम हेल्प के लिए चैटबॉट या “टेक टीए” नियुक्त करें, जो तुरंत तकनीकी सवालों का जवाब दे सकें।

3. पाठ्यक्रम और मूल्यांकन संतुलन

•    उद्योग मेंटर्स के साथ मिलकर कौशल-आधारित रुब्रिक्स तैयार करें, जिससे तकनीकी और सॉफ्ट स्किल्स दोनों का मूल्यांकन आसान हो।

•    प्रोजेक्ट के हर चरण को सिलेबस के आउटकम्स से जोड़ते हुए एक Skills-to-Standards गाइड प्रकाशित करें।

•    रिफ्लेक्टिव जर्नल और ई-पोर्टफोलियो को ग्रेडेबल आर्टिफैक्ट की तरह शामिल करें।

4. इंडस्ट्री पार्टनरशिप को मज़बूत करना

•    पार्टनर संगठनों के साथ MOUs में समय, अपेक्षाएँ और डिलीवरएबल्स स्पष्ट करें।

•    त्रैमासिक “शैडो डे” आयोजित करें जहाँ विद्यार्थी उद्योग साइट्स पर शिफ्ट-बेस्ड विज़िट करें।

•    असिंक्रोनस फ़ीडबैक के लिए एक ऑनलाइन मेंटर पोर्टल (Slack, Teams) बनाएं।

5. डेटा प्राइवेसी, सुरक्षा और नैतिकता

•    स्पष्ट सहमति प्रोटोकॉल अपनाएं और डेटा को एन्क्रिप्टेड, संस्थागत सर्वर या क्लाउड में स्टोर करें।

•    एक छात्र-नेतृत्व वाले प्राइवेसी कमिटी गठित करें जो टूल्स की कम्प्लायंस समीक्षा करे।

•    प्रोजेक्ट किकऑफ़ में डिजिटल सिटिजनशिप के सबक जोड़े, जिससे छात्र जिम्मेदार तकनीकी उपयोग जानें।

6. वित्तीय एवं रखरखाव योजनाएँ

•    शुरुआत ओपन-सोर्स या फ्रिमीउम टूल्स से करें और शैक्षिक डिस्काउंट के लिए बातचीत करें।

•    एक डिवाइस-लेंडिंग लाइब्रेरी बनाएं, जिसे छात्र इंटर्न्स मैनेज कर सकें।

•    स्टाफ में “टेक स्टीवर्ड्स” के छोटे समूह को ट्रेन करें जो मेंटेनेंस और अपडेट्स का जिम्मा उठाएं।

7. समावेशिता और पहुंच

•    मल्टीमॉडल असाइनमेंट (ऑडियो, बड़े फॉन्ट) डिज़ाइन करें और सभी वीडियो में कैप्शन जोड़ें।

•    UI गाइड्स और प्रोजेक्ट ब्रीफ्स विद्यार्थियों की मातृभाषाओं में अनुवादित करें।

•    यूनिवर्सल डिज़ाइन प्रिंसिपल्स अपनाकर सभी को एक-जैसी सीखने की सुविधा दें।

8. परिवर्तन प्रबंधन और सहभागिता

•    प्रारंभिक सफलता की कहानियाँ और छोटे-स्तरीय पायलट के टेस्टिमोनियल साझा करके उत्साह बढ़ाएँ।

•    विद्यार्थियों को टेक एडवाइजरी काउंसिल में शामिल करें ताकि वे निर्णय-प्रक्रिया का हिस्सा बनें।

•    प्रशिक्षकों को माइक्रो-क्रेडेंशियल्स दें जब वे नए टूल्स या पद्धतियाँ सीखें, इससे उनमें किरदार की संवेदना बढ़ती है।

9.   AI आधारित सहायक को प्रोजेक्ट में इंटीग्रेट करना

10.  ब्लॉकचेन माइक्रो-क्रेडेंशियल के साथ प्रमाणन की डिजिटलीकरण

11.  क्रॉस-स्कूल वर्चुअल हैकाथॉन आयोजित करके सहयोगी सीखने को बढ़ावा

12.  सांस्कृतिक कहानी कहने के लिए डिजिटल एनिमेशन वर्कशॉप का आयोजन

इन रणनीतियों से आपका क्लासरूम न केवल चुनौतियों को पार करेगा बल्कि तकनीकी-प्रेरित नवाचार के लिए एक मॉडल भी बन जाएगा।

उदाहरण: प्रौद्योगिकी-संवर्धित कार्य-आधारित शिक्षा की सफलताएँ

निम्नलिखित दो केस स्टडीज ने दिखाया है कि कैसे टेक्नोलॉजी को वर्क-बेस्ड लर्निंग (WBL) में एकीकृत करके अप्रत्याशित परिणाम हासिल किए जा सकते हैं।

1. रॉबर्ट गॉर्डन विश्वविद्यालय, स्कॉटलैंड

इस इंजीनियरिंग WBL मॉडल ने उद्योग-शैक्षणिक साझेदारी के तहत निम्न पहलें लागू कीं:

•    मिक्स्ड-रीयलिटी (AR/VR) आधारित प्रयोगशालाएँ, जहाँ विद्यार्थी वर्चुअल ऊर्जा संक्रमण चुनौतियों पर प्रैक्टिस करते हैं।

•    ब्लेंडेड लर्निंग कॉर्पोरेट प्रोग्राम जिसमें ऑनलाइन मॉड्यूल को इंडस्ट्री प्रोजेक्ट्स से जोड़ा गया।

•    एम्प्लॉयर लीडरबोर्ड और ई-पोर्टफोलियो के जरिये नवाचार (creativity), सहयोग (collaboration), और आलोचनात्मक सोच (critical thinking) जैसे 4C कौशलों का ट्रैकिंग।

परिणामस्वरूप, प्रतिभागियों ने तकनीकी दक्षता के साथ-साथ समग्र सॉफ्ट स्किल्स में सुधार दिखाया, और सहयोगी संस्थाओं ने भी उत्पाद नवाचार एवं आर्थिक मूल्य में बढ़ोतरी देखी।

2. BITS पिलानी वर्क इंटीग्रेटेड लर्निंग प्रोग्राम्स (WILP), भारत

BITS पिलानी ने पिछले दशक से निम्न डिजिटल नवाचार लागू किए हैं:

•    रिमोट लैब्स और क्लाउड-आधारित सिम्युलेटर, जिससे किसी भी भौगोलिक स्थान से उच्च-स्तरीय प्रयोग किये जा सकें।

•    AI-समर्थित ऑनलाइन प्रॉक्टर्ड परीक्षाएँ, मल्टी-कैमरा सेटअप एवं एंटी-प्लेजरिज्म चेक सहित।

•    वर्चुअल AI चैटबॉट और डिजिटल ट्विन्स, जो व्यक्तिगत लर्निंग हैबिट्स पर तुरंत फीडबैक देते हैं।

इन पहलों से 20,000 से अधिक WILP छात्रों ने लाभ उठाया, जिससे उनके कौशल-आधारित परिणामों और औद्योगिक संबंधों में स्थायी सुधार हुआ।

इन केस स्टडीज ने स्पष्ट किया कि एक सुव्यवस्थित WBL फ्रेमवर्क में प्रौद्योगिकी का समावेश कैसे प्रतिभागियों की व्यावसायिक तैयारियों को नई ऊँचाइयों पर ले जाता है।

"दुनिया का भविष्य डिजिटलीकरण है और यह रुकने वाला नहीं है।इसे अपनाओ, या पीछे छूट जाओ।" – टिम कुक

और न जाने क्या-क्या?

 कभी गेरू से  भीत पर लिख देती हो, शुभ लाभ  सुहाग पूड़ा  बाँसबीट  हारिल सुग्गा डोली कहार कनिया वर पान सुपारी मछली पानी साज सिंघोरा होई माता  औ...