Wednesday, 13 August 2025

कौन हूँ मैं ?

 कौन हो तुम ?


अरे! रिटायर हो गई हो तुम,

अब न कोई नौकरी,

अब न कोई दिनचर्या,

और एक शांत घर, 

जो अब सिर्फ सन्नाटे से गूंजता होगा,

क्या इसमें अपना अस्तित्व खोजा ?

कौन हो तुम ?


तुमने मकान बनवाया,

छोटे-बड़े निवेश किए,

पर आज,

क्या चार दीवारों में नहीं सिमट गई हो?

साइकिल से मोपेड,

मोपेड से बाइक,

बाइक से कार तक की रफ्तार और स्टाइल का पीछा किया —

पर क्या अब धीरे-धीरे नहीं चलती हो तुम?

वो भी अकेले, अपने कमरे के भीतर।

कौन हो तुम ?


राज्य देखे, देश देखे, महाद्वीपों की सैर की,

पर आज,

क्या तुम्हारी यात्रा

ड्राइंग रूम से रसोईघर तक सीमित नहीं हो गई है?

संस्कृतियाँ और परंपराएँ सीखी,

पर अब,

क्या तुम्हारे अपने उं परंपराओं को निभा रहे हैं?

कौन हो तुम ?


कुछ ज़ेवर

लॉकर्स में चुपचाप पड़े होंगे,

साड़ियाँ-सूट-अलमारी में टंगे होंगे,

तुम तो अब नरम सूती कपड़े पहनती होंगी?

इत्मीनान का सुख ढूंढते हुए जीती होंगी?

कौन हो तुम ?

बहुत देर 

कभी भाषा में दक्ष थी —

पर अब माँ की बोली में

सुकून मिलता है

मानो बचपन का कोई सपना पलता है ।

व्यवसाय चलाया,

परिवार बसाया,

अनेक रिश्ते बनाए|

कभी आकाश में नही उड़ी, 

ज़मीन पर सदा पैर जमाए,

सर्वजन हिताए सोचा सदा  —

मूल्यों के साथ,

परिवार के साथ,

प्यार के साथ।"

पर अब,

मेरा सबसे प्रिय साथी,

 वह जीवनसाथी है, जिसके साथ लड़ते-झगड़ते 

जीवन के पथरीले रास्तों पर चलते-चलते 

जीवन की संध्या आई है|

क्योंकि 

कौन हूँ मैं ?

"मैं... बस मैं हूँ।"

ज़िंदगी की हर ऊँच-नीच के बाद,

एक शांत पल में,

मेरी आत्मा ने मुझसे फुसफुसा कर कहा:

बस अब…

तैयार हो जा,

हे यात्री…

अंतिम यात्रा की तैयारी कर।

कौन हूँ मैं ?

"मैं... बस मैं हूँ।"

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