Thursday, 14 August 2025

संचार और शिक्षा: तकनीक ने बदली शिक्षण पद्धति

संचार और शिक्षा: तकनीक ने बदली शिक्षण पद्धति



विद्यां चाविद्यां च यस्तद्वेदोभयंसह। 

अविद्यया मृत्युं तीर्त्वा विद्ययामृतमश्नुते॥

अर्थात जो व्यक्ति विद्या और अविद्या दोनों को समझता है, वह अविद्या से मृत्यु को तो पार कर सकता है, परंतु वह अमरत्व विद्या से ही प्राप्त करता है। भावार्थ यह है कि सच्ची शिक्षा केवल बाह्य ज्ञान नहीं, आत्मज्ञान भी है, जो जीवन को गहराई और दिशा देता है। शिक्षा शब्द संस्कृत भाषा की ‘शिक्ष्’ धातु में ‘अ’ प्रत्यय लगाने से बना है। ‘शिक्ष्’ का अर्थ है सीखना और सिखाना। ‘शिक्षा’ शब्द का अर्थ हुआ सीखने-सिखाने की क्रिया। इस तरह से शिक्षा का आशय ज्ञान, सदाचार, तकनीकी दक्षता आदि हासिल करने की प्रक्रिया से है। समाज एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को अपने ज्ञान का हस्तांतरण शिक्षा के माध्यम से करने का प्रयास करता है। शिक्षा एक ऐसी संस्था है, जो व्यक्ति को समाज से जोड़ने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है तथा समाज एवं संस्कृति की निरंतरता को बनाए रखती है। एक बच्चा शिक्षा से ही अपने समाज के आधारभूत नियमों, व्यवस्थाओं, प्रतिमानों एवं मूल्यों को सीखता है। बच्चा समाज से तभी जुड़ पाता है जब वह उस समाज विशेष के इतिहास से अभिमुख होता है। शिक्षा व्यक्ति की अंतर्निहित क्षमता तथा उसके व्यक्तित्व  को विकसित करने वाली प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया उसे समाज में एक वयस्क की भूमिका निभाने के लिए   तैयार करती है तथा एक ज़िम्मेदार नागरिक बनने के लिए  व्यक्ति को आवश्यक ज्ञान एवं कौशल उपलब्ध कराती है।

शिक्षण पद्धति ऐसा तरीका या विधि है जिसकी सहायता से एक शिक्षक कक्षा में पठन-पाठन का कार्य करता है, जैसे– कक्षा का आयोजन एक ऐसा तरीका या शिक्षण पद्धति है जिसमें शिक्षक और विद्यार्थियों  के मध्य अंतःक्रिया होती है। शिक्षक जितनी कुशलता से शिक्षण-विधि का प्रयोग करता है, कक्षा में उतना ही अच्छा वातावरण बनता है और शिक्षण-अधिगम या सीखने की प्रक्रिया प्रभावशाली होती है। शिक्षण विधि का आशय “कैसे पढ़ाया जाए” से है। यह किसी विषय या प्रकरण को विद्यार्थियों  तक पहुँचाने हेतु एक उत्तम एवं प्रभावशाली नीति व नियमों का चयन करती है। शिक्षण विधि को शैक्षिक तकनीकी, शैक्षिक उपकरण का ही एक हिस्सा माना जाता है और शिक्षण विधियों का निर्माण या उपयोग सामाजिक आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किया जाता है।

आज शिक्षा और प्रौद्योगिकी एक-दूसरे के पूरक बन रहे हैं। शैक्षिक प्रौद्योगिकी में नए उपागमों ने पारंपरिक शिक्षण विधियों को नया आयाम देनेअधिक समावेशी शिक्षण वातावरण बनाने और अधिक विद्यार्थियों  तक पहुँचने में सक्षम बनाया है। डिजिटल शिक्षण प्लेटफॉर्म्स आज की शिक्षण पद्धतियों की आधारशिला बन गए हैंजो शिक्षकों को इंटरैक्टिव पाठ तैयार करनेमल्टीमीडिया संसाधनों को साझा करने और विद्यार्थियों  को इनमें शामिल करते हैं जो कुछ साल पहले यह संभव नहीं था। हार्डवेयरसॉफ्टवेयर और अन्य तकनीकी संसाधनों के माध्यम से सीखने और पढ़ाने की प्रक्रिया को शैक्षिक प्रौद्योगिकी या एजुकेशन टेक्नोलॉजी संक्षेप में एड-टेक के नाम से जाना जाता है। एड-टेक की चीज़ें गूगल क्लासरूमगूगल मीटमाइक्रोसॉफ्ट टीम आदि प्लेटफॉर्म्स विद्यार्थियों  और शिक्षकों को सहजता से संवाद करने की सुविधा देते हैंसाथ ही वे सुलभ और लचीले भी होते हैं। ये प्लेटफॉर्म्स शिक्षकों को विविध शिक्षण शैलियों और विद्यार्थियों  की ऐसी व्यक्तिगत ज़रूरतों को पूरा करने में सक्षम हैं जिनसे सीखने के लिए  एक अधिक समावेशी और व्यक्तिगत दृष्टिकोण बनता है। इससे विद्यार्थियों  की आलोचनात्मक सोच और रचनात्मकता को प्रोत्साहन मिल रहा है। ऑनलाइन डिजिटल शिक्षण संसाधनों की व्यापक उपलब्धता के कारण कक्षा में काफी बदलाव आया है। बड़ी संख्या में कॉलेज और संस्थान ऑनलाइन कक्षाएँ देने लगे हैं। इसमें एक साथ प्रस्तुतियोंवीडियोअनुप्रयोगों और शिक्षाप्रद छवियों का उपयोग शिक्षण को सुविधाजनक बना देता हैक्योंकि यह शिक्षण प्रक्रिया में विद्यार्थियों  की भागीदारी को बढ़ाता है। सूचना और संचार प्रौद्योगिकी की बदौलत स्कूलों के पास सूचना और संसाधनों के नए स्रोतों के कारण विद्यार्थी  और शिक्षक दोनों ही आपस में पूछताछ कर सकते हैं।

संचार प्रौद्योगिकी ने शिक्षकों की भूमिका को बदला है। पारंपरिक कक्षा में, शिक्षक ही सभी सूचनाओं का प्राथमिक स्रोत होता था और विद्यार्थी  उसके द्वारा दी गई जानकारियों को निष्क्रिय रूप से और एकतरफा ढंग से प्राप्त करते थे। पर संचार क्रांति के इस परिदृश्य को बदल दिया है और आज हम कक्षाओं में शिक्षक की भूमिका को "मार्गदर्शक" के रूप में देखते हैं क्योंकि विद्यार्थी  जानकारी पाने के लिए  प्रौद्योगिकी का उपयोग करके स्वयं भी सीखते हैं। इस कारण से कक्षा में प्रौद्योगिकी के बढ़ते उपयोग के परिणामस्वरूप शिक्षकों की भूमिकाएँ नित  नया  कलेवर ग्रहण कर रही हैं। शिक्षक विद्यार्थियों  को केवल ज्ञान प्रदान करने के बजाय इंटरनेट और स्मार्ट उपकरणों का  उपयोग करके सीखने, सामग्री का विश्लेषण करने और स्वतंत्र शोध करने के तरीके सिखाने पर अधिक ज़ोर देने लगे हैं।

संचार प्रौद्योगिकी के आगमन ने पारंपरिक एवं ठहराव का गुण रखने वाली कक्षा को गतिशील शिक्षण वातावरण में बदल दिया है। वे दिन चले गए जब शिक्षण केवल पाठ्यपुस्तकों और श्‍यामपट तक ही सीमित था। आज डिजिटल उपकरण और ऑनलाइन संसाधन शिक्षा के केंद्र में हैं, जिससे सीखना अधिक आकर्षक और प्रेरक बन गया है। इंटरैक्टिव व्हाइटबोर्ड जैसे आधुनिक उपकरणों के कारण कक्षा का माहौल अब एक नएपन का अहसास देता है। वर्चुअल क्लासरूम, वेबीनार, गूगल डॉक्स, पीडीएफ, मल्टी मीडिया शैक्षिक प्रक्रिया का अभिन्न अंग बन गए हैं। ये विद्यार्थियों  में टीमवर्क और संचार को प्रोत्साहित करते हैं, उन्हें "वास्तविक दुनिया" के लिए  तैयार करते हैं। कुछ समय पहले तक स्कूलों में विद्यार्थियों को केवल सूचना प्रौद्योगिकी कक्षाओं में ही टेक्नोलॉजी का उपयोग करने की अनुमति होती थी लेकिन अब संचार तकनीक के उपकरण सभी प्रकार की कक्षाओं के अभिन्‍न अंग बनते जा रहे हैं।

संचार तकनीकी में हुए बदलाव के कारण के कारण विद्यार्थी अब ज्ञान के निष्क्रिय प्राप्तकर्त्ता  नहीं हैं अपितु वे कक्षा में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं, अध्यापक से सहयोग प्राप्त करते हैं, और सीखने की प्रक्रिया में अधिक संलग्न होते हैं। यह पाया गया है कि डिजिटल प्रौद्योगिकी ने उनके ग्रेड और दक्षता में सुधार किया है और वे शिक्षा पर अधिक समय देने में समक्ष हुए हैं। विद्यार्थियों  के लिए  एक बड़ा बदलाव व्यक्तिगत शिक्षण पर रहा है। शिक्षक अब उन्नत डेटा एनालिटिक्स के माध्यम से प्रत्येक विद्यार्थी  की प्रगति को आसानी से ट्रैक कर पाते हैं और अब प्रत्येक विद्यार्थी  की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप कार्य कर सकते हैं। जो विद्यार्थी  अपने सहपाठियों की तरह नहीं सीख पा रहे थे, संचार क्रांति के उपकरणों से उन्हें अब अधिक अवसर मिलते हैं ताकि वे भी उनके समकक्ष आ सकें। ऑनलाइन तरीके से, विद्यार्थी  मिल-जुलकर अध्ययन कर सकते हैं, किसी विषय पर अपने विचारों को आसानी से साझा कर  प्रतिक्रिया दे सकते हैं, जिससे उनमें कक्षा का सक्रिय सदस्य होने की भावना विकसित होती है। यह प्रकट तथ्य है कि आधुनिक युवा वर्ग व्यक्तिगत वस्तुओं और सेवाओं की अधिक  मांग करता है। पहले शिक्षक के पास इतना समय नहीं होता था कि वह प्रत्येक विद्यार्थी  के लिए   पाठ योजना में बदलाव कर सके। लेकिन अब उनके पास ऐसे डिजिटल शिक्षण संसाधन उपलब्ध हैं, जिनसे विद्यार्थी  अपने शिक्षकों से अधिक समय लिए  बिना अपनी सुविधानुसार सीख सकते हैं।

समग्र तौर पर देखें तो संचार के नए उपकरण एकाग्रता और समझ को बेहतर बनाते हैं। डिजिटल और इंटरैक्टिव उपागमों द्वारा उपयोग की जाने वाली गतिविधियाँ विद्यार्थियों  की एकाग्रता को बढ़ाती हैं इसलिए वे अवधारणाओं को अधिक तेज़ी से आत्मसात् करते हैं, जिससे सीखने में सुधार होता है। इस प्रकार विद्यार्थियों  को अधिक व्यावहारिक सीख मिलती है और जो कुछ उन्होंने सीखा है, वह सुदृढ़ बन जाता है। संचार में बदलाव से आई नई तकनीकें विद्यार्थियों  में लचीलापन और स्वायत्तता को बढ़ावा देती हैं। ऑनलाइन पाठ्यक्रमों जैसे डिजिटल विकल्पों को शामिल करने से प्रत्येक विद्यार्थी अपनी गति से सीख सकता है, डिजिटलीकरण और कनेक्टिविटी द्वारा प्रदान किये गए लचीलेपन के कारण समय और संसाधनों का अनुकूलन कर सकता है। प्रौद्योगिकी द्वारा प्रदान की जाने वाली सूचना के विविध स्रोत विद्यार्थियों  को नए दृष्टिकोण प्रदान करते हैं। इस तरह, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी बहस करने और अन्य लोगों की राय को स्वीकार करने को प्रोत्साहित करती है। इसके अलावा, विचारों के आदान-प्रदान से विद्यार्थियों  को विभिन्न संस्कृतियों के बारे में जानने का मौका सरलता से मिलता है। यह शिक्षकों और विद्यार्थियों  के बीच संचार को सुगम बनाता है। पूरे शैक्षिक समुदाय को समान संसाधनों तक त्वरित पहुँच मिलती है। इस तरह बिना शारीरिक रूप से उपस्थित होने की आवश्यकता के डिजिटल उपकरण प्रत्यक्ष और तत्काल बातचीत की अनुमति देते हैं।

शिक्षा में आईसीटी के नुकसान पर भी एक नज़र डाली जानी चाहिए। हमें यह समझना होगा कि प्रौद्योगिकियाँ परिपूर्ण नहीं होतीं; जिस प्रकार वे शिक्षा के लिए  अनेक लाभ लाती हैं, उसी प्रकार उनमें कुछ नुकसान भी होते हैं। वेब पेज, सोशल नेटवर्क या चैट जैसे सूचना के विभिन्न संसाधनों और स्रोतों तक असीमित पहुँच  के कारण विषय-वस्तु से ध्यान भटकना सहज हो जाता है। इसके अत्यधिक और अनुचित उपयोग से विद्यार्थियों का प्रौद्योगिकी के साथ बाध्यकारी संबंध बन सकता है, जिसके कारण उपभोग को नियंत्रित करने में असमर्थता हो सकती है और परिणामस्वरूप, विद्यार्थियों  के स्वास्थ्य, सामाजिक, पारिवारिक और शैक्षणिक जीवन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। डिजिटलीकरण को व्यापक रूप से अपनाने से लेखन, सार्वजनिक भाषण और तर्क जैसे अभ्यास समाप्त हो सकते हैं। एक खासी मुश्किल यह है कि इंटरनेट पर उपलब्ध कई जानकारियाँ झूठी, अधकचरी या शरारतपूर्ण या खास मंतव्य वाली हो सकती हैं। इस तथ्य का विद्यार्थियों  की मीडिया साक्षरता पर सीधा प्रभाव पड़ता है, क्योंकि विद्यार्थियों  को यहाँ तक कि शिक्षकों को यह नहीं पता होता कि इसका कैसे पता लगाएँ  और निराकरण करें। इसके अलावा साइबर अपराध के खतरों के बारे में जानकारी की कमी से अनजाने में विद्यार्थियों का डेटा उजागर हो सकता है। खासकर यदि विद्यार्थी  नाबालिग या महिला है तो उनके डेटा चोरी होने का खतरा अधिक होता है। अंतिम बात यह है कि संचार उपायों पर निर्भरता के कारण मानवीय संपर्क कम हो जाता है। नई तकनीकों के समावेश के साथ, सीखने की प्रक्रिया अधिक दूर हो जाती है और शिक्षकों एवं सहपाठियों के साथ निजी संबंध प्रभावित हो जाते हैं। परिणामस्वरूप, मानवीय संपर्क कम होने से अलगाव पैदा हो सकता है जो विद्यार्थियों  के व्यक्तिगत विकास में बाधा बन सकता है।

भारत ने पिछले कुछ वर्षों में स्कूली शिक्षा के औसत वर्षों में लगातार वृद्धि दर्ज की है और शैक्षिक असमानता कम हुई है। इसके बावजूद शहरी-ग्रामीण शैक्षिक विभाजन की समस्या बनी हुई है। इसके निदान के लिए  सूचना और संचार प्रौद्योगिकियों का उपयोग करना तय किया गया है। भारत की राष्ट्रीय शिक्षा नीति में प्रौद्योगिकी और शिक्षा के बीच एक दूरदर्शी संबंध पर ज़ोर दिया गया है। यह नीति डिजिटल बुनियादी ढाँचे और डिजिटल शैक्षिक सामग्री को एकीकृत करने, शिक्षण क्षमताओं को बढ़ाने, डिजिटल कौशल और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी नवीन प्रौद्योगिकियों की उभरती भूमिका पर नज़र रखने के साथ समावेशी शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करती है। ग्रामीण क्षेत्रों में तेज़ी से बढ़ती इंटरनेट सुविधा ने डिजिटल माध्यमों से शैक्षिक पहुँच के विस्तार की संभावना को बल दिया है। इसमें सार्वजनिक और निजी दोनों ही प्रकार के संगठन आईसीटी और शिक्षा संबंधी पहल अपना रहे हैं। सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी को स्कूलों के राष्ट्रीय कार्यक्रम में शामिल किया गया है और माध्यमिक शिक्षा अभियान के तहत अब स्कूलों में आईसीटी एक प्रमुख घटक बन चुका है। इनमें माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक स्कूलों में कंप्यूटर शिक्षा के लिए  केंद्र एवं राज्य सरकारों की साझेदारी है। दूसरा खास उपाय स्मार्ट स्कूलों की स्थापना है जो प्रौद्योगिकी प्रदर्शक होंगे। तीसरा घटक शिक्षक संबंधी हस्तक्षेप है, जैसे कि एक विशेष शिक्षक की नियुक्ति का प्रावधान, आईसीटी में सभी शिक्षकों की क्षमता में वृद्धि तथा प्रेरणा के साधन के रूप में राष्ट्रीय आईसीटी पुरस्कार की बात की गई है।

यद्यपि प्रौद्योगिकी का विद्यार्थियों के शैक्षिक अनुभव पर स्पष्ट रूप से सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, फिर भी कुछ उपकरणों के उपयोग को विनियमित करने की भी आवश्यकता है। चैट जीपीटी जैसे प्लेटफॉर्म की लोकप्रियता इसके अच्छे उदाहरण हैं। जानकारी इकट्ठा करना और साझा करना पहले से कहीं ज़्यादा आसान हो गया है, लेकिन यह जोखिम भी है कि विद्यार्थी  खुद के लिए  शोध करने और सीखने की क्षमता खो देंगे। जैसे-जैसे हम अधिक संसाधन-समृद्ध भविष्य की ओर बढ़ रहे हैं, वैसे-वैसे शिक्षकों को विद्यार्थियों  को धैर्य का मूल्य सिखाने और सीखने की प्रक्रिया का आनंद लेने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है। आज की युवा पीढ़ी आसानी से मिलने वाली जानकारी पर अत्यधिक निर्भर है और खुद के लिए  शोध करने और सोचने में एक सीमा तक असमर्थ भी है। ऐसे में ऐसा वातावरण विकसित करना होगा जहाँ अन्वेषण, चुनौती और प्रश्न पूछने को प्रोत्साहित किया जाए, तभी संचार क्रांति का लाभ शिक्षण पद्धति में मिल सकेगा, क्योंकि एप्पल कंपनी के सीईओ टिम कुक का कथं आज सही लगता है-

"दुनिया का भविष्य डिजिटलीकरण है और यह रुकने वाला नहीं है। इसे अपनाओ, या पीछे छूट जाओ।"

डॉ मीता गुप्ता

वरिष्ठ शिक्षाविद

(लेखिका को शिक्षा-क्षेत्र में 40 वर्षों का अनुभव है तथा वर्तमान में भारत सरकार की विभिन्न संस्थाओं द्वारा संचालित शिक्षकों के व्यावसायिक विकास के लिए क्षमता निर्माण कार्यशालाओं में संसाधक के रूप में कार्यरत हैं|)

 


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