Wednesday, 13 August 2025

बाल कविताएं

 बाल कविताएं 


तितली उड़ी, उड़ जो चली / शैलेन्द्र

तितली उड़ी, उड़ जो चली
फूल ने कहा, आजा मेरे पास
तितली कहे, मैं चली आकाश

खिले हैं गगन में तारों के जो फूल
वहीं मेरी मंज़िल कैसे जाऊँ भूल
जहाँ नहीं बंधन, ना कोई दीवार
जाना है मुझे वहाँ बादलों के पार
तितली उड़ी, उड़ जो चली …

फूल ने कहा, तेरा जाना है बेकार
कौन है वहाँ जो करे तेरा इंतज़ार
बोली तितली दोनों पंख पसार
वहाँ पे मिलेगा मेरा राजकुमार
तितली उड़ी, उड़ जो चली …

तितली ने पूरी जब कर ली उड़ान
नई दुनिया में हुई नई पहचान
मिला उसे सपनों का राजकुमार
तितली को मिल गया मनचाहा प्यार
तितली उड़ी, उड़ जो चली …

(फ़िल्म - सूरज 1966)

हाथी दादा / जगदीशचंद्र शर्मा

हाथी दादा चले घूमने होकर जब तैयार,
बाहर उनके लिए जीप सी खड़ी हुई थी कार।
उसके भीतर ज्यों ही दादा होने लगे सवार,

टायर फटा बोझ से भाई कार हुई बेकार।

आई नानी / श्रीनाथ सिंह

ओ हो घर में आई नानी,
आज सुनेंगे खूब कहानी।

मुन्नी चुन्नी चम्पा भोला,
नहीं करेंगे अब शैतानी।
झोले में क्या लाई नानी ?
गुड्डा काना गुड़िया कानी।
कहाँ कहाँ हो आई नानी ?
दिल्ली हरिद्वार हल्द्वानी।

नानी ऐसी सुना कहानी,
एक हो राजा एक हो रानी।
हंस हंस लोट पोट हो जाएँ,
या आँखों में आये पानी ।
एक कुँए में थोडा पानी,
उसमे नाचे लाल भवानी।
पहले बूझो यही पहेली,

फिर सुन लेना नई कहानी।


अगर परिश्रम करें गधे तो / प्रभुदयाल श्रीवास्तव


गधेराम ने सौ में से सौ,
पूरे नंबर पाए।
खुशियों के मारे चिल्लाए,
चिल्लाकर बौराए।

उनकी माँ ने पूछा बेटे,
आज ख़ुशी यह कैसे?
जीत लिया है युद्ध कहीं क्या,
पानीपत का जैसे?

बोला गधा अरी ऐसी ये,
बात नहीं है अम्मा।
दुनियाभर के लोग गधे को,
कहते सदा निकम्मा।

पर माँ मैंने सौ में से सौ,
पूरे नंबर पाए।
और गधेपन के स्तर से,
ऊंचा उठकर आए।

अगर परिश्रम गधे करें तो,
ऊंचा पद पा सकते।
रॉकेट लेकर चंदा मामा,
के घर तक जा सकते॥

आ जा बादल / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ

आ जा बादल आ जा बादल
आ जा लेकर अपना दलबल

सागर से उठकर तू आ जा
आसमान में जाकर छा जा

सब मटके पानी से भर ले
उमड़-घुमड़ कर गर्जन कर ले

हौले-हौले आ रे बादल
रिमझिम जल बरसा दे बादल

धरती को सरसा जा बादल
मिट्टी को महका जा बादल

पेड़ो को सहला जा बादल

पौधों को दुलरा जा बादल।

आज हमारी छुट्टी है / श्याम सुन्दर अग्रवाल

रविवार का प्यारा दिन है,
आज हमारी छुट्टी है ।

उठ जायेंगे क्या जल्दी है,
नींद तो पूरी करने दो ।
बड़ी थकावट हफ्ते भर की,
आराम ज़रूरी करने दो ।

नहीं घड़ी की ओर देखना,
न करनी कोई भागम- भाग ।
मनपसंद वस्त्र पहनेंगे,
आज नहीं वर्दी का राग ।

खायेंगे आज गर्म पराँठे,
और खेलेंगे मित्रों संग ।
टीचर जी का डर न हो तो,
उठती मन में खूब उमंग ।

होम-वर्क को नमस्कार,
और बस्ते के संग कुट्टी है ।
मम्मी कोई काम न कहना,
आज हमारी छुट्टी है ।


उठो मेरे लाल / अनुभूति गुप्ता

अब आँखें खोलो मेरे लाल,
अब मुँह धो लो मेरे लाल।

मैं जग में पानी लायी हूँ,
तुम्हें जगाने को आयी हूँ।

खट्ठे-मीठे और रसीले,
आम बहुत है पीले-पीले।

खाकर इनको भूख मिटाओ।

फिर अपने विद्यालय जाओ।।1. 


2.लड्डू, लट्टू, कच्ची ईंट,

ताला, चाबी, पक्की ईंट।

कली, कागज और करेला,

कच्चा मटका, गुड़ का भेला ।

शीशी, पन्नी, चाय की छन्नी,

पंजी, दस्सी और चवन्नी ।

कैंची, फावड़ा, गाय का गिरमा,

टोपी, जूता, आँख का सुरमा ।


3. 

इब्न बतूता, पहन के जूता,

निकल पड़े, तूफान में।

थोड़ी हवा, नाक में घुस गयी,

घुस गयी, थोड़ी कान में।

कभी नाक को, कभी कान को,

मलते, इब्नबतूता ।

इसी बीच में निकल पड़ा,

उनके पैरों का जूता

उड़ते-उड़ते, जूता उनका,

जा पहुँचा, जापान में।

इब्न बतूता, खड़े रह गए,

मोची की, दुकान में।


4. 

छुक छुक छुक छुक गाड़ी आई,

आगे से हट जाना भाई।

हट जाना भाई, बच जाना भाई,

छुक छुक छुक छुक गाड़ी आई।

काला काला धुआँ उड़ाती,

फक फक फक फक शोर मचाती।

गाड़ी आई गाड़ी आई,

आगे से हट जाना भाई।


5. 

मैं तो सो रही थी, मुझे मुर्गे ने जगाया,

बोला कुकहूँ कूँ कूँ हूँ।

मैं तो सो रही थी,

मुझे बिल्ली ने जगाया,

बोली-म्याऊँ म्याऊँ म्याऊँ ।

मैं तो सो रही थी,

मुझे मोटर ने जगाया,

बोली -पो पों पों।

मैं तो सो रही थी,

मुझे अम्मा ने जगाया,

बोली- उठ उठ उठ |



7. 

मुर्गा बोला कुक्कडू कूं,

चल मेरे भैया रूकता क्यूँ ।

कुत्ता भौंके, भों-भों-भों,

अटकी गाड़ी पौं- पौं-पौं।

बकरी आई, बिल्ली आई,

मैं-मैं आई, म्याऊँ – म्याऊँ आई।

धक्की गाड़ी धौं-धौं-धौं,

चल दी गाड़ी पौं- पौं-पौं।


8. 

डाक्टर देखो भली प्रकार,

मेरी गुड़िया है बीमार ।

कल था बरसा छम-छम पानी,

भीगी उसमें गुड़िया रानी।

गीले कपड़े दिए उतार,

फिर भी गुड़िया है बीमार

उसे लगाना थर्मामीटर,

ओ हो इतना तेज बुखार ।

सौ से भी ऊपर है चार,

देता हूँ मैं इसको पुड़िया

जल्द ठीक होगी तेरी गुड़िया 



9. 

कबूतर
भोले-भाले बहुत कबूतर
मैंने पाले बहुत कबूतर
ढंग ढंग के बहुत कबूतर
रंग रंग के बहुत कबूतर
कुछ उजले कुछ लाल कबूतर
चलते छम छम चाल कबूतर
कुछ नीले बैंजनी कबूतर
पहने हैं पैंजनी कबूतर
करते मुझको प्यार कबूतर
करते बड़ा दुलार कबूतर
आ उंगली पर झूम कबूतर
लेते हैं मुंह चूम कबूतर
रखते रेशम बाल कबूतर
चलते रुनझुन चाल कबूतर
गुटर गुटर गूँ बोल कबूतर
देते मिश्री घोल कबूतर।




11. 

चंदा मामा दूर के
चंदा मामा दूर के

पुए पकाये बूर के |
आप खाएँ थाली में।
मुन्नी को दें प्याली में ॥
प्याली गयी टूट
मुन्नी गयी रूठ॥
चंदा के घर जाएँगे।
 नई प्यालियाँ लाएँगे॥

मुन्नी को मनाएँगे।

कैसे 
बजा बजा कर तालियाँ ॥


12. 

आज मंगलवार है
चूहे को बुखार है
चूहा गया डॉक्टर के पास

लेकर ढेर सारी आस 
डॉक्टर ने लगाई सुई….
चूहा बोला उई उई ……


13. 

चूहे चाचा पहन पजामा,
दावत खाने आए।

साथ में चुहिया चाची को भी,
सैर कराने लाए।

दावत में कपड़ों की कतरन,
कुतर-कुतर कर खाएँ।

चूहे चाचा कूद-कूद कर
ढम ढम ढोल बजाएँ।


14. 

सर-सर-सर-सर उड़ी पतंग
फर-फर-फर-फर उड़ी पतंग ॥
इसको काटा,
उसको काटा।
खूब लगाया,
सैर-सपाटा।
अब लड़ने में जुटी पतंग

सर-सर-सर-सर उड़ी पतंग
फर-फर-फर-फर उड़ी पतंग ॥

15. 

पिज्जा के मैं पेड़ लगाऊँ।

बर्गर के भी बाग उगाऊँ।

मिलें बीज अच्छे-अच्छे तो,

क्यारी में नूडल्स बोआऊँ।


चॉकलेट का घर बनवाऊँ।

च्युंगम की दीवार उठाऊँ।

चिप्स कुरकुरे चाऊमिन से,

परदे नक्कासी करवाऊँ।


बिस्कुट के मैं टाइल्स लगाऊँ।

कालीनों पर ब्रेड बिछाऊँ।

गुलदस्ते वाले गमलों में,

रंग-बिरंगे  केक सजाऊँ।


छोटा भीम कभी बन जाऊँ।

बाल गणेशा बन इतराऊँ।

तारक मेहता के चश्मे को,

उल्टे से सीधे करवाऊँ।




16. 

हल्लम हल्लम हौदा, हाथी चल्लम चल्लम
हम बैठे हाथी पर, हाथी हल्लम हल्लम

लंबी लंबी सूँड़ फटाफट फट्टर फट्टर
लंबे लंबे दाँत खटाखट खट्टर खट्टर

भारी भारी मूँड़ मटकता झम्मम झम्मम
हल्लम हल्लम हौदा, हाथी चल्लम चल्लम

पर्वत जैसी देह थुलथुली थल्लल थल्लल
हालर हालर देह हिले जब हाथी चल्लल

खंभे जैसे पाँव धपाधप पड़ते धम्मम
हल्लम हल्लम हौदा, हाथी चल्लम चल्लम

17. 

मुन्नी की अब जिद्द है मानी,
नानी कहती एक कहानी।
कहानी सुनता छुपकर चोर,
उसके सर पर बैठा मोर।

मोर पंख पे नीला तिल्ला,
उसमें निकला काला बिल्ला।
काला बिल्ला बड़ा चटोरा,
उसके आगे रखा कटोरा।

कटोरे में जब खीर सजाई,
चूहा उठकर दे दुहाई।
चूहा खोटा, मारे सोटा,
उसे मनाए हाथी मोटा।

मोटा हाथी तोंद हिलाए,
मच्छर बैठा उसे चिढ़ाए।
मच्छर गाए भीं-भीं राग,
बन्दर करे भागम-भाग।

बन्दर की बारात सजाई,
आगे नाचे भालू भाई।
भालू भाई गाए राग,
मक्खी रानी शहद ले भाग।

शहद बेचने मक्खी जाए,
चींटी उसे आवाज लगाए।
चींटी करती चुपके चोरी,
चीनी की ले जाए बोरी।

बोरी के जब ढक्कन खोले,
उसके अन्दर कछुआ डोले।
कछुए ने हिलाई मुण्डी,
उसके उपर रेंगे सुण्डी।

सुण्डी बैठी बाल संवारे,
झबरा पिल्ला उसे निहारे।
झबरा पिल्ला खाए रोटी,
उसके सर पर दो चोटी।

चोटी उपर हिलती जाए,
तोता बैठा अमरूद खाए।
अमरूद अभी है कच्चा,
दांत से काटे बच्चा।

बच्चा रोया पलाथी मार,
उसको दिए खिलौने चार।
चार खिलौनो से खेले भाई,
मुन्नी को अब निद्रा आई।


18. 

पूरब का दरवाज़ा खोल
धीरे-धीरे सूरज गोल
लाल रंग बिखरता है
ऐसे सूरज आता है।

गाती हैं चिड़ियाँ सारी
खिलती हैं कलियाँ प्यारी
दिन सीढ़ी पर चढ़ता है।
ऐसे सूरज बढ़ता है।

लगते हैं कामों में सब
सुस्ती कहीं न रहती तब
धरती-गगन दमकता है।
ऐसे तेज़ चमकता है !

गरमी कम हो जाती है
धूप थकी सी आती है
सूरज आगे चलता है
ऐसे सूरज ढलता है।

19. 

सबसे पहले मेरे घर का
अंडे जैसा था आकार
तब मैं यही समझती थी बस
इतना-साही है संसार।
फिर मेरा घर बना घोंसला
सूखे तिनकों से तैयार
तब मैं यही समझती थी बस
इतना-सा ही है संसार।

फिर मैं निकल गई शाखों पर
हरी-भरी थीं जो सुकुमार
तब मैं यही समझती थी बस
इतना-सा ही है संसार।

आखिर जब मैं आसमान में
उड़ी दूर तक पंख पसार
तभी समझ में मेरी आया
बहुत बड़ा है यह संसार।

20. 

यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे।
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे॥

ले देतीं यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली।
किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली॥

तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता।
उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता॥

वहीं बैठ फिर बड़े मजे से मैं बांसुरी बजाता।
अम्मा-अम्मा कह वंशी के स्वर में तुम्हे बुलाता॥

 सुन मेरी बंसी को माँ तुम इतनी खुश हो जाती।
मुझे देखने काम छोड़ कर तुम बाहर तक आती॥

तुमको आता देख बांसुरी रख मैं चुप हो जाता।
पत्तों में छिपकर धीरे से फिर बांसुरी बजाता॥

गुस्सा होकर मुझे डांटती, कहती "नीचे आजा"।
पर जब मैं ना उतरता, हंसकर कहती "मुन्ना राजा"॥

"नीचे उतरो मेरे भैया तुम्हें मिठाई दूंगी।
नए खिलौने, माखन-मिसरी, दूध मलाई दूंगी"॥

बहुत बुलाने पर भी माँ जब नहीं उतर कर आता।
माँ, तब माँ का हृदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता॥

तुम आँचल फैला कर अम्मां वहीं पेड़ के नीचे।
ईश्वर से कुछ विनती करतीं बैठी आँखें मीचे॥

तुम्हें ध्यान में लगी देख मैं धीरे-धीरे आता।
और तुम्हारे फैले आँचल के नीचे छिप जाता॥

तुम घबरा कर आँख खोलतीं, पर माँ खुश हो जाती।
जब अपने मुन्ना राजा को गोदी में ही पातीं॥

इसी तरह कुछ खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे।
यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे॥

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