Sunday, 3 August 2025

प्राक्कथन

 

📖प्राक्कथन

कविता केवल शब्दों का संयोजन नहीं होती-वह आत्मा की पुकार, समय का साक्ष्य और समाज के मन की प्रतिध्वनि होती है। यह पुस्तक उन भावों की अभिव्यक्ति है, जो जीवन की जटिलताओं में मार्गदर्शन का दीपक जलाते हैं और गीतों की मधुरता में प्रेरणा का संचार करते हैं। इस संग्रह में संकलित कविताएं केवल भावनाओं की अभिव्यक्ति नहीं हैं, बल्कि वे समाज के लिए उपयोगी विचारों की वाहक हैं। वे हमें सोचने, समझने और आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं-चाहे वह जीवन की कठिन राह हो, आत्मचिंतन का क्षण हो, या फिर सामाजिक बदलाव की पुकार।

सूर्यवंशी जी, आपने अपनी कविताओं के माध्यम से उन भावनाओं को स्वर देने का प्रयास किया है, जो हमें भीतर से झकझोरती हैं, कभी माँ की ममता में, कभी देश की पुकार में और कभी आत्मा की गहराइयों में। आपकी कविताएं केवल पढ़ने के लिए नहीं हैं, बल्कि जीने के लिए हैं।

इस पुस्तक का उद्देश्य केवल साहित्यिक रस देना ही नहीं है, बल्कि पाठकों को एक ऐसा दर्पण देना है, जिसमें वे स्वयं को, अपने समाज को और अपने समय को देख सकें। यह पुस्तक आपका प्रथम प्रयास है, इसमें आपके शब्द आपकी सादगी और संस्कारों को परिलक्षित करते हैं| आपकी कविताएं बहुत सुंदर, गरिमापूर्ण, संवेदनशील और ह्रदय के तारों को झंकृत करने वाली हैं| आपकी कविताएं वर्तमान के साहित्यिक कचरे के बीच एक खिलता हुआ कमल, उदित होता सूर्य या जगमग जुगनुओं सा प्रतीत हुआ। आज साहित्य लेखन एक बहुत बड़ी चुनौती है, जहां समाज में दया,  प्रेम,  विश्वास,  करुणा, सौहार्द्र की भावना विलुप्त होती जा रही है, ऐसे में गहन संवेदनाओं को पुनर्स्थापित करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। आपने वर्षों की साधना से साहित्य को रचा है, शायद इसीलिए आपका मानवीय संवेदनाओं पर अडिग विश्वास है।                                                                    

 

मैं पुस्तक के सभी पाठकों से यही आशा करती हूँ कि वे इन कविताओं को न केवल पढ़ें, बल्कि अनुभूत करें, आत्मसात करें क्योंकि इस पुस्तक की एक-एक कविता हृदय की धड़कन की भांति स्पंदित होती है|

शुभकामनाओं सहित|

डॉ मीता गुप्ता

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