Tuesday, 27 October 2020

आह्वान

 



उठे राष्ट्र तेरे कंधो पर

बढ़े प्रगति के प्रांगण में,

पृथ्वी को रख दिया उठाकर

तूने नभ के आँगन में ।

 

विजय वैजयंती फहरी जो

जग के कोने-कोने में,

उनमें तेरा नाम लिखा है

जीने में, बलि होने में !

 

गहरे रण घनघोर, बढ़ी

सेनाएँ तेरा बल पाकर

स्वर्ण-मुकुट आ गये चरण तल

तेरे शस्त्र सँजोने में ।

 

यह अवसर है, स्वर्ण सुयुग है,

खो न इसे नादानी में,

अब न तू बेसुध होना

मस्ती में, मनमानी में।

 

तरुण, विश्व की बागडोर ले

तू अपने कठोर कर में,

स्थापित कर रे मानवता

बाहर में, अपने घर में।

 

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