काग की चोंच में अंगूर

एक शिक्षिता कन्या के
विद्यावती सुधन्या के
पूज्य पिता ने वर खोजा
वर से पहले घर खोजा ।
कन्या ने देखा वर को
कुसुम लखे ज्यों पत्थर को
कन्या ने की रस की चर्चा
वर ने दिखा दिया पर्चा ।
कोठी,कार, दुकानों का,
गोदामों, तहखानों का,
लॉन, दालान, बगीचों का,
सोफ़े, दरी, गलीचों का ।
वर बातों में लीन हुआ
कन्या से छह तीन हुआ
मुँह आया जो बोल दिया
अपना ढकना खोल दिया ।
कन्या भीतर झाँक गई
गहराई को आँक गई
वर कन्या को देखा गया
सुलेख मानो कुलेख भया ।
कहा पिता ने कैसा है ?
कन्या बोली भैंसा है
शक्ल को देखूँ शक्ल नहीं
अक्ल को देखूँ अक्ल नहीं ।
इसने कुछ भी नहीं पढ़ा
महल ज्ञान का नहीं गढ़ा
यह बुद्धू है बुद्ध नहीं
भाषा इसकी शुद्ध नहीं ।
ध्रुव को धुरू बोलता है
लघु को गुरू बोलता है
यह अरसिक है, सूखा है
पैसों का यह भूखा है ।
किस कोयल ने पाला है ?
कौए जैसा काला है
कैसे इसकी चाह करूँ ?
कैसे इससे ब्याह करूँ ?
कहा पिता ने सुन बेटी
पुस्तक पढ़कर गुन बेटी
अक्ल से तू क्या काटेगी ?
शक्ल को तू क्या चाटेगी ?
बेशक इसने पढ़ा नहीं
महल ज्ञान का गढ़ा नहीं
पढ़ने से क्या होता है ?
ज्ञान सड़क पर रोता है ।
इसने असली काम किया
कुल का ऊँचा नाम किया
ऊँची कोठी बनवा ली
ज्ञानी पीट रहे ताली ।
वह जो इसका पी0ए0 है
अंग्रेज़ी में बी0ए0 है
वो भी स्कूटर रखता है
एम0ए0 इसका ट्यूटर है ।
ज्ञान गुलामी करता है
यह स्वच्छंद विचरता है
धनी घिरत घी को कहता
उसके घर में घी बहता ।
बेटी उसको वर लो तुम
उससे शादी कर लो तुम
पंडित के घर जाएगी
शब्द-अर्थ क्या खाएगी ?
अन्न नहीं मिल पाएगा
रस में रस क्या आएगा ।
जीवन का रस पी बेटी
धन को मन पर लिख बेटी
ज्ञान-ध्यान सब धन में है
खान-पान सब धन में है ।
बेटी बोली-सुनो पिता
ऐसा वर मत चुनो पिता
तुमने में प्यार पला
नाम रखा था-शकुंतला ।
जब यह अपना फाड़ गला
मुझे कहेगा- सकुंतला
मैं कैसे सुन पाऊँगी ?
रो-रो कर मर जाऊँगी ।
मान मैं धनवान नहीं
धनपति की संतान नहीं
निर्धनता की नारी हूँ
पर भैंस नहीं मैं नारी हूँ ।
कहा पिता ने सुन बेटी
धन को मन पर लिख बेटी
बेटी आज्ञा मान गई
भाव पिता का जान गई ।
कौए के संग चली गई
स्वर्ण-कमल की कली गई
पत्थर के दूब गई
तारकोल में डूब गई
तारकोल में डूब गई ।
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