Tuesday, 20 October 2020

कोरोना वायरस के समय-काल में महिलाओं की स्थिति

 






अब इतिहास में दर्ज होगा एक ऐसा समय,

जब संसार हो गया निश्चल,

जब सपरिवार रहे भीतर,

कभी-कभी खिड़कियों से झाँकते,

उस साफ होते आसमान को देखते,

जो इतना नीला कभी था,

जो उन्होंने बरसों से ना देखा था,

वह फूलों का खिलना,

वह सूरज का निकलना,

वह बादलों का आना-जाना,

और हां, वह रंग बिरंगा इंद्रधनुष,

जिसकी आभा को जाने कब से नहीं देखा था ।।

जी हाँ, नोवेल कोरोना वायरस का समय.......ऐसा वायरस जिसने सारे  संसार की गति को,रफ़्तार को, सोच को, महत्वाकांक्षाओं को, और यूँ कहें तो जीवन को ही एक पल में रोक दिया....इसके संक्रमण से बचने के लिए पहले लॉकडाउन और फिर अनलॉक 1,2,3,4,5.....आज छह महीने से भी अधिक अवधि बीत चुकी है पर अब  तक ह्म सामान्य जीवन की परिकल्पना से भी कोसों दूर हैं ।इस वैश्विक महामारी के कारण वैश्वीकृत समाज की एक दूसरे के साथ मज़बूती से जुड़ी हुई प्रणालियां पूरी तरह से बदल गई, और परिवार इसी समाज की सबसे छोटी और महत्वपूर्ण इकाई है इस वायरस के प्रकोप पर काबू करने के प्रयास के तौर पर कहीं आने-जाने तथा सामाजिक मेल-जोल पर बंदिशें लग गईं जिसके कारण दुनिया की 7 बिलियन से भी अधिक की आबादी इस समय इस महामारी के कारण एक तरह से अपने घरों में बंद रहने को मजबूर है।

दुनिया के कई हिस्सों में, सीमाएं बंद हैं, हवाई अड्डे, होटल और व्यवसाय बंद हैं, और शैक्षणिक संस्थान बंद हैं। ये अभूतपूर्व उपाय सामाजिक ताने-बाने को तोड़ रहे हैं और अर्थव्यवस्थाओं को बाधित कर रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप विश्व पर दूरगामी प्रभाव दिखने लगे हैं ।इसके साथ यह समझना भी परम आवश्यक है कि इतिहास गवाह है कि भारत में समाज के ताने-बाने को बुनने और सहेज कर रखने में महिलाओं की महती भूमिका रही है हमारे देश में महिलाओं ने हर संकट के समय में वटवृक्ष बनकर अपने परिवार को एक कवच प्रदान करने का प्रयास किया है पर यह समय अभूतपूर्व है, आज शत्रु अनजाना, अनदेखा और विलक्षण है फिर भी महिलाओं ने धैर्यपूर्वक इस संकट का सामना किया है और आज भी कर रही हैं, फिर चाहे वे गृहिणियाँ हों या नौकरीशुदा महिलाएँ, चाहे वे गाँवों में निवास करती हों, या शहरों में, चाहे वे निर्धन परिवारों से हों या धनाढ्य परिवारों से महिलाओं ने समाज की इस बदली हुई तस्वीर के साथ सामंजस्य बैठाने का भरपूर प्रयास किया है

आइए सबसेपहले गृहिणियों की बात करते हैं आज कोरोना के भारी संकट में उनकी भूमिका अचानक बहुत बढ़ गई है और घर में केवल उसके काम बढ़े हैं बल्कि उसके अधिकार क्षेत्र में दूसरे लोगों का अनधिकृत प्रवेश भी बढ़ गया है। हर कोई उस पर हुक्म चला रहा है या फिर उससे काम करवा रहा है। लॉकडाउन में बाहर सब कुछ बंद है तो सबको घर पर ही रहने की मजबूरी है।पुरुष प्रधान समाज में जहां ज्यादातर पतियों को हुक्म चलाने और अधिकार जताने की आदत रही है, वहां पतियों के इस स्वभाव के कारण पत्नी को इंतज़ार रहता था कि कब ये दफ्तर या काम पर जायें तो थोड़ी देर खुली हवा में सांस भी ले सकूंगी और जल्दीजल्दी काम भी निपटा लूंगी। अब दिनभर जब लॉकडाउन पीरियड में उसे सारा दिन झेलना पड़ता होगा तब पत्नी की दशा का अनुमान आप लगा सकते हैं। केवल झेलो बल्कि नित नईनई फरमाईशों को भी पूरा करो। बच्चे स्कूल में जा नहीं रहे उन्हें या तो घर पर पढ़ाओ या ऑनलाइन कक्षाओं का प्रबंध करो या नईनई चीजें बनाकर खिलाते रहो या मनोरंजन का ध्यान रखो, नहीं तो वे उधम मचायेंगे। घर में बुज़ुर्ग हैं, तो उनकी देखभाल अलग, उन्हें तो कोरोना का सबसे ज्यादा खतरा है बड़े आराम से घर में कोरोना से बचाव के लिए घर वालों ने तय कर दिया कि हाउस हैल्प और काम करने वाली बाई को मत आने दो। फिर खाना बनाने, बर्तन मांजने, झाडू चौका, कपड़े धोने का काम सब महिलाओं पर ही गया। यह भी सच है कि घर के सद्स्य मदद के लिए आगे आते तो हैं परंतु वह पर्याप्त नहीं होता

इसके साथ ही जो बात सबसे अधिक चिंतनीय है, है,वह यह कि कोरोना संकट के दौरान देश-विदेश से महिलाओं के ख़िलाफ़ बढ़ती घरेलू हिंसा की ख़बरें रही हैं. कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच घर में बंद रहने के अलावा कोई चारा भी नहीं है. लॉकडाउन एक तरफ परिवारों के एकजुट होने का नाम बन गया, लेकिन दूसरी तरफ महिलाओं का एक बड़ा तबका इसी दौरान घरेलू हिंसा में बुरी तरह फंस गया है.परिवार के सद्स्यों, विशेषतौर पर पुरुषों के मानसिक स्वास्थ्य के असंतुलन का यह दुष्प्रभाव दिखाई दे रहा है मनोचिकित्सकों के मुताबिक कोरोना जैसी महामारी के दौरान इंसानी फितरत में बदलाव आना या पहले से पनप रही हिंसा का बढ़ जाना आम बात है.इसलिए भी कि आम लोगों को सिर्फ शारीरिक बंदिश नहीं आर्थिक दिक्कतों का सामना भी करना पड़ रहा है. आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं के बाधित होने से महिलाओं और लड़कियों तक इन सेवाओं की पहुंच कम हो जाने का खतरा बढ़ गया है कोरोना वायरस संकट से हमारी सामाजिक सेवाओं और स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली पर अभूतपूर्व दबाव पड़ा है। इसके साथ ही महिलाओं के खिलाफ यौन और घरेलू हिंसा, उनकी स्वास्थ्य सेवाओं में व्यवधान, गर्भ निरोधकों की आपूर्ति में बाधा का भी खतरा बढ़ गया है। महिलाओं में मानसिक तनाव और चिंता संबंधी जोखिम भी बढ़ रहा है।

कामकाजी महिलाएँ आज वर्क फ़्रॉम होम कर रही हैं, ऐसे में उनके लिए घर और कार्यालय दोनों एक हो गए हैं, जिसके कारण उन पर दबाव दिन प्रति दिन गहराता जा रहा है और वे डिप्रेशन का शिकार हो रही हैं

लॉकडान के इन नकारात्मक पहलुओं के साथ अनेक सकारात्मक पहलू भी हैं, जिनपर हमारे लिए ध्यान देना आवश्यक है कोरोना वायरस के तमाम नकारात्मक प्रभावों के बीच कुछ छोटे ही सही लेकिन ऐसे सकारात्मक बदलाव भी हैं जिनकी भारतीय समाज को एक अरसे से जरूरत थी कोरोना संकट सिर्फ दुनिया की आर्थिक व्यवस्था को ही नहीं बल्कि राजनीति, देशों के आपसी संबंधों से लेकर हमारे सामाजिक-व्यक्तिगत संबंधों तक को बदलने वाला साबित हो रहा है.आशंकाओं के बीच कुछ छोटे-छोटे सकारात्मक बदलाव भी हैं, जिन्हें पिछले दिनों भारतीय समाज ने बहुत गंभीरता और तेजी के साथ अपनाया है. ये बदलाव इसलिए ध्यान खींचते हैं क्योंकि सवा अरब से ज्यादा की आबादी वाला हमारा देश कई बार सही व्यवहार करने के मामले में बड़े ढीठ स्वभाव का दिखता रहा है.

आज घर-घर में स्वच्छता, अनुशासनबद्धता, धैर्य, कम सामान में गुज़ारा करना,खाने की बर्बादी को न होने देना, घरवालों के महत्व को सब जानने लगे हैं और आज जब घर की हेल्प या काम वाली बाई नदारद है, तो धीरे धीरे घर के सदस्य महिलाओं द्वारा किए गए कार्यों को केवल नोटिस करने लगे हैं बल्कि स्वयं आगे बढ़कर मदद भी कर रहे हैं अपने लोगों के करीब रहना, एक सोशल सर्कल का होना और जिंदगी आसान बनाने वाले कई लोगों की उपस्थिति हमारे लिए कितनी ज़रूरी है., ये बात परिवार के सभी सदस्यों को अच्छी तरह समझ रही है ।अन्यथा महिलाओं के लिए विशेषतौर से किशोर होते बच्चों को यह समझाना अत्यधिक कठिन हो जाया करता था कोरोना संकट ने हमें अपने हाथों को साफ रखना सिखा दिया है. कोरोना संकट अभी लंबा चलने वाला है और उम्मीद की जा सकती है कि इसके खत्म होने तक हाथों से लेकर घर तक की साफ-सफाई हम में से कइयों के जीवन का एक स्थायी अंग बन चुकी होगी, और इससे महिलाओं के लिए घर के रख-रखाव में अवश्य ही मदद मिलेगी कोरोना वायरस के इस आपातकालीन समय में महिलाओं ने अपनी छुपी हुई प्रतिभाओं के विकास के लिए समय निकाला है और घर के बच्चों, जो वर्क फ़्रॉम होम के कारण घर में ही है, नई तकनीकों की मदद से सोशल मीडिया के माध्य्म से अपनी क्रिएशंस का प्रदर्शन भी किया है महिलाओं में टेक्नोलॉजी के प्रयोग में महिलाएं अब आगे रही है वे आत्मनिर्भर होकर ऑनलाइन शॉपिंग और सोशल मीडिया में अपनी क्रिएशंस और अपने कौशल का प्रदर्शन कर रही है इसके साथ-साथ यूट्यूब पर देख कर विभिन्न व्यंजनों और पकवानों को भी बना रही है कुछ महिलाओं ने संगीत, चित्रकला आदि को फिर से अपनाया है इससे महिलाओं का व्यक्तित्व निखर रहा है घर के पुरुषों में और घर के अन्य सदस्यों में उनके प्रति सम्मान भी बड़ा है उनकी योग्यताओं को उनके कौशलों को घर में और सोशल मीडिया पर सराहा जा रहा है पहुंची महिलाओं के ब्लॉग बहुत ही लोकप्रिय हो रहे हैं चाहे वे व्यंजनों और पकवानों को बनाने के विषय में हो या बच्चों की देखभाल के विषय में हो ।इन घरेलू विषयों पर जब महिलाओं ने लिखना आरंभ किया है तो उन्हें बहुत प्रसिद्धि प्राप्त हो रही है । आमतौर पर अपने शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही बरतने वाली महिलाएँ अब योग और ध्यान की ओर आकर्षित हो रही हैं । किसी भी मनुष्य के लिए सबसे आवश्यक होता है कि उसके परिवार वाले उसकी योग्यताओं उसके कौशलों की सराहना करें और समाज में उसे एक पहचान मिले तो कोरोनावायरस का यह काल एक प्रकार से महिलाओं को पहचान दिलवाने का भी एक समय और एक अवसर रहा है

मैं ऐसा मानती हूँ कि कोरोनावायरस के इस मंथन काल से निकला यह स्निग्ध पीयूष समाज को एक नई दिशा देगा अंत में यही कहा जा सकता है कि भारतीय महिला एक सशक्त व्यक्तित्व के रूप में उठेगी और उसके आत्मविश्वास से समस्त भारतीय समाज आलोकित होगा और एक नया पथ प्रशस्त होगा क्योंकि-

इन काली सदियों के सर से जब रात का आँचल ढलकेगा

जब दुख के बादल पिघलेंगे, जब सुख का सागर छलकेगा

जब अंबर झूम के नाचेगा, जब धरती नग़में गाएगी

वो सुबह हमीं से आएगी, वो सुबह हमीं से आएगी

वो सुबह हमीं से आएगी, वो सुबह हमीं से आएगी

No comments:

Post a Comment

और न जाने क्या-क्या?

 कभी गेरू से  भीत पर लिख देती हो, शुभ लाभ  सुहाग पूड़ा  बाँसबीट  हारिल सुग्गा डोली कहार कनिया वर पान सुपारी मछली पानी साज सिंघोरा होई माता  औ...