ऐसा क्यूँ होता है ?
वही मैं, वही तुम, वही जज़्बात
मगर
ना जाने क्यूँ
कभी कभी
बातें अथाह सागर सी होती हैं
विशाल, विस्तृत
कभी ना ख़त्म होने वाली
और कभी
इतनी सीमित
मुट्ठी भर रेत जैसे
मुट्ठी खोलो और
एक ही पल में बस
फिसल के गिर जाती हैं
बेजान साहिल पर...
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