भाषा कौशल संवर्धन में सूचना और संप्रेषण तकनीकी का महत्व
भूमिका-
शिक्षा समाज निर्माण की प्रक्रिया है ।समाज की बदलती आवश्यकताओं के साथ ही निर्माण की इस प्रक्रिया में भी अपेक्षित परिवर्तन दृष्टिगत होते हैं। आज शिक्षा शिक्षक केंद्रित न होकर विद्यार्थी केंद्रित है। शिक्षण प्रक्रिया में संरचनावादी दृष्टिकोण पर बल दिया जा रहा है, जिसके अंतर्गत विद्यार्थियों द्वारा स्वयं सीखने हेतु उचित परिस्थितियों का निर्माण करना शिक्षक का कार्य माना गया है ।आज का शिक्षक एक मार्गदर्शक एवं शिक्षण अधिगम परिस्थितियों हेतु सुविधा उपलब्ध कराने वाला फैसिलिटेटर माना जा रहा है। शिक्षक शिक्षण प्रक्रिया में विद्यार्थियों के लिए अधिगम परिस्थितियों के निर्माण एवं अधिगम सामग्री की उपलब्धता के साथ ही अधिगम हेतु उन्हें उत्सुक एवं जिज्ञासु बनाने में सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी का महत्वपूर्ण माध्यम के रूप में अनुप्रयोग कर अपने इस दायित्व को अधिक प्रभावी ढंग से निभा सकता है।
विज्ञान एवं तकनीकी के इस युग में शिक्षण को उस कला के रूप में स्वीकार किया जा सकता है, जिस में परिवर्तित होती सामाजिक परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं के अनुसार परिमार्जन अपेक्षित है। विगत कुछ वर्षों में विज्ञान एवं तकनीकी ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित किया है एवं शिक्षा का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है। शिक्षण एवं प्रशिक्षण सभी क्षेत्रों में सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी के अनुप्रयोग ने विषय वस्तु के साथ-साथ शिक्षण विधियों को बेहतर बनाने में सहयोग किया है। वर्तमान में विद्यालय शिक्षा, उच्च शिक्षा तथा शोध कार्यों के क्षेत्र को सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी ने व्यापक स्तर पर प्रभावित किया है। कोरोना वायरस के कारण सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी का महत्व और भी अधिक उजागर हो गया है।
सूचना संप्रेषण तकनीकी की आवश्यकता-
मनोवैज्ञानिकों द्वारा यह स्वीकार किया गया है कि शिक्षण में जितनी ज़्यादा इंद्रियां सक्रिय होती हैं, अधिगम उतना प्रभावी होता है। इस दृष्टि से सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी में विद्यार्थियों, अध्यापकों, शिक्षाविदों के साथ समाज के अन्य लोगों पर भी प्रभाव डालने की अपार क्षमता है। इसका अनुप्रयोग हमारे देश में शैक्षिक व्यवस्था के सामने आने वाली चुनौतियों तथा संसाधनों एवं पहुंच संबंधी समस्याओं में से कुछ को कम करने के नए एवं प्रभावी रास्ते उपलब्ध कराता है। इसी कारण बदलते शैक्षिक परिवेश के साथ शिक्षक की भूमिकाओं एवं शिक्षण प्रक्रिया में भी परिवर्तन हो रहे हैं।
सूचना संप्रेषण तकनीकी के साधन-
सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी एक व्यापक क्षेत्र है, जो सूचना के निर्माण, भंडारण एवं उपयोग तथा संचार के विभिन्न माध्यमों के द्वारा उसको दूसरों तक प्रेषित करने की सुविधा प्रदान करता है ।शिक्षण की संपूर्ण प्रक्रिया संप्रेषण व उसके माध्यम की प्रभाविता पर निर्भर करती है ।अनेक ऐसे सॉफ्टवेयर और एप्लीकेशंस हैं, जिनका न केवल कंप्यूटर अपितु मोबाइल द्वारा अनुप्रयोग कर शिक्षण अधिगम की प्रक्रिया को प्रभावी बनाया जा सकता है। सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी द्वारा दर्शनीय माध्यमों एवं संसाधनों का शिक्षण अधिगम प्रक्रिया में प्रयोग, विशेषकर भाषा शिक्षण की प्रक्रिया को प्रभावी एवं रुचिकर बनाया जा सकता है। कक्षा- कक्ष की परिस्थितियों में उपयोग के आधार पर सूचना व संप्रेषण तकनीकी के घटकों या संसाधनों का वर्गीकरण इस प्रकार किया जा सकता है-
1.सूचना संप्रेषण तकनीकी के आधुनिक उपकरण-कंप्यूटर, लैपटॉप, नोटबुक, सीडी, डीवीडी, स्मार्ट बोर्ड एवं अन्य दृश्य श्रव्य संबंधी उपकरण इत्यादि।
2.सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी आधारित शैक्षिक संसाधन-ई-अधिगम और ओपन एजुकेशनल रिसोर्सेस, मूक्स (मैसिव ओपन ऑनलाइन कोर्सेज) इत्यादि।
3.एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर- वर्ड प्रोसेसर, प्रेजेंटेशन सॉफ्टवेयर (पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन, स्पीच रिकॉर्डिंग, ऑडीसिटी डिजिटल ऑडियो एडिटर एवं रिकॉर्डर, हॉट पोटैटो, काहूत इत्यादि।
4.सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी माध्यम- इंटरनेट, ईमेल, ऑडियो एवं वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, सोशल नेटवर्किंग साइट्स इत्यादि।
5.सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी आधारित शैलियां- वर्चुअल कक्षा, मिश्रित अधिगम (ब्लेंडेड लर्निंग)।
6.कंप्यूटर सहायक भाषा शिक्षण (computer-assisted लैंग्वेज लर्निंग)- इस तकनीक का भी प्रभावी भाषा शिक्षण कौशल हेतु प्रयोग किया जा सकता है। कंप्यूटर सहायक भाषा शिक्षण को कंप्यूटर की सहायता से संपादित ऐसे अधिगम के रूप में देखा जाता है, जिसमें सीखी जाने वाली सामग्री के प्रस्तुतीकरण, पुनर्बलन और आकलन के लिए कंप्यूटर का प्रयोग किया जाता है।
भाषा शिक्षण के क्षेत्र में कौशल विकास हेतु आईसीटी के विभिन्न उपागमों यथा मल्टीमीडिया, कंप्यूटर, लैपटॉप, नोटबुक, सीडी, डीवीडी, ईमेल, ऑडियो वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, डिजिटल लाइब्रेरी, ई-पुस्तकों इत्यादि का साधनों के रूप में प्रयोग किया जा सकता है ।विषय संबंधी सहायक सामग्री विस्तार की दृष्टि से शिक्षक छात्रों के साथ-साथ विद्यार्थियों के साथ-साथ स्वयं के मार्गदर्शन हेतु भी ई-अधिगम और मूक्स,वर्चुअल कक्षा, विकी एजुकेटर, मॉड्यूल्स, सोशल नेटवर्किंग साइट्स के साथ-साथ अंतः क्रिया को सक्रिय रखने के लिए मैंटीमीटर मूल्यांकन हेतु काहूत तथा विशेष रूप से लिखित भाषा के मूल्यांकन हेतु हॉट पोटैटो आदि की सहायता लेकर परंपरागत कक्षा शिक्षण को ब्लेंडड अथवा फ़्लिप्प्ड कक्षा शिक्षण का स्वरूप प्रदान किया जा सकता है ।शिक्षण प्रक्रिया के विभिन्न चरणों में यथा प्रस्तावना, प्रस्तुतीकरण एवं आकलन में इन आईसीटी उपकरणों का प्रयोग किया जा सकता है। कक्षा में विद्यार्थियों के अधिगम को निर्देशित करने, अंतः क्रिया को सक्रिय रखने, उन्हें अभिप्रेरित करने तथा उनके निष्पत्ति का मूल्यांकन एवं आकलन करने हेतु इन उपकरणों का प्रयोग प्रभावी ढंग से किया जा सकता है।
भाषा कौशल शिक्षण एवं सूचना तथा संप्रेषण तकनीकी-
संप्रेषण का सशक्त माध्यम भाषा है। भाषा में प्रवीणता की दृष्टि से श्रवण, वाचन, पठन एवं लेखन-इन चार कौशलों का ज्ञान होना आवश्यक है। एक अच्छे शिक्षक में भाषा संबंधी इन कौशलों का होना आवश्यक है, जिससे कक्षा-कक्ष परिस्थिति में उचित संप्रेषण हो सके एवं विषय वस्तु का ज्ञान दिया जा सके। सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी की सहायता से भाषा संबंधी चारों कौशलों एवं विधाओं का ज्ञान प्रभावी ढंग से करवाया जा सकता है। विद्यार्थी सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी के विभिन्न उपकरणों की सहायता से भाषा कौशलों को सीख सकते हैं तथा अपनी शब्दावली को भी समृद्ध कर सकते हैं। शिक्षक शिक्षण हेतु तैयार सामग्री-सीडी, डीवीडी, पेन ड्राइव इत्यादि अथवा ईमेल के द्वारा विद्यार्थियों को उपलब्ध करा सकता है और स्वयं भी कहीं भी कभी भी उस सामग्री का उपयोग आवश्यकतानुसार कर सकता है। भाषा के विभिन्न कौशलों के शिक्षण में सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी का अनुप्रयोग निम्न रूप में किया जा सकता है-
श्रवण कौशल का विकास-
किसी भी भाषा को सीखने के लिए सर्वप्रथम उसको सुनना आवश्यक होता है। यह ऐसा कौशल है, जिसको सीखने एवं सिखाने दोनों के लिए धैर्य की आवश्यकता होती है। परंपरागत कक्षा में विद्यार्थी शिक्षक के आदर्श वाचन को ध्यान से सुन कर उसका अनुकरण करते हैं। आदर्श वाचन के साथ ही शिक्षक सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी का अनुप्रयोग करते हुए स्व निर्मित सामग्री अथवा ऑनलाइन उपलब्ध विषय संबंधी सामग्रियों को कक्षा-कक्ष परिस्थिति में प्रदर्शित कर सकता है या विद्यार्थियों को सुनने के लिए कह सकता है ।वाचन कौशल हेतु प्रयुक्त उपकरण भी विद्यार्थियों के श्रवण कौशल को विकसित करने में उपयोगी होते हैं। कक्षा-कक्ष में विद्यार्थियों द्वारा पढ़े गए गद्य और पद्य को शिक्षक सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी के उपकरणों का प्रयोग कर उसकी रिकॉर्डिंग कर उन्हें सुना सकता है तथा अपेक्षित सुधार हेतु अभिप्रेरित कर सकता है अथवा घर पर अभ्यास हेतु इंटरनेट का प्रयोग कर उस सामग्री को उन्हें उपलब्ध करवा सकता है तथा विभिन्न ऑनलाइन उपलब्ध विषय सामग्री को सुनकर आने के लिए कह सकता है। उनके श्रवण कौशल का मूल्यांकन करने के लिए तकनीक का प्रयोग करते हुए काहूत द्वारा विषय संबंधी शैक्षिक खेल विकसित कर अथवा संबंधित सामग्री को माइक्रोसॉफ्ट वर्ड पर रिक्त स्थान की पूर्ति के रूप में उपलब्ध करवा कर उन्हें भरने के लिए कह सकता है।
वाचन कौशल का विकास-
वाचन कौशल विचारों की अभिव्यक्ति की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि विद्यार्थी जब प्रकरण को ध्यानपूर्वक सुनेंगे, तब ही उसका वाचन वे बिना किसी अशुद्धि के कर सकेंगे। विद्यार्थी जितनी एकाग्रता से सुनेंगे, उनकी वाचन योग्यता उतनी ही प्रखर होगी। प्रायः सुनकर अनुकरण के द्वारा ही इस कौशल को अर्जित करने का प्रयास किया जाता है। विद्यार्थियों के उच्चारण संबंधी दोषों का निवारण करने के लिए कक्षा शिक्षण की परंपरागत पद्धति के साथ-साथ उनके द्वारा प्रस्तुत सामग्री को रिकॉर्ड कंप्यूटर या मोबाइल के द्वारा कर उसकी रिकॉर्डिंग उन्हें सुनाकर उस में उत्तरोत्तर सुधार हेतु प्रोत्साहित किया जा सकता है। शुद्ध उच्चारण युक्त रिकॉर्डिंग एवं स्व प्रस्तुत रिकॉर्डिंग को बार-बार सुनकर, उच्चारण कर विद्यार्थी वाचन कौशल में प्रवीण हो सकते हैं। ऑडीसिटी सॉफ्टवेयर की सहायता से विद्यार्थियों की प्रस्तुतियों को रिकॉर्ड कर उन्हें सुनाने के साथ-साथ उदात्त-अनुदात्त का ज्ञान भी करवाया जा सकता है, क्योंकि इस सॉफ्टवेयर की सहायता से केवल रिकॉर्डिंग ही नहीं होती है, अपितु रेखाओं के द्वारा स्वर के आरोह-अवरोह एवं किन शब्दों पर अधिक बल दिया जाना है, किन पर कम, यह भी स्पष्ट होता है।
पठन कौशल का विकास-
विषय सामग्री को पढ़ना, अर्थ एवं भाव-बोध पर बल देता है। विद्यार्थी जितना अधिक पढ़ेगा, उसके वाचन एवं लेखन कौशल में उतना ही सुधार होगा क्योंकि वह नए-नए शब्दों से परिचित होगा तथा उनका प्रयोग करना सीखेगा। इंटरनेट पर उपलब्ध सामग्रियों एवं स्व निर्मित सामग्रियों की सॉफ्ट कॉपी विद्यार्थियों को ईमेल या व्हाट्सएप द्वारा भेज कर पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है। विद्यार्थियों द्वारा पढ़ी गई सामग्री पर कक्षा में परिचर्चा का आयोजन कर उन्हें प्रोत्साहित किया जा सकता है। कक्षा-कक्ष परिस्थितियों में भी पावर पॉइंट एवं प्रोजेक्टर की सहायता से विषय सामग्री को प्रदर्शित कर (छोटी कक्षाओं में चित्र इत्यादि भी) जोड़ा जा सकता है और विद्यार्थियों को पढ़ने के लिए कहा जा सकता है तथा साथ ही साथ सीखे गए नए शब्दों, उनके अर्थों एवं वाक्य गठन पर चर्चा भी की जा सकती है।
लेखन कौशल का विकास-
लेखन कौशल विचार अभिव्यक्ति के साथ-साथ लेखन की शुद्धता से भी संबंधित है। भाषा में लिखित अभिव्यक्ति हेतु व्याकरण का ज्ञान महत्वपूर्ण है। वाचन एवं पठन कौशल का शिक्षा उच्चारण की शुद्धता पर बल देता है, जबकि लेखन कौशल के अंतर्गत लिखित अभिव्यक्ति में व्याकरण की शुद्धता व वाक्य संरचना के साथ-साथ विषय व्यवस्थापन पर विशेष बल दिया जाता है।भारतीय परिप्रेक्ष्य में जहां बड़े शहरों में भी विद्यालयों में तकनीकी संसाधनों का अभाव है, विद्यार्थियों को विभिन्न विषयों पर लिखित अभिव्यक्ति हेतु प्रोत्साहित करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण उपकरण मोबाइल है। विद्यार्थी अपने विचारों की (लिखित या हस्तलिखित प्रति अथवा टंकित प्रति) अभिव्यक्ति को ईमेल पर अथवा व्हाट्सएप पर भी भेज कर शिक्षक से प्रतिपुष्टि प्राप्त कर सकता है। अंग्रेजी लेखन कौशल के विकास के लिए जिस प्रकार अनेक एप्लीकेशन हैं, आज हिंदी भाषा को लिखने के लिए भी अनेक एप्लीकेशन मोबाइल पर डाउनलोड कर उन पर कार्य किया जा सकता है।
सूचना तथा संप्रेषण तकनीकी के अनुप्रयोग की उपादेयता-
शिक्षण अधिगम परिस्थितियों में सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी के अनुप्रयोग से शिक्षक एवं शिक्षार्थी दोनों ही समान रूप से लाभान्वित होते हैं| आईसीटी ने शिक्षकों एवं विद्यार्थियों को भाषा सीखने की दिशा में एक नया मार्ग प्रशस्त किया है-
1.विद्यार्थियों को विभिन्न स्रोतों के द्वारा अपने स्तर पर शिक्षण अधिगम सामग्री एकत्रित करने की सुविधा एवं स्वतंत्रता है।
2.विद्यार्थी शिक्षक के सहयोग से सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी के विभिन्न उपकरणों एवं संसाधनों का उपयोग सीखते हैं।
3.विद्यार्थी अपने समूह में सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी के विभिन्न उपकरणों एवं संसाधनों के उपयोग एवं उनसे अर्जित ज्ञान संबंधी चर्चा-परिचर्चा करके सहयोगात्मक अधिगम की ओर बढ़ते हैं।
4.आईसीटी के सहयोग से संचालित होने वाली कक्षा में विद्यार्थियों के स्व-अधिगम को भी बढ़ावा दिया जाता है। अपनी रूचि के अनुसार विद्यार्थी कक्षा में पढ़ी अथवा सीखी गई सामग्री के अतिरिक्त भी विषय संबंधी ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।
5.विषय को विस्तार से समझने के लिए प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन प्रदान किया जाता है ।इस व्यवस्था हेतु शिक्षक को दोहरी भूमिका का निर्वाह करना पड़ता है ।एक शिक्षक अथवा परामर्शदाता या मार्गदर्शक की और दूसरी प्रशिक्षण हेतु कक्षा-कक्ष में सुविधाओं के अभाव से उत्पन्न जटिल परिस्थितियों से निपटने की क्षमता में भी वृद्धि होती है।
6.इनकी सहायता से विषय को रुचिकर एवं सरल बनाने का प्रयास किया जाता है, जिससे कक्षा-कक्ष परिस्थितियों में प्रभावी अंतःक्रिया उत्पन्न हो सके।
7.शिक्षक एवं विद्यार्थियों के मध्य सूचनाओं का आदान प्रदान शीघ्र हो सकता है तथा कहीं भी कभी भी उसका उपयोग कर सकते हैं।
निष्कर्ष-
21वीं सदी के इस युग में शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को सरल, सुबोध, ग्राह्य एवं रुचिकर बनाने के लिए शिक्षा के क्षेत्र में अनेक नवीन प्रवृत्तियों को स्थान दिया गया है ।विचारणीय प्रश्न यह है कि भारत जैसे देश में जहां ऐसे सुदूर क्षेत्र भी हैं, जहां बिजली जैसी आधारभूत सुविधा भी नहीं है, ऐसे परिवेश में तकनीकी समर्थित शिक्षण एवं अधिगम की बात एक दिवास्वप्न के समान है। परंतु जहां यह सुविधाएं उपलब्ध हैं, उन स्थानों पर इनका अनुप्रयोग किया जा सकता है और पिछले वर्ष जब कोरोनावायरस की महामारी से सारा विश्व जूझ रहा था, ऐसे समय में सूचना और संप्रेषण तकनीकी में बहुत विस्तार हुआ है । महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि विद्यार्थियों की आवश्यकता के अनुसार ज्ञान को संप्रेषित करते हुए भाषा शिक्षण हेतु परंपरागत कक्षा शिक्षण में सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी अनुप्रयोग को मिश्रित करके नए ज्ञान की संरचना कर जीवन पर्यंत अधिगम एवं ज्ञानार्जन हेतु विभिन्न विधियों-प्रविधियां एवं व्यूह रचनाओं के प्रयोग को प्रोत्साहित किया जाना आवश्यक है। आईसीटी का उपयोग करने हेतु शिक्षक को स्वयं इसके उपयोग की उचित जानकारी होना परम आवश्यक है तथा सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी की सहायता से पाठ्यक्रम को प्रस्तुत करने से पूर्व विद्यार्थियों को भी इसके उपयोग की उचित जानकारी देना आवश्यक है। समाज में शिक्षा का प्रसार करने वाला वर्ग अर्थात शिक्षक वर्ग जब डिजिटल उपकरणों के प्रयोग में सक्षम होगा, तभी समाज डिजिटल साक्षर बन पाएगा।
संदर्भ सूची (web references)-
1.ICT in ,Language Learning, www.ctinlanguagelearning.blogspot.com
2.Global Use Of ICT In ELT, www.shreeprakashan.com
3.सीखने-सिखाने की प्रक्रिया का परिवर्तन www.open.edu/openlearncreat/mod
4. www.moocs.nios.ac.in
द्वारा-
मीता गुप्ता
स्नातकोत्तर शिक्षिका (हिंदी)
केंद्रीय विद्यालय, पूर्वोत्तर रेलवे, बरेली
8126671717
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