हिंदी भाषा के
नवाचारी शिक्षणशास्त्र :सूचना एवं संचार तकनीकी का उपयोग, अनुभवात्मक अधिगम एवं कला का एकीकरण
भूमिका-
नई शिक्षा नीति 2020 द्वारा विद्यार्थियों में रटने की
प्रवृत्ति की जगह बोधात्मक शिक्षण के द्वारा सीखने पर विशेष बल दिया गया
है।वस्तुतः गतिविधियों और क्रियाकलापों के माध्यम से बच्चों को सीखने के लिए
प्रेरित करना और उनमें कल्पनाशीलता को बढ़ावा देना नवाचार की मूल अवधारणा है।
शिक्षणशास्त्र
में नवाचार वह परिवर्तन है, जो पूर्व स्थित विधियों-प्रविधियों में नवीनता का संचार करता है।
नवाचार शब्द अंग्रेजी के इनोवेशन शब्द के इनोवेट शब्द से बना, जिसका अर्थ होता है नवीनता लाना या
परिवर्तन लाना। इस प्रकार परिवर्तन की प्रक्रिया विकासवादी,संतुलनात्मक एवं नवगत्यात्मक परिवर्तन
से जुड़ी होती है। परिवर्तन एवं नवाचार एक दूसरे के अन्योन्याश्रित धारणाएँ हैं।
परिवर्तन समाज और समय की माँग की स्वाभाविक प्रक्रिया से जुड़ा तथ्य है इसलिए
परिवर्तन, नवाचार
और शिक्षा का आपसी संबंध अटूट है ।
नवाचार के
प्रकार-
1. तकनीकी नवाचार-
विशिष्ट नवाचारों को सक्षम करने के लिए तकनीकी नवाचार किसी भी संगठन की उत्पादन
प्रक्रिया में बदलावों का संदर्भ देते हैं। प्रौद्योगिकी में परिवर्तन उत्पादों या
सेवाओं के निर्माण के लिए कार्य विधियों, उपकरण, और
वर्कफ़्लो तकनीक शामिल हैं।उदाहरण के लिए, एक विश्वविद्यालय में, प्रौद्योगिकी परिवर्तन पाठ्यक्रमों को पढ़ाने के तरीकों में बदलावों
के बारे में हैं। परंपरागत रूप से नवाचार तकनीकी ज्ञान, अनुसंधान और विकास गतिविधियों के उपयोग से जुड़ा हुआ है। मानव संसाधन, इंफ्रास्ट्रक्चर, सेवा, या कई अन्य मूल्य-जोड़ने वाले क्षेत्रों में नवाचार हो सकते हैं, जिनके साथ "हाई-टेक" कुछ भी
नहीं है।
2. उत्पाद और सेवा
नवाचार- उत्पाद और सेवा नवाचार संगठन के उत्पाद या सेवा आउटपुट का संदर्भ देते
हैं। नए उत्पाद नवाचार नए सामानों और सेवाओं के परिचय के बारे में है, जिनमें डिजाइन उत्कृष्टता, मूल विशेषताओं, तकनीकी विनिर्देशों आदि के संदर्भ में
सुधार आते हैं और ग्राहक या उद्योग अंतर्दृष्टि, या संगठन के रणनीतिक संरेखण से व्युत्पन्न हैं।
3. रणनीति और
संरचनात्मक नवाचार- रणनीति और संरचनात्मक नवाचार का संदर्भ संगठन में प्रबंधन और पर्यवेक्षण से संबंधित है, जिसमें संगठन के रणनीतिक प्रबंधन और
संरचना, नीतियों, लेखांकन और बजट प्रणाली, इनाम प्रणाली, श्रम संबंध, समन्वय उपकरण, प्रबंधन सूचना और नियंत्रण प्रणाली में परिवर्तन शामिल हैं।
4. सांस्कृतिक
अभिनव/ नवाचार - सांस्कृतिक नवाचार उन परिवर्तनों को संदर्भित करता है जो कर्मचारी
के दृष्टिकोण, मान्यताओं, मूल्यों, अपेक्षाओं, क्षमताओं और व्यवहार में हो सकते हैं। संस्कृति नवाचार कर्मचारियों के
विचारों को बदलने के लिए बदलता है। ये प्रौद्योगिकी, संरचना, या
उत्पादों और सेवाओं की बजाय मानसिकता में परिवर्तन हैं।
निष्कर्ष
निकालने के लिए, यह
कहा जा सकता है कि एक संगठन में सफल नवाचार तब होता है जब मूल्य श्रृंखला में
तकनीकी और उत्पाद या प्रक्रिया नवाचार प्रभावी रणनीति और संरचना नवाचार के माध्यम
से लागू किए जाते हैं। एक संगठन में नवाचार के अंतर्गत लोगों, नेतृत्व, रचनात्मकता, प्रक्रिया, और संगठनात्मक संस्कृति शामिल है।
हिंदी भाषा
शिक्षण में सूचना एवं संचार तकनीकी का उपयोग-
शिक्षा समाज
निर्माण की प्रक्रिया है ।समाज की बदलती आवश्यकताओं के साथ ही निर्माण की इस
प्रक्रिया में भी अपेक्षित परिवर्तन दृष्टिगत होते हैं। विज्ञान एवं तकनीकी के इस
युग में शिक्षण को उस कला के रूप में स्वीकार किया जा सकता है, जिस में परिवर्तित होती सामाजिक
परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं के अनुसार परिमार्जन अपेक्षित है। विगत कुछ वर्षों
में विज्ञान एवं तकनीकी ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र को प्रभावित किया है एवं
शिक्षा का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है। शिक्षण एवं प्रशिक्षण सभी क्षेत्रों में
सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी के अनुप्रयोग ने विषय वस्तु के साथ-साथ शिक्षण विधियों
को बेहतर बनाने में सहयोग किया है। वर्तमान में विद्यालय शिक्षा, उच्च शिक्षा तथा शोध कार्यों के
क्षेत्र को सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी ने व्यापक स्तर पर प्रभावित किया है। कोरोना
वायरस के कारण सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी का महत्व और भी अधिक उजागर हो गया है।
सूचना संप्रेषण
तकनीकी की आवश्यकता-
मनोवैज्ञानिकों
द्वारा यह स्वीकार किया गया है कि शिक्षण में जितनी ज़्यादा इंद्रियां सक्रिय होती
हैं, अधिगम उतना
प्रभावी होता है। इस दृष्टि से सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी में विद्यार्थियों, अध्यापकों, शिक्षाविदों के साथ समाज के अन्य लोगों पर भी प्रभाव डालने की अपार
क्षमता है। इसका अनुप्रयोग हमारे देश में शैक्षिक व्यवस्था के सामने आने वाली
चुनौतियों तथा संसाधनों एवं पहुंच संबंधी समस्याओं में से कुछ को कम करने के नए
एवं प्रभावी रास्ते उपलब्ध कराता है। इसी कारण बदलते शैक्षिक परिवेश के साथ शिक्षक
की भूमिकाओं एवं शिक्षण प्रक्रिया में भी परिवर्तन हो रहे हैं।
सूचना संप्रेषण
तकनीकी के साधन-
सूचना एवं
संप्रेषण तकनीकी एक व्यापक क्षेत्र है, जो सूचना के निर्माण, भंडारण एवं उपयोग तथा संचार के विभिन्न माध्यमों के द्वारा उसको
दूसरों तक प्रेषित करने की सुविधा प्रदान करता है ।शिक्षण की संपूर्ण प्रक्रिया
संप्रेषण व उसके माध्यम की प्रभाविता पर निर्भर करती है । कक्षा- कक्ष की
परिस्थितियों में उपयोग के आधार पर सूचना व संप्रेषण तकनीकी के घटकों या संसाधनों
का वर्गीकरण इस प्रकार किया जा सकता है-
1.सूचना संप्रेषण तकनीकी के आधुनिक उपकरण-कंप्यूटर, लैपटॉप, नोटबुक, सीडी, डीवीडी, स्मार्ट बोर्ड एवं अन्य दृश्य श्रव्य संबंधी उपकरण इत्यादि।
2.सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी आधारित शैक्षिक संसाधन-ई-अधिगम और ओपन
एजुकेशनल रिसोर्सेस, मूक्स
(मैसिव ओपन ऑनलाइन कोर्सेज) इत्यादि।
3.एप्लीकेशन सॉफ्टवेयर- वर्ड प्रोसेसर, प्रेजेंटेशन सॉफ्टवेयर (पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन, स्पीच रिकॉर्डिंग, ऑडीसिटी डिजिटल ऑडियो एडिटर एवं
रिकॉर्डर, हॉट
पोटैटो, काहूत
इत्यादि।
4.सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी माध्यम- इंटरनेट, ईमेल, ऑडियो
एवं वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, सोशल नेटवर्किंग साइट्स इत्यादि।
5.सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी आधारित शैलियां- वर्चुअल कक्षा, मिश्रित अधिगम (ब्लेंडेड लर्निंग)।
6.कंप्यूटर सहायक भाषा शिक्षण (computer-assisted
लैंग्वेज लर्निंग)- इस तकनीक का भी प्रभावी भाषा शिक्षण कौशल हेतु
प्रयोग किया जा सकता है। कंप्यूटर सहायक भाषा शिक्षण को कंप्यूटर की सहायता से
संपादित ऐसे अधिगम के रूप में देखा जाता है, जिसमें सीखी जाने वाली सामग्री के प्रस्तुतीकरण, पुनर्बलन और आकलन के लिए कंप्यूटर का
प्रयोग किया जाता है।
शिक्षण
प्रक्रिया के विभिन्न चरणों में यथा प्रस्तावना, प्रस्तुतीकरण एवं आकलन में इन आईसीटी उपकरणों का प्रयोग किया जा सकता
है। कक्षा में विद्यार्थियों के अधिगम को निर्देशित करने, अंतः क्रिया को सक्रिय रखने, उन्हें अभिप्रेरित करने तथा उनके निष्पत्ति का मूल्यांकन एवं आकलन
करने हेतु इन उपकरणों का प्रयोग प्रभावी ढंग से किया जा सकता है।
भाषा कौशल
शिक्षण एवं सूचना तथा संप्रेषण तकनीकी-
संप्रेषण का
सशक्त माध्यम भाषा है। भाषा में प्रवीणता की दृष्टि से श्रवण, वाचन, पठन एवं लेखन-इन चार कौशलों का ज्ञान होना आवश्यक है। एक अच्छे शिक्षक
में भाषा संबंधी इन कौशलों का होना आवश्यक है, जिससे कक्षा-कक्ष परिस्थिति में उचित संप्रेषण हो सके एवं विषय वस्तु
का ज्ञान दिया जा सके। सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी की सहायता से भाषा संबंधी चारों
कौशलों एवं विधाओं का ज्ञान प्रभावी ढंग से करवाया जा सकता है। विद्यार्थी सूचना
एवं संप्रेषण तकनीकी के विभिन्न उपकरणों की सहायता से भाषा कौशलों को सीख सकते हैं
तथा अपनी शब्दावली को भी समृद्ध कर सकते हैं। शिक्षक शिक्षण हेतु तैयार
सामग्री-सीडी, डीवीडी, पेन ड्राइव इत्यादि अथवा ईमेल के
द्वारा विद्यार्थियों को उपलब्ध करा सकता है और स्वयं भी कहीं भी कभी भी उस
सामग्री का उपयोग आवश्यकतानुसार कर सकता है।
सूचना तथा
संप्रेषण तकनीकी के अनुप्रयोग की उपादेयता-
शिक्षण अधिगम
परिस्थितियों में सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी के अनुप्रयोग से शिक्षक एवं
शिक्षार्थी दोनों ही समान रूप से लाभान्वित होते हैं| आईसीटी ने शिक्षकों एवं विद्यार्थियों को भाषा सीखने की दिशा में एक
नया मार्ग प्रशस्त किया है-
1.विद्यार्थियों को विभिन्न स्रोतों के द्वारा अपने स्तर पर शिक्षण
अधिगम सामग्री एकत्रित करने की सुविधा एवं स्वतंत्रता है।
2.विद्यार्थी शिक्षक के सहयोग से सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी के विभिन्न
उपकरणों एवं संसाधनों का उपयोग सीखते हैं।
3.विद्यार्थी अपने समूह में सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी के विभिन्न
उपकरणों एवं संसाधनों के उपयोग एवं उनसे अर्जित ज्ञान संबंधी चर्चा-परिचर्चा करके
सहयोगात्मक अधिगम की ओर बढ़ते हैं।
4.आईसीटी के सहयोग से संचालित होने वाली कक्षा में विद्यार्थियों के
स्व-अधिगम को भी बढ़ावा दिया जाता है। अपनी रूचि के अनुसार विद्यार्थी कक्षा में
पढ़ी अथवा सीखी गई सामग्री के अतिरिक्त भी विषय संबंधी ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं।
5.विषय को विस्तार से समझने के लिए प्रोत्साहन एवं मार्गदर्शन प्रदान
किया जाता है ।इस व्यवस्था हेतु शिक्षक को दोहरी भूमिका का निर्वाह करना पड़ता है
।एक शिक्षक अथवा परामर्शदाता या मार्गदर्शक की और दूसरी प्रशिक्षण हेतु कक्षा-कक्ष
में सुविधाओं के अभाव से उत्पन्न जटिल परिस्थितियों से निपटने की क्षमता में भी
वृद्धि होती है।
6.इनकी सहायता से विषय को रुचिकर एवं सरल बनाने का प्रयास किया जाता है, जिससे कक्षा-कक्ष परिस्थितियों में
प्रभावी अंतःक्रिया उत्पन्न हो सके।
7.शिक्षक एवं विद्यार्थियों के मध्य सूचनाओं का आदान प्रदान शीघ्र हो
सकता है तथा कहीं भी कभी भी उसका उपयोग कर सकते हैं।
निष्कर्ष-
21वीं सदी के इस युग में शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को सरल, सुबोध, ग्राह्य एवं रुचिकर बनाने के लिए शिक्षा के क्षेत्र में अनेक नवीन
प्रवृत्तियों को स्थान दिया गया है । पिछले वर्ष जब कोरोनावायरस की महामारी से
सारा विश्व जूझ रहा था, ऐसे समय में सूचना और संप्रेषण तकनीकी में बहुत विस्तार हुआ है ।
महत्वपूर्ण तथ्य
यह है कि विद्यार्थियों की आवश्यकता के अनुसार ज्ञान को संप्रेषित करते हुए भाषा
शिक्षण हेतु परंपरागत कक्षा शिक्षण में सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी अनुप्रयोग को
मिश्रित करके नए ज्ञान की संरचना कर जीवन पर्यंत अधिगम एवं ज्ञानार्जन हेतु
विभिन्न विधियों-प्रविधियां एवं व्यूह रचनाओं के प्रयोग को प्रोत्साहित किया जाना
आवश्यक है।
आईसीटी का उपयोग
करने हेतु शिक्षक को स्वयं इसके उपयोग की उचित जानकारी होना परम आवश्यक है तथा
सूचना एवं संप्रेषण तकनीकी की सहायता से पाठ्यक्रम को प्रस्तुत करने से पूर्व
विद्यार्थियों को भी इसके उपयोग की उचित जानकारी देना आवश्यक है। समाज में शिक्षा
का प्रसार करने वाला वर्ग अर्थात शिक्षक वर्ग जब डिजिटल उपकरणों के प्रयोग में
सक्षम होगा, तभी
समाज डिजिटल साक्षर बन पाएगा।
अनुभवात्मक
अधिगम सिद्धांत-
अनुभवात्मक
ज्ञान एक शिक्षण प्रक्रिया है, जिसमें अनुभव के माध्यम से शिक्षित किया जाता है
इतिहास-
अनुभवात्मक
शिक्षा, शिक्षा
का एक व्यापक दर्शन है और अनुभव के माध्यम से शिक्षा का प्राप्त करना सामान्य
अवधारणा से प्राचीन है। लगभग 350 बी.सी.में अरस्तू ने निचोमाचेआन आचार में इसका वर्णन किया है । लेकिन
शैक्षिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो इसकी शुरूआत 1970 में डेविड. आ. कोल्ब ने की । उनके सिद्धांत में एक समग्र दृष्टिकोण
शामिल है, जो
अनुभव है, धारणा, अनुभूति और व्यवहार।
कार्ल रोजर्स का
अनुभव जनित सिद्धांत-
कार्ल रोजर्स एक
अमेरिकी वैज्ञानिक थे जिन्होंने अधिगम से संबंधित अनुभव जनित सिद्धांत दिया। इस
सिद्धांत में उन्होंने यह बताया कि यह सिद्धांत स्वयं अनुभव करके सीखने पर बल देता
है। अधिगम की मूल प्रकृति क्या है? इसका पता लगाने के लिए रोजर्स ने अधिगम को दो प्रकार में बांटा-
संज्ञानात्मक अधिगम-
हमारी ज्ञानेन्द्रियों के माध्यम से हम वाह्य जगत तो जानने समझने की जो कोशिश करते
हैं उसे ही संज्ञान कहते हैं। संज्ञान का अर्थ है जानना। इसके अनुसार व्यक्ति अपने
वातावरण एवं परिवेश के साथ मानसिक शक्तियों का प्रयोग करते हुए सीखता है।
अनुभवजन्य
अधिगम- अनुभवजन्य अधिगम स्वयं अनुभव करके सीखने पर बल देता है। इस सिद्धांत के
अनुसार बालकों को पुस्तकों के बोझ से नहीं लादना चाहिए, बल्कि उन्हें स्वतंत्रता पूर्वक अधिगम करने देना चाहिए। अध्यापक को
बालक को क्या पढ़ाना है? कैसे पढ़ाना है? कितना पढ़ाना है? आदि बातों को थोपना नहीं चाहिए, बल्कि विद्यालय में सेमिनार, कार्यशाला, परिचर्चा, शैक्षिक
भ्रमण आदि का आयोजन करना चाहिए ताकि विद्यार्थी स्वयं अनुभव करके सीख सके क्योंकि
अनुभव करके सीखा हुआ ज्ञान स्थाई होता है। विद्यार्थी के भीतर प्राकृतिक तौर पर
सीखने की क्षमता होती है। विद्यार्थी किसी भी कार्य को अपनी इच्छा से सीखता है
।सीखने की प्रक्रिया सेल्फ इनीशिएटिव कहलाती है। इस सिद्धांत में ऐसा वातावरण
उपस्थित किया जाना है कि विद्यार्थी अधिक से अधिक सक्रिय रहें और स्वतंत्र होकर
शिक्षक के सम्मुख अपनी भावनाओं तथा तनाव संबंधी अनुभूतियों का अभिव्यक्तिकरण करे, उद्देश्य और प्रयोजन को समझे, उसकी स्वतंत्र सोच विकसित हो सके और
संरक्षण के लिए दूसरों पर आश्रित न रहे।
शैक्षिक महत्व-
1.इस में विद्यार्थी को सीखने का उचित वातावरण प्राप्त होता है।
2.सीखने संबंधी स्रोत से लिखा गए ज्ञान को विद्यार्थी द्वारा परखा और
अनुभव किया जाता है ।
3.सीखने की प्रक्रिया उद्देश्य पूर्ण होती है।
4. स्थाई अधिगम होता है ।
कला समेकित
अधिगम
यह सीखने और
सिखाने का एक नया तरीका है, जिसमें कला के माध्यम से कला के किसी विषय को सीखते हैं ।कलाओं का
सीखने और सिखाने की प्रक्रिया में पूर्ण रूप से घुल मिल जाना यानी एक हो जाना, इसे कला समकित पाठ्यक्रम भी कहते हैं।
जहां कला सीखने का आधार भी बन जाती है।
कला माध्यम से
सभी विषय जैसे विज्ञान, गणित, भाषा, सामाजिक विज्ञान आदि की अमूर्त
अवधारणाओं को मूर्त करने और उन्हें एक दूसरे से जोड़ने में सहायक सिद्ध होती है।
कला समेकित विधि को आकलन के लिए उपयोग में ला सकते हैं। स्वतंत्र रूप से सोचने, कल्पना करने, खोजने, अवलोकन
करने, निर्माण
करने और अभिव्यक्ति करने के अभ्यास भी शामिल हैं। सभी विषयों को जोड़ने में कला एक
सेतु का कार्य करती है। साथ में कला के समावेश से विषयों की अवधारणा को तर्कपूर्ण
बन जाती है। सीखने के इस तरीके से विषय के बारे में ज्ञान और समझ तो बढ़ती ही है, साथ-साथ कला अभिव्यक्ति के लिए भाषा
भी प्रदान करती है। यह अभिव्यक्ति दृश्य कला या प्रदर्शन कला के रूप में हो सकती
है। कला समेकित परिवेश विद्यार्थियों को ऐसे अनुभव प्रदान करता है, जिससे उनका शरीर, हृदय और मस्तिष्क एक साथ काम करते
हैं। कला समेकित अधिगम की गतिविधियों में संज्ञानात्मक भावात्मक और मनोपारक तीनों क्षेत्रों का समावेश होता है। कला के
विभिन्न रूपों से जुड़े बच्चे विभिन्न चरणों से गुजरते हैं जैसे –निरीक्षण, अवलोकन, विचार ,कल्पना
,खोज, प्रयोग ,तर्क या विचार विमर्श द्वारा निर्णय पर पहुंचना सृजन एवं
अभिव्यक्ति।ये हमारे सृजनात्मक संज्ञानात्मक मनोप्रेरणा और भावात्मक क्षेत्र को
जागृत करती हैं। कला ही आधार है एवं सर्वांगीण विकास का उपाय। कला एक सबसे
महत्वपूर्ण पहलू है इसमें कोई सही या गलत उत्तर नहीं होता है। कला स्वयं की
क्रियात्मक अभिव्यक्ति है कला के माध्यम से शिक्षण वंचितों को अपने अंतर्मन की
भावनाओं को व्यक्त करने में मदद मिलती है।कला एक ऐसी यात्रा है जिसमें सभी के पास
अलग-अलग जवाब होते हैं कला से जुड़ी गतिविधियां बच्चों को एक दूसरे के साथ जोड़ने
में मदद करती हैं। बच्चे आपस में संवाद करने की क्षमता पाते हैं।
विविध कलाएँ-
दृश्य कला-
ऐसी कलाएं
जिन्हें मुख्य रूप से देखा या सराहा जाए जैसे-चित्रकला, फोटोग्राफ, छापकला, मंच-सज्जा, मिट्टी से बने आकृतियां, मूर्तिकला, अप्लाइड आर्ट आदि दृश्य कला के अंतर्गत आती है।
प्रदर्शन कला-
प्रदर्शन कला
में संचालन और मौखिक कौशल, चेहरे के भाव, शरीर की गति व लय का उपयोग करके प्रस्तुत की गई कलात्मक अभिव्यक्तियां
शामिल होती है। नृत्य ,संगीत, गायन, रंगमंच, कठपुतली, मूक
अभिनय ,कहानी
वाचन ,मार्शल
आर्ट ,जादू
का प्रदर्शन, सिनेमा
आदि शामिल है।
कला समेकित
शिक्षा द्वारा मूल्यांकन को तीन भागों में बांटा गया है -
1. असेसमेंट एज़ लर्निंग
2. असेसमेंट फ़ॉर लर्निंग
3. असेसमेंट ऑफ़ लर्निंग
महत्व-
सामूहिक
गतिविधियों के माध्यम से सामाजिक व्यक्तिगत गुण विकसित करना।
बेहतर अधिगम
परिणाम।
21वीं शताब्दी की क्षमताएं विश्लेषणात्मक और आलोचनात्मक विचार संचार
रचनात्मक और नवोन्मेषिता।
शिक्षार्थी
केंद्रित शिक्षण पद्धतियां संपूर्ण और अनुभव आधारित अधिगम।
संज्ञानात्मक
भावनात्मक और मनोज्ञानात्मक क्षेत्र को समान रूप से शामिल किया जाए।
स्वतंत्र
अभिव्यक्ति।
खुशी के साथ
अधिगम ।
उत्पाद की तुलना
में प्रक्रिया की अधिक महत्व।
कला समेकित
शिक्षा की अवधारणा से तात्पर्य अन्य विषयों के साथ कला के एकीकरण करने से है। कला
का अन्य विषयों के साथ एकीकरण का तात्पर्य है कि विभिन्न प्रकार की कलाएं जैसे
दृश्य कला, प्रदर्शन
कला और साहित्य कला, शिक्षण
अधिगम / सीखने सिखाने की प्रक्रियाओं का एक अभिन्न अंग बनकर शिक्षण को रोचक और
मजेदार बनाती है।
केंद्रीय
माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) शिक्षण प्रक्रिया में कला को एकीकृत करने की
तैयारी कर रहा है। बोर्ड ने कहा है कि यह निर्णय सभी हितधारकों जैसे स्कूल, प्रधानाचार्य, शिक्षक, एनसीईआरटी
और कला पेशेवरों के साथ चर्चा करने के बाद लिया है। इसके तहत कक्षा एक से 12वीं तक की कक्षाओं के सभी विषयों में
कला को शिक्षण व सीखने की प्रक्रिया में एकीकृत किया जाएगा।
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