चाँदनी
ओढ़ के सो जाते हैं ....
सोचती
है दुनिया,
मास्क
ने ले ली है
हमसे
पहचान हमारी,
कहीं
ऐसा ना हो
इस
कोरोना से लड़ाई में
अब
ये अकेलापन ले ले जान हमारी ...
ऐ
दोस्त, तू फ़िक्र ना कर,
हैरान
ना हो,
माना
हर लम्हा उदास है
पर
तू परेशान ना हो !
मैं
तुझसे भले ही दूर सही,
पर
हूँ तो सही,
इसी
दूरी के चलो नाज़-नखरे उठाते हैं,
इसी
मायूसी में
कोई
नई राह बनाते हैं ,
अगर
मुश्किलों के लश्कर
लाया
है ये सूरज,
रात
के सफ़र को आसान बनाते हैं !
अकेले
में कभी देख
आसमां
क्या-क्या दिखाता है ?
देख
कैसे दिन का बेदर्द जुनूँ जब उतर जाता है,
दबे
पाँव रात आती है
बेखौफ़
हो चाँद छत पर चाँदनी छिटकाता है,
चलो
कुछ देर इस मेहरबां चाँदनी में नहाते हैं ,
कब
से नहीं की गुफ्तगू इससे,
चलो
इसकी भी कुछ सुनते हैं,
इसको
भी कुछ सुनाते हैं ,
इसको
अपना हमनवा बनाते हैं ।
बहुत तपिश सही है आँखों ने दिन भर
इस
चाँदनी से इन्हें धोते हैं
ज़रा
ठंडक पहुँचाते हैं !
कहते
हैं चाँदनी हर ज़ख्म भर देती है
चलो
हम भी आज़माते हैं ,
जब
तलक ये रात दे मोहलत हमें
चलो, घने जंगलों
की तरह
चाँदनी
ओढ़ के सो जाते हैं ....
मीता
गुप्ता
8126671717
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