ख़ुशियाँ भी कहाँ कम हैं
उसने कहा- बेवजह ही ख़ुश क्यों हो ?
मैंने कहा- हर वक्त दुखी भी क्यों रहूँ ??
उसने कहा- जीवन में
बहुत ग़म है....
मैंने कहा -गौर से देख,
ख़ुशियाँ भी कहाँ कम हैं..
उसने तंज़ किया -
ज़्यादा हँस मत,
नज़र लग जाएगी!!
मेरा ठहाका बोला-
हंसमुख हूँ,
नज़र भी
फिसल जाएगी...
उसने कहा- नहीं होता
क्या तनाव कभी??
मैंने जवाब दिया- ऐसा
तो कहा नहीं!
उसकी हैरानी बोली-
फिर भी यह हँसी !!
मैंने कहा-डाल ली आदत हर घड़ी मुसकराने की..
उसने फिर तंज़ किया-
अच्छा!
बनावटी हँसी..
इसीलिए
परेशानी दिखती नहीं...
मैंने कहा- अटूट विश्वास!
मालिक हैं मेरे साथ!!
फिर चिंता-परेशानी का क्यों लें साथ!
वह मुझसे "मैं दुखी हूँ" सुनने को थी बेताब!
इसलिए प्रश्नों का
सिलसिला भी था
बेहिसाब ....
उसने पूछा - कभी तो
छलकते होंगे आँसू?
मैंने कहा-अपनी मुस्कानों से बाँध बनाया है.....
अपनी हँसी कम पड़े तो कुछ और लोगों को
हँसा देती हूँ...
कुछ बिखरी ज़िंदगियों में,
उम्मीदें जगा.... देती हूँ...
यह मेरी मुस्कान
दुआएं हैं,
उन सबकी..
जिन्हें मैंने तब बाँटा,
जब मेरे पास भी कमी थी...
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