संशोधित ब्लूम वर्गीकरण पर आधारित विशिष्ट
उद्देश्य लेखन
शिक्षण एक सतत प्रक्रिया है, जहां शिक्षार्थी के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन के
उद्देश्य से शिक्षण अधिगम की योजना बनाई जाती है । ये अपेक्षित व वांछित परिवर्तित
व्यवहार ही सीखने के प्रतिफल माने जाते हैं ।समसामयिक विद्यालय शिक्षण व्यवस्था
में शिक्षण की प्रभावशीलता एवं विद्यार्थी के अधिगम की संप्राप्तियों का मापन
सीखने के प्रतिफल द्वारा ही किया जाता है ।राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और
प्रशिक्षण परिषद के द्वारा 2017 में प्राथमिक
एवं 2019 में माध्यमिक कक्षाओं
के लिए इसे इस उद्देश्य से प्रकाशित किया गया कि शिक्षण प्रक्रिया की प्रभावशीलता
को निर्धारित कर वांछित सुधार हेतु फीडबैक (प्रतिपुष्टि) प्राप्त किया जा सके ।
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) द्वारा विकसित सभी
राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखाओं में शिक्षा की गुणवत्ता को प्रमुख लक्ष्य के
रूप में शामिल किया गया है । इनमें इस बात पर बल दिया गया है कि सभी बच्चों को
सीखने के मूलभूत अवसर उपलब्ध हों, वैश्विक
नागरिक बनने के लिए सभी आवश्यक हस्तांतरणीय कौशल अर्जित करने के अवसर मिलें, निर्धारित लक्ष्य स्पष्ट तथा मापने योग्य हों
और विद्यालय एवं सामुदायिक स्तर के विभिन्न साझेदार भी शिक्षा की गुणवत्ता में
सुधार की दिशा में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं ।
2.
बेंजामिन ब्लूम (1913-1999) (Bloom Taxonomy in Hindi) एक मनोवैज्ञानिक थे,ब्लूम
ने अपनी पुस्तक Taxonomy of
Education Objectives में ब्लूम का
वर्गीकरण, 1956 Bloom Taxonomy काफी प्रचलित है,
शैक्षिक सीखने के उद्देश्यों को जटिलता और विशिष्टता के स्तरों में वर्गीकृत करने
के लिए किया जाता है।
मॉडल की उत्पत्ति-
मॉडल का नाम बेंजामिन ब्लूम के नाम पर
रखा गया, जिन्होंने शिकागो विश्वविद्यालय में शिक्षकों की समिति की अध्यक्षता
की जिसने कर-व्यवस्था को तैयार किया। उन्होंने मानक पाठ का पहला खंड, शैक्षिक
उद्देश्यों के वर्गीकरण: शैक्षिक लक्ष्यों का वर्गीकरण, पहली
बार 1956 में प्रकाशित किया।
वर्तमान की शिक्षा ब्लूम के वर्गीकरण
पर ही संचालित होती है, जैसे एक अध्यापक पढ़ाने से पहले उस प्रकरण से
जुड़े ज्ञानात्मक,बोधात्मक एवं क्रियात्मक उद्देश्यों के चयन
करता है यह सब ब्लूम के वर्गीकरण Bloom
Taxonomy का ही परिणाम हैं।
ब्लूम टैक्सोनोमी 1956
में प्रकाशित हुई। इसका निर्माण कार्य ब्लूम द्वारा हुआ इसलिये यह bloom taxonomy के नाम से प्रचलित हुई ।ब्लूम के वर्गीकरण को “शिक्षा के उद्देश्यों”
के नाम से जाना जाता हैं अतः शिक्षण प्रक्रिया का निर्माण इसी तरीके से किया जाता
हैं ताकि इन उद्देश्यों की प्राप्ति सम्भव हो सके।
ब्लूम का वर्गीकरण Bloom Taxonomy –
ब्लूम
के वर्गीकरण के आधार पर ही कई मनोवैज्ञानिकों ने अपने परीक्षण किए और वह अपने
परीक्षणों में सफल भी हुए। इस आधार पर यह माना जा सकता है कि ब्लूम का यह सिद्धांत
काफी हद तक सही हैं। बेंजामिन ब्लूम के वर्गीकरण (bloom taxonomy) में
संज्ञानात्मक उद्देश्य(Cognitive Domain)
भावात्मक उद्देश्य (Affective Domain)
मनोशारीरिक
उद्देश्य(Psychomotor Domain)
समाहित हैं। सर्वप्रथम हम संज्ञानात्मक
उद्देश्य Cognitive Domain की प्राप्ति के लिए निम्न बिंदुओं को उजागर
किया –
संज्ञानात्मक उद्देश्य Cognitive Domain
1. ज्ञान (knowledge)
– ज्ञान को ब्लूम ने प्रथम स्थान दिया
क्योंकि बिना ज्ञान के बाकी बिंदुओं की कल्पना करना असंभव हैं। जब तक किसी वस्तु
के बारे में ज्ञान knowledge नही होगा तब तक उसके बारे में चिंतन करना असंभव
है और अगर संभव हो भी जाये तो उसको सही दिशा नही मिल पाती। इसी कारण ब्लूम के
वर्गीकरण bloom taxonomy में इसकी महत्ता को प्रथम स्थान दिया गया।
2. बोध (comprehensive)
– ज्ञान को समझना उसके सभी पहलुओं से
परिचित होना एवं उसके गुण-दोषों के सम्बंध में ज्ञान अर्जित करना।
3. अनुप्रयोग(application)
– ज्ञान को क्रियान्वित (practical) रूप देना अनुप्रयोग कहलाता हैं प्राप्त किये गए ज्ञान की आवश्यकता
पड़ने पर उसका सही तरीके से अपनी जिंदगी में उसे लागू करना एवं उस समस्या के समाधान
निकालने प्राप्त किये गए ज्ञान के द्वारा। यह ज्ञान को कौशल(skill) में परिवर्तित कर देता है यही मार्ग छात्रों को अनुभव प्रदान करने
में उनकी सहायता भी करता हैं।
4. विश्लेषण(analysis)
– विश्लेषण से ब्लूम का तात्पर्य था
तोड़ना अर्थात किसी बड़े प्रकरण topic
को समझने के लिए उसे छोटे-छोटे भागों
में विभक्त करना एवं नवीन ज्ञान का निर्माण करना तथा नवीन विचारों की खोज करना। यह
ब्लूम का विचार समस्या-समाधान में भी सहायक हैं।
5. संश्लेषण(sysnthesis)
– प्राप्त किये गए नवीन विचारो या नवीन
ज्ञान को जोड़ना उन्हें एकत्रित करना अर्थात उसको जोड़कर एक नवीन ज्ञान का निर्माण
करना संश्लेषण कहलाता हैं।
6. मूल्यांकन(evaluation)
– सब करने के पश्चात उस नवीन ज्ञान का
मूल्यांकन करना कि यह सभी क्षेत्रों में लाभदायक है कि नहीं। कहने का तात्पर्य है
कि वह वैध(validity) एवं विश्वशनीय (reliability) हैं या नहीं। जिस उद्देश्य से वह ज्ञान छात्रों को प्रदान किया गया
वह उस उद्देश्य की प्राप्ति करने में सक्षम हैं कि नही यह मूल्यांकन द्वारा पता
लगाया जा सकता हैं।
2001 रिवाइज्ड ब्लूम वर्गीकरण (2001 Revised Bloom Taxonomy) –
ब्लूम के वर्गीकरण में संशोधित रूप
एंडरसन और कृतवोल ने दिया। इन्होंने ब्लूम के वर्गीकरण को वर्तमान की रूपरेखा को
देखते हुए उसमे कुछ प्रमुख परिवर्तन किये। जिसे रिवाइज्ड ब्लूम वर्गीकरण revised bloom taxonomy के नाम से जाना जाता हैं।
1. स्मरण (remembering)
– प्राप्त किये गये ज्ञान को अधिक समय तक
अपनी बुद्धि (mind) में संचित रख पाना एवं समय आने पर उसको पुनः
स्मरण (recall) कर पाना स्मरण शक्ति का गुण हैं।
2. समझना(understanding)
– प्राप्त किया गया ज्ञान का उपयोग कब, कहा
और कैसे करना है यह किसी व्यक्ति के लिए तभी सम्भव हैं जब वह प्राप्त किये ज्ञान
को सही तरीके से समझे।
3. लागू करना((Apply)
– जब वह ज्ञान समझ में आ जाये जब पता चल
जाये कि इस ज्ञान का प्रयोग कब,कहा और कैसे करना हैं तो उस ज्ञान को सही तरीके
से सही समय आने पर उसको लागू करना।
4. विश्लेषण(analysis)
– उस ज्ञान को लागू करने के पश्चात उसका
विश्लेषण करना अर्थात उसको तोड़ना उसको छोटे-छोटे भागों में विभक्त करना।
5. मूल्यांकन(evaluate)
– विश्लेषण करने के पश्चात उसका
मूल्यांकन करना कि जिस उद्देश्य से उसकी प्राप्ति की गयी है वह उस उद्देश्य की
प्राप्ति कर रहा हैं या नहीं इसका पता हम उसका मूल्यांकन करके कर सकते हैं।
6. रचना(creating) – मूल्यांकन करने के पश्चात उस स्मरण में एक नयी
विचार का निर्माण होता हैं जिससे एक नवीन विचार की रचना होती हैं।
भावात्मक उद्देश्य (Affective Domain)
Bloom taxonomy के अंतर्गत भावात्मक उद्देश्य affective domain का निर्माण क्रयवाल एवं मारिया ने (1964) में
किया। इन्होंने छात्रों के भावात्मक पक्ष पर ध्यान देते हुए कुछ प्रमुख बिंदुओं को
हमारे सम्मुख रखा। भावात्मक पक्ष से तात्पर्य हैं कि उस प्रत्यय topic के प्रति छात्रों के भावात्मक (गुस्सा,प्यार,चिढ़ना, उत्तेजित
होना, रोना आदि) रूप का विकास करना।
1. अनुकरण (receiving)
– भावात्मक उद्देश्य affective domain की प्राप्ति के लिए सर्वप्रथम बालको को अनुकरण (नकल) के माध्यम से
ज्ञान प्रदान करना चाहिए। एक अध्यापक को छात्रों को पढ़ाने के समय उस प्रकरण का
भावात्मक पक्ष को महसूस feel कर उसको क्रियान्वित रूप देना चाहिये जिससे
छात्र उसका अनुकरण कर उसको महसूस कर सकें।
2. अनुक्रिया (responding)
– तत्पश्चात अनुकरण कर उस अनुकरण के
द्वारा क्रिया करना अनुक्रिया कहलाता हैं।
3. अनुमूल्यन (valuing)
– उस अनुक्रिया के पश्चात हम उसका
मूल्यांकन करते है कि वह सफल सिध्द हुआ कि नहीं।
4. संप्रत्यय (conceptualization)
– हम उसके सभी पहलुओं पर एक साथ विचार
करते हैं।
5. संगठन (organization)
– उस प्रकरण topic को
एक स्थान में रखकर उसके बारे में चिंतन करते हैं उसमें विचार करना शुरू करते हैं।
6. चारित्रीकरण (characterisation)
– तत्पश्चात हम उस पात्र का एक चरित्र
निर्माण करते हैं जिससे हमारे भीतर उसके प्रति एक भाव उत्त्पन्न होता हैं जैसे
गुंडो के प्रति गुस्से का भाव हीरो के प्रति सहानुभूति वाला भाव आदि।
इन सभी बिंदुओं को हम एक माध्यम के
द्वारा समझ सकते है जब हमारा बर्थडे birthday होता हैं और कोई व्यक्ति हमारे लिए
उपहार gift लाता है तो हम उस समय खुश होते है या उसको
धन्यवाद thanks बोलते हैं अर्थात अनुक्रिया करते हैं गिफ्ट
प्राप्ति के लिये। तत्पश्चात जब सभी व्यक्ति चले जाते है तो हम उसको देखते हैं और
अंदाजा लगाते है कि इसका मूल्य कितना होता अर्थात उसकी valuing करते
हैं उसके बाद उसको सही जगह रखने के लिए उचित जगह निश्चित करते हैं अर्थात उसको
संगठित करते हैं तत्पश्चात हम उस गिफ्ट देने वाले व्यक्ति के चरित्र का निर्माण
करते हैं कि उसके लिए हम कितने महत्वपूर्ण हैं। ( यह एक सिर्फ उदाहरण हैं जिसके
माध्यम से आपको समझाया जा रहा हैं सच तो यह है कि इस प्रकार किसी के चरित्र का
अंदाजा नहीं लगाया जा सकता। )
मनोशारीरिक उद्देश्य (Psychomotor Domain)
Bloom taxonomy के अंतर्गत मनोशारीरिक उद्देश्य का निर्माण
सिम्पसन ने (1969) में किया। इन्होंने ज्ञान के क्रियात्मक पक्ष
पर बल देते हुए निन्म बिंदुओं को प्रकाशित किया।
1. उद्दीपन (stimulation)
– उद्दीपन से आशय कुछ ऐसी वस्तु जो हमे
अपनी ओर आकर्षित करती हैं तत्पश्चात हम उसे देखकर अनुक्रिया करतें हैं जैसे भूख
लगने पर खाने की तरफ क्रिया करते हैं इस उदाहरण (example) में
भूख उद्दीपन हुई जो हमें क्रिया करने के लिये उत्तेजित कर रहीं हैं।
2. कार्य करना (manipulation)
– उस उद्दीपन के प्रति क्रिया हमको कार्य
करने पर मजबूर करती हैं।
3. नियंत्रण (control)
– उस क्रिया पर हम नियंत्रण रखने का
प्रयास करते हैं।
4. समन्वय (coordination)
– उसमें नियंत्रण रखने के लिए हम उद्दीपन
ओर क्रिया के मध्य समन्वय स्थापित करते हैं।
5. स्वाभाविक (naturalization)
– वह समन्वय करते करते एक समय ऐसा आता
हैं कि उनमें समन्वय स्थापित करना हमारे लिए सहज हो जाता हैं हम आसानी के साथ हर
परिस्थिति में उनमें समन्वय स्थापित कर पाते हैं वह हमारा स्वभाव बन जाता हैं।
6. आदत ( habit formation)
– वह स्वभाव में आने के पशचात हमारी आदत
बन जाता है। ऐसी परिस्थिति दुबारा आने के पश्चात हम वही क्रिया एवं प्रतिक्रिया
हमेशा करते रहते हैं जिससे हमारे अंदर नयी आदतों का निर्माण होता हैं।
निष्कर्ष Conclusion –
ब्लूम के वर्गीकरण (bloom taxonomy in hindi) में ब्लूम ने छात्रों के ज्ञान एवं बौद्धिक
पक्ष पर पूरा ध्यान केंद्रित किया हैं। वह छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिये
बौद्धिक विकास पर अध्यधिक बल देते हैं। उनका यह वर्गीकरण छात्रों के व्यवहार में
वांछित परिवर्तन लाने हेतु काफी उपयोगी सिद्ध हुआ हैं। ब्लूम के वर्गीकरण के
माध्यम से चलकर ही हम शिक्षण के उद्देश्यों की प्राप्ति कर सकतें हैं।
बच्चे अपने साथ बहुत कुछ लेकर विद्यालय आते हैं – अपनी भाषा, अपने अनुभव और दुनिया को देखने का अपना नज़रिया
आदि। बच्चे घर – परिवार एवं परिवेश से जिन अनुभवों को लेकर विद्यालय आते हैं, वे बहुत समृद्ध होते हैं। उनकी इस भाषायी
पूँजी का इस्तेमाल भाषा सीखने – सिखाने के
लिए किया जाना चाहिए। पहली बार विद्यालय में आने वाला बच्चा अनेक शब्दों के अर्थ
और उनके प्रभाव से परिचित होता है। लिपिबद्ध (चिह्न) और उनसे जुड़ी ध्वनियाँ बच्चों
के लिए अमूर्त होती हैं, इसलिए पढ़ने का
प्रारंभ अर्थपूर्ण सामग्री से ही होना चाहिए और किसी उद्देश्य के लिए होना चाहिए।
यह उद्देश्य कहानी या कविता सुनकर – पढ़कर आनंद लेना भी हो सकता है। धीरे – धीरे
बच्चों में भाषा की लिपि से परिचित होने के बाद अपने परिवेश में उपलब्ध लिखित भाषा
को पढ़ने – समझने की जिज्ञासा उत्पन्न होने लगती है। इसलिए बच्चों को ऐसा वातावरण
मिलना जरूरी है जहाँ वे बिना रोक - टोक के अपनी उत्सुकता के अनुसार अपने परिवेश की
खोज – बीन कर सकें और अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त कर सकें । भाषा सीखने – सिखाने के
संबंध में यह एक ज़रूरी बात है कि बच्चे सहज, कल्पनाशील, प्रभावशाली और व्यवस्थित ढंग से भाषा का सही प्रयोग कर
सकें। वे भाषा को प्रभावी बनाने के लिए सही शब्दों का प्रयोग कर सकें। यह ज़रूरी है
कि पढ़ना, सुनना, लिखना, बोलना- इन चारों भाषायी कौशलों में बच्चे अपने
पूर्वज्ञान की सहायता से अर्थ की रचना कर पाएं और कही गई बात के मूल अर्थ तक पहुँच
पाएं । इन सभी कौशलों में समान रूप से कक्षा के स्तर के अनुसार दक्षता प्राप्त
करना भाषा शिक्षण का मूल निहितार्थ है ।
हिंदी शिक्षण
की योजना बनाते समय अधिगम हेतु अनुकूल वातावरण का सृजन एवं उसके प्रभावी
क्रियान्वयन के लिए बहुआयामी उपागम सुनिश्चित किया जाना चाहिए। प्रत्येक पाठ में
निहित सीखने की संप्राप्तियों का स्पष्ट निर्धारण करते हुए तदानुसार शिक्षण
प्रविधियों का चयन किया जाए । इससे सभी विद्यार्थियों के सीखने को सुनिश्चित किया
जा सकेगा और उन्हें गुणात्मक शिक्षा प्रदान करने के प्रयासों को एक सही दिशा मिल
सकेगी । सीखने की निरन्तरता को ध्यान में रखते हुए यह सुनिश्चित करना कि शिक्षार्थी
ने सटीक रूप से क्या सीखा, एक चुनौती भरा
कार्य है। पाठ के अंत में शिक्षार्थियों को क्या-क्या आना चाहिए, यही सीखने के प्रतिफल के रूप में योजना के
स्तर पर निर्धारित किया गया था, जिसे शिक्षण
की समाप्ति पर मूल्यांकन प्रक्रिया के माध्यम से मापा जाना चाहिए । समय-समय पर
शैक्षिक अनुसंधान के अंतर्गत शिक्षण प्रक्रिया के मापन हेतु विभिन्न सरकारी व निजी संस्थाओं
द्वारा विद्यार्थियों के अधिगम स्तर का मापन कराया जाता है, जो शिक्षण प्रक्रिया की प्रभावशीलता को
निर्धारित कर वांछित सुधार हेतु फीडबैक (प्रतिपुष्टि) प्रदान करता है । इसी फ़ीडबैक
के आलोक में शिक्षण प्रक्रिया की पुनः संरचना करते हुए सीखने के प्रतिफल प्राप्त
करने के सार्थक प्रयास किए जाने चाहिए, जिनकी प्राप्ति के बगैर विद्यार्थियों में न्यूनतम
अधिगम स्तर की प्राप्ति एवं गुणात्मक सुधार संभव नहीं है।
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