Saturday, 26 June 2021

‘वंदे मातरम्’

 

 

राष्ट्रगीत वंदे मातरम् बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के जन्मदिवस पर विशेष





बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय (27 जून 1838 - 8 अप्रैल 1894) बंगाली के प्रख्यात उपन्यासकार, कवि, गद्यकार और पत्रकार थे। भारत का राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम्उनकी ही रचना है, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के काल में क्रांतिकारियों का प्रेरणास्रोत बन गई थी । वंदे मातरम् मात्र दो शब्द  ही नहीं थे, ये आह्वान थे उन सभी भारतीयों के लिए, जो अपनी मातृभूमि को दासता की बेड़ियों से मुक्त करने के लिए कृतसंकल्प थे । वंदे मातरम् गीत उनके आनंद मठ नामक बांग्ला उपन्यास में संकलित है, जिसकी रचना बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय ने 1882 में की थी। इस कृति का कथानक इतना सशक्त है कि प्रकाशित होते ही यह पहले बंगाल और कालांतर में समूचे भारतीय साहित्य व समाज पर छा गया।

आनंदमठ राजनीतिक उपन्यास है। इस उपन्यास में उत्तर बंगाल में 1773 के संन्यासी विद्रोह का वर्णन किया गया है। इस उपन्यास में यह गीत भवानंद नाम के संन्यासी द्वारा गाया गया है। बंकिम ने अप्रशिक्षित, किंतु अनुशासित संन्यासी सैनिकों की कल्पना की है, जो अनुभवी ब्रिटिश सैनिकों से संघर्ष करते हैं और उन्हें पराजित करते हैं।

इसकी धुन यदुनाथ भट्टाचार्य ने बनाई थी। इस गीत को गाने में 65 सेकेंड (1 मिनट और 5 सेकेंड) का समय लगता है।

इस पुस्तक में देशभक्ति की भावना है। अंग्रेजों ने इस ग्रंथ पर प्रतिबंध लगा दिया था। भारत के स्वतंत्र होने के बाद 1947 में इस प्रतिबंध को हटाया गया। 'आनंदमठ' अनेक भाषाओं में अनूदित किया गया है। आइए, राष्ट्रगीत को समझते हैं-

वंदे मातरम्

सुजलां सुफलाम्

मलयजशीतलाम्

शस्यश्यामलाम्

मातरम्।

शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिनीम्

फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीम्

सुहासिनीं सुमधुर भाषिणीम्

सुखदां वरदां मातरम्॥ १॥

वंदे मातरम्

अर्थात, हे मातृभूमि !मैं आपके सामने नतमस्तक होता हूँ। विशुद्ध जल से सींची, फलों से भरी,

दक्षिण की वायु के साथ शांत,कटाई की फसलों के साथ गहरी…..

हे माँ! तेरी रातें चाँदनी की गरिमा में प्रफुल्लित हो रही हैं,तेरी ज़मीन खिलते फूलों वाले वृक्षों से बहुत सुंदरता से ढकी हुई है, तू हँसी की मिठास, तू वाणी की मिठास है.....

हे माँ! तू वरदान देने वाली, आनंद देने वाली है, हे माँ तू वंदनीय है ॥

स्वाधीनता संग्राम में इस गीत की निर्णायक भागीदारी के बावजूद जब राष्ट्रगान के चयन की बात आयी तो वंदे मातरम् के स्थान पर रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा लिखे व गाए गए गीत जन-गण-मन को वरीयता दी गई। तब जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में गठित समिति ने बंकिमचंद्र चटर्जी द्वारा रचित वंदे मातरम् के प्रारंभिक दो पदों को राष्ट्रगीत के रूप में स्वीकृत हुआ।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ॰ राजेंद्र प्रसाद ने संविधान सभा में 24 जनवरी 1950 को 'वंदे मातरम्'  को राष्ट्रगीत के रूप में अपनाने संबंधी जो वक्तव्य पढ़ा, वह एक ऐतिहासिक वक्तव्य बन गया ।उन्होंने कहा-

शब्दों व संगीत की वह रचना जिसे जन-गण-मन से संबोधित किया जाता है, भारत का राष्ट्रगान है; बदलाव के ऐसे विषय, अवसर आने पर सरकार अधिकृत करे और वंदे मातरम् गान, जिसने कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है; को जन-गण-मन के समकक्ष सम्मान व पद मिले। मैं आशा करता हूँ कि यह सदस्यों को संतुष्ट करेगा। (भारतीय संविधान परिषद, द्वादश खण्ड, 24-01-1950)

और इस प्रकार वंदे मातरम् गीत को वह प्रतिष्ठा प्राप्त हुई, इसका वह शाश्वत रूप से अधिकारी है ।

जय हिंद! जय भारत !

मीता गुप्ता

     साभार-विकिपीडिया  


Monday, 21 June 2021

7वें अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 21 जून 2021 हेतु विशेष-

 

7वें अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 21 जून 2021 हेतु विशेष-

ध्यान तथा स्वास्थ्य के द्वारा जीवन कौशलों का विकास



 

चित्त को एकाग्र करके किसी ओर लगाने की क्रिया को ध्यान कहते हैं। यह योग के आठ अंगों-यमनियमआसनप्राणायामप्रत्याहारधारणाध्यानऔर समाधिमें से सातवां अंग है, जो समाधि से पूर्व की अवस्था है। मन को लगाते हुए मन को ध्येय के विषय पर स्थिर कर लेता है तो उसे ध्यान कहते हैं।

ध्यान से आत्म साक्षात्कार होता है। ध्यान को मुक्ति का द्वार कहा जाता है। ध्यान एक ऐसी प्रक्रिया हैजिसकी आवश्यकता हमें लौकिक जीवन में भी है और अलौकिक जीवन में भी इसका उपयोग किया जाता है। ध्यान को सभी दर्शनोंधर्मों व संप्रदायों में श्रेष्ठ माना गया है। अनेक महापुरुषों ने ध्यान के ही माध्यम से अनेक महान कार्य संपन्न किए। जैसे- स्वामी विवेकानंद एवं भगवान बुद्ध आदि।

ध्यान शब्द की व्युत्पत्ति ध्यैयित्तायाम् धातु से हुई है। इसका तात्पर्य है चिंतन करना। यहाँ ध्यान का अर्थ चित्त को एकाग्र करना उसे एक लक्ष्य पर स्थिर करना है। अत: किसी विषय वस्तु पर एकाग्रता या ‘चिंतन की क्रिया’ ध्यान कहलाती है। यह एक मानसिक प्रक्रिया है,फलस्वरूप मानसिक शक्तियों का एक स्थान पर केन्द्रीकरण होने लगता है।

आइए, अब स्वास्थ्य की चर्चा करते हैं । दैहिकमानसिक और सामाजिक रूप से पूर्णतः स्वस्थ होना (समस्या-विहीन होना) ही स्वास्थ्य हैया किसी व्यक्ति की मानसिक,शारीरिक और सामाजिक रुप से अच्छे होने की स्थिति को स्वास्थ्य कहते हैं।

स्वास्थ्य एक व्यक्ति की शारीरिकमानसिक और सामाजिक बेहतरी को संदर्भित करता है। एक व्यक्ति को अच्छे स्वास्थ्य का आनंद लेते हुए तब कहा जाता है जब वह किसी भी शारीरिक बीमारियोंमानसिक तनाव से रहित होता है और अच्छे पारस्परिक संबंधों का मज़ा उठाता है। पिछले कई दशकों में स्वास्थ्य की परिभाषा काफी विकसित हुई है। हालांकि इससे पहले इसे केवल एक व्यक्ति की भौतिक भलाई से जोड़ा जाता था पर अब यह उस स्थिति को संदर्भित करता है जब कोई व्यक्ति अच्छे मानसिक स्वास्थ्य का आनंद ले रहा हैआध्यात्मिक रूप से जागृत है और एक अच्छा सामाजिक जीवन जी रहा है।

पूर्ण स्वास्थ्य शारीरिकमानसिक और सामाजिक कल्याण की स्थिति है। स्वस्थ जीवन के लिए,  संतुलित आहार और नियमित रूप से व्यायाम करने की आवश्यकता होती है। व्यक्ति को उचित आश्रय में रहना चाहिएपर्याप्त नींद लेनी चाहिए और स्वच्छता की अच्छी आदतें होनी चाहिए।

हमें वास्तव में स्वस्थ रहने के लिए खुश रहने की आवश्यकता है। अगर हम एक-दूसरे के साथ गलत व्यवहार करते हैं और एक-दूसरे से डरते हैंतो स्वस्थ पर बुरा परभव पड़गा । व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए सामाजिक समानता और सद्भाव महत्वपूर्ण हैं।

सभी जीवों का स्वास्थ्य उनके आसपास या उनके वातावरण पर निर्भर करता है। हमारा सामाजिक वातावरण हमारे व्यक्तिगत स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण कारक है।

 सार्वजनिक स्वच्छता व्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है। इसलिएहमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हम नियमित रूप से कचरा इकट्ठा करें और उसे साफ करें। हमें किसी ऐसी एजेंसी से भी संपर्क करना चाहिए जो नालियों को साफ करने की जिम्मेदारी ले सके। इसके बिनाआप अपने स्वास्थ्य को गंभीर रूप से प्रभावित कर सकते हैं।

हमें स्वास्थ्य के लिए भोजन चाहिए और भोजन के लिएहमें काम करके पैसा कमाना होगा। इसके लिए काम करने का अवसर उपलब्ध होना है। इसलिएअच्छी आर्थिक स्थिति और रोजगारव्यक्तिगत स्वास्थ्य के लिए आवश्यक हैं

शारीरिक स्वास्थ्य शरीर की स्थिति को दर्शाता है जिसमें इसकी संरचनाविकासकार्यप्रणाली और रखरखाव शामिल होता है। यह एक व्यक्ति का सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए एक सामान्य स्थिति है। यह एक जीव के कार्यात्मक और/या चयापचय क्षमता का एक स्तर भी है।

मानसिक स्वास्थ्य का अर्थ हमारे भावनात्मक और आध्यात्मिक लचीलेपन से है जो हमें अपने जीवन में दर्दनिराशा और उदासी की स्थितियों में जीवित रहने के लिए सक्षम बनाती है। मानसिक स्वास्थ्य हमारी भावनाओं को व्यक्त करने और जीवन की ढ़ेर सारी माँगों के प्रति अनुकूलन की क्षमता है। 

ध्यान तथा स्वास्थ्य के द्वारा स्थिर प्रज्ञता,एकाग्रता में वृद्धि,अनुशासन और समय प्रबंधन का ज्ञान, सात्विक चिंतन और बौद्धिक विकास, ग्राह्यता में वृद्धि,  लक्ष्य स्थिरता, मानसिक शक्तियों में वृद्धि, आत्म-परीक्षणआत्म-निरीक्षणआत्म-चिंतन और आत्म-शोधन, मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य में वृद्धि, मन में श्रेष्ठ विचारों की उत्पत्ति, शारीरिकमानसिकभावनात्मकबौद्धिक और आध्यात्मिक विकास, आत्म साक्षात्कार(स्वयं का अनुसंधान), क्रोधकामलोभ और मोह के बंधनों से मुक्ति तथा नकारात्मक मनोभावों पर नियंत्रण, बौद्धिक स्वतंत्रता,उत्प्रेरणा,श्रवण ,चिंतन और मनन का स्रोत, जीवनव्यवहारसोच और स्वभाव में बदलाव,शरीरवाणी और मन का संयम आदि जीवन कौशलों का विकास संभव है ।  

निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि ध्यान तथा अच्छा स्वास्थ्य अन्योन्याश्रित हैं और एक दूसरे के पूरक भी हैं । यदि स्वास्थ्य अच्छा नहीं है तो ध्यान की अवस्था तक पहुंचना संभव नहीं । वैश्विक महामारी के इस प्रतिकूल समय में जीवन कौशल का विकास के लिए परम आवश्यक है ताकि हम शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ रहकर ध्यान करें और उस ईश्वर के प्रति कृतज्ञता  ज्ञापित करें जिन्होंने हमें मनुष्य जीवन का सुयोग प्रदान किया और विपरीत परिस्थितियों से जूझने का सामर्थ्य दिया  

 

 

 

मीता गुप्ता

 

 

 

Saturday, 19 June 2021

कृतज्ञता

 

कृतज्ञता






जिस जिससे पथ पर स्नेह मिला
उस उस राही को धन्यवाद।

जब-जब कविवर शिवमंगल सिंह सुमन की ये पंक्तियां पढ़ती हूं, तो सोचने लगती हूं कि उन्होंने जाने-अनजाने हर राही को धन्यवाद क्यों दिया होगा ? गंभीरता से सोचने पर पाती हूं कि कृतज्ञता ही तो मनुष्य जीवन की सर्वोत्कृष्ट विशेषता है। यह प्रकृति ईश्वर की देन है।ईश्वर ने हमें बनाया, यह श्वास दी, तो सर्वप्रथम हम उस ईश्वर के प्रति कृतज्ञ हैं|यदि जीवन में हम अपने प्रति किसी भी रूप में की गई सहायता के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं, तो हमारा यह जीवन कर्तव्य है।ईश्वर के बाद हमें अपने माता-पिता के प्रति भी कृतज्ञ होना चाहिए, जिनकी कृपा से हमें यह जीवन मिला है| हमें अपने गुरुओं के प्रति भी कृतज्ञ होना चाहिए, जिनकी कृपा से हमने जीवन जीना सिखा। इसी तरह हमें अपने जीवन के भागीदार प्रत्येक व्यक्ति के प्रति कृतज्ञ होना चाहिए।

कृतज्ञता इस दुनिया का सबसे महान गुण है। कृतज्ञता हमें यह एहसास दिलाती है कि अपने जीवन में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में किसी न किसी के द्वारा जो सहायता की गई है, हम अगर बदले में उसको कुछ ना दे सकें, तो कोई बात नहीं ,परंतु उसको हृदय से आभार जरूर प्रकट करना चाहिए।

कृतज्ञता का आशय है कि अपने प्रति की हुई हर छोटी-बड़ी सहायता के लिए शुक्रगुजार होना और सहायता या उपकार करने वाले व्यक्ति को धन्यवाद बोल कर उसके प्रति सम्मान प्रकट करना।कृतज्ञता एक दिव्य प्रकाश भी है। जिस मनुष्य के हृदय में कृतज्ञता का प्रकाश होता है, वह दूसरों के प्रति आभार प्रकट करना जानता है| उस व्यक्ति के आसपास सदैव दैवीय शक्ति का वास होता है। ऐसा व्यक्ति अपने जीवन में हर खुशी व सफलता को प्राप्त करता है।कृतज्ञता एक पवित्र यज्ञ की तरह होता है जो अपनी अग्नि ( तेज ) में आसपास की हवा व मनुष्य को शुद्ध करता हैं|

गीता में भी कहा गया है कि कृतज्ञता रूपी यज्ञ से तुम देवताओं को उन्नत करो और देवता तुम्हें उन्नत करेंगे और इसी तरह निस्वार्थ भाव से एक दूसरे को उन्नत करते हुए अंत में परम कल्याण को प्राप्त करोगे।जो व्यक्ति धन्यवादपूर्ण ईश्वर की स्तुति करता है, वह अपने जीवन में सफलता व खुशियां प्राप्त करता है।जब हम सुबह सोकर उठते हैं, तो सर्वप्रथम अपना पांव धरती पर रखते ही उस ईश्वर को धन्यवाद देना चाहिए, जिनकी कृपा से ही हमें एक और नया दिन जीने के लिए मिला है।

प्रत्येक मनुष्य को ईश्वर की कृपा का ऋणी होना चाहिए , जिन की कृपा से ही रोटी- कपड़ा और मकान जैसी मूलभूत आवश्यकताएं पूरी हो रही हैं।इसी तरह हमें अपने जीवन में घटने वाली हर छोटी से छोटी घटना जो हमको खुशी देती है के प्रति आभार प्रकट करना चाहिए| अगर आभार प्रकट करने की आदत को हम अपनी जीवनशैली बना लेंगे, तो हम देखेंगे कि धीरे-धीरे जीवन में जैसा हम चाहते हैं वैसा ही होने लगता है और यह सब हमारा ईश्वर के प्रति कृतज्ञ होने का असर है।

ईश्वर ने हमें एक पूर्ण शरीर दिया है, तो यह उनकी हमारे ऊपर सबसे बड़ी कृपा है। रंग या रूप से नहीं बल्कि मन की सुंदरता से ही व्यक्ति अन्य व्यक्ति के प्रति दया व मदद की भावना रखता है। जो व्यक्ति जीवन की हर सांस के लिए ईश्वर को धन्यवाद देता है और यह मानता है कि जो हुआ वह अच्छे के लिए हुआ है तो यकीन मानिए ऐसा व्यक्ति दुनिया का सबसे भाग्यशाली व्यक्ति है क्योंकि वह अपने जीवन में ईश्वर की कृपा को समझ गया है।इसलिए अगर जीवन में हर परिस्थिति में हम ईश्वर को धन्यवाद करना सीख जाएं,तो हमें उनकी कृपा का एहसास भी हो जाएगा। और धीरे-धीरे जीवन की प्रत्येक घटना हमारी इच्छा के अनुसार होने लगती है| यह ईश्वर के प्रति हमारा कृतज्ञता प्रकट करने का ही नतीजा है और ऐसे ही ईश्वर की कृपा से जीवन में अनगिनत सुखमय घटनाएं घटने लगती है।

कृतज्ञता को कुछ ही शब्दों में समेटकर नहीं लिखा जा सकता है ।यह तो अपने आप में पूरा ब्रह्मांड है।जो व्यक्ति अपने जीवन में कृतज्ञता रूपी कवच को धारण कर लेता है तो उसके चारों तरफ ईश्वरीय शक्ति का वास होता है और वह उस मनुष्य को और अधिक सशक्त और सक्षम बनाती है और इससे मिलने वाली खुशी व सफलता निरंतर बनी रहती है|

अंत में, जब आप कृतज्ञ होते हैं तो आप दूसरों के प्रति तो आभार प्रकट करते ही हैं, उसका मन तो निर्मल होता ही है,पर इसके साथ ही साथ आपका भी उन्नयन होता है, आपका मन भी निर्मल होता चला जाता है ।तो आइए, मिलकर उन सभी के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रस्तुत करें, जिनके कारण हम है, हमारा सारा वजूद है, हमारा सारा अस्तित्व है।

 


मीता गुप्ता

 

Monday, 14 June 2021

हवा

 

15.06.2021



ग्लोबल विंड डे (15.06.2021) के अवसर पर एक रचना हवा को समर्पित


हवा...

चल पड़ी है वो हवा,

बिना पंखों के उड़ती,

पेड़ों की शाखों पर झूलती,

तितलियों संग खेलती,

घासों के लबों को चूमती,

मदहोश सी,

मदमस्त सी,

अल्हड़ सी,

आगे बढ़ी,

बढ़ती गई,

वो बदमाश सी,

वो शैतान सी,

नटखट सी…..

 

ऐसे ही इक खुमार में,

न जाने किस करार में,

छू लिया उसने तभी,

पानी के तन को प्यार में,

सिहरन हुई,

लहरन हुई,

दिखने लगी,

मुस्कान जब उठने लगी,

इस पार से, उस पार तक,

उठने लगी, ऐसी लहर,

इन हिल्लोरों के संग,

हवा भी,

संग संग चल पड़ी,

पर फिर थम गई,

चंचल हवा

मदहोश सी,

मदमस्त सी,

अल्हड़ सी,

जब पानी ने पुकारा,

पीछे मुड़ी,

आकर खड़ी,

पास उसके हो गई,

चंचल हवा शीतल हुई,

कुछ नम हुई,

फिर थम गई,

जब नम हुई,

हवा और पानी,

नानी की कहानी,

पहली बार हुए,

एकाकार हुए,

मदहोश सी,

मदमस्त सी,

अल्हड़ सी,

न आगे बढ़ी,

न बढ़ती गई,

रुक-रुक गई,

थम-थम गई

और न जाने क्या-क्या?

 कभी गेरू से  भीत पर लिख देती हो, शुभ लाभ  सुहाग पूड़ा  बाँसबीट  हारिल सुग्गा डोली कहार कनिया वर पान सुपारी मछली पानी साज सिंघोरा होई माता  औ...