‘राष्ट्रगीत ‘वंदे मातरम्’ बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय के जन्मदिवस पर विशेष’
बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय (27 जून 1838 - 8 अप्रैल 1894) बंगाली
के प्रख्यात उपन्यासकार, कवि, गद्यकार और पत्रकार थे। भारत का राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम्’ उनकी ही रचना है, जो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के काल
में क्रांतिकारियों का प्रेरणास्रोत बन गई थी । ‘वंदे मातरम्’ मात्र दो शब्द ही नहीं थे, ये आह्वान थे उन सभी भारतीयों के लिए, जो अपनी मातृभूमि को दासता की बेड़ियों
से मुक्त करने के लिए कृतसंकल्प थे । ‘वंदे मातरम्’ गीत उनके ‘आनंद मठ’ नामक बांग्ला उपन्यास में संकलित है, जिसकी रचना बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय
ने 1882 में की थी। इस कृति का कथानक इतना सशक्त है कि प्रकाशित होते ही यह पहले
बंगाल और कालांतर में समूचे भारतीय साहित्य व समाज पर छा गया।
आनंदमठ
राजनीतिक उपन्यास है। इस उपन्यास में उत्तर बंगाल में 1773 के संन्यासी विद्रोह का
वर्णन किया गया है। इस उपन्यास में यह गीत भवानंद नाम के संन्यासी द्वारा गाया गया
है। बंकिम ने अप्रशिक्षित, किंतु
अनुशासित संन्यासी सैनिकों की कल्पना की है, जो अनुभवी ब्रिटिश सैनिकों से संघर्ष
करते हैं और उन्हें पराजित करते हैं।
इसकी
धुन यदुनाथ भट्टाचार्य ने बनाई थी। इस गीत को गाने में 65 सेकेंड (1 मिनट और 5
सेकेंड) का समय लगता है।
इस पुस्तक में देशभक्ति की भावना है।
अंग्रेजों ने इस ग्रंथ पर प्रतिबंध लगा दिया था। भारत के स्वतंत्र होने के बाद 1947
में इस प्रतिबंध को हटाया गया। 'आनंदमठ' अनेक भाषाओं में अनूदित किया गया है। आइए, राष्ट्रगीत को समझते हैं-
वंदे
मातरम्
सुजलां
सुफलाम्
मलयजशीतलाम्
शस्यश्यामलाम्
मातरम्।
शुभ्रज्योत्स्नापुलकितयामिनीम्
फुल्लकुसुमितद्रुमदलशोभिनीम्
सुहासिनीं
सुमधुर भाषिणीम्
सुखदां
वरदां मातरम्॥ १॥
वंदे
मातरम्
अर्थात, हे मातृभूमि !मैं आपके सामने नतमस्तक
होता हूँ। विशुद्ध जल से सींची, फलों से भरी,
दक्षिण
की वायु के साथ शांत,कटाई की फसलों के साथ गहरी…..
हे
माँ! तेरी रातें चाँदनी की गरिमा में प्रफुल्लित हो रही हैं,तेरी ज़मीन खिलते फूलों वाले वृक्षों से
बहुत सुंदरता से ढकी हुई है, तू हँसी की मिठास, तू वाणी की मिठास है.....
हे
माँ! तू वरदान देने वाली, आनंद देने वाली है, हे माँ तू वंदनीय है ॥
स्वाधीनता संग्राम में इस गीत की निर्णायक भागीदारी के बावजूद जब
राष्ट्रगान के चयन की बात आयी तो वंदे मातरम् के स्थान पर रवीन्द्रनाथ ठाकुर
द्वारा लिखे व गाए गए गीत जन-गण-मन को वरीयता दी गई। तब जवाहरलाल नेहरू की
अध्यक्षता में गठित समिति ने बंकिमचंद्र चटर्जी द्वारा रचित ‘वंदे मातरम्’ के प्रारंभिक दो पदों को राष्ट्रगीत के
रूप में स्वीकृत हुआ।
स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ॰ राजेंद्र
प्रसाद ने संविधान सभा में 24 जनवरी 1950 को 'वंदे मातरम्' को राष्ट्रगीत के रूप में अपनाने संबंधी जो वक्तव्य पढ़ा, वह एक ऐतिहासिक वक्तव्य बन गया
।उन्होंने कहा-
‘शब्दों व संगीत की वह रचना जिसे जन-गण-मन से संबोधित किया जाता है, भारत का राष्ट्रगान है; बदलाव के ऐसे विषय, अवसर आने पर सरकार अधिकृत करे और वंदे
मातरम् गान, जिसने
कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है; को जन-गण-मन के समकक्ष सम्मान व पद
मिले। मैं आशा करता हूँ कि यह सदस्यों को संतुष्ट करेगा। (भारतीय संविधान परिषद, द्वादश खण्ड, 24-01-1950)
और इस प्रकार ‘वंदे मातरम्’ गीत को वह प्रतिष्ठा प्राप्त हुई, इसका वह शाश्वत रूप से अधिकारी है ।
जय हिंद! जय भारत !
मीता गुप्ता
साभार-विकिपीडिया