Wednesday, 2 June 2021

जीवन

 


जीवन


 

हर रोज, नया जीवन आता


हर रोज, उजाला होता है ,


तू क्यो हर बात संजोये है ,


और क्यो हर बात पे रोता है।




जो देख सकें, पा वो आंखें 


जो हों ताजी, कर वो बातें


हर नयी सांस पे जीवन जी


हर रोज नयी, आशा को पी




सर्दी-गर्मी तो आयेंगे


और संग पतझड़ भी आता है


तू क्यो हर बात संजोये है ,


और क्यो हर बात पे रोता है।




तू खुले पंख, पंछी के देख


तू चींटी की हिम्मत भी देख


वो धकते हैं, फिर चलते हैं


तू ये सामर्थ्य, खुद मे देख




तू चल, गिर, उठ, फिर दौड पड़ 


क्यो खुद पे भरोसा खोता है


तू क्यो हर बात संजोये है ,


और क्यो हर बात पे रोता है।




आ करूँ प्रकृती की बातें


कुछ राज तुझे बतलाता हूं


विश्वास की अग्नि देता हूं


और भ्रम के धूएं उड़ाता हूं।




मैं कहता हूं ,ये पेड़ देख


जो ना रोता , कुछ भी खो कर


तू देख मधु की रानी को


जो खो कर मधु ना थकती है




तू देख परिंदे की हिम्मत


जो ना थमता, गिरने की सोच


तू देख निशाचर जीवों को


जो अँधियारे को ना माने




तू देख कुसुम की अवधि को


जो मिट कर भी खूश्बू देता


तू देख हवां के झोकों को


जो दो पल की अवधि रहता




तू देख हिमालय के सर को


जो संकरा है पर उँचा है


तू देख हृदय की धड़कन को


जो मध्यम है पर जीवन है




तू देख सुर्य का प्रचंड ताप


जो नहीं तो कुछ ना हो पाए 


तू देख चांद का ऐश्वर्य 


जो बिन ज्योती के दमकता है




तू ईश्वर की सत्ता को देख


जो सीख हमें सिखलाती है


जो हर परिस्थिती में चलने का


कर्तव्य बोध कराती है




हर दर्द मज़ा कुछ देता है


फिर क्यों ,बस खुशियाँ ढोता है


तू क्यो हर बात संजोये है


और क्यो हर बात पे रोता है।




अब छोड तनिक चुल्लू भर को


खुशियों का समुंदर पास बुला


हर चीज़ कमी को संजोए हैं


पर खुशियों को ना दूर भगा




तू जी हर क्षण,हर मंजर जी


तू हर दर्द को हसकर जी


तू भाव सुर्य का खुद मे ला


और जलकर भी दुनिया को जला




तू कर खुद को एक सतत आग


तू हर जिम्मेदारी खुद मे ताप


तू बन रोशनी, तू चंदन बन


तू छोड़ स्वर्ण, और कून्दन बन।




तू जी और खुल कर और चीख


हां जी और खुल कर और चीख।

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