Wednesday, 2 June 2021

प्रभावी हिंदी शिक्षण की रणनीति

प्रभावी हिंदी शिक्षण की रणनीति





शिक्षण वास्तव में एक तकनीक ही है प्रायः देखा गया है कि किसी विद्यालय में कोई शिक्षक बहुत ही लोकप्रिय होते है तो कोई खास प्रभावी नही होते इन सबके पीछे यदि गौर से देखे तो हम पाते की ये सब शिक्षक के शिक्षण के प्रभाव का परिणाम है ऐसा भी पाया गया कि एक विद्यालय के एक ही विषय के दो शिक्षक होने की स्थिति में एक शिक्षक विद्याथियों को अधिक प्रिय होता है इसके पीछे की मुख्य वजह शिक्षक का शिक्षण प्रक्रिया के दौरान कक्षा में विद्यार्थियों पर छोड़ा गया प्रभाव है प्रभावी शिक्षण से ही कोई शिक्षक में लोकप्रिय बन पाता है इससे ही विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास का प्रादुर्भाव होता है क्लार्क के अनुसार," शिक्षण वह प्रक्रिया है जो शिक्षार्थी के व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए नियोजित तथा संचालित की जाती है|"


शिक्षक यह सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार हैं कि सभी विद्यार्थियों को सीखने में पूरी तरह से भाग लेने के लिए अवसर और सहायता मिले। ऐसा तभी संभव होगा यदि संसाधनों का प्रबंधन प्रभावी ढंग से और सीखने की प्रक्रिया को सुधारने के स्पष्ट प्रयोजन के साथ किया जाय शिक्षक को विद्यालयी संसाधन के रूप में मानव संसाधन जैसे साथी शिक्षक, अन्य स्टाफ, विद्यार्थी, माता पिता और समुदाय,शाला प्रबंधन समिति के सदस्यो में सक्रिय व सकारात्मक समन्वय हो जो सीखने का समर्थन करने के लिए कौशलों और ज्ञान का योगदान कर सके।


विषय वस्तु के प्रत्येक बिंदुओं को विद्यार्थी तक पहुंचाने के लिए बाल मनोविज्ञान की परख करके शिक्षण कार्य किया जाना चाहिए। विषय को बोधगम्य बनाकर प्रस्तुत करना शिक्षक की महत्वपूर्ण विशेषता है।


शिक्षण एवं अध्ययन की क्रिया में बहुत से कारक शामिल होते हैं। विद्यार्थी जिस तरीके से अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ते हुए नया ज्ञान, आचार और कौशल को समाहित करता है जिससे उसके सीखने की शक्ति में विस्तार हो सके, सभी कारक आपस में अन्तरसम्बन्धी होते है


पिछली सदी के दौरान शिक्षण पर विभिन्न किस्म के दृष्टिकोण उभरे हैं। इनमें एक है ज्ञानात्मक शिक्षण, जो शिक्षण को मस्तिष्क की एक क्रिया के रूप में देखता है। दूसरा है, रचनात्मक शिक्षण जो ज्ञान को सीखने की प्रक्रिया में की गई रचना के रूप में देखता है। वास्तव में ये पृथक पृथक नही है बल्कि इन्हें संभावनाओं की एक ऐसी श्रृंखला के रूप में देखा जाना चाहिए जिन्हें शिक्षण के अनुभवों में पिरोया जा सके। एकीकरण की इस श्रृंखला में दूसरे कारकों को भी संज्ञान में लेना जरूरी हो जाता है- ज्ञानात्मक शैली हमारी तीक्ष्ण बुद्धि का एकाधिक स्वरूप और ऐसा शिक्षण जो उन विद्यार्थियों के काम आ सके जिन्हें इसकी विशेष जरूरत है और जो अलग अलग पारिवारिक सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से आते हैं।


रचनात्मकता शिक्षण की एक ऐसी रणनीति है जिसमें विद्यार्थी के पूर्व ज्ञान, आस्थाओं और कौशल का इस्तेमाल किया जाता है। रचनात्मक रणनीति के माध्यम से विद्यार्थी अपने पूर्व ज्ञान और सूचना के आधार पर नई किस्म की समझ विकसित करता है।इसमें विद्यार्थियों को स्वयं जबाब खोजने के अधिक अवसर मिलते है शिक्षक विद्यार्थियों के जवाब तलाशने की प्रक्रिया का निरीक्षण करता है, उन्हें निर्देशित करता है तथा सोचने-समझने के नए तरीकों का सूत्रपात करता है धीरे-धीरे छात्र यह समझने लगता है कि शिक्षण दरअसल एक ज्ञानात्मक प्रक्रिया है। इस किस्म की शैली हर उम्र के छात्रों के लिए कारगर है। शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को सहज,सरल,तथा सक्षम बनाने के लिए नवीन पद्धतियों को अपनाना आवश्यक है जिनमें से कुछ इस प्रकार हो सकती हैं-


 


1 *स्वप्रेरित*


2विषय संबंधी ज्ञान


3बालमनोविज्ञान  से  परिचित


4 *स्थानीय परिवेश के अनुसार अनुकूलन*


5 *विद्यार्थियों की सांस्कृतिक पारिवारिक परिस्थितियों का ज्ञान*


6 *स्थानीय उपलब्ध शिक्षण अधिगम सामग्री (TLM)*


7 *समेकित शिक्षण *


8. कला समेकन


9. अनुभवजन्य  अधिगम


10.रोल मॉडल बनें


11.स्वयंभू न बनें, सुगमकर्ता बनें


12.नवाचार और नवप्रवर्तन को अपनाएँ


13. अपने अन्य कौशलों का भी विकास करें


14. अधिगम त्रय


15. बाहरी संसार से विषय को जोड़ें


शिक्षण एक कला है , शिक्षक सदैव समाज में पूजनीय रहा है कहीं इसे शिक्षक  ,कहीं गुरु, कहीं अध्यापक, कहीं टीचर  नाम से पुकारा जाता है लेकिन सभी का कार्य समाज का पथप्रदर्शक के रूप में ,मार्गदर्शक के रूप में, सिखाने वाला एवं आदर्श रूप में रहा है शिक्षक समाज का दर्पण होता है यह राष्ट्र निर्माता होता है शिक्षा का कार्य छात्रों में जीवन का निर्माण करना होता है शिक्षक अंधकार से उजाले की तरफ ले जाने वाला होता है मात पिता के बाद यदि इस संसार में कोई पूजनीय है तो वह शिक्षक है प्राचीन काल से ही शिक्षक के सामने सबसे बड़ी चुनौती कक्षा कक्ष में शिक्षण को  प्रभावशाली , रुचिकर बनाए रखना रहा है  छात्र शिक्षण को तनाव के रूप में ने लेकर खेल के रूप में लें, उत्साह के रूप में लें, मनोरंजन के रूप में लें ऐसा वातावरण  कक्षा कक्ष में करने के लिए अध्यापक को प्रयास करने होंगे


•          शिक्षार्थियों से शिक्षक ऐसे घुल-मिल जायें कि वे(शिक्षार्थी एवं शिक्षक) शिक्षण को बोझ न समझकर कौतूहुल भरा खेल समझें।


•          वर्ग कक्ष के कैद दीवारों से भी निकलकर जरुरत अनुसार खुले पर्यावरण में शुद्ध व मूर्त्त शिक्षण प्राप्त करें।


•          शिक्षण के लिए सटीक व उपयुक्त वातावरण का निर्माण किया जाए।


•          शिक्षार्थियों के निजी समस्याओं को संदर्भ वस्तु के रुप में महत्त्व देते हुए प्रदत्त विषय वस्तु का विश्लेषण हो।


•          शिक्षक की भूमिका स्वयंभू न होकर सुगमकर्त्ता का हो।


•          शिक्षण को सदैव जीवन से जुड़ा होना, इसे सरल ,सरस एवं बोधगम्य बनाता है।


•          आगमन शिक्षण विधि का अधिकतम प्रयोग अवधारणा को प्रतिपुष्ट करता है।


•          एक प्रोत्साहन भरा सहानुभूतिपूर्ण संस्पर्श हृदय परिवर्त्तन के लिए प्रभावी व चमत्कारिक बूटी है; इसका उचित समय पर प्रयोग से चूकना भारी भूल हो सकती है।


•          हमें सदैव बालकेन्द्रित शिक्षण पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए, न कि विषय , परीक्षा व स्वयं के अहंपोषण को केन्द्र में रखते हुए।

एकतंत्रीय व लोकतंत्रीय विधियाँ 📖 📖


🌻🌿🌻 एकतंत्रिका प्रणाली🌻🌿🌻

एक ऐसी शिक्षण प्रणाली है, जिसके अंतर्गत शिक्षा पूर्णता सक्रिय रहता है। और छात्र एक निष्क्रिय श्रोता की तरह शिक्षक की बातों को सुना करते हैं, ऐसी प्रणालियों को एक तंत्र प्रणाली में रखा गया है।

इस प्रणाली के अंतर्गत कई विधियों को रखा गया है, जिसका वर्णन निम्नलिखित है~


1. कहानी कहने की पद्धति,

2. व्याख्यान पद्धति,

3. प्रदर्शन विधि,

4.ट्यूटोरिकस् विधि।



 

🍂🍃 कहानी कहने की पद्धति~

इस पद्धति के अंतर्गत शिक्षक कहानी कहने के रूप में शिक्षण करवाता है। इसमें शिक्षक पाठ को कहानी की तरह सुनाता है, और छात्र उस कहानी को सुनते हैं। इसमें छात्र केवल शिक्षक की कहानियों को सुनते ही हैं, और कोई प्रतिक्रिया नहीं करते हैं।


🍃🍂 व्याख्यान पद्धति~

व्याख्यान विधि के अंतर्गत शिक्षक किसी विषय वस्तु के संबंधित उसका व्याख्यान करता है अर्थात उसके बारे में बताता है, इसमें शिक्षक अपने अनुसार कार्य करता है। जैसा शिक्षक के लिए उपयुक्त व शिक्षक वैसे ही कार्यों को अपनाता है।


🍂🍃 प्रदर्शन विधि~

प्रदर्शन विधि के अंतर्गत शिक्षक बच्चों को विषय वस्तु से संबंधित प्रदर्शन कराता है, जिसमें किसी संरचना कार्यप्रणाली दृश्य को स्पष्ट रूप से दिखा कर काम कराया जाता है। इसमें छात्र इंद्रियों के माध्यम से जटिल प्रक्रियाओं का सरलता से बोध कर पाता है, और इसमें बालक मूर्त से अमूर्त का भी अनुसरण करता है।



 

🍃🍂 ट्यूटोरिकस् विधि~

इस पद्धति में कक्षा को छात्र की क्षमता के अनुसार समूह में विभाजित किया जाता है। प्रत्येक समूह को शिक्षक के द्वारा संभाला जाता है, और छात्र के पिछले ज्ञान के अनुसार नए ज्ञान को दिया जाता है।

अर्थात इसके अंतर्गत छात्रों को एक साथ ना रखकर उनकी योग्यता व क्षमता के अनुसार अलग-अलग कक्षाओं में बस समूहों में बिठा दिया जाता है। उसके पश्चात उनको शिक्षक की सहायता से एक सामान्य स्तर पर लाया जाता है। इस पद्धति के अंतर्गत हम यह भी कह सकते हैं, कि यह एक प्रकार से उपचारात्मक शिक्षण हो रहा है, अथवा उपचारात्मक शिक्षण का ही एक प्रकार है।


🌺🌿🌺 लोकतांत्रिक प्रणाली 🌺🌿🌺

शिक्षण की एक ऐसी प्रणाली जिसके अंतर्गत छात्र एवं शिक्षक दोनों ही मुख्य रूप से सक्रिय होते हैं। ऐसे प्रणालियों को हम मनोवैज्ञानिक प्रणाली अभी कहते हैं। जिसमें कि शिक्षक अपने अनुसार कार्य करवाता है, और छात्र अपनी क्षमता व योग्यता के अनुसार कार्य करते हैं।

इसके अंतर्गत आने वाली कुछ मुख्य विधियां निम्नलिखित हैं~


1. चर्चा विधि,

2. अनुमानी विधि,

3. खोज या अन्वेषण विधि,

4. परियोजना विधि,

5. वार्तालाप गतिविधि विधि,

6. विचार मंथन।


🍃🍂 चर्चा विधि~

चर्चा विधि में शिक्षक व छात्र दोनों ही किसी एक बिंदु पर चर्चा करते हैं। जो कि समस्यात्मक होता है। दोनों ही अपने अपने विचारों को प्रकट करते हैं, एक दूसरे के समक्ष। और उसके पश्चात शिक्षक एक अंतिम निर्णय पर पहुंच जाता है। इस विधि में शिक्षक व छात्र दोनों ही सक्रिय रहते हैं। इस विधि को भी मनोवैज्ञानिक विधि कहा जाता है।



 

🍂🍃 अनुमानी विधि~

अनुमान विधि सुनकर ही अर्थ का स्पष्ट रूप से पता चल रहा है। इस विधि के अंतर्गत शिक्षक समस्याओं को देता है, और छात्रों का मार्गदर्शक भी होता है। और छात्र जांच करके अनुसंधान करके अपना तर्क लगाकर उस समस्या के समाधान को खोजने का प्रयास करते हैं। इस विधि में भी छात्र व शिक्षक दोनों ही सक्रिय रूप से अपनी अपनी भागीदारी देते हैं।


🍃🍂 खोज या अन्वेषण विधि~

इस विधि के अंतर्गत छात्र आसपास की समस्या का हल करते हैं, किसी समस्या का समाधान के लिए छात्र स्वयं के अनुभव एवं पूर्व विज्ञान का उपयोग करते हैं, और समस्या का समाधान खोजते हैं। अर्थात किसी समस्या का हल छात्र अपनी जिज्ञासा शक्ति के अनुसार ढूंढते हैं। इस विधि में छात्र अपने अनुभवों के द्वारा समस्या को समाधान करते हैं, जो अनुभव उनके दैनिक जीवन से संबंधित होते हैं।


🍂🍃 परियोजना पद्धति~

इस विधि में दैनिक जीवन से जुड़े हुए एवं अपने अनुभव द्वारा प्राप्त करके परियोजना के माध्यम से छात्रों द्वारा समस्या का समाधान किया जाता है। यह सामान्यता समूह में की जाती है। छात्र एक दूसरे की सहायता से वास्तविक जीवन की समस्या का हल करना सीखते हैं।


🍃🍂वार्तालाप गतिविधि पद्धति~

छात्र को किसी विषय या तथ्य पर वार्तालाप का मौका दिया जाता है। इससे बच्चों का सोच का स्तर बेहतर होता है। और खुद से बोलने का मौका मिलता है। जिससे कि वह एक अच्छे भारता की भूमिका निभा पाते हैं, और अन्य व्यक्ति के समक्ष अपने विचारों एवं बातों को प्रस्तुत कर पाते हैं। जिससे कि बच्चों की दूसरों के समक्ष बोलने की जो झिझक होती है, वह समाप्त हो जाती है।


🍂🍃 विचार मंथन पद्धति~

इस पद्धति के अंतर्गत छात्र अपने विचारों को प्रस्तुत करते हैं यह एक प्रकार की रचनात्मक पद्धति है। इसके तहत विशिष्ट समस्या समाधान के लिए कई विचार उत्पन्न होते हैं, और इन विचारों का उपयोग मंथन के लिए किया जाता है। अर्थात कहने का आशय यह है, कि छात्र अपने विचारों को समस्या समाधान के लिए उपयोग में लाता है। जिससे कि छात्र के मस्तिष्क का मंथन हो जाता है, और अपने विचारों को सटीक तरीके से प्रस्तुत कर पाता है।


📚 📚 📚 📕समाप्त 📕 📚 📚 










No comments:

Post a Comment

और न जाने क्या-क्या?

 कभी गेरू से  भीत पर लिख देती हो, शुभ लाभ  सुहाग पूड़ा  बाँसबीट  हारिल सुग्गा डोली कहार कनिया वर पान सुपारी मछली पानी साज सिंघोरा होई माता  औ...