Sunday, 6 June 2021

सागर

 

सागर



 

रेतीले तट पर खड़ी हुई,

मैं सम्मोहित-सी सम्‍मुख देख रही

मेरी सांसे बहता पानी-सी

है दृष्‍टि जहाँ तक जाती,

पैरों के नीचे पानी था या अंबर

उस पार उमड़ती लहरें

झुक झुक करती नभ का आलिंगन

सागर झुक-झुक करता आलिंगन...।

 

रवि बना साक्षी एकटक देख रहा

करता किरणों को न्‍योछावर।

सागर की गहराई उतनी,

जितने मोती, माणिक, जलचर

कितनी लहरें बनती-मिटतीं लाती सिहरन ।

सागर झुक-झुक करता आलिंगन...।

 

नौकाएँ मछुआरों की

लहरों की गोदी में खेलें,

आती जाती लहरें तट पर

पद प्रक्षालन के लगातीं मेले।

सिंधु लहरें,क्‍यूँ विकल हैं,

सिंधु लहरें,क्यों करती उन्मीलन ।

सागर झुक-झुक करता आलिंगन...।

 

क्या खोज में निकलीं अपने किनारों की?

नीली नीली,वेगवती,

कभी आह्लादित,कभी क्रोधित

उन्‍मादग्रस्‍त हो दौड़ लगातीं,

उठतीं गिरतीं क्या करती हैं चिंतन ?

सागर झुक-झुक करता आलिंगन...।

 

करती विलास,कभी उन्‍मुक्‍त हास,

गुंजायमान भोर

दूर कर सब विकार,

श्‍वेत फेनिल चँहु ओर

चरण धोकर समाती लाती ठहरन ।

सागर झुक-झुक करता आलिंगन...।

 

संसार-सागर की लहर हम

काश, हम भी खोज पाते,

अपने सत्य रूपी किनारे को

मिल पाता विश्राम

काशहम भी दृढ़प्रतिज्ञ, गंभीर हो पाते,

कभी राम की शक्ति-पूजा के आगे सिर नवाते

किसी भटके हुए कोलंबस को भारत दिखाते,

उस पार बसे साजन के सपने सजाते,

फिर मिलता चिर विश्राम 

प्रश्न जीवन-मरण का समाप्त होता चिरंतन...

सागर फिर झुक-झुक करता आलिंगन...

आलिंगन.....अशेष आलिंगन...!!!

 

No comments:

Post a Comment

और न जाने क्या-क्या?

 कभी गेरू से  भीत पर लिख देती हो, शुभ लाभ  सुहाग पूड़ा  बाँसबीट  हारिल सुग्गा डोली कहार कनिया वर पान सुपारी मछली पानी साज सिंघोरा होई माता  औ...