ग्लोबल
विंड डे (15.06.2021) के अवसर पर एक रचना हवा को समर्पित
हवा...
चल
पड़ी है वो हवा,
बिना
पंखों के उड़ती,
पेड़ों
की शाखों पर झूलती,
तितलियों
संग खेलती,
घासों
के लबों को चूमती,
मदहोश
सी,
मदमस्त
सी,
अल्हड़
सी,
आगे
बढ़ी,
बढ़ती
गई,
वो
बदमाश सी,
वो शैतान
सी,
नटखट
सी…..।
ऐसे
ही इक खुमार में,
न
जाने किस करार में,
छू
लिया उसने तभी,
पानी
के तन को प्यार में,
सिहरन
हुई,
लहरन
हुई,
दिखने
लगी,
मुस्कान
जब उठने लगी,
इस
पार से, उस पार तक,
उठने
लगी, ऐसी लहर,
इन हिल्लोरों
के संग,
हवा
भी,
संग
संग चल पड़ी,
पर फिर
थम गई,
चंचल
हवा
मदहोश
सी,
मदमस्त
सी,
अल्हड़
सी,
जब पानी
ने पुकारा,
पीछे
मुड़ी,
आकर
खड़ी,
पास
उसके हो गई,
चंचल
हवा शीतल हुई,
कुछ
नम हुई,
फिर
थम गई,
जब
नम हुई,
हवा
और पानी,
नानी
की कहानी,
पहली
बार हुए,
एकाकार
हुए,
मदहोश
सी,
मदमस्त
सी,
अल्हड़
सी,
न आगे
बढ़ी,
न बढ़ती
गई,
रुक-रुक
गई,
थम-थम गई…॥
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