परिवर्तन ही एकमात्र स्थिर है
प्रसिद्ध दार्शनिक अरस्तू ने कहा है-‘परिवर्तन प्रकृति का नियम है, हम प्रकृति के इस नियम को जब भी
मानने से इनकार करने लगते हैं, तब हम दुखी होते हैं, अवसाद से घिर जाते हैं । जीवन
में परिवर्तन होते रहते हैं। यह प्रकृति का नियम है।‘
जीवन में परिवर्तन ही एकमात्र स्थिर है।
परिवर्तन में कभी कोई परिवर्तन नहीं होता। परिवर्तन स्थिर रहता है, अर्थात् परिवर्तन का चरित्र स्थिर है, वह कभी परिवर्तित नहीं होता। प्रकृति
में पल-पल परिवर्तन होते रहते हैं। मानव की ज़िंदगी और ऋतुएं निरंतर परिवर्तित होती रहती हैं। ज़माने में
परिवर्तन होता रहता है। कुछ भी स्थिर नहीं है, परंतु वह क्रिया जिसे स्थिर का नाम दिया गया
है, वह
स्थिर क्रिया है परिवर्तन। जब से मानव-इतिहास शुरू हुआ है, तभी से परिवर्तन होता रहा है, परिवर्तन की प्रक्रिया निरंतर हो रही है। समाज
ने तरक्की की है, शिक्षा ने तरक्की की है, चिकित्सा जगत ने तरक्की की है, विज्ञान ने तरक्की की है। यह संसार खुद
परिवर्तित होता रहता है, परंतु जीवन में परिवर्तन ही एकमात्र स्थिर है।
परिवर्तन संसार का नियम है। जीवन हमेशा एक-सा
नहीं रहता। परिवर्तन तो जीवन- काल में स्वीकारना ही है। अपने जीवन के हताशा-निराशा
से उबर सकते हैं। समय के साथ अपने जीवन को सुखमय बना सकते हैं। हमें स्वीकारना
होगा कि जब अच्छे दिन स्थाई नहीं रहते हैं तो बुरे दिन भी नहीं रहेंगे। जो व्यक्ति
इस सत्य को जान लेता है, वह कभी निराश-हताश नहीं होता। उसका कर्मशील जीवन मज़बूत होकर सामने
आता है। समय परिवर्तनशील है, यह सीख हमें सूर्य ,चंद्रमा
तथा रात और दिन देते हैं । व्यक्ति इस नियमों
को मानकर जीवन में विकास करता है ,उन्नति
,प्रगति करके अपना जीवन सुखमय बनाता है। मानव-
जीवन तथा अन्य सभी जीव इस नियम में बंध कर परिवर्तन की दिशा को अपनाता हुआ जीवन
में पूर्णता प्राप्त करते हैं। अपने पूरे जीवन-काल में वह अनेक परिवर्तन देखता है-शिशु
अवस्था से बाल्यावस्था, किशोरावस्था से युवावस्था, युवावस्था से वृद्धावस्था, ये सब परिवर्तन के ही नाम हैं। यह परिवर्तन
शाश्वत है, जो स्थिर है, और जो होकर ही रहता है ।
गतिशीलता से होता है विकास
मानव जीवन उतार-चढ़ाव से भरा होता है। जीवन की
गति सदा एक समान नहीं रहती। मनुष्य को अपने जीवन में विभिन्न परिवर्तनों का सामना
करना पड़ता है। ये परिवर्तन मनुष्य के धैर्य और स्थिरता की परख करते हैं। परिवर्तन जीवन के लिए आवश्यक हैं
क्योंकि मनुष्य के जीवन में यदि एकरसता रहेगी, तो जीवन नीरस हो जायेगा। इसलिए मनुष्य को
परिवर्तनों को सकारात्मक भाव से ग्रहण करना चाहिए।
परिवर्तन अटूट सत्य है
जीवन की स्थितियों में परिवर्तन अवश्य होता है
! कुछ परिवर्तन ऐसे होते हैं, जिन्हें हम बदल नहीं सकते, हटा नहीं सकते ,भगा नही सकते। समय को हम रोक नहीं सकते, वह बदलता रहता है, बदलता रहेगा। हम भला प्रकृति के
नियमों को कैसे रोक सकते हैं? वे स्थिर हैं! मनुष्य स्वयं अपनी जीवन-शैली में ज़रुरत के अनुसार
परिवर्तन लाता है। ताजा उदाहरण है, कोरोना काल में सबकी जीवन-शैली ही बदल गई है !
आज हमारी शिक्षा ऑन लाइन हो गई है , हमारी
सोच बदल गई है। आज औरतें जो कभी केवल घर की शोभा थीं, इस प्रगति के युग में पुरुष से कंधे
से कंधा मिला काम कर रही हैं। समय बदल गया है। आज इस विज्ञान के युग में मानव ही
दानव बन प्रकृति में परिवर्तन ला खुद को भगवान समझने लगा है। भौतिक सुख के पीछे
भागते हुए मानव का दिमाग आकाश, जल ,थल सभी में परिवर्तन ला प्रकृति को अपने वश में
करने का प्रयास रहा है। प्रकृति के स्वभाव में भी परिवर्तन आ रहा है। कहीं बाढ, कहीं भूकंप और अब हमारे सम्मुख कोरोना और अब
ओमिक्रॉन ला अपने को भगवान समझने वाले मानव की जीवनशैली में ही परिवर्तन लाकर उसे
हिला दिया! लगातार पल -पल समय ,काल, स्थिति
हमारी धरती सब परिवर्तनशील है। कुछ भी स्थिर नहीं है। खगोलिकी परिवर्तन अनवरत होती
रहती है। मौसम बदलते रहते हैं। व्यक्ति का स्वभाव परिस्थिति के अनुसार परिवर्तित
होते रहता है। परिवर्तन एक प्राकृतिक नियम है जिसके अधीन हम सब हैं। हर चीज ,हर वस्तु लगभग क्षणभंगुर है। इसलिए यह अक्षरशः
सत्य है कि हमारे जीवन में परिवर्तन ही एक मात्र स्थिर है अन्य सभी के अलावा ।
गुणात्मक परिवर्तन
जिस जगह पर हमारा जीवन रहता है, उस जगह से परिवर्तन की ओर गति करता है
।परिवर्तन होना अर्थात गुणात्मक परिवर्तन होना। गुणात्मक परिवर्तन के माध्यम से ही
मनुष्य स्थिरता की ओर गति करता है। मनुष्य की स्थिरता उसकी मानवीय आचरण अर्थात
आचरण पूर्णता ही मनुष्य की स्थिरता है। स्थिरता ही मनुष्य की लक्ष्य है किसी
लक्ष्य को पाने के लिए मनुष्य अपने जिंदगी में गुणात्मक परिवर्तन चाहता है।
गुणात्मक परिवर्तन से ही अपने स्थिरता को पाता है। गुणात्मक परिवर्तन के बिना
स्थिरता तक पहुंचना नामुमकिन है। अतः मनुष्य को सकारात्मक विचार करते हुए गुणात्मक
परिवर्तन की ओर गति कर अपने लक्ष्य को पाने के लिए हमेशा प्रयासरत होना चाहिए, तभी स्थिरता को प्राप्त कर सकते हैं। परिवर्तन कुदरत का नियम है। यहां स्थिर कुछ भी
नहीं। समय के साथ किसी भी विषय,वस्तु
और विचार में परिवर्तन आता रहता है। इस परिवर्तन से कभी हम खुश हो जाते हैं और कभी
दुखी हो जाते हैं। लेकिन इंसानी फ़ितरत है कि हम सुखद परिवर्तन की स्वीकार करते
हैं। हम यह भूल जाते हैं कि अगर सुख ज़्यादा समय नहीं टिका,यह दुख भी कुछ समय बाद दूर हो जाएगा। जैसे कहा
जाता है कि एक जगह टिके पानी का सड़ना निश्चित है और कुछ समय बाद वो बदबू मारने
लगता है। बहता पानी ही अच्छा होता है जो रवानगी भरता है। उसे तरह हमारे जीवन में परिवर्तन भी हमें
तरोताजा करता है और हमें नई ऊर्जा देता है। पूरे ब्रह्मांड में कुछ भी स्थिर नहीं।
अगर ऋतु परिवर्तन न हो तो भी हमारा जीवन नीरस हो जाएगा। परिवर्तन ही प्रकृति को
नया रंग,नया रूप प्रदान करता है। पतझड़ के बाद
बसंत का आना बहुत उत्साह वर्धन होता है। परिवर्तन हमारे जीवन को रंगीन बनाता है।
निष्कर्षतः
आदिकाल से आजतक मानव के वातावरण, रहन-सहन, सोच
व अन्य सारी गतिविधियों में परिवर्तन आया है। यही विकास की परिभाषा है। उसी प्रकार
जीवन भी अनेक उबड़-खाबड़ सड़कों पर से गुजरता है। यह भी एक यात्रा है। जब हम यात्रा
शुरू करते हैं, तो मंजिल तक पहुंचना तय होता है। परंतु
बाधाएँ आकस्मिक आतीं हैं। अतः जन्म और मृत्यु स्थिर है । समय पर प्रक्रिया होगी ही
। यात्रा की स्थिति परिवर्तनशील है। उसे स्वीकार करते हुए अपने अंतिम अंजाम पर
पहुँचना होगा। जीवन में गतिशीलता बनाए रखने के लिए परिवर्तन को स्वीकार करना ही
होगा। सच ही कहा गया है-
न थके कभी पैर,
न कभी हिम्मत हारी है,
जज़्बा है परिवर्तन का, ज़िंदगी से,
इसलिए सफ़र जारी है।
इसलिए मेरी दृष्टि में परिवर्तन के बिना जीवन में कुछ
भी संभव नहीं होता है इसलिए जीवन में परिवर्तन ही एकमात्र स्थिर होते हैं ।
मीता गुप्ता
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