श्रद्धांजलि
एक अजीब भयभीत,
डरावना-सा माहौल.....
मन में एक अप्रत्याशित-सा भय,
अनहोनी का डर.......
आशंकाओं से ओत-प्रोत,
वैचारिक लहरों का उद्वेग......
नकारात्मक विचारों पर,
विराम की असफल कोशिश.....
अपनों की बहुतायत अस्वस्थता,
जीवन के लिए संघर्षरत,
पल-पल विचलित करने वाली,
अनचाही सूचनाओं का दौर....
और निरंतर, अपनों का,
अपने बीच से दूर जाने का,
अनवरत,हृदयविदारक क्रम......
अपने दिवंगत सहकर्मियों का सतत कर्तव्यबोध,
उज्ज्वल चरित्र,
कर्मशील, अनवरत निष्ठा,
हँसमुख, राष्ट्र-निर्माता,
जिनका मृत्यु ने किया निष्ठुर आकलन....
कर्तव्यपरायणता और उनकी स्मृतियों के बीच,
उहापोह में फँसा मेरा व्यथित अंतर्मन .......
और इन सबसे व्युत्पन्न,
मर्मस्पर्शी,असीम वेदना...
इन तमाम झंझावातों के थपेड़ों की,
उधेड़बुन में बरबस व्यस्त,
उद्विग्न मन की व्यथा......
क्या कहूँ, किससे कहूँ,
वह ओजस्वी वाणी,
अचानक हो गई शांत....
बस फिर यही सोचा.......कि
जो निश्चित है,उससे घबराहट कैसी?
जो अवश्यंभावी है,उससे भय कैसा?
तुमसे मिली जो सीख,
तुम हो प्रकाश-पुंज,
असीम प्रकाश....
हर हाल में स्थिर-प्रज्ञ,सम व तटस्थ रहना है
जाने वालों को अलविदा कहना है..
कहना है कि दोस्त..जहाँ रहो,
हमें न भुलाना,
जैसे हम न तुम्हें भुला पाएँगे,
जीने की प्रेरणा तुम हो.....
इस अटल यथार्थ को भी सह लेंगे,
तुम्हारे बिना भी रह लेंगे !
तुमने जो दायित्व दिया,
‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’ का,
विश्व में तुम्हारा प्रकाश फैलाएँगे,
जीते जी न तुम्हें भुला पाएँगे,
जीते जी न तुम्हें भुला पाएँगे,
इस अटल यथार्थ को कैसे अपनाएँगे ?
जीते जी न तुम्हें भुला पाएँगे ।।
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