Wednesday, 20 April 2022

नया सीखने-सोचने की ज़रूरत आखिर क्यों?

 

अंतर्राष्ट्रीय नवाचार दिवस पर विशेष...

नया सीखने-सोचने की ज़रूरत आखिर क्यों?



प्रत्येक वस्तु या क्रिया में परिवर्तन, प्रकृति का नियम है। परिवर्तन से ही विकास के चरण आगे बढ़ते हैं। परिवर्तन एक जीवंत, गतिशील और आवश्यक क्रिया है, जो समाज को वर्तमान व्यवस्था के अनुकूल बनाती है। परिवर्तन जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में होते हैं। इन्हीं परिवर्तनों से व्यक्ति और समाज को स्फूर्ति, चेतना, ऊर्जा एवं नवीनता की उपलब्धि होती है। परिवर्तन युक्त वे सब साधन एवं माध्यम जिन्होंने व्यक्तियों के व्यवहार में नवीनता युक्त तथ्यों, मान्यताओं, विचारों का बीजारोपण करके नवीन प्रवृत्तियों की ओर उन्मुख किया, वे नवाचार कहलाते हैं।

इस प्रकार परिवर्तन की प्रक्रिया विकासवादी, संतुलनात्मक एवं नवगत्यात्मक परिवर्तन से जुड़ी होती है। परिवर्तन एवं नवाचार एक दूसरे के अन्योन्याश्रित हैं। परिवर्तन समाज की मांग की स्वाभाविक प्रक्रिया से जुड़ा तथ्य है। इसलिए परिवर्तन, नवाचार और शिक्षा का आपसी संबंध इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है कि नवाचार कोई नया कार्य करना ही मात्र नहीं है, वरन् किसी भी कार्य को नए तरीके से करना भी नवाचार है।

व्यक्ति एवं समाज में हो रहे परिवर्तनों का प्रभाव शिक्षा पर भी पड़ा है। शिक्षा को समयानुकूल बनाने के लिए शैक्षिक क्रियाकलापों में नूतन प्रवृत्तियों ने अपनी उपयोगिता स्वंयसिद्ध कर दी है। शैक्षिक नवाचारों का उद्भव स्वतः नहीं होता वरन् इन्हें खोजना पड़ता है तथा सुनियोजित ढंग से इन्हें प्रयोग में लाना होता है, ताकि शैक्षिक कार्यक्रमों को परिवर्तित परिवेश में गति मिल सके और परिवर्तन के साथ गहरा तारतम्य बनाये रख सकें। इस प्रकार नवाचार एक विचार है, एक व्यवहार है, अथवा वस्तु है, जो नवीन और वर्तमान का गुणात्मक स्वरूप है।

शैक्षिक नवाचार शिक्षा की विकासोन्मुख रहने वाली प्रक्रिया को प्रदर्शित करने वाली एक नवीन अवधारणा है। वैज्ञानिक विकास के युग में शैक्षिक तकनीकी के नवीन प्रावधानों के कारण शैक्षिक नवाचार का महत्त्व और बढ़ गया है। अंतर्राष्ट्रीयता, वैश्वीकरण और जनसंचार के आधुनिक संसाधनों ने इसे आज के युग की एक आवश्यकता के रूप में स्थापित कर दिया है। शैक्षिक नवाचार पर विचार करने से पहले ‘नवाचार’ शब्द का अर्थ जान लेना आवश्यक है। नवाचार दो शब्दों नव + आचार से मिल कर बना है। नव का अर्थ है नवीन या नया और आचार का अर्थ होता है व्यवहार अथवा रहन-सहन। आचार को चलन अथवा प्रचलन भी कहा जा सकता है। इस आधार पर शैक्षिक नवाचार को शिक्षा के नवीन प्रचलित व्यवहारों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। शिक्षा के उक्त प्रचलित व्यवहारों के अंतर्गत उन सभी नवीन अवधारणाओं, विचारों, विधियों, सिद्धांतों, प्रयोगों और सूचनाओं को सम्मिलित किया जा सकता है, जो शिक्षाविदों के आधुनिकतम चिंतन के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुई हैं। इस प्रकार नवाचार शैक्षिक तकनीकी के रूप में शिक्षा दर्शन, मनोविज्ञान और विज्ञान आदि शिक्षा के समस्त पहलुओं को प्रभावित करता है।

शैक्षिक नवाचार का कार्य मानवीय तथा गैर-मानवीय संसाधनों का शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए यथासंभव कम से कम धन व श्रम को व्यय करके अधिक से अधिक उपलब्धि प्राप्त करना है। अतः प्रबंध का कार्य भी एक शैक्षिक कार्य ही कहा जाएगा और शैक्षिक नवाचारों को विद्यालय में प्रविष्ट करवाना भी उसका दायित्व बनता है। प्रबंध का दायित्व इसलिए कहा है कि शैक्षिक नवाचारों का सैद्धांतिक पक्ष शिक्षकों एवं शिक्षाविदों के कार्यक्षेत्र में आता है, किंतु उन्हें विद्यालय में लागू करने और प्रचलित करने में प्रबंध का योगदान रहता है। किसी शैक्षिक नवाचार को विद्यालय में लागू करना है, या नहीं, यदि करना है तो किस सीमा तक लागू करना है और किस प्रकार लागू करना है, आदि बातों से संबंधित अनेक प्रश्नों का उत्तर खोजने में प्रबंधकों की विशेष भूमिका रहती है।

शैक्षिक नवाचारों को सामान्यतया क्षेत्र की सीमा में बांधना एक दुष्कर कार्य है। जिस प्रकार शिक्षा की कोई सीमा नहीं होती, उसी प्रकार शैक्षिक नवाचार भी गिनाए नहीं जा सकते। कभी-कभी कोई नवीन चिंतन अथवा विचार किसी भी प्रकार के शैक्षिक नवाचार को जन्म दे सकता है। शैक्षिक नवाचार के  क्षेत्र में अनेक अनुसंधान होते रहते हैं। यदि ऐसा कोई अनुसंधान उच्च शिक्षा के क्षेत्र से संबंधित हो, तो प्रबंधक उसे अपने माध्यमिक विद्यालय में प्रचलित नहीं कर सकता।

किसी भी नवीन परिवर्तन को अपनाने एवं उसके क्रियान्वयन में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जैसे-

·       अपर्याप्त धन- एक नवाचार को प्रारंभ करने के लिए पर्याप्त धन की आवश्यकता होती है। पर्याप्त धन के अभाव में नवाचार के कार्यक्रमों का संचालन नहीं किया जा सकता है। कई उत्कृष्ट नवाचारों की आवश्यकता है परंतु धन की कमी के कारण प्रयोग नहीं किए जा पा रहे हैं।

·       समाज का भय - मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। सामाजिक प्राणी होने के कारण उसे समाज के मूल्यों, आदर्शों, परंपराओं का सम्मान करना पड़ता है। वह इनके विरुद्ध नहीं जा सकता है। इन्हीं सामाजिक परंपराओं के कारण वह कुछ नया सोचने में डरता है। जिससे नवाचार के विकास मे में बाधा उत्पन्न होती है।

·       असफलता का भय- मनुष्य अपना प्रत्येक कार्य किसी सफलता की आशा से करता है। यदि उसे आशा होती है कि किसी नवीन विचार के माध्यम से उसे भविष्य में सफलता प्राप्त होगी, तो वह उस विचार को अपने मस्तिष्क में लाता है, परंतु यदि किसी नवीन विचार या कार्य के माध्यम से भविष्य में असफलता का भय होता है तो उस नवीन विचार से वह विरत हो जाता है। यह असफलता का भय नवाचार के मार्ग में बाधा उत्पन्न करते हैं।

·       आत्मविश्वास का अभाव- प्रायः मनुष्य में इतनी योग्यता या क्षमता नहीं होती है कि वह कोई नवीन विचार अपने मस्तिष्क में ला सके। अपनी इस आत्मविश्वास की कमी के कारण भी वह नवाचारों का प्रयोग करने में असमर्थ रहता है।

·       उचित संगठन का अभाव- किसी भी नवाचार का विकास करने के लिए उचित संगठन की आवश्यकता होती है। उचित संगठन के अभाव में नवाचार के मार्ग में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

·       समय का अभाव- किसी भी नवाचार को व्यावहारिक जीवन में प्रयोग करने के लिए पर्याप्त समय की आवश्यकता होती है। जब तक किसी व्यक्ति के पास पर्याप्त समय नहीं होगा तब तक कोई नवीन विचार उसके मस्तिष्क में उत्पन्न नहीं होगा। नवीन विचार के उत्पन्न न होने से वह नवीन कार्यों को करने में असमर्थ होगा। अतः नवाचार के मार्ग में सबसे बड़ी कठिनाई समय का अभाव होना है।

·        व्यक्तित्व संबंधी बाधाएं- व्यक्तित्व मन और शरीर का गत्यात्मक संगठन होता है। इसमें व्यक्ति की आदतें, मनोवृत्तियों रुचि, नैतिकता क्षमता इत्यादि निहित होती हैं। इसी के आधार पर व्यक्ति अपने वातावरण एव निहित होती हैं। नवाचारों से अन्तःक्रिया द्वारा समायोजन स्थापित करता है। अतः व्यक्तित्व का अपूर्ण विकास भी नवाचार के लिए बाधा उत्पन्न कर सकता है।

·       अज्ञान जनित बाधाएं- अज्ञान जनित बाधाएं निरक्षता व अंधविश्वास पर आधारित होती हैं। इसमें किसी नवाचार के बारे में पूर्ण रूपेण जानकारी न होना, मित्रमंडली द्वारा नवाचारों को महत्त्व न देना, बिना जानकारी के नवाचारों का विरोध करना इत्यादि बातें निहित होती है।

नवाचार की बाधाओं को दूर करने के उपाय-

·       नवाचार को सफल बनाने के लिए ऐसे परिवेश का निर्माण करना होगा, जिसमें व्यक्ति की आदतों में वांछित परिवर्तन लाया जा सके।

·       नैतिकता की बाधा को दूर करने के लिए ग्रहणकर्ता के मन में नवाचार के प्रति विश्वास जागृत करना होगा।

·       असुरक्षा की भावना के उन्मूलन के लिए अधिकारियों द्वारा ग्रहणकर्ता को संरक्षण दिया जाए जिससे उसका हौसला बढ़े।

·       असफलता की भावना को दूर करने के लिए यह आवश्यक है कि नवाचार के प्रयोग में सुखद अनुभव कराया जाए जिससे ग्रहणकर्ता को यह अनुभूति कराई जा सके कि वह इस कार्य में अवश्य सफल होगा।

·       सामाजिक भय को दूर करने के लिए यह आवश्यक है कि अधिकारियों और कार्यकर्ताओं को इस स्थिति में उसके सामने ऐसे व्यक्तियों के उदाहरण प्रस्तुत करने होंगे, जिन्होंने समाज को अनुचित परंपराओं का उल्लंघन करके सफलतापूर्वक नवाचार को अपनाया है।

·       नवाचार के प्रति अज्ञानता को दूर करने के लिए आवश्यक है कि ग्रहणकर्ता को नवाचार की पूर्ण जानकारी दी जाए, जिससे उसकी नवाचार के प्रति भ्रांति दूर हो सके।

·       नवाचार की आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए मानव संसाधनों के साथ-साथ व्यक्तित्व संबंधी व सामाजिक भांतियों को दूर करना अति आवश्यक है तभी नवाचार को सफलता मिल सकती है।

आशा है कि इस अंतर्राष्ट्रीय नवाचार दिवस पर आप भी भयभीत हुए बिना स्वाभिमान से भरकर नवाचार और नवोन्मेष को अपनाएंगे और संसार को एक नया नज़रिया,एक नया दृष्टिकोण देंगे।

 

मीता गुप्ता

No comments:

Post a Comment

और न जाने क्या-क्या?

 कभी गेरू से  भीत पर लिख देती हो, शुभ लाभ  सुहाग पूड़ा  बाँसबीट  हारिल सुग्गा डोली कहार कनिया वर पान सुपारी मछली पानी साज सिंघोरा होई माता  औ...