खून क्यों सफ़ेद हो गया?
खून क्यों सफ़ेद हो गया?
भेद में अभेद खो गया।
बंट गए शहीद, गीत कट गए,
कलेजे में कटार गड़ गई।
दूध में दरार पड़ गई।
खेतों में बारूदी गंध,
टूट गए नानक के छंद
सतलुज सहम उठी, व्यथित सी बितस्ता है।
वसंत से बहार झड़ गई
दूध में दरार पड़ गई।
माननीय पूर्व
प्रधानमंत्री श्री अटलबिहारी वाजपेयी जी की ये पंक्तियां की आतंकवाद की भयावहता को
स्पष्ट करने में सक्षम हैं। आतंकवाद पिछले कुछ दशकों से अंतर्राष्ट्रीय राजनीति का
एक महत्वपूर्ण पहलू रहा है, जिसने
राष्ट्र-राज्य के राजनीतिक आचरण को सबसे अधिक प्रभावित किया है। आतंकवाद का प्रभाव
वर्तमान में कई राज्यों पर गहरा है और इसके परिणामस्वरूप कई राज्यों में हिंसा, भय और तनाव का माहौल है।
वर्तमान
में आतंकवादी समूह उच्च तकनीकी स्रोतों से लैस हैं और शस्त्रों से संबंधित नियम इन
पर लागू नहीं होते हैं। इन संगठनों के काम का दायरा निश्चित नहीं है। वे विश्व
स्तर पर अपनी गतिविधियों का संचालन करते हैं और राष्ट्र-राज्यों के निर्णयों को
प्रभावित करते हैं। अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में आतंकवाद के कारण हिंसा की घटनाओं
में वृद्धि हुई है और ज़्यादातर मौकों पर उन लोगों के खिलाफ हिंसा देखी जा सकती है, जो बिल्कुल निर्दोष हैं।
अंतर्राष्ट्रीय कानून ने न
केवल आतंकवाद को परिभाषित करने का प्रयास किया है, बल्कि 1970 के दशक में कुछ नियम भी बनाए
गए हैं, जो आतंकवाद विरोधी नियमों का रूप ले चुके हैं। एशियाई, अफ्रीकी, लैटिन अमेरिकी और हाल ही में
अमेरिका भी इन घटनाओं से प्रभावित हुए हैं। पिछले तीन दशकों में भारत में आतंकवाद
की घटनाएं राजनीति और आम जनता को प्रभावित करती रही हैं। यह हमला न केवल कई बड़े
शहरों, धार्मिक स्थलों बल्कि भारत की संसद पर भी हुआ है। आतंकवाद के विश्लेषण को
व्यापक संदर्भ में समझना आवश्यक है।
आतंकवाद
क्या है? इसके बारे में कई भ्रांतियां हो सकती हैं। आतंकवाद एक विवादास्पद मुद्दा है, जिसने राष्ट्र-राज्यों की स्थिरता और
क्षेत्रीय अखंडता को प्रभावित किया है। साथ ही विश्व शांति और सुरक्षा के लिए इसके
दूरगामी परिणाम भी होते हैं। आतंकवाद हिंसा का एक आपराधिक रूप है। यह एक हिंसक
कार्रवाई को संदर्भित करता है ,जिसे कुछ निहित राजनीतिक
उद्देश्यों को पूरा करने के लिए किया जा रहा है। इस प्रकार, आतंकवादियों को एक राजनीतिक
इकाई के रूप में देखा जा सकता है। आतंकवाद को एक सुविचारित कदम के रूप में देखा जा
सकता है, जो एक संगठित
और प्रशिक्षित तरीके से अपने लक्ष्यों को प्राप्त करना चाहता है। आतंकवाद अपने आप
में एक साधन नहीं, बल्कि एक निश्चित उद्देश्य को प्राप्त
करने का एक साधन है। हिंसा आतंकवाद का एक अनिवार्य हिस्सा बन गया है। यह हिंसा
व्यक्ति के विरुद्ध और समाज के विरुद्ध या राज्य के विरुद्ध भी हो सकती है।
आतंकवाद एक ऐसी मानसिकता है
जिसमें आतंक, भय, दहशत और अन्य माध्यमों से लक्ष्यों को पूरा करने के सफल या असफल प्रयास किए
जाते हैं। यद्यपि आतंकवाद की कोई सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत परिभाषा नहीं है, कुछ समीक्षकों ने इसे
परिभाषित करने का प्रयास किया है। उन्हें यहाँ उद्धृत किया जा सकता है- ‘‘आतंकवाद
एक आपराधिक कृत्य है जो राज्य के खिलाफ किया जाता है और इसका उद्देश्य भ्रम पैदा
करना है। यह स्थिति कुछ व्यक्तियों, समूहों या आम जनता की भी हो सकती है। “-संयुक्त राष्ट्र संघ
आतंकवाद कई प्रकार का हो सकता
है, जैसे-
राजनीतिक आतंकवाद के रूप को अक्सर
आंदोलनकारी या निम्न स्तर के आतंकवाद के रूप में जाना जाता है। इसका प्राथमिक
उद्देश्य राजनीतिक आर्थिक शक्ति को अव्यवस्थित या उखाड़ फेंकना है। यह जनसमर्थन
भड़काकर किया जाता है।
प्रतिक्रियावादी आतंकवाद का भी एक रूप है जिसमें
इसका लक्ष्य सुधारवाद का विरोध करना और सुधार के जवाब में अपनी गतिविधियों का
संचालन करना है। चेग्वेवारा को इसी विचारधारा का समर्थक माना गया है।
पुरातनपंथी आतंकवाद का मकसद पुरानी
व्यवस्था को बहाल करना और मुख्य रूप से प्रगतिशील और क्रांतिकारी ताकतों के खिलाफ
उनका विरोध करना है।
साम्राज्यवाद विरोधी आतंकवाद पर विद्वानों
में मतभेद हैं और कुछ विचारकों का मानना है कि साम्राज्यवाद से मुक्ति के लिए
व्यवस्थित या अव्यवस्थित संघर्ष आतंकवाद की श्रेणी में नहीं आता है, जबकि कुछ विचारक इसके विरुद्ध
हैं। इसके अलावा, लैटिन अमेरिकी देशों में साम्राज्यवाद-विरोधी आतंकवाद का मिश्रित रूप है।
राज्य आतंकवाद में जनता पर असाधारण शक्ति
का दबाव डालना ताकि आंदोलन चलाने की इच्छा को तोड़ा जा सके, राज्य आतंकवाद कहलाता है। यह
आतंकवादियों/उग्रवादियों के नापाक प्रयासों के कारण जनता को नुकसान पहुँचाता है।
राज्य प्रायोजित आतंकवाद में सीमा पार से
आतंकवाद का इस्तेमाल सीमा को अस्थिर करने और दूसरे राज्य की ताकत को कमजोर करने के
लिए किया जाता है। इसमें क्रांतिकारी/उग्रवादी/आतंकवादी दूसरे देशों से प्रेरित और
प्रायोजित होते हैं। पाकिस्तान ने हमेशा पंजाब, जम्मू-कश्मीर और उत्तर पूर्वी भारत के
राज्यों के मामलों में एक प्रायोजक राष्ट्र की भूमिका निभाई है।
धार्मिक आतंकवाद में आत्म-बलिदान या कठोर
नैतिक संहिता जो एक विशेष धार्मिक समुदाय से संबंधित है, को विश्वास में रखा जाता है।
ऐसे आतंकवाद में हिंसा को मुक्ति का मार्ग माना जाता है। उसे राष्ट्रीय लाभ की
परवाह नहीं है।
अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में आतंकवाद मुख्य
रूप से हिंसा, हत्याओं और विस्फोटों का लक्ष्य हिंसा द्वारा अपने उद्देश्यों को प्राप्त करना
है। पिछले कुछ दशकों में ऐसे समूहों की गतिविधियों में काफी वृद्धि हुई है। इन
घटनाओं का आंतरिक राजनीति पर प्रभाव पड़ता रहता है और सभी व्यवस्थाओं से असंतोष
होता है।अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में एक विश्लेषण यह भी है कि अंतर्राष्ट्रीय
आतंकवाद को इस परिप्रेक्ष्य में भी देखा जाना चाहिए कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे
पर्याप्त कारण हैं जिनसे शोषण और अन्याय होता रहता है और ये घटनाएं इस ओर ध्यान
आकर्षित करने के प्रमुख संकेत हैं। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में आतंकवाद के विरुद्ध
अंतर्राष्ट्रीय कानून की एक व्यवस्था है, जिसमें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर राज्यों को पर्याप्त अधिकार दिए
गए हैं। इतना ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद के खिलाफ़ जनमत लगातार बना
हुआ है, लेकिन आतंकवाद का फैलाव चिंता का विषय बना हुआ है। आतंकवाद के विश्लेषण की
विचारधारा, धर्म और हितों के आधार पर व्याख्या की जाती है, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय राजनीति की व्याख्या
में आतंकवाद का प्रसार वास्तव में राष्ट्र राज्यों की सुरक्षा और स्थिरता के लिए
एक बाधा है।
सीमा पार आतंकवाद से निपटने के लिए भारत बहुस्तरीय प्रयास
करता है। भारत में सेना,
कानून व्यवस्था ने इनसे निदान की व्यवस्थाएं की हैं।
पुलवामा हमले के उपरांत हुई एयर स्ट्राइक तथा पूर्व में हुई सर्जिकल स्ट्राइक ने
यह स्पष्ट कर दिया कि भारत आतंकवाद के विरुद्ध सैन्य कार्यवाहियों का भी प्रयोग कर
सकता है परंतु आतंकवाद को बर्दाश्त नहीं करेगा। इसी क्रम में भारत ने आतंकवाद पर
शून्य सहिष्णुता की नीति के कारण पाकिस्तान से द्विपक्षीय सम्बन्धो को भी निलंबित
कर दिया।
कई बार सापेक्षिक वंचना, पहचान संकट तथा बहुसंख्यक
समुदाय की बढ़ती कटटरता तथा सांप्रदायिक तत्वों की समाज में उपस्थिति घरेलू आतंकवाद
का रूप ले लेती है। भारत का समाज तथा राष्ट्र अभी परिपक्वता की प्रक्रिया से गुजर
रहे हैं ऐसे में सांप्रदायिकता इस निर्माण में बाधा बनती है।
कहीं न कहीं घरेलू आतंकवाद की जड़ो में सामाजिक आर्थिक वंचना
रहती है अतः संविधान द्वारा अल्पसंख्यकों को दिए गए अधिकारों को मूल अधिकारों में
रखा है, जिसका अभिरक्षण उच्चतम न्यायालय करता है। भारत
में हो रही आतंकी गतिविधियों, सांप्रदायिकता से निदान
हेतु भारतीय संसद द्वारा यूएपीए (गैर कानूनी गतिविधि निवारण अधिनियम) जैसे कानूनों
का निर्माण किया है। भारत के सुरक्षा बल निरंतर देश में सुरक्षा का माहौल बनाने
में संलग्न हैं।
तकनीकी उन्नति के साथ साथ आतंकवाद में भी परिवर्तन हुए हैं।
सूचना तकनीकी में क्रांति आने से आतंकी भी अब तकनीकी का प्रयोग कर युवा, वंचित,
शरणार्थियों का ब्रेन वाश कर आतंकी घटनाओ को अंजाम दे रहे
हैं। इस प्रकार के आतंक को साइबर आतंकवाद कहा जाता है।आतंकवाद महज एक हिंसात्मक
गतिविधि नहीं है बल्कि यह देश तथा समाज के सामाजिक, सांस्कृतिक
तथा रक्षा के ताने बाने पर हमला कर देश के सतत विकास में बाधक बनता है। किसी भी
रूप में आतंकवाद समाज तथा राष्ट्र के लिए घातक है।परंतु कहीं न कहीं गलत धार्मिक
अवधारणाओं पर आधारित आतंकवाद पर विश्व का एकमत न होना आतंक के विरुद्ध राह में
सबसे बड़ा अवरोधक है। अतः आवश्यक है कि सभी देशो को सामाजिक आर्थिक न्याय, शरणार्थी संकट,
मानवाधिकार के हनन जैसे समस्याओं को वैश्विक स्तर पर हल
करते हुए आतंकवाद के सभी स्वरूपों के विरुद्ध एकमत होकर इसे समाप्त करना आवश्यक
है।
दरअसल देखा जाए तो,आतंकवाद
बमों में नहीं हैं,
किसी के हाथों में नहीं है, वह
हमारे अवचेतन में है। यदि इसका उपाय नहीं किया गया, तो
हालात बदतर से बदतर होते जाएंगे और लगता है कि अंधे लोगों के हाथों में बम हैं। और
वे अंधाधुंध फेंक रहे हैं। हवाई जहाजों में, बसों
और कारों में,
अजनबियों के बीच…अचानक कोई आकर हम पर बंदूक तान देगा। हिंसा
में वृद्धि हो ही रही है और हमारी सरकारें और हमा धर्म नई स्थिति को समझे बगैर
पुरानी रणनीतियों को अपनाए चले जाते हैं। नई स्थिति यह है कि प्रत्येक मनुष्य को आत्मविश्लेष्ण
और आत्मावलोकन करना ज़रूरी है, अपने जीवन-उद्देश्यों को समझना ज़रूरी
है, तभी हम एक सुंदर आतंकवादमुक्त विश्व की परिकल्पना
कर पाएंगे, यथा-
आओ फिर से दिया जलाएं
भरी दुपहरी में अँधियारा
सूरज परछाई से हारा
अंतरतम का नेह निचोड़ें-
बुझी हुई बाती सुलगाएं।
आओ फिर से दिया जलाएं
हम पड़ाव को समझे मंज़िल
लक्ष्य हुआ आँखों से ओझल
वर्त्तमान के मोहजाल में-
आने वाला कल न भुलाएं।
आओ फिर से दिया जलाएं।
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