Wednesday, 17 May 2023

घड़ी बोले...टिक..टिक..टिक

 

घड़ी बोले...टिक..टिक..टिक




 

आने वाला पल जाने वाला है

हो सके तो इस में

ज़िंदगी बिता दो

पल जो ये जाने वाला है

सच में, हमारा हर काम समय के साथ ही होता है, सुबह उठने से लेकर रात सोने तक जितने भी काम हैं, हम समय को ध्यान रखे बिना नहीं कर सकते। इस समय को नापने  का सबसे अच्छा तरीका घड़ी ही है, आज के युग में हम घड़ी के बिना जीवन कि कल्पना ही नहीं कर सकते हैं। मोबाइल घड़ी, कार घड़ी, दीवार घड़ी या कलाई घड़ी या किसी और प्रकार की घड़ी हो, घड़ी चाहे जिस रूप में हो, वो घड़ी ही है।  क्या आप जानते हैं कि घड़ी का विकास कैसे हुआ ? क्या शुरू से ही घड़ी ऐसी ही थी ?

हम ये तो नहीं जानते कि जिस समय के पल-पल का हिसाब आज  घड़ी रखती है वह घड़ी के  बनने के पहले कैसे मापा जाता था, लेकिन इतना ज़रूर है कि मनुष्य को जबसे समय को समझने का बोध हुआ, तब से उसने शायद पहली बार घड़ी को सूरज के उगने और डूबने में खोजा होगा और प्रागैतिहासिक काल में कई दशकों तक मनुष्य यूं ही अपना काम करता रहा होगा। मनुष्य रात और दिन के साथ समय का आभास करता रहा और अनुमान लगाता रहा कि अब दिन के या रात का पहला पहर खत्म हो गया है और दूसरा प्रारंभ होने वाला है।

लेकिन मानव की जिज्ञासु प्रवृत्ति अभी कहां रुकने वाली थी? आदि मानव ने समय को अच्छे से समझने के लिए रेत को माध्यम बनाया और रेत घड़ी का निर्माण कर डाला। फिर किसी ने धूप की लंबाई नापी और रात के अंधेरों में तारों की रफ़्तार को पल-पल गिनने की कोशिश की। अब तक आदि मानव सभ्यताओं को निर्माण करने की क्षमता प्राप्त कर चुका था। यह लगभग 100 ईसा पूर्व से 500 ईसवी का समय था जब सुमेरन, बेबिलोनिया, एसिरिया, भारतीय और चीनी सभ्यताओं ने गिरते पानी की बूंदों में घड़ी को खोज निकाला और उसका नाम  पानी की घड़ी (वाटर क्लॉक) रखा। उसी दौरान ये सभ्यताएं खगोल और ज्योतिष का ज्ञान भी अर्जित कर चुकी थीं। ग्रहों की गति और प्रभाव का सुनिश्चित अनुमान लगाने के लिए उन्होंने समय की रफ़्तार की खगोलीय गणना की और खगोलीय घड़ी तैयार की, जिस तरह अलग-अलग सभ्यताओं की गणनाएं अलग थीं, उसी तरह  खगोलीय समय का अनुपात भी अलग-अलग था। इस अनिश्चितता ने घड़ी के  विकास में यांत्रिकी की आवश्यकता को बल दिया। मध्यकाल (500 से 1500 ईसवी) तक घड़ी का  तकनीकी में जबर्दस्त विकास हुआ। लगभग सवा दो हजार साल पहले यूनान में पानी से चलने वाली अलार्म घड़ी का प्रयोग होता था, जिसमें पानी के गिरते हुए स्तर के साथ घंटी बज जाती थी। घड़ी के आविष्कार का श्रेय पोप सिलवेस्टर द्वितीय को भी जाता है। इन्होंने सन् 996 ईस्वी में पहले घड़ी का आविष्कार किया था।लेकिन आधुनिक घड़ी के आविष्कार का मामला कुछ पेचीदा है। घड़ी की मिनट वाली सुई का आविष्कार किया वर्ष 1577 में स्विट्ज़रलैंड के जॉस बर्गी ने अपने एक खगोलशास्त्री मित्र के लिए। उनसे पहले जर्मनी के न्यूरमबर्ग शहर में पीटर हेनलेन ने ऐसी घड़ी बना ली थी ,जिसे एक जगह से दूसरी जगह ले जाया सके।

16वीं शताब्दी में घड़ियां बाज़ार, महल या किसी सार्वजनिक स्थल पर लगी होती थी, इसलिए घड़ी को  एक जगह से दूसरी जगह ले जाना मुश्किल था। एक व्यक्ति उठा ही नहीं सकता था। इतनी बड़ी होने के बावजूद घड़ी  सिर्फ एक कांटे की होती थी और सिर्फ घंटे बताती थी। उस समय घड़ी के अंदर के कल पुर्जे जैसे गियर कटिंग इंजन और स्टील निर्माण भी उतना अच्छा नहीं था जैसा आज है। स्पाइरल फीट मैन स्प्रिंग का प्रयोग इसी दौर में शुरू हुआ। यह घड़ी के इतिहास का महत्वपूर्ण आविष्कार था, क्योंकि अब घड़ी निर्माताओं को समय की गति सही रखने के लिए भारी वज़नों की ज़रूरत नहीं थी, लेकिन स्पाइरल स्प्रिंग से मे घड़ी कि  रफ़्तार नियमित नहीं रह पाती थी। खोजकर्ता लगातार इस प्रयास में जुटे थे कि घड़ी  किसी भी तरह स्पाइरल की मदद से नियमित चलती रहे । आखिर में जर्मन आविष्कारक स्टेकफ्रीड को इसमें सफलता मिली।

17वीं शताब्दी के प्रारंभ में घड़ी में  स्पाइरल स्प्रिंग का इस्तेमाल ही किया गया, जिसके कारण घड़ी  गुणवत्ता की दृष्टि से काफी पीछे थी, लेकिन 1675 में संतुलित स्पाइरल स्प्रिंग के प्रयोग से घड़ी  के  समय मापन की क्षमता में काफी बदलाव आया। घड़ी अब हर घंटे यहां तक कि मिनट मापन में भी परिपक्व हो गई थी। आकार छोटे होने के साथ-साथ घड़ी के उपयोग करने के तरीके में भी परिवर्तन आया। अब घड़ी  फैशन एसेसरीज के रूप में इस्तेमाल होने लगी। इसका चलन तब शुरू हुआ जब इंग्लैंड के राजा चार्ल्स द्वितीय ने घड़ी को सोने की चेन के साथ जोड़कर कोट की जेब में रखा। लोगों को चार्ल्स का यह अंदाज इतना अच्छा लगा कि बड़ी संख्या में पुरुष अपनी कोट की जेब में घड़ी को लटकाए घूमने लगे। हालांकि यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि पहली जेब ( पॉकेट वाच ) जो 1510 ईश्वी के आस पास में बनाई गई थी और जो ड्रम की तरह से होती थी और वज़न में अधिक होती थी तथा इतनी फैशनेबल भी नहीं होती थी।

1600 ईस्वी  के दौर में घड़ी की तकनीक में कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ, लेकिन घड़ी फैशन एसेसरीज के रूप में मैं काफी लोकप्रिय हो चुकी थी। हालांकि 1625 तक इंग्लैंड में बिना सजावट वाली घड़ियां प्रचलन में थीं, लेकिन 1660 तक महिलाओं के बीच घड़ियां एक फैशन की तरह उपयोग हो रही थीं। घड़ी को  उन्नत करने मेरी साज-सज्जा पर ज्यादा ध्यान दे रहे थे और 1675 तक  कि घड़ी को  रखने के लिए सुंदर से केस बनाए जाने लगे। यह केस काफी महंगी धातुओं से बनते थे। यहां तक कि केसों के अंदर महंगी सजावटी वस्तुएं उपयोग होने लगी। 1761 के बाद एक बार घड़ी की गुणवत्ता पर काम होने लगा। इस समय जॉन हैरिसन ने एक ऐसी घड़ी का निर्माण किया, जो समुद्री यात्रा को देशांतर यानी पूरब से पश्चिम में मापती थी, लेकिन इस आविष्कार ने  घड़ी के निर्माताओं को आकर्षित नहीं किया, क्योंकि घड़ी आम व्यक्ति के लिए उतनी उपयोगी नहीं थी। फिर भी समुद्री काल-मापक और पॉकेट काल मापक पर काम रुका नहीं।

बात 1657 के दौरान की थी। डच वैज्ञानिक क्रिस्टिएन हाइगंस पहले की घड़ियों की तुलना में बिलकुल सही समय दर्शाने वाली घड़ी के निर्माण में लगे थे। आखिर उन्होंने सफलता प्राप्त कर ही ली। उन्होंने पहली पेंडुलम घड़ी बनाई, जो काफी सही समय दिखाने वाली थी, लेकिन इसकी कमजोरी थी कि ये समुद्र में काम नहीं करती थी। ब्रिटेन के घड़ी निर्माताओं ने इसी पैटर्न पर 6 फुट लंबे केस जिसमें 10 इंच का पेंडुलम या का निर्माण किया। 1670 में तो ऐसी घड़ियां बनीं, जिनके पेंडुलम 391 इंच लंबे होते थे, इनको रायल पेंडुलम बुलाया जाता था। इसी समय  सात फुट लंबे केस वाली घड़ियों का निर्माण किया गया, जिन्हें ग्रांडफादर क्लॉक के नाम से जाना गया । इन घड़ियों की लंबाई 7 फुट तक होती थी। घड़ी विकास चक्र

दूसरी तरफ कुछ और आविष्कार हो रहे थे। बेगुएट कंपनी ने घड़ी के  रंग और चाल में और परिवर्तन किए ।  1787 में उसने फ्रांस में लीवर घड़ियों का निर्माण शुरू किया। 1775 तक पेयर केस घड़ियों का फैशन खत्म होने लगा था। इसी बीच फ्रैंच निर्माताओं की मेहनत रंग लाई। उनकी पतली घड़ियां फ्रांस की सीमाओं को लांघकर 19वीं शताब्दी के मध्य यानी 1850 ईसवी तक इंग्लैंड तक पहुंच गई। हालांकि यहां आकर लीवर के डिजाइन में बदलाव आया। अब वे गोलाकार होने लगे। घड़ियों की मोटाई काफी कम हो गई। इस दौरान अमेरिका कम कीमत के लीवर से घड़ी बनाने के उद्देश्य पर काम कर रहा था। स्विस निर्माता अमेरिकियों पर पैनी नजर रखे हुए थे और वहां घड़ी के  निर्माण में सिलंडर और लीवर का उपयोग होने लगा।

1868 में पैटेक फिलिपी ने  कलाई घड़ी (रिस्ट वॉच) का  निर्माण किया। किंतु इस रूप में किसी भी झटके या दबाव पर घड़ी के कल पुर्जे टूट जाते थे। तब घड़ी को  मजबूती देने और आकर्षक बनाने का काम शुरु हुआ। घड़ी के डायल तथा केस में काफी परिवर्तन आए और यह काफी आकर्षक हो गए। बदलावों के कारण 1930 तक कलाई घड़ियों के रूप में घड़ी लोगों द्वारा खूब पसंद की जाने लगीं। 1945 यानी दूसरे विश्व युद्ध तक घड़ी, पॉकेट वॉच के रूप में खूब बिकी, लेकिन उसके बाद धीरे-धीरे उत्पादन कम होता चला गया। घड़ी को  नया रूप देने में स्विस निर्माताओं ने अहम भूमिका निभाई। अब घड़ी का लीवर वाला स्वरूप काफी महंगा साबित हो रहा था। इसी दौरान पिन पैलेट का आविष्कार हो चुका था। यही वजह थी कि घड़ी बहुत सस्ती कीमत में आम लोगों के बीच उपलब्ध थी। 1945 में रोलेक्स डेट ने पहली तारीख दिखाने वाली घड़ी का निर्माण किया था ।

पॉकेट वॉच में उपलब्ध सभी सुविधाएं जैसे काल मापक, तारीख, अलॉर्म, चंद्रमा की स्थिति आदि सभी चीजें घड़ी के  नए रूप में मौजूद थीं । 21 वीं सदी तक आते-आते घड़ी और बेहतर और ऑटोमैटिक हो गई । इतना ही नहीं अब घड़ी  वाटरप्रूफ, शॉकप्रूफ और अधिक दबाव, घनत्व और भाप में भी काम करने में सक्षम हैं । घड़ी का  विकास थमा नहीं, घड़ी  पर हो रही लगातार खोजों ने बैट्री, ऑटोमैटिक के बाद इलेक्ट्रॉनिक रूप विकसित किया और आज क्वार्ट्ज घड़ी के रूप तक में है। इसका श्रेय स्विस कंपनियों को जाता है, इन लोगों के प्रयास के कारण घड़ी काफी सस्ती भी हो गई हैं । आज के इस दौर में घड़ी  डिजिटल भी है, और कम्प्यूटर, कार , घर , दुकान तथा  मोबाइल में , सभी जगह मौजूद है । आधुनिक समय में घड़ी का न्य रूप स्मार्ट वाच के रूप में सामने आया है, आगे चलकर जैसे-जैसे विज्ञान आगे बढ़ती चली जाएगी घड़ी का विकास समय के साथ -साथ ऐसे ही होता चला जाएगा , इसे कोई रोकने वाला नहीं है। घड़ी विकास चक्र ऐसे ही चलता रहेगा ।।

घड़ी के बारे में दस  रोचक जानकारियां-

1) हंगरी की राजकुमारी कोस्कोविक्ज को दुनिया की पहली घड़ी पहनने का श्रेय जाता हैं। उन्होंने 1868 में पाटेक फिलिप द्वारा बनाई गई घड़ी पहनी थी।

2) दुनिया की भारी घड़ी लंदन में स्थित वेस्टमिन्स्टर पैलेस की ब्लॉक टॉवर है। इस घड़ी को सन 1856 में एडवर्ड प्रथम ने लगवाई थी। जो 7 लाख के मूल्य में बनाई गई थी।इस घड़ी के 4 डायल हैं। और प्रत्येक डायल 2 फुट, 6 इंच व्यास के हैं। इस घड़ी के घंटे का वज़न ही 15 टन का है।

3) दुनिया की विशालतम घड़ी डेनमार्क में है। 15 दिसंबर 1955 को यहां के सम्राट ने इस घड़ी का उद्घाटन किया था। इस घड़ी को दुनिया की सबसे ठीक समय देने वाली घड़ी मानी गई है।

4) दुनिया की सबसे ऊंची घड़ी न्यूयार्क में हैं। यह घड़ी सड़क के सतह से 330 फुट ऊंचाई पर लगी हुई है।

5) कलाई पर पहनने वाली घड़ी बाज़ार में आने के बाद कई सालों तक घड़ियों को सिर्फ महिलाएं ही पहनती थीं। पुरुषों में घड़ी पहनने का आरंभ प्रथम विश्व युद्ध के बाद हुआ।

6) हथेली पर बांधने वाली घड़ी का चलन 1904 से शुरू हो गया था। लेकिन बाज़ार में आते आते 7 वर्ष लग गए थे।

7) आज घड़ी सिर्फ धरती तक ही सीमित नहीं रही है, यह अंतरिक्ष में भी पहुंच चुकी है। चाँद पर जाने वाली घड़ी का नाम ओमेगा स्पीडमास्टर हैं।

8) घड़ी के स्पेयर पार्ट्स बनाने में स्वीटजरलैंड दुनिया में पहले पायदान पर है।

9) दुनिया की सबसे महंगी घड़ी पाटेक फिलिप ग्रैंड मास्टर चाइम हैं। जिसकी मूल्य 31 मिलियन डॉलर हैं।

10) वर्तमान में रोलाक्स ब्रांड सबसे ज्यादा घड़ियों का उत्पादन करता हैं। जहां प्रति दिन 2000 घड़ियाँ की निर्मित होती हैं।

है ना हैरान करने वाला घड़ियों का संसार....

 

मीता गुप्ता

 

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