Friday, 7 October 2022

21वीं शताब्दी में बुद्ध की शिक्षा की प्रासंगिकता

 

21वीं शताब्दी में बुद्ध की शिक्षा की प्रासंगिकता

 

दुनिया को अपने विचारों से नया मार्ग (मध्यम मार्ग) दिखाने वाले महात्मा बुद्ध भारत के एक महान दार्शनिक, समाज सुधारक और बौद्ध धर्म के संस्थापक थे। राजपरिवार में जन्में महात्मा बुद्ध का जन्म नेपाल की तराइयों में स्थित लुंबिनी में 563वीं ईसा पूर्व में हुआ था। विदित हो की अपने जीवन के एक चरण में उन्होंने मानव जीवन के दुखों को देखा जैसे रोग, वृद्धावस्था एवं मृत्यु। इसके पश्चात् वे 29 वर्ष की अवस्था में सांसारिक जीवन को त्याग कर सत्य की खोज में निकल पड़े। उन्होने बोधगया में एक पीपल वृक्ष के नीचे ध्यान करते हुए आत्म बोध प्राप्त किया। तब से लेकर 80 वर्ष की अवस्था में अपनी मृत्यु तक, उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन यात्र करते हुए लोगों को जीवन चक्र से छुटकारा पाने की राह दिखाते हुए बिताया। उनकी मृत्यु के पश्चात उनके शिष्यों ने राजगृह में एक परिषद का आह्वान किया, जहाँ बौद्ध धर्म की मुख्य शिक्षाओं को संहिताबद्ध किया गया। इन शिक्षाओं को पिटकों के रूप में समानुक्रमित करने के लिए चार बौद्ध संगीत का आयोजन किया गया जिसके पश्चात् तीन मुख्य पिटक बने। विनय पिटक (बौद्ध मतावंलबियों के लिए व्यवस्था के नियम), सुत पिटक (बुद्ध के उपदेश सिद्धांत) तथा अभिधम्म पिटक (बौद्धदर्शन), जिन्हें संयुक्त रूप से त्रिपिटक कहा जाता है। इन सब को पालि भाषा में लिखा गया है।

वर्तमान समय में महात्मा बुद्ध के विचारों की प्रासंगिकता

महात्मा बुद्ध भारतीय विरासत के एक महान विभूति हैं। उन्होंने सम्पूर्ण मानव सभ्यता को एक नयी राह दिखाई। उनके विचार, उनकी मृत्यु के लगभग 2500 वर्षों के पश्चात् आज भी हमारे समाज के लिये प्रासंगिक बने हुए हैं। बुद्ध का सबसे महत्वपूर्ण विचार ‘आत्म दीपों भवः’ है अर्थात् अपना दीपक स्वयं बनो। इस विचार का मूल यह है कि व्यक्ति को अपने जीवन में किसी भी नैतिक-अनैतिक प्रश्न का फैसला स्वयं करना चाहिए।

वर्तमान समय में बुद्ध के इस विचार का महत्त्व बढ़ जाता है दरअसल आज व्यक्ति अपने घर, ऑफिस, कॉलेज आदि जगहों पर अपने जीवन के महत्वपूर्ण फैसले भी स्वयं न लेकर दूसरे की सलाह पर लेता है अतः वह वस्तु बन जाता है। बुद्ध का सिद्धांत व्यक्ति को व्यक्ति बनने पर बल देता है।

बुद्ध के नैतिक दृष्टिकोण का दूसरा प्रमुख विचार मध्यम मार्ग के नाम से जाना जाता है। उल्लेखनीय है कि उनका मध्यम मार्ग सिद्धांत आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना बुद्ध के समय था। उनके इन विचारों की पुष्टि इस कथन से होती है फ्वीणा के तार को उतना नहीं खींचना चाहिए कि वह टूट ही जाए या फिर उतना भी उसे ढीला नहीं छोड़ा जाना चाहिए कि उससे स्वर ध्वनि ही न निकले।

उनके मध्यम मार्ग और इहलौकिता पर बल के विचारों की प्रासंगिकता वर्तमान समय में और ज्यादा बढ़ जाती है। उनका यह सिद्धांत रूढि़वादिता को नकारते हुए तार्किकता पर बल देता है। दरअसल आज दुनिया में तमाम तरह के झगड़े हैं जैसे- सांप्रदायिकता, आतंकवाद, नक्सलवाद, नस्लवाद तथा जातिवाद इत्यादि। इन सारे झगड़ों के मूल में बुनियादी दार्शनिक समस्या यही है कि कोई भी व्यक्ति देश या संस्था अपने दृष्टिकोण से पीछे हटने को तैयार नहीं है। इस दृष्टि से इस्लामिक स्टेट जैसे अतिवादी समूह हो या मॉब लिंचिंग विचारधारा को कट्टर रूप में स्वीकार करने वाला कोई समूह हो या अन्य समूह सभी के साथ मूल समस्या नजरिये की ही है। महात्मा बुद्ध के मध्यम मार्ग सिद्धांत को स्वीकार करते ही हमारा नैतिक दृष्टिकोण बेहतर हो जाता है। हम यह मानने लगते हैं कि कोई भी चीज का अति होना घातक होता है। यह विचार हमें विभिन्न दृष्टिकोणों के मेल-मिलाप तथा आम सहमति प्राप्त करने की ओर ले जाता है।

अगर आज दो विरोधी समूहों के बीच सार्थक संवाद हो, तो धार्मिक सहिष्णुता और सर्व धर्म संभाव सिर्फ कहने भर की बातें नहीं रहेंगी बल्कि दुनिया का सच बन जाएंगी।

महात्मा बुद्ध का यह विचार की दुःखों का मूल कारण इच्छाएँ हैं, आज के उपभोक्तावादी समाज के लिए प्रासंगिक प्रतीत होता है। दरअसल प्रत्येक इच्छाओं की संतुष्टि के लिए प्राकृतिक या सामाजिक संसधानों की आवश्यकता पड़ती है। ऐसे में अगर सभी व्यक्तियों के भीतर इच्छाओं की प्रबलता बढ़ जाए तो प्राकृतिक संसाधन नष्ट होने लगेंगे, साथ ही सामजिक संबंधों में तनाव उत्पन्न हो जाएगा। ऐसे में अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करना समाज और नैतिकता के लिए अनिवार्य हो जाता है।

बुद्ध के विचारों का आज के संदर्भ में प्रेरणादायी पक्ष यह भी है कि वे सद्गुणों के विकास पर अत्यधिक बल देते थे। उन्होने अपने अनुयायियों को जो आचरण संहिता बताया उसमे कष्टों को सहने की ताकत और अनुशासित जीवन को अत्यधिक महत्त्व दिया गया। उदाहरण के लिए उन्होंने अंहकार को बहुत बड़ा अवगुण माना और सलाह दिया कि जिन लोगों के अंदर ‘मैं’ की भावना बहुत अधिक होती है वे अकसर बाकी लोगों को अपने साथ लेकर नहीं चल पाते। उन्हें प्रायः हर व्यक्ति में अपना प्रतिस्पर्द्धी और शत्रु ही नजर आता है, दोस्त या शुभचिंतक नहीं। उदाहरण के लिए आज ‘अंह’ की भावना के चलते व्यक्तिगत संबंध खराब हो रहे हैं। परिवार में बिखराव आ रहा है आपसी संघर्ष बढ़ रहे हैं। ऐसे में यह सिद्धांत दूसरे को समझने में सहायक हो सकता है।

महात्मा बुद्ध ईश्वर (जो धर्म का केंद्रीय बिंदु है) को नकारते हुए भी बौद्ध धर्म को इतने व्यापक स्तर पर स्थापित करने में सफल रहे हैं जो उनकी प्रासंगिकता को बताता है।

बुद्ध का कर्मवादी सिद्धांत भी वर्तमान विश्व में काफी महत्त्व रखता है। दरअसल आज जिस तरह व्यक्ति भाग्यवाद तथा तरह-तरह के आडंबरों एवं कर्मकांड में जकड़ता जा रहा है, ऐसे में कर्मवादी सिद्धांत उन्हे मानव कल्याण से जोड़कर समाज को तार्किक बनाने में कारगर साबित हो सकता है।

महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं की उपयोगिता आज के परिप्रेक्ष्य में बढ़ जाती हैं उनकी शिक्षा नैतिकता, करूणा और संवेदनशीलता को बढ़ाने में सहायक हो सकती है, जिसके माध्यम से शांति और सतत विकास पर आधारित एक संघर्ष मुक्त विश्व व्यवस्था को सुनिश्चित किया जा सकता है। दरअसल आज स्कूल, कॉलेज में शिक्षा का उद्देश्य अच्छी व्यवस्था व भौतिकवादी समाज में अधिक से अधिक संसाधनों पर कब्जा प्राप्त करना रह गया है। ऐसे में व्यक्ति मानवतावादी सिद्धांतों से दूर हो गया है, जहाँ संवेदना का स्तर शून्य हो गया है। बच्चों पर उच्च अंक लाने का दबाव डाला जा रहा है न की इस बात का कि वे शिक्षा प्राप्त कर नैतिक व्यक्ति बने।

आज घृणा के विचारधाराओं के समर्थकों को विचारहीन मृत्यु और विनाश से बचने के लिए रचनात्मक रूप से संलग्न होने की आवश्यकता है। ऐसे में बुद्ध का सिद्धांत "शांति से बढ़कर कोई आनंद नही है" ज्यादा प्रसांगिक हो जाता है।

जिस सिद्धांत के लिए महात्मा बुद्ध के विचारों की प्रासंगिकता विश्व में बढ़ जाती है वह हैं- अहिंसा। अहिंसा के विचारों की बात महत्मा बुद्ध के समकालीन महावीर द्वारा भी कही गई थी। उल्लेखनीय है कि महात्मा बुद्ध का अंहिसा का विचार सभी प्राणीमात्र के लिए था। आज विश्व में जहाँ एक तरफ पशुओं के विरूद्ध हिंसा के नए-नए तरीके खोजे जा रहे हैं वहीं पशुओं के साथ अच्छा आचारण करने को लेकर पेटा जैसी संस्थाएँ विश्वव्यापी आंदोलन चला रही हैं।

बुद्ध का अष्टांगिक मार्ग का सिद्धांत आज के भौतिकवादी समाज में ज्यादा प्रासंगिक हो जाता है। उदाहरण के लिए उनका सम्य्क जीविका का विचार इस बात पर बल देता है कि समाज मे सभी को जीविका मिले जिससे आज के समाज की जैसे बड़ी समस्या बेरोजगारी का समाधान हो सकता है।

बुद्ध का मानव के कल्याण के लिए अंतःशुद्धि का सिद्धांत भी काफी महत्वपूर्ण हो जाता है। यह सिद्धांत व्यक्ति को अन्दर से नैतिक होने पर बल देता है। आज जिस तरह व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं से अधिक संपदा एकत्र करने के लिए संघर्षशील है वह कहीं न कहीं एक बड़े वर्ग को प्रभावित कर रही है। हाल ही में रिपोर्ट में पाया गया है कि कुल संसाधनों का एक बड़ा भाग कुछ व्यक्तियों के हाथ में केन्द्रित हो कर रह गया है। ऐसे में अगर उनका यह विचार सही तरीके से स्थापित हो जाए तो कोई भी उद्यमी अपने कर्मचारियों का हक नहीं मारेगा_ कोई अमीर किसी गरीब को नुकसान नहीं पहुँचाएँगा और अर्थव्यवस्था में तनाव की जगह सद्भाव को प्राथमिक स्थान मिलेगा।

बुद्ध की नीति की एक अन्य प्रेरणादायी बात यह है कि इसमें परिवर्तनों के प्रति बेहद सकारात्मक रूख दिखाई पड़ता है। बुद्ध का प्रसिद्ध कथन है कि हम एक नदी में दो बार नहीं नहा सकते क्योंकि दूसरी बार नहाने के समय न तो वह जल रहेगा और न ही वह नहाने वाला क्योंकि तब तक जल की धारा काफी आगे बढ़ चुकी होगी और नहाने वाले के शरीर में सूक्ष्म स्तर पर असंख्य परिवर्तन आ चुके होंगे। बुद्ध का यह विचार हमें रूढि़वादी होने से बचाती है। आज समय के अधिकांश संकटों का जड़ इसी बात में छिपा है कि लोग समय के अनुसार खुद को बदल नहीं पाते। अगर हम बुद्ध की इस बात को समझ लें कि परिवर्तन ही सत्य है तो शायद यह यथास्थितिवादी होने से बच सकें। इस विचार से जातिवाद, संप्रदायवाद, नस्लवाद आदि की समाप्ति हो जाएगी।

आज जब समस्त विश्व रूस द्वारा यूक्रेन पर किए गए आक्रमण की विभीषिका को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से महसूस कर रहा है, ऐसे में, बुद्ध की प्रासंगिकता और भी अधिक बढ़ जाती है।  निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि यदि हम बुद्ध के विचारों को वर्तमान परिपेक्ष्य में स्वीकार करें, तो हमारे जीवन और समाज की अनेक समस्याओं का एक समुचित हल निकाला जा सकता है। साथ ही मानव सभ्यता सकारात्मक सुधारों के साथ एक सही दिशा में अग्रसर हो सकेगी।

 

 

मीता गुप्ता

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