विविधता में एकता-हिंद की
विशेषता
भारतीय संस्कृति
में विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक तत्वों का एक अनुपम समन्वय देखने को मिलता है।
ये विविधताएं भारतीय समाज व संस्कृति में चार चाँद लगाती है। वास्तव में भारतीय
संस्कृति में दूसरों के सांस्कृतिक तत्वों को आत्मसात करने और अपने अंदर उनको
उपयुक्त स्थान प्रदान करने की अद्भुत शक्ति है। इसी सौंदर्य को देखकर ही अनेक
विदेशियों ने भारत में प्रवेश किया। इनकी संस्कृति एक-दूसरे से काफी भिन्न होने के
बावजूद भी भारत ने इनको ग्रहण किया और उसे अपने साथ मिला लिया। इसी प्रकार समय की मांग
को देखते हुए भारत ने विभिन्न सांस्कृतियों के विभिन्न तत्वों को आत्मसात करके
अपनी संपन्नता को बढ़ाया। भारत ने ग्रहण किए जा सकने वाले सभी तत्वों को ग्रहण
किया। इन विविधताओं को निम्न प्रकार प्रस्तुत किया जा सकता हैं -
1. भौगोलिक दशाओं की विविधताएँ- भारत का क्षेत्रफल काफी बड़ा है। अतः
यहाँ भौगोलिक विविधताओं का पाया जाना स्वाभाविक है। भारत में यदि एक ओर बर्फ़ से
ढकी हिमालय पर्वत की चोटियां हैं, तो दूसरी ओर लहराता समुद्र और खाड़ियां भी हैं। भारत में यदि एक और
राजस्थान का शुष्क मरुस्थल है, तो
दूसरी ओर गंगा का वह मैदान है, जहाँ
मानव-जीवन के असंख्य दीप नित्य जल रहे हैं। यहाँ यदि एक ओर सतत प्रवाहमान गंगा
विद्यमान है, तो
दूसरी ओर दक्षिण की कुछ ऐसी नदियां भी हैं, जिन्हें
केवल वर्षा से ही जल-प्राप्त होता है। यहाँ पर न केवल पहाड़ों व नदियों में
विविधताएं पाई जाती हैं, बल्कि यहाँ विभिन्न प्रकार की मिट्टी भी पाई जाती है। जैसे- काली
मिट्टी, दोमट मिट्टी एवं कहारी मिट्टी आदि ।
2. जलवायु की विविधताएँ-भारत की जलवायु में भी विविधताएं पाई जाती हैं।
यहाँ उष्ण, शीतोष्ण और शीत तीनों प्रकार की जलवायु
पाई जाती है। यहां यदि एक स्थान पर शरीर कंपकपाने वाली सर्दी पड़ती है, तो दूसरे स्थान पर भीषण गर्मी भी
पड़ती है। कोंकण एवं करोमंडल तट पर नमी व गर्मी दोनों है। यहाँ यदि एक ओर दक्षिण
के शुष्क पथरीले पठार की सूखी जलवायु है, तो दूसरी ओर बंगाल की मालाबार की आर्द्र
जलवायु और मालवा की शीतोष्ण जलवायु भी है। यहाँ एक ओर असम, बंगाल व चेरापूंजी में अधिक वर्षा होती है, वहीं दूसरी ओर राजस्थान व पंजाब के दक्षिणी
भाग में बहुत कम वर्षा होती है।
3. प्रजातीय भिन्नताएं- भारत देश में अनेक प्रजातियां निवास
करती हैं। यहाँ पर नाटे कद वाले नीग्रिटो प्रजाति के लोग और लंबे कद वाले नीर्डक
प्रजाति के लोग रहते हैं। यहाँ पर मंगोल एवं प्रोटो-आष्ट्रोलॉयड प्रजाति के लोग भी
रहते हैं। जहाँ एक ओर चौड़े सिर वाले आल्पाइन प्रजाति के लोग भी रहते हैं। इस
प्रकार जहाँ विभिन्न प्रजातियां निवास करती हैं।
4. भाषा की भिन्नताएँ- हमारे देश में लगभग 1662 मातृभाषाएँ
प्रचलित हैं, जिन्हें 826 भाषाओं के अंतर्गत लाया जा
सकता है। इनमें 103 भाषाएँ ऐसी हैं, जो भारतीय नहीं है। हिंदी भाषा को बोलने वालों
की संख्या सर्वाधिक है। इसके बाद क्रमशः तेलुगू व बंगला भाषाओं का स्थान है। इसके
अतिरिक्त यहाँ अनेक भाषाएँ प्रचलित हैं-गुजराती, मराठी, तमिल, उर्दू, कन्नड, मलयालम, बिहारी, राजस्थानी, असमी, पंजाबी, संथाली, उडीसा, काश्मीरी, सिंधी आदि। यहाँ संस्कृत भाषा को बोलने वालों
की संख्या काफी कम है। उन भाषाओं को चार अलग-अलग भाषा-परिवारों से संबंध किया जा
सकता है, जो
कि निम्नलिखित हैं- आर्यन,
आगीइन, द्रविडियन एवं चीनी तिब्बती।
5. धर्म की विविधताएँ-हमारे देश में धर्मों में भी विविधताएँ पाई
जाती है। यहाँ पर . अनेको धर्म पाये जाते हैं हिंदू धर्म, जैन धर्म, बौद्ध
धर्म, सिक्ख धर्म, इसाई धर्म एवं इस्लाम धर्म आदि। यहाँ पर केवल हिंदू
धर्म के विविध संप्रदाय व मत संपूर्ण देश में फैले हुए हैं जैसे - वैदिक धर्म, सनातन धर्म, पौराणिक
धर्म, शैव धर्म, शाक्य धर्म, वैष्णव
धर्म, राजा वल्लभ सम्प्रदाय, आर्यसभाजी, ब्रह्मसमाजी
एवं नानकपंथी आदि। इनमें से कुछ धर्म, साकार
ईश्वर की तथा कुछ निराकार ईश्वर की पूजा करते हैं। किसी में भक्ति मार्ग की
प्रधानता है तो किसी में ज्ञान मार्ग की तथा कोई अहिंसा का पुजारी है तो कोई बलि
और कोई यज्ञ पर बल देता है।
भारतीय संस्कृति की
विविधताओं में मौलिक अखंड एकता
भारत की उपरोक्त विविधताओं की अध्ययन करने के
पश्चात् निष्कर्ष रूप में यह नहीं कहा जा सकता है कि भारत विविधताओं का विशाल देश
है। यद्यपि भारत में विभिन्न जातियां निवास करती हैं, जिनकी अपनी भाषा, रहन-सहन, रीति-रिवाज, धर्म तथा आदर्श एक-दूसरे से भिन्न हैं। लेकिन
भारतीय समाज व जन जीवन का गहरा अध्ययन करने पर इस बात का पता चलता है कि इन
विविधताओं के पीछे आधारभूत अखंड मौलिक एकता भी भारतीय समाज में संस्कृति की अपनी
एक विशिष्ट विशेषता है। इस निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है -
1. भौगोलिक एकता-भौगोलिक दृष्टि से भारत को कई भागों में विभक्त किया जा सकता है। इस
विशाल देश के अंदर न तो ऐसे पर्वत है, और
न ही ऐसी नदियां व वन है,
जिनको पार न किया जा सकता है। इस
प्रकार भारत एक संपूर्ण भौगोलिक ईकाई है। इसके साथ ही उत्तर में हिमालय की विशाल
पर्वतमाला तथा दक्षिण समुद्र ने भारत में एक विशेष प्रकार की ऋतु पद्धति बना दी
है। जो जल भाप बनकर ऊपर उठता है यह बर्फ की चोटियों में जम जाता है, फिर गर्मी पाकर यही बर्फ पानी के रूप में
नदियों और समुद्र में बहता है। सनातन काल से हिमालय और समुद्र में बहता है। सनातन
काल से हिमालय और समुद्र के मध्य आदान प्रदान करने का क्रम निरंतर रूप से चल रहा
है। यहाँ एक निश्चित क्रम के अनुसार ऋतुएँ आती जाती है। इस प्रकार स्पष्ट रूप से
कहा जा सकता है कि भारत में पूर्ण भौगोलिक एकता विद्यमान है।
2. धार्मिक एकता-भारत की एकता और अखंडता भारतीयों के धार्मिक विश्वासों और कृत्यों
में स्पष्ट रूप से देखने को मिलती है। वैसे तो यहां पर अनेक धर्म व सम्प्रदाय है, किंतु गहराई से देखने पर यह पता चलता है कि वे
सभी समान दार्शनिक व नैतिक सिद्धांतों पर आधारित है। भारत की सात पवित्र नदियां
एवं पर्वत भारत के विभिन्न भागों में स्थित है, जिनके
प्रति देश के प्रत्येक भाग के निवासी समान रूप से श्रद्धा व आदर भाव रखते है। इतना
ही नहीं राम, कृष्ण, हनुमान, शिव एवं माँ दुर्गा का गुणगान संपूर्ण
भारत में किया जाता है। इसी प्रकार चारों दिशाओं के चार धाम-उत्तर में बद्रीनाथ, दक्षिण में रामेश्वरम, पूर्व में जगन्नाथपुरी और पश्चिम में द्वारिका
भारत में धार्मिक एकता और अखंडता के प्रमाण है। इसी प्रकार गाय को सभी हिन्दु
पवित्र मानकर पूजते है। इस प्रकार भारतीयों के समक्ष भारत की एकता एवं अखंडता की
कल्पना सदैव मूर्तिमान रही है।
3. सांस्कृतिक एकता-भारत में प्राचीन काल से ही सांस्कृतिक एकता
विद्यमान रही है। विभिन्न जातियों व धर्मावलंबियों के होने के बावजूद उनकी
संस्कृति भारतीय संस्कृति का एक अंग बनकर रह गयी है। संपूर्ण भारत में सामाजिक और
सांस्कृतिक जीवन का मौलिक आधार एक सा है। इस संबंध में प्रो. हुमायूँ कबीर ने लिखा
है कि भारतीय संस्कृति की कहानी, एकता
और समाधानों का समन्वय है तथा प्राचीन परम्पराओं और नवीन मानों के पूर्ण संयोग के
उन्नति की कहानी है। यह प्राचीनकाल में रही है और जब तक यह विश्व रहेगा तब तक सदैव
रहेगी। दूसरी संस्कृतियां नष्ट हो गयी पर भारतीय संस्कृति व इसकी एकता अमर है।
4. सामाजिक एकता-भारत के विभिन्न भागों में सामाजिक जीवन में भी संतुलन पाया जाता है।
सभी स्थानों पर संयुक्त प्रथा का प्रचलन है। जाति प्रथा ने किसी न किसी रूप में
भारत के सभी निवासियों को प्रभावित किया है। संपूर्ण भारत के लगभग सभी स्थानों में
दीपावली, होली, रक्षाबन्धन व दशहरा आदि त्योहारों को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
इसी प्रकार संपूर्ण देश में जन्म-मरण के संस्कारों व विधियों, विवाह प्रणालियों, शिष्टाचार मेलों, उत्सवों, सामाजिक रूढ़ियों एवं परंपराओं में भी
पर्याप्त समानता देखने को मिलती है।
5. राजनीतिक एकता-भारत में राजनीतिक दृष्टि से भी सदैव एकता रही
है। यद्यपि भारत में अनेकों राज्य विद्यमान रहे है, किंतु भारत के सभी महान सम्राटों का उद्देश्य संपूर्ण भारत पर एकपत्र
साम्राज्य स्थापित करता रहा है, जिसके
लिए विभिन्न प्रकार के यज्ञ किये जाते रहे है। प्राचीन ग्रंथों में इस प्रकार के
अनेक राजाओं की गाथाओं का वर्णन है कि उन्होंने पूर्व से पश्चिम तक तथा उत्तर से
दक्षिण तक भारत में अपना साम्राज्य स्थापित किया और यह व्यक्त किया कि भारत का
विस्तृत भूखंड राजनीतिक दृष्टि से वास्तव में एक है।
6. भाषा की एकता-भारत में विभिन्न प्रकार की भाषाएँ प्रचलित अवश्य हैं किंतु वे सभी
एक ही सांचे में ढली हुई है। सभी भाषाओं पर संस्कृत भाषा का प्रभाव देखने को मिलता
है तथा अधिकांश भाषाओं की वर्णमाला एक है। फलस्वरूप भारत की प्रायः सभी भाषाएँ
बहुत अर्थों में समान बन गयी है। ईसा से पूर्व तृतीय शताब्दी में इस विशाल देश की
एक ही राष्ट्रभाषा प्राकृत भाषा थी, जो
महामान्य सम्राट अशोक का संदेश उसकी प्रजा के निम्नस्थ श्रेणी के व्यक्ति द्वार तक
ले जाने में भी समर्थ हुई। कुछ शताब्दियों के पश्चात् संस्कृत नामक एक अन्य भाषा
ने इस महाद्वीप के एक कोने में अपना स्थान बना लिया। इसी के द्वारा समस्त धर्मों
का प्रचार हुआ। संस्कृत में ग्रन्थ आज भी रुचिपूर्ण संपूर्ण भारत में पढ़े जाते
है। संपूर्ण देश के समाज को एक सूत्र में पिरोने का कार्य पहले प्राकृत व संस्कृत
भाषा नें, फिर अंग्रेजी और बाद में हिन्दी द्वारा
किया जा रहा है। भाषा की एकता की इस निरंतरता को कदापि खण्डित नहीं किया जा सकता
है।
7. भारत के निवासियों की एकता-यद्यपि भारत में अनेक जातियां व प्रजातियां
निवास करती है। इनमें कुछ बाहरी प्रजातियां भी हैं, किंतु ये आज हिन्दुओं में इतना मिलजुल चुकी है कि उनका पृथक अस्तित्व
लगभग समाप्त हो चुका है। इसके अतिरिक्त बहुसंख्यक इसाई व मुसलमान, जो आज भारत के नागरिक हैं, वास्तव में मूलतः हिन्दु ही हैं, केवल धर्म परिवर्तन के द्वारा वे इसाई या
मुसलमान बन गये है। धर्म परिवर्तन कर लेने पर हृदय परिवर्तन नहीं होता, यही कारण है कि हिन्दु, मुसलमान व इसाई में काफी समानता पाई जाती है।
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत के निवासियों की एकता में और भी अधिक वृद्धि
हुई, क्योंकि वे सभी आज धर्म निरपेक्ष भारत
संघ के नागरिक है और उन्हें सभी क्षेत्रों में समान अधिकार प्राप्त है।
8. कला की एकता-भारतीय जीवन में कला की एकता भी उल्लेखनीय विषय है चित्रकला, मूर्तिकला, नृत्य
एवं संगीत आदि के क्षेत्रों में हमें काफी समानता देखने को मिलती है। इन सभी
क्षेत्रों में देश की विभिन्न कलाओं का एक अपूर्ण मिलन हुआ। इस मिलन का आभास देश
के विभिन्न भागों में बने मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारों एवं गिरिजाघरों में होता है। संपूर्ण
भारत वर्ष में पाश्चात्य धुनो का भी विस्तार है। इसी प्रकार भारत नाट्यम, कत्थक एवं मणिपुरी आदि नृत्यों से भारत के सभी
भागों में लोग परिचित है। इस प्रकार यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि कला के
क्षेत्र में भी भारत में अखंड एकता है।
अंत में श्री गोपाल सिंह नेपाली के शब्दों में-
लो गंगा-यमुना-सरस्वती या लो
मंदिर-मस्जिद-गिरजा
ब्रह्मा-विष्णु-महेश भजो या
जीवन-मरण-मोक्ष की चर्चा
सबका यहीं त्रिवेणी-संगम, ज्ञान गहनतम, कला रसीली
मेरा देश बड़ा गर्वीला, रीति-रसम-ऋतु-रंग-रंगीली ॥
मीता गुप्ता
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