Wednesday, 12 October 2022

मंच पर बोलने से क्यों डरें?

 

मंच पर बोलने से क्यों डरें?


 

"डर अपरिहार्य है, मुझे इसे स्वीकार करना होगा, लेकिन मैं इसे मुझे पंगु बनाने की अनुमति नहीं दे सकता।" - इसाबेल अलेंदे

मंच का भय बोलने से पहले घबराहट की स्थिति है। यहां तक ​​कि सबसे अनुभवी वक्ताओं और कलाकारों को भी मंचीय भय या घबराहट का अनुभव होता है। आपके लिए यह समझना ज़रूरी है कि मंच का भय  क्या है, ताकि आप इसे पूरी तरह से दूर कर सकें। मंच का डर या प्रदर्शन की चिंता एक स्थायी भय है, जो किसी व्यक्ति में तब पैदा होता है जब उसे दर्शकों के सामने प्रदर्शन करने की आवश्यकता होती है।

मंच के डर को आमतौर पर एक फोबिया के रूप में नहीं माना जाता है, बावजूद इसके कि यह लगभग सभी प्रकार के कलाकारों को अपंग करने की क्षमता रखता है। आधिकारिक तौर पर, हालांकि, इसे ग्लोसोफोबिया, या सार्वजनिक बोलने के डर के सबसेट के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है, जो स्वयं एक प्रकार का सामाजिक भय है। यह भय अचानक या धीरे-धीरे उत्पन्न हो सकता है और हल्का या गंभीर हो सकता है।

मंच का भय किसे होता है?

स्कूल में बच्चों से लेकर पेशेवर अभिनेताओं तक, जो कोई भी सार्वजनिक मंच पर प्रदर्शन करता है, उसे मंच पर डर का खतरा होता है। यह जानकर आपको आश्चर्य होगा कि महात्मा गाँधी, वारेन बुफे, थॉमस जेफ़र्सन जैसी महान विभूतियों को भी इस डर को जीतने के लिए हमारी ही तरह संघर्ष करना पड़ा था। महान लोग कभी अपनी महानता के साथ जन्म नहीं लेते। उनके कार्य उन्हें महान बनाते हैं। जब भी उन्हें किसी कठिनाई का सामना करना पड़ता है, तो वे अपनी मेहनत, मजबूत इरादे और लगन से उसका जमकर मुकाबला करते हैं।

मंच के डर के बावजूद लोग प्रदर्शन करने के लिए मजबूर क्यों महसूस करते हैं? उत्तर सीधा है। प्रदर्शन खून में है।" सब किसी न किसी तरह से अपने आपको प्रदर्शित करते हैं,यह एक निर्बाध चलने वाली स्वाभाविक प्रक्रिया है,हम चाह कर भी इससे बच नहीं सकते| मंच का डर ज्यादातर फोबिया की तुलना में कुछ अलग तरह से प्रकट होता है। फोबिया आमतौर पर प्रदर्शन से हफ्तों या महीनों पहले शुरू होता है, जो अक्सर निम्न-स्तर की सामान्यीकृत चिंता के रूप में प्रकट होता है। यदि आपकी यह स्थिति है, तो आप अति-अलर्ट, उछल-कूद और ऊर्जा से भरपूर महसूस करने लग सकते हैं। जैसे-जैसे प्रदर्शन की तारीख नज़दीक आती है, लक्षण बिगड़ते जाते हैं। मंच पर जाने से कुछ घंटे पहले, आप गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याओं जैसे उल्टी या दस्त, चिड़चिड़ा मिजाज़, कंपकंपी और दिल की धड़कन सहित अनेक पारंपरिक फोबिया लक्षणों का अनुभव कर सकते हैं।

मंच का भय  का क्या कारण है?

जो कोई भी दूसरों के सामने परफॉर्म करता है, उसे मंच पर डर लगने का खतरा होता है। चाहे आप एक व्यावसायिक रणनीति बैठक का नेतृत्व कर रहे हों या किसी सेवानिवृत्ति पार्टी में विदाई भाषण दे रहे हों, दबाव भारी हो सकता है। मंच का डर अक्सर चीज़ों को पूरी तरह से करने की हमारी अपनी उम्मीदों में निहित होता है। मंच डर के कुछ कारण हैं:दूसरों की राय पर बहुत अधिक ध्यान देना, अस्वीकृति या असफलता का डर, स्वयं से अवास्तविक अपेक्षाएं रखना,किसी के कौशल और क्षमताओं को कम आंकना,बाहरी कारक जैसे दर्शकों का आकार, प्रदर्शन का महत्व, आदि-आदि|

क्या मंच के डर को रोका जा सकता है?

मंच के डर से निपटने के लिए मुस्कराते हुए अभिवादन करें और अभिवादन को स्वीकार करें| यह आपके विनम्र होने का प्रतीक भी है| पहले कदम के रूप में, अपने आप को याद दिलाएं कि जिस विषय के बारे में आप भावुक हैं, वह श्रोताओं के लिए सबसे अधिक रुचिकर है और वे सुन रहे हैं, आपके और आपके बोलने के कौशल के बारे में नहीं सोच रहे हैं। यहां 10 "त्वरित सुधार" दिए गए हैं, जिनका उपयोग आप और भी अधिक व्यावहारिक दृष्टिकोणों के लिए कर सकते हैं, जब मंच पर डर की बात आती है।

1.   अपना पोस्चर सही रखें- अपने आप को उनके स्थान पर रखें और सोचें कि वे इस प्रस्तुति से क्या प्राप्त करने की उम्मीद कर रहे हैं। आपका पोसचर या बॉडी लैंग्वेज वह सब कह जाती है, जो आप कहने के बारे में सोचते हैं|

2.   प्राणायाम करें- अपने सभी गैजेट्स और डिजिटल सहायकों के साथ आधुनिक जीवन और सामाजिक चिंताओं के लिए क्रियाएं-प्रतिक्रियाएं श्वसन चक्र को बढ़ा देती है। इनसे मुकाबला करने के लिए सांस लेना सीखें। हां, यह आपको शांत रहने में मदद करेगा और आपकी हृदय गति को भी सामान्य रखेगा।

3.   उस नकारात्मक बात को सकारात्मक सोच में बदल दें-नकारात्मकता किसी के लिए भी श्रेयस्कर नहीं होती| इससे द्वेष,कपट,मानसिक हिंसा और दोषारोपण को स्थान मिलता है, तो क्यों न सकारात्मक सोच का उपयोग करें? उस नकारात्मक मानसिकता को पलट कर आत्म-विनाशकारी बयानों को पलट दें। एक सकारात्मक राह बनाएं, और अपने संभाषण को भी सकारात्मक मोड़ दें| जिसमें आप रह सकें।

4.   आपका आत्मविश्वास दिखना चाहिए-बॉडी लैंग्वेज मायने रखती है कि आप कितने कॉन्फिडेंट दिखते हैं! इसे आज़माएं-अपने कंधों को थोड़ा सा झुकाएं; अब सीधे खड़े हो जाएं, पीठ को सीधा रखें और अपने कंधों को अपनी प्राकृतिक स्थिति में आने दें।

5.   डिस्ट्रैक्ट करने वाले विचारों को जाने दें-जब दर्शकों तक पहुंचने और उन्हें आकर्षित करने की बात आती है तो फ़ोकस आपके सबसे महत्वपूर्ण टूल में से एक है। लेकिन आप इंसान हैं, जिसका मतलब है कि आप ऑफ-द-ग्रिड विचारों को हावी न होने दें या उनका विरोध करना सीखें, न कि उन्हें नोटिस करें। कोई ऐसी परिस्थिति बनने लगे, तो तुरंत उसे अपने कंट्रोल में ले लें और अपने संभाषण पर वापस आएं, बिना शेक हुए।

6.   अपने दर्शकों का मुस्कान के साथ अभिवादन करें- दर्शकों के साथ संबंध बनाने के सबसे प्रभावी तरीकों में से एक यह है कि आप अपने दर्शकों का मुस्कान के साथ अभिवादन करें। अपने दर्शकों को याद रखने वाला अभिवादन देकर मज़बूत शुरुआत करें, कहा भी गया है- वेल बिगन इज़ हाफ़ डन। आरंभिक क्षणों में खुद को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करें, श्रोताओं को बताएं कि आप वास्तव में उनके पास आना या उनसे बात करना आप कितना पसंद करते हैं।

7.   बात करें, लेक्चर न दें- आपको स्वामी विवेकानंद जी का 1893 में शिकागो में धर्म संसद में दिया भाषण याद होगा। उनके मेरे अमरीकी भाइयों और बहनों कहते ही सबने खड़े होकर दो मिनट तक तालियां बजाई थीं, ऐसी क्या बात कही थी स्वामी विवेकानंद जी ने? जी हां, उन्हों बात ही तो की थी, कोई लेक्चर नहीं दिया था। अपने अनुभवों को शेयर करें, सीधी साधारण भाषा, जो दर्शकों/श्रोताओं को आसानी से समझ आए, का प्रयोग करें, अपनी बड़ाई न झाड़ें। आजकल सार्वजनिक भाषण अधिक संवादात्मक हो रहे हैं। तो संवाद करें, बीच-बीच में दर्शकों/श्रोताओं के रुख को भी समझते चलें। कुछ अटपटा या अनुपयोगी लगे, तो उसे वहीं छोड़ आगे बढ़ें।

8.   विज़ुअलाइज़ेशन का उपयोग करें- दूसरे शब्दों में, एक सार्थक प्रस्तुतीकरण बनाएं। डिजिटलाइज़ेशन का भरपूर फ़ायदा उठाएं। पीपीटी आपको ट्रैक पर रखती है और दर्शकों/श्रोताओं को भी बांधती है। वीडियो का प्रस्तुतीकरण आपके लिए ब्रीदर का काम करेगा और बहुत प्रभावशाली भी रहेगा।

9.   स्पॉटलाइट को चारों ओर घुमाएं-यह भी एक विज़ुअलाइज़ेशन तकनीक है। सार्वजनिक रूप से बोलना, जब आप स्पॉटलाइट में अकेले खड़े हैं, कुछ असुरक्षित कर सकता है। सारी आंखें आप ही को देख रही हैं, यह एहसास कभी-कभी शिथिल करने लगता है। तो ऐसे में स्पॉटलाइट को चारों ओर घुमाएं, यानी प्रश्न पूछें, कोई ब्रेन-स्टॉर्मिंग प्रश्न....या कोई एक्टिविटी आपका सहारा बन सकती है। दर्शकों/श्रोताओं को इंवॉल्व करना एक अच्छी रणनीति है।

10. हंसें- भाषण को रोचक बनाने के लिए प्रसंगों में हास्य का पुट परम आवश्यक है। हँसी चिकित्सीय हो सकती है और घबराहट से निपटने में आपकी मदद कर सकती है। यह आपका ध्यान केंद्रित करती है और आपको मन के सकारात्मक फ्रेम में ले जाती है। यदि आपसे अपने भाषण या प्रस्तुति में कोई गलती हो, तो आप स्वयं पर हंस सकते हैं। लेकिन, ध्यान रहे कि बहुत सारी गलतियां न हों, जिससे कि आप उपहास के पात्र बन जाएँ। अपनी त्रुटियों को स्वीकार कर आगे बढ़ जाएं 

11. समय की कद्र करें-आयोजन स्थल पर समय से पहुंचें। जब आप सेटिंग्स, जैसे माइक, ओएचपी, कंप्यूटर का कनेक्शन आदि से परिचित होंगे, तो आप अधिक कॉन्फ़िडेंट महसूस करेंगे। इसके अलावा, जल्दी पहुंचने पर आपको तैयारी और स्टेज की संरचना महसूस करने में मदद मिलेगी।

12. एक-एक दर्शक पर ध्यान दें-यह आमतौर पर इस्तेमाल की जाने वाली रणनीति है, जिसमें अजनबियों से भरे कमरे में उस व्यक्ति की पहचान करें, जो सिर हिला रहा है या मुस्करा रहा है-इसका मतलब है कि वह आपकी बात ध्यान से सुन रहा है। उसका नाम पूछें और उसी के अनुसार प्रतिक्रिया दें। यह अभ्यास आत्मविश्वास बढ़ाने का काम करता है!

13. ज्ञान ही शक्ति है- जिस विषय पर आप बोलने जा रहे हैं, उसको भली-भांति जान लें। यह आपके अंदर बसने वाले डर को समाप्त कर देगा। अंदर के खोखलेपन को छुपाते हुए, आप बाहर के भय से मुक्त नहीं हो सकते। अपने श्रोताओं को मूर्ख बनाने का प्रयास न करें। अपनी प्रस्तुति या भाषण को गहराई से जान-समझ लें, जिससे आप अपने श्रोताओं के समय को सम्मान दे सकें।    

14. आनंद लें-मंच पर व्यतीत समय का आनंद उठाएं। मंच से अपना भाषण समाप्त करके भागने की जल्दी में न रहें। यह सोचें कि आपके श्रोता आपके ज्ञान से कैसे अधिकाधिक लाभान्वित हो सकते हैं। फ़ीडबैक आपके अगले प्रस्तुतीकरण में सुधार लाएगा। अपने अंदर उठने वाली घबराहट को विदाई दे दें, आपकी सकारात्मक सोच आपके श्रोताओं को निश्चय ही प्रभावित करेगी।

15. वर्तमान में रहें-बहुधा, या तो हम भूतकाल में या भविष्य में जीते हैं। जहां हमारा शरीर होता है, कई बार हमारे मन में उठने वाले विचार वहां नहीं होते। हमारे मन में चल रही चिंताएं या योजनाऐं वर्तमान से परे होती हैं | इससे हमारी चिंताएं बढ़ जाती हैं। इससे बचें। पुरानी यादें और विचार ही हमको परेशान करती हैं,  उनको छोड़ने से ही हमारा मन साफ़ होता है और हम दृढ़ता से अपनी बात कह पाते हैं। ध्यान-साधना भी हमको वर्तमान में रहने में सहायक होती है, हमारी घबराहट को शांत करती है और आवाज़ में हो रहे कंपन को दूर करती है। 

16. नियमित रूप से योगासन, ध्यान और प्राणायाम का अभ्यास-यह सभी आपकी सफलता में सहायक होंगे। योगासन से आपको विश्वासपूर्वक प्रस्तुति करने की सही मुद्रा सीखने को मिलेगी। यह आपको शरीर और मन का संतुलन भी प्रदान करेगी। प्राणायाम आपकी वाणी का आरोह-अवरोह को स्थिरता देने और नियंत्रण करने में सहायक होगा। ध्यान करने से आपका मन तनाव मुक्त होगा और आपको केंद्रित रखने में सहायक होगा।

17. जब तक आप आत्मविश्वासी महसूस न करें तब तक कई बार पूर्वाभ्यास करें। यदि आवश्यक हो, तो एक दर्पण का प्रयोग करें या अपने टुकड़े को किसी मित्र को जोर से पढ़ें जो रचनात्मक प्रतिक्रिया प्रदान कर सके। अपना ऑडियो या वीडियो रिकॉर्ड करके स्वयं उसका विश्लेषण करें|

18. पहले से सफलता की कल्पना करना एक अच्छा विचार है। क्या गलत हो सकता है, इस पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, सकारात्मक परिणामों पर ध्यान दें।

अपनी प्रस्तुति देने के बाद जश्न मनाना न भूलें। सकारात्मक सुदृढीकरण मंच के भय के चक्र को तोड़ने का एक अच्छा तरीका है। जीवन भर "मंच-भय से कैसे निपटें" सोचने से बेहतर है कि हम आगे बढ़कर जब जो करना है, वो करें।

 

 

मीता गुप्ता

 

 

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