Wednesday, 12 October 2022

अफ़सोस

 

 

अफ़सो

(लघु कहानी)






वो जब मेले में पहुंचा, तो उसकी आंखों  के सामने हजारों रंग-बिरंगी दुकाने सजी थीं। दुनिया भर की ज़रूरत  का सामान उस मेले में बिकने को तैयार था। सभी दुकानदार अपनी चीज़ों  के नाम ले-लेकर उनके गुणों को बखान रहे थे। अभी उसने आधा मेला भी ठीक से नहीं देखा था और कुछ ख़रीदा भी नहीं था। दरअसल वो  चंद सिक्के लेकर ही आया था और वो उन्हें यूँ ही किसी बेकार सी चीज़ में खर्च करके खत्म भी नहीं करना चाहता था। सो उसने सोचा उसके पास सिक्कों की कमी है, तो क्या हुआ, वक्त की तो नहीं।
इसलिए पहले पूरा मेला घूमा जाए और फिर खूब सोच विचार कर इन थोड़े से पैसों को समझदारी से खर्च किया जाए ।
ऐसे मौकों पे अक्सर उसके दिल और दिमाग आपस में झगड़ पड़ते थे| उसका दिल उसे  अक्सर परेशानी में डालता था और दिमाग उसे हमेशा उन परेशानियों से निकाल लेता था। आज जब वो मेले में आया तो दिल और दिमाग दोनों को उसने चुप करा दिया था, बस आज वो अपनी आंखों  को खुला रखे हुआ था।

सभी सजी -धजी दुकानों में रखी  हुई चीज़ें उसे आकर्षित कर रही थी। वो मंत्र-मुग्ध सा उन्हें देखे जाता और मुस्काते हुए आगे बढ़ जाता। अभी दो कदम चला ही था कि उसे
रंगबिरंगी सजी- धजी दुकानों के बीच में सड़क पे एक खिलौने बेचने वाली  स्त्री दिखाई दी। जो अपनी बांस की टोकरी में कुछ मिट्टी के खिलौने बेच रही थी।
उन खिलौनो के बीच उसे एक बहुत ही सुंदर गुड़िया दिखाई दी। उसकी बनावट और रंग इतने सुंदर  थे कि वो रुक गया, बहुत देर तक उस मिट्टी की गुड़िया को निहारता रहा। उस मिट्टी की गुड़िया  के होठों पे अजीब सी रहस्यमयी मुस्कान थी और आंखों  में एक विशेष आकर्षण था, उसकी आंखें  बोलती थी  या लब...ये समझ नहीं आ रहा था, लेकिन उसे न जाने क्यों ऐसा लगा कि जैसे उसे अभी-अभी उस गुड़िया ने उसे आवाज़ दी हो। और वो रुक गया था ख़ामोशी से ..।
उसे वहां रुका देख खिलौने वाली मुस्काई और बोलीकुछ खरीदना है बाबू?”
मैंने अपनी ज़िंदगी में ऐसी सुंदर गुड़िया कभी नहीं देखी। ये मुझे चाहिए ही चाहिए|”
(उसके दिल ने पहली बार उसे सलाह दी, हाँ तुम इसे ले लो,अभी के अभी )
तभी दिमाग ने उसे चेताया सुनो ..”पागल मत बनो”, अभी तो मेला शुरू हुआ है ,अभी से पैसे खर्च कर दोगे? आगे इससे बेहतर दुकाने होगीं और इससे लाख गुना बेहतर खिलौने भी, अभी इसे खरीद कर कहाँ बोझ लिए फिरते रहोगे?  मेले का मज़ा भी नहीं ले सकोगे.. न झूलों का, न खाने-पीने का”...दिमाग ने अपने तर्क दिए|

दिल ने आखिरी बार बोला “और अगर पूरा मेला घूमने के बाद भी ऐसी गुड़िया नहीं मिली तो? और ऐसा भी हो सकता है, इसे कोई और खरीद ले जाए ”
उसने दिल-दिमाग दोनों को चुप कराया और उस खिलौने वाली से बोला
हाँमुझे ये गुड़िया चाहिए|” उसने उंगली से छूकर उस गुडिया पे अपना हक़ जताया|” लेकिन मैं अभी इसे नहीं ले जा सकता, लौट कर आकर इसे ले जाउंगा। मैं पहले मेला घूमना चाहता हूँ” लडके ने अपनी बात स्पष्ट की और वो आगे बढ़ गया| लेकिन चार कदम चलकर वो फिर वापस आया और सशंकित होते हुए बोला तुम इसे किसी को मत बेचना, मैं वापस आकर इसे ले जाउंगा।  और फिर उस गुड़िया  को निहारने लगा..अब उस स्त्री ने मुस्करा कर कहा “बाबू, इतनी पसंद है, तो अभी ले जाओ ,क्या पता वापस आओ, तब तक मैं न मिलूं तुम्हें न ये गुड़िया... और बहुत से ग्राहक ऐसा बोल कर जाते है फिर आते भी नहीं|”

(खिलौनेवाली ने अपना अनुभव बताया )  .
मैं आउंगा”

उसने कुछ् ऐसी सच्चाई के साथ कहा कि  वो खिलौने वाली उसे बड़ी देर तक देखती रही। लड़का चला गया|
शाम हो गई , मेला समाप्त होने का समय आ गया| बहुत से छोटे दुकानदार अपनी दुकान समेट कर घर चल दिए और कई  बड़े दुकानदार अपनी दुकान समेटने की तैयारी करने लगे।
उस  खिलौनेवाली के अब तक सभी खिलौने बिक चुके थे।  बस उसने उस गुड़िया को बचाकर रखा था, उस लडके के वास्ते| उस लड़के की आंखों की सच्चाई उसे मेला छोड़कर जाने नहीं दे रही थी और उसने कुछ देर ठहर कर उसका इंतज़ार करने के सोची।

उसे लग रहा था कि वो बाद में आया, तो कितना दुखी होगा और मैंने उसकी गुड़िया किसी अन्य ग्राहक को बेची भी नहीं ..लेकिन कब तक इंतज़ार करूँ उसका? उसे अब तक आ जाना चाहिए था। मैं भी क्यों उस बे-परवाह लड़के की बातों में आ गई। उसकी  बात का  क्या मोल, भूल गया होगा वो इस गुड़िया को, उसने ज़रूर  झूले में या खाने पीने में या नौटंकी देखने में  पैसे उड़ा दिए होंगे।” (खिलौनेवाली खुद से बात किए जा रही थी)

बहुत देर होने पर खिलौने वाली के सब्र का बाँध टूटने लगा| उसने भारी मन से टोकरी उठाई| उसकी खाली टोकरी में अब भी वो सुंदर गुड़िया मुस्काती थी। उसने उस मिट्टी की गुड़िया से मन ही मन कहा “कैसी अभागी हो तुम ..तुम्हें  किसी ने नहीं खरीदा.. फिर भी मुस्काती हो?”
इससे बेहतर होता कि मैं तुम्हें किसी और को दे देती, चार पैसे भी मिल जाते|” (उसने अफ़सोस जताया )

तभी मेले में अचानक से भगदड़ मच गई और दौड़ती आती भीड़ में से आते एक  व्यक्ति ने उस खिलौने  वाली को ऐसा धक्का मारा कि उसकी टोकरी हाथ से छूट गई  और वो गुड़िया ज़मीन पे गिरकर टुकड़े-टुकड़े हो गई ।“ओह... ये क्या हो गया”(वो मन ही मन बडबड़ाई) उसने गुड़िया उठाई..उसका सिर धड़ से अलग हो गया था| “ओह!..कमबख्त टूटी भी तो कितनी खूबसूरती से कि अब भी मुस्काती है।”

उसे अपनी मिट्टी  की गुड़िया आज पहली बार सच में सुंदर लगी। उसे अब कुछ –कुछ समझ आने लगा कि क्यों इतने सारे खिलौनों में से उस लड़के की नज़र इस गुड़िया पे ही ठहर गई थी। वास्तव में ये गुड़िया बहुत सुंदर थी, लेकिन उस लडके की किस्मत सुंदर नहीं थी और इस गुड़िया की भी|”( देखो वो अब तक नहीं आया खिलौनेवाली गुस्से से भर उठी )

आ गया मैं”(अचानक आवाज़  आई) कहाँ है मेरी गुड़िया?” टूट गई तुम्हारी गुड़िया!” मैंने बहुत देर तक तुम्हारा इंतज़ार किया। कितने बेपरवाह हो तुम, मैंने पहले ही कहा था, तुमने मेरी एक बात नहीं सुनी।   लेकिन अब सुनो मेरी बात ..जिन चीज़ों पे हम अधिकार समझते हैं उन्हें कभी छोड़कर नहीं जाते। अपनी प्रिय चीज़ों को कभी दूसरों के भरोसे नहीं छोड़ा जाता और जब दिमाग और दिल एक साथ बोलते हों, तो सिर्फ दिल की सुनी जाती है| तुमने अपना ही नहीं मेरा भी नुकसान किया है|”... (खिलौनेवाली अब गुस्से और दुःख से भरकर आगे बढ़ गई  थी )लड़का आज बेहद उदास था।आज पहली बार उसके दिमाग ने उसे दुःख में डाला था। और इस दुःख, इस पीड़ा और  इस अफ़सोस  से उसका दिल उसे निकाल पाने में असमर्थ था।

वो भारी कदमों से चल दिया| उसके हाथ में अब भी चंद सिक्के थे, जिन्हें उसने चाहते हुए भी मेले में  खर्च नहीं किया था।

-मीता गुप्ता



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