इक पल तू रुक,सुन ले रे मन !
इक पल सुनो, प्रकृति
संगीत
गाती है वह, प्रति
पल गीत
स्वर,लय,ताल,भाव,सुवासित
नाद – ब्रह्म, अविरल
उद्विग्न,
इक पल तू रुक,सुन
ले रे मन !
पक्षी गण रचते कलरव धुन
मधुकर गुंजन रुनझुन रुनझुन
झूमें तरुवर, पल्लव
खड़कन
बजाते ताली,ज्यों
होत मगन,
इक पल तू रुक,सुनले
रे मन !
सन सननन सन, बहत
पवन
गरजें,घुमड़ें घिर
श्यामल घन
दामिनी दमके,तड़के
द्युति ध्वनि
प्रकृति रचित है,अनुपम
नर्तन,
इक पल तू रुक,सुनले
रे मन !
गूंजी कोयल की अति मृदु तान
रिमझिम फुहार, वर्षा
का गान
शोभित रंग हरित,खेत-खलिहान
अति मुदित भाव,गाए
मन मगन,
इक पल तू रुक,सुनले
रे मन !
कल कल बहतीं नदियां निर्मल
खर स्वर,झरते
शीतल निर्झर
झीलों पर जल,पल-पल
हलचल
तिरते सतहों पर लहर-कमलन,
इक पल तू रुक,सुनले
रे मन !
नीलांचल, फूटी
स्वर्ण किरण
धरती संग रवि का आलिंगन
ये प्रकृति का है,संगीत
सृजन
आ रे सुन,भौंरों
की गुंजन
इक पल तू रुक,सुनले
रे मन !
हरी-भरी वसुंधरा की निखरन
सुबह छन-छन रोशनी की बिखरन
चहचहाते घोंसलों, मोरों
का नर्तन
ओस के कणों में खुशी की सिमटन
इक पल तू रुक,सुनले
रे मन !
नीले आसमां ने रंग दिया आंगन
बादलों के पास हवा की छुअन
फाग गाए गगन से बूंदों की बरसन
बर्फ़ का गहना पहने पर्वत की चमकन
इक पल तू रुक,सुनले
रे मन !
नभ में अगणित दीप जलाए,
क्षिति में सुंदर साज सजाए,
वन में पल्लव फूल बिछाए,
प्रकृति-प्रिया है ध्यान लगाए,
है अनंत उल्लास-अभिलाष-मिलन ।
इक पल तू रुक,सुनले
रे मन !
इक पल तू रुक,सुनले
रे मन !
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