Wednesday, 29 December 2021

हिंदी ई-टूल्स

 

हिंदी ई-टूल्स



भाषा अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। और मानव जीवन का अभिन्न अंग है। संप्रेषण के द्वारा ही मनुष्य सूचनाओं का आदान प्रदान एवं उन्हें संग्रहित करता है। सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक अथवा राजनीतिक कारणों से विभिन्न मानवी समूहों का आपस में संपर्क बन जाता है। 21वीं शताब्दी में सूचना और संपर्क के क्षेत्र में अद्भुत प्रगति हुई है। सूचना प्रौद्योगिकी क्रांति में ज्ञान के द्वार खोल दिए हैं। बुद्धि एवं भाषा के मिलाप से सूचना प्रौद्योगिकी के सहारे आर्थिक संपन्नता की ओर भारत अग्रसर हो रहा है। इलेक्ट्रॉनिक वाणिज्य के रूप में ई-कॉमर्स और इंटरनेट के द्वारा भेजना ई-मेल द्वारा संभव हुआ है। ऑनलाइन सरकारी कामकाज विषयक ही प्रशासन ई-बैंकिंग द्वारा बैंक व्यवहार ऑनलाइन, शिक्षा सामग्री के लिए ई-एजुकेशन/ ई-लर्निंग आदि माध्यम से सूचना प्रौद्योगिकी का विकास हो रहा है। सूचना प्रौद्योगिकी के बहुआयामी उपयोग के कारण विकास के नए द्वार खुल रहे हैं। भारत में सूचना प्रौद्योगिकी का क्षेत्र तेजी से विकसित हो रहा है। इस क्षेत्र में विभिन्न प्रयोगों का अनुसंधान कर के विकास की गति को बढ़ाया गया है। कोविड काल में इसकी गति और भी तेज़ हो गई।

सूचना प्रौद्योगिकी में सूचना, आंकड़े (डेटा) तथा ज्ञान का आदान-प्रदान मनुष्य जीवन के हर क्षेत्र में फैल गया है। हमारी आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक, व्यावसायिक तथा अन्य बहुत से क्षेत्रों में सूचना प्रौद्योगिकी का विकास दिखाई पड़ता है। सीबीएसई ने ए आई को  कक्षा-10  में छठे अनिवार्य विषय के रूप में लगाने का निर्णय लिया है। इलेक्ट्रॉनिक तथा डिजिटल उपकरणों की सहायता से इस क्षेत्र में निरंतर नई प्रयोग हो रहे हैं। आज उदारतावाद के इस दौर में वैश्विक ग्राम की संकल्पना संचार प्रौद्योगिकी के कारण ही सफल हुई है। इस नए युग में ई-कॉमर्स,-मेडिसन,ई-एजुकेशन,ई-गवर्नेंस,ई-बैंकिंग,ई-शॉपिंग आदि इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों का विकास हो रहा है। सूचना प्रौद्योगिकी आज शक्ति एवं विकास का प्रतीक बन गई है। कंप्यूटर-युग के संचार साधनों में सूचना प्रौद्योगिकी के आगमन से हम सूचना-समाज में प्रवेश कर रहे हैं। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की इस अपूर्व देन से हमारे ज्ञान में वृद्धि हुई है एवं आज इनका सार्थक उपयोग करते हुए उनसे लाभान्वित होने की सभी को आवश्यकता है।

यह विकासित होने वाला नया क्षेत्र है, इसलिए सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आई क्रांति दूसरी औद्योगिक क्रांति के समान महत्वपूर्ण मानी जा रही है। आधुनिक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में इलेक्ट्रॉनिकी का महत्वपूर्ण स्थान है। इसे अंतरिक्ष, संचार, रक्षा, कृषि, विनिर्माण, मनोरंजन, रोज़गार-सृजन तथा राष्ट्रीय प्राथमिकताओं को तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी होती है। यदि राजभाषा हिंदी को सम्मान देते हुए सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जाता है, तो यह जन-जन तक दूरस्थ क्षेत्रों में किए जा रहे विकास कार्यों में भी जनभागीदारी को बढ़ा सकेगी। सूचना प्रौद्योगिकी में हिंदी का उपयोग करके इसको विश्वव्यापी स्तर पर अपनी भूमिका निभाने योग्य भी बनाया जा सकता है और राजभाषा से राष्ट्रभाषा का महत्वपूर्ण सफ़र को पूरा किया जा सकता है। सूचना प्रौद्योगिकी में हिंदी का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि इसमें विस्तार की असीम संभावनाएं हैं और इसे उचित महत्व देकर हम अपनी आस्था को भी सुनिश्चित करते हैं। इसी कड़ी में राजभाषा विभाग गृह मंत्रालय द्वारा भरसक प्रयत्न किए जा रहे हैं, जैसे कि राजभाषा को बढ़ावा देने के लिए बहुत से टूल्स एवं सॉफ्टवेयर राजभाषा विभाग द्वारा विकसित किए गए हैं-

हिंदी में ईटूल्स का प्रयोग-

यूनिकोड को सक्रिय करना-

कंप्यूटर पर हिंदी के प्रयोग के लिए पहली आवश्यकता यूनिकोड को सक्रिय करने की होती है। यूनिकोड एंड कोडिंग को सक्रिय करते ही कंप्यूटर किसी भी भाषा में काम करने के लिए सक्षम हो जाता है।

 

कुंजीपटल/कीबोर्ड के विकल्प-

यूनिकोड को सक्रिय करने के बाद अपनी आवश्यकता के अनुसार कीबोर्ड के विकल्प का चयन कर उसे इंस्टॉल करना होता है। मुख्यतः इसमें तीन विकल्प होते हैं-

1.इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड

2.रेमिंगटन कीबोर्ड

3.फोनेटिक कीबोर्ड

इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड मानक कीबोर्ड है तथा यह सभी ऑपरेटिंग सिस्टम्स- विंडोज, लोनिक्स,बोस,मैकबुक आदि में पहले से ही उपलब्ध है। इसे भारतीय भाषाओं के लिए यूनिवर्सल कीबोर्ड भी कहा जा सकता है। इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड पर किसी एक भारतीय भाषा की टाइपिंग सीख लेने के बाद किसी भी भारतीय भाषा की टाइपिंग की जा सकती है क्योंकि सभी भारतीय भाषाओं के लिए इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड एक समान है। भाषा इंडिया पर इंडिक स्क्रिप्ट ट्यूटर नाम से सॉफ्टवेयर उपलब्ध हैं, जिनकी सहायता से इनस्क्रिप्ट कीबोर्ड लेआउट सीखा जा सकता है। हिंदी इनस्क्रिप्ट टाइपिंग सीखने के लिए टीडीआईएल (Technology Development for Indian Languages ) के हिंदी इनस्क्रिप्ट टाइपिंग ट्यूटर डाउनलोड किया जा सकता है।

हिंदी फॉन्ट में केवल यूनिकोड समर्थित फॉन्ट का ही प्रयोग अधिकृत है। इससे फाइलों के लेन-देन में समस्या नहीं होती है। माइक्रोसॉफ्ट तथा एप्पल के ऑपरेटिंग सिस्टम वाले डिवाइस में पहले से ही यूनिकोड मंगल सहित कई देवनागरी यूनिकोड फोंट उपलब्ध है। अतिरिक्त इसके यूनिकोड समर्थित फोंट आईएलडीसी से डाउनलोड किए जा सकते हैं। कंप्यूटर पर हिंदी के प्रयोग के लिए अन्य अनेक अन्य टूल्स भी उपलब्ध हैं।

फ़ोनेटिक टूल्स-

केवल अंग्रेज़ी अथवा रोमन लिपि में टाइपिंग का ज्ञान होने पर भी हिंदी देवनागरी में टाइप करने के लिए फ़ोनेटिक टूल्स का प्रयोग किया जा सकता है। इसके लिए भी बहुत से विकल्प हैं। माइक्रोसॉफ्ट का टूल डाउनलोड कर सकते हैं( इसके लिए आपके कंप्यूटर में नेट फ्रेमवर्क अर्थात डॉटनेट फिक्स 2.0 से 3.5 इंस्टॉल होना ज़रूरी है)।

गूगल टूल डाउनलोड कर सकते हैं

श्रुतलेखन (स्पीच टू टेक्स्ट टूल)-

इस विधि में प्रयोक्ता (यूज़र) माइक्रोफोन में बोलता है और कंप्यूटर में मौजूद speech-to-text प्रोग्राम उसे प्रोसेस कर टेक्स्ट में बदल कर लिखता है। इस प्रकार कार्य करने वाले सॉफ्टवेयर को श्रुतलेखन सॉफ्टवेयर कहते हैं यह टूल राजभाषा विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध है।

मंत्र राजभाषा-

मंत्र राजभाषा एक मशीन साधित अनुवाद सिस्टम है, जो राजभाषा के प्रशासनिक, वित्तीय, कृषि, लघु उद्योग, सूचना प्रौद्योगिकी, स्वास्थ्य रक्षा, शिक्षा एवं बैंकिंग क्षेत्रों के दस्तावेजों का अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद करता है। यह टूल भी राजभाषा विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध है।

ई महाशब्दकोश-

महाशब्दकोश एक द्विभाषी/द्विआयामी उच्चारण शब्दकोश है। कि महाशब्दकोष की विशेषताएं इस प्रकार हैं-

1. देवनागरी लिपि यूनिकोड फोंट में है।

2.हिंदी अंग्रेजी शब्दों का सही उच्चारण है।

3.स्पष्ट प्रारूप आसान व त्वरित शब्द खोज का तरीका है।

4.अक्षर क्रम में शब्द सूची, सीधा शब्द खोज है।

5.अंग्रेजी/हिंदी अक्षरों द्वारा शब्द खोज की जा सकती है।

6.स्पीच इंटरफ़ेस के साथ हिंदी शब्द का उच्चारण है।

यह टूल राजभाषा की वेबसाइट पर उपलब्ध है। प्रयोग के लिए आप राजभाषा की वेबसाइट खोल सकते हैं और इन टूल्स के प्रयोग से राज्य भाषा को समझने व इस में कार्य करने में आपको कितनी आसानी होगी, इसे जान सकते हैं।

सूचना क्रांति के इस दौर में चारों ओर तेजी से परिवर्तन हो रहा है, हर देश अपनी प्रगति की रफ्तार तेज़ और दुरुस्त करने में लगा हुआ है। जाहिर है कि इस रफ्तार से सूचना प्रौद्योगिकी के नए युग में सब कुछ पूर्ववत नहीं रहेगा अर्थात बदलाव अवश्य आएगा और इससे स्वतः ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्पर्धा के दौर का सूत्रपात हो जाएगा, अब यदि प्रतिस्पर्धा की दौड़ में शामिल होना है और इससे डटकर मुकाबला करना है, तो निःसंकोच आगे बढ़ना होगा।

प्रौद्योगिकी के विकास में हिंदी की अहम भूमिका को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता। हमारे देश में संदर्भ हमारे देश के संदर्भ में स्वाभाविक है कि यहां की संपर्क भाषा, जन भाषा हिंदी की महत्ता से.... उसकी उपयोगिता से... उसकी संपर्क सूत्र की बहुलता से इनकार नहीं किया जा सकता। सूचना प्रौद्योगिकी के व्यापक प्रचार और प्रसार एवं जनाधार को बढ़ाने में हिंदी भाषा की भूमिका एक पुल के समान है जो समाज, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के दो हिस्सों को जोड़ने का कार्य करती है।

जय हिंद!

जय हिंदी!

 

मीता गुप्ता

Friday, 24 December 2021

नववर्ष 2022 की चुनौतियां

 

नववर्ष  2022 की चुनौतियां



कोरोना महामारी की दूसरी लहर से व्यथित वर्ष 2021 और ओमिक्रॉन वायरस के मुहाने पर खड़े होकर जीवन के हर क्षेत्र में अभूतपूर्व आर्थिक-सामाजिक आपदाएंसंकटचुनौतियाँ और कठिनाइयां को देखते-समझते हुए आज हम 2022 के स्वागत को आतुर हैं। इन चुनौतियों ने 2021 के रूप-स्वरूप में भी आमूल-चूल बदलाव कर दिया है । आइएनज़र डालते हैं उन चुनौतियों परजो भविष्य पर असर डालेंगी-

1.स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए बजट में अधिक राशि का आवंटन करना और नए शोधकार्य को बढ़ावा देना- कोरोना वायरस से हुए दुष्परिणामों ने स्वास्थ्य-सेवाओं की गुणवत्ता पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है । विकसित देश भी ऐसे में लाचार दिखाई दिए । शायद इसीलिए ओमिक्रॉन से जूझने की तैयारी पहले से करने का प्रयास जारी है।

2. ज़्यादा स्मार्ट शहरों का उद्भवसंयुक्त राष्ट्र संघ के अनुसार 2050 में दुनिया की 10 अरब आबादी के आधे से ज़्यादा लोग सिर्फ़ 10 विकसित देशों में रह रहे होंगे ।जैसे-जैसे गांवों की आबादी शहरों की ओर पलायन करेगीनये रोज़गार पैदा करने और शहरी सेवाओं को बनाए रखने का दबाव और बढ़ेगा ।

3.मानव और प्रकृति के संबंधों की पुनर्स्थापना- महीन धूलकणों ने हमारी हवा को और प्लास्टिक के छोटे-छोटे टुकड़ों ने महासागरों को भर दिया है ।हमें साफ-सुथरे विकल्पों की ओर बढ़ने और हानिकारक सामग्रियों तथा ऊर्जा स्रोतों को चलन से बाहर कर देने की ज़रूरत को समझते हुए रचनात्मक और जैव-केंद्रित विकल्पों को अपनाना भी एक बड़ी चुनौती है ।

4.साफ़ और हरी तकनीक को अपनाना- हरी तकनीक की दुनिया में हमारी प्रगति धीमी है ।यहां यह भी समझना आवश्यक है कि स्वच्छता हमेशा नई तकनीक की मोहताज नहीं होती ।सबसे अच्छा समाधान अक्सर मौजूदा आदतों को बदलने से मिलता है ।अलग-अलग क्षेत्रों में प्रभावी और व्यावहारिक उपाय तलाश कर लक्ष्य हासिल किया जा सकता है ।

5.अंतरिक्ष की खोज का नया युग- विश्व के सभी देश नये अंतरिक्ष युग में जी रहे हैं ।अंतरिक्ष पर्यटन और चांद पर बस्तियां बसाने की संभावनाएं बढ़ रही हैं। दुनिया भर की शीर्ष अंतरिक्ष एजेंसियां अपने-अपने महत्वाकांक्षी मिशन में लगी हुई हैं और इंसान उनकी तरफ टकटकी लगाकर देख रहा है। अंतरिक्ष में हमारी छलांग नए सवालों को प्रेरित कर रही है- हम दूर के खगोलीय पिंडों पर बस्तियां कैसे बसाएंगे?

6.कृत्रिम मेधा (AI) का उदय-मशीनों की मेधा हमारी दक्षता बढ़ाने के लिए इस्तेमाल की जाए या हमारी उपस्थिति के विकल्प के तौर परइसे रोकना अब नामुमकिन है । कृत्रिम मेधा जितनी ज़्यादा परिष्कृत एल्गोरिद्म का मतलब हैनिर्णयों और सुझावों में ज़्यादा निश्चितताइसका सही उपयोग भी एक चुनौती बन कर उभर रहा है ।

7.खाई को पाटना-विविधता बढ़ाने और असमानता कम करने में तरक्की के बावजूद कार्यक्षेत्रों मेंमीडिया प्रतिनिधित्व में और दुनिया भर के नेतृत्व में विभाजन की खाई चौड़ी है ।इसे पाटने के लिए नई समावेशी नीतियों और कार्यक्रमों के साथ-साथ ज़मीनी स्तर पर काम करने की आवश्यकता है। एक शांतिपूर्णसमृद्ध और टिकाऊ दुनिया के लिए यह आधार आवश्यक भी है ।

8.बढ़ता राजकोषीय घाटा-इस महामारी के दौर में जब सरकार की आय न के बराबर है और खर्चे विस्तृत रूप से बढ़ते जा रहे हैं तो राजकोषीय घाटे का बढ़ना स्वाभाविक हैयह भी एक बड़ी चुनौती है ।भारत में यह लड़ाई दोतरफा है-एकइस बीमारी से लड़ने के लिए साधन जुटाना और दूसराइस लड़ाई के दौरान समाज के एक बहुत बड़े गरीब तबके की सुरक्षा सुनिश्चित करना ।

9.अस्थायी बेरोजगारीस्थायी प्रभाव-देशव्यापी लॉकडाउन के खुलने के बाद स्थितियां सामान्य तो हुई हैंपर क्या यह डरा-सहमा मजदूर दोबारा उन फैक्ट्रियों तक जाने की हिम्मत जुटा भी पाएगायह विचारणीय प्रश्न है ।अगर वे समयबद्ध तरीके से वापस कारखानों में नहीं लौटते हैंतो यह निश्चित है कि भारत की उत्पादन क्षमता पर बेहद नकारात्मक प्रभाव देखने को मिलेगा।

10.ऑनलाइन शिक्षा-आज स्कूलों और कॉलिजों ने ऑनलाइन शिक्षा को अपनाकर विद्यार्थियों को लाभ पहुंचाने का प्रयत्न तो किया हैपरंतु भारत जैसे अनेक देशों मेंजहाँ लंबा-चौड़ा गरीब तबका हैयह नाकाफ़ी है और फिर ऑनलाइन शिक्षण की अपनी बाध्यताएं और सीमितताएं भी हैं। आज कोविड के प्रोटोकॉल के साथ स्कूल खुल रहे हैं, पर गत समय में बन गई अधिगम की खाई को पाटना वास्तव में एक चुनौती है। बच्चे राष्ट्र की धरोहर होते हैं, इस धरोहर को संभालना और सहेजना भी एक बड़ी चुनौती के रूप में दिखाई देती है।

बीता साल चाहे जैसा भी गुजरा, नए साल के स्वागत की तैयारियों का जोश देखने लायक होता है क्योंकि ‘कुछ दीपों के बुझ जाने से आँगन नहीं मरा करता है  को चरितार्थ करते हुए अब 2022 अपने आगाज़ पर है और नई चुनौतियां के साथ-साथ नई आशाएं और नई संभावनाएं अपनी झोली में लिए हमें बुला रहा है। इक्कीसवीं सदी के दूसरा दशक में हमने दुनिया को बदलते देखा हैअब तीसरे दशक में भी दुनिया इसी तरह बदलेगी...बदलती रहेगी....नई मंज़िलों की ओर बढ़ेगी। तो आइएचलें पूरे उत्साह के साथ नए दशक और नए साल में नई राहों की ओर....नई आशाओं के दीप लिए स्वागत करें नए सूरज का ...

स्वागत है आज नए सूरज का स्वागत है!,

स्वर्णिम किरणों की डोरी थामे,

आया है वर्ष नया, स्वागत है, स्वागत है!

नए नए सपने हैं,नूतन आशाएं हैं,

साँसों की धड़कन ने गीत नए गए हैं,

खुशियों की प्यास जगी फिर मन में,,स्वागत है,

स्वागत है आज नए सूरज का स्वागत है!,

भूलें हम जो कुछ भी खोया, या पाया था,

बीत गया जीवन, अतीत जो पराया था,

नव प्रभात बेला में नवयुग की बात करें,

सपने साकार करें, हमने जो चाहा था,

श्रद्धा विश्वास भरा ,स्वागत है, स्वागत है!

स्वागत है आज नए सूरज का स्वागत है!

मंजिल की और चलें, एक कदम और बढ़ें

काँटों को साथ लिए फूलों की बात करें,

पथ की दूरी कैसी?,काँटों का क्या गम है?

साहस के आगे तो पर्वत नतमस्तक हैं,

दृढ़ता विश्वास लिए स्वागत है, स्वागत है!

स्वागत है आज नए सूरज का स्वागत है॥

 

 

 

 

 

मीता गुप्ता

 

नया वर्ष... नए संकल्प....नई चुनौतियां....

नया वर्ष... नए संकल्प....नई चुनौतियां....




देखो नूतन वर्ष हैं आया,

धरा पुलकित हुई, गगन मुस्काया।

एक खूबसूरती, एक एहसास

एक ताज़गी, एक विश्वास

एक सपना, एक सच्चाई

एक कल्पना, एक एहसास।

यही हैं एक नव वर्ष की शुरुआत।

वास्तव में, नया वर्ष, नए संकल्पों, नए स्वप्नों और नए सृजन का ही तो साक्षी पर्व है। नव वर्ष हमें ओढ़ने का नहीं, आत्मसात कर लेने का आह्वान करता है। आत्मसात करने से जीवन की कायाकल्प हो जाती है, जबकि ओढ़ी हुई चादर तो समय के साथ हट जाती है।

नए साल के संदर्भ में सोचती हूं, तो आभास होता है कि मानो साल समय के पर्यटन स्थल का वह नन्हा मार्गदर्शक है, जिसकी अंगुली थामकर हम इस पर्यटन स्थल की बारह महीने सैर करते हैं। बारहवें माह तक यह वृद्ध हो चुका होता है, तब यह हमारी अंगुली एक नए मार्गदर्शक को थमाकर हमसे विदा हो जाता है। हमारी नियति इन्हीं नन्हीं अंगुलियों के भरोसे अपनी यात्रा करने की है और इतिहास गवाह है कि शिशु कभी छलते नहीं हैं। आज जब हम इस शिशु की अंगुली थामकर अपनी यात्रा आगे बढ़ा रहे हैं, तो यह विश्वास करना चाहिए कि हमें यह शिशु वर्ष 2022 में हर्ष और उल्लास, विकास और प्रगति तथा समृद्धि और सामर्थ्य के उन स्थलों का भ्रमण करवाएगा, जिनसे साक्षात होने का स्वप्न हमने सदैव संजोया था।

हर नया वर्ष इन्हीं सपनों के संबंध में यह विचार करने का अवसर देता है कि वे सपने कितने पूरे हुए? कितने अधूरे रह गए? लेकिन सपने कहां पूरे होते हैं? इसलिए वर्षो के आगमन का सिलसिला कभी नहीं थमता। आकांक्षाएं अंतहीन होती हैं, इसलिए सपनों का देखा जाना कभी विराम नहीं पाता। सपने क्या हैं? हमारी अनंत आशाओं और आकांक्षाओं के वे प्रतिबिंब, जो खुली आंखों से आईनों में नहीं, बंद आंखों की पुतलियों के दर्पण में देखे जाते हैं। ये बंद आंखें नए वर्ष की पहली भोर को खुलती हैं। 

नए साल की पहली सुबह जब अपनी दस्तक से बंद आंखों की पलकों को खोलती है, तब ये आंखें यथार्थ के आईने में इन सपनों की हकीकत के अक्स देखती हैं। हम इस नए शिशु थामे हम कर्म के रास्ते पर बढ़ जाते हैं, निःशंक....अविराम....बिना विश्राम किए.... । प्रत्येक नव वर्ष देश में शीत ऋतु में आता है। यह ओढ़ने की ऋतु है। जब हम अपनी देह को मोटी चादर से ओढ़कर उसे शीत से बचाने का यत्न करते हैं, तो वास्तव में नव वर्ष हमें ओढ़ने का नहीं, आत्मसात कर लेने का आह्वान करते हैं। आत्मसात करने से जीवन का कायाकल्प हो जाता है, जबकि ओढ़ी हुई चादर तो समय के साथ फटकर तार-तार हो जाती है। इसलिए नव वर्ष के आगमन पर जो औपचारिक शुभकामनाएं दी जाती हैं, वे ओढ़ी हुई चादर की तरह होती हैं, जिन्हें ओढ़ा तो जा सकता है, पर आत्मसात नहीं किया जा सकता। यदि मंगल की यह कामना व्यक्तिगत न हो, लोक के लिए हो, उसके पीछे सामूहिक लोक मंगल का भाव हो, तो फिर एक चिंगारी अलाव में तब्दील हो सकती है और यह- ‘वसुधैव कुटुंबकं’ के मंत्र को सारे आकाशमंडल में संचरित कर देगा। सच कहूं तो तभी नव वर्ष मंगलमय होगा।

हर नया वर्ष अपने गर्भ में ऐसी आशाओं को समेटे रखता है, जो सुनहरे भविष्य के स्मारक की आधारशिलाएं होती हैं, लेकिन ज्यों-ज्यों इस वर्ष के पांव आगे बढ़ते हैं वैसे-वैसे हमारे आचरण से ये आधारशिलाएं डगमगाने लगती हैं। जिसका यह परिणाम होता है कि हमारे भविष्य का यह उजेला केवल हमारी कल्पना में रह जाता है, आकार में ढल नहीं पाता। यदि कर्मण्यता हो, रचनात्मक दृष्टि हो और पौरुष से भरपूर जिजीविषा हो, तो हर नए साल की आशाओं को एक सुघड़ शिल्पकार की भांति उपलब्धि के दमकते, भव्य शिल्प में ढाला जा सकता है। नव वर्ष का आगमन मनुष्य के जागरण की बेला होती है। सूरज के उजास में वह नए पथ पर अग्रसर होता है। नव वर्ष का आगमन उसके हाथों द्वारा नए लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए ली जाने वाली शपथ है और उसके कानों द्वारा सुनी जाने वाली वह भैरवी है, जिसके स्वर आशा के माधुर्य को नव वर्ष के कंठ से गाते हैं। नया वर्ष जीवन शक्ति का साक्षी है। 

लेकिन कई लोग ऐसे भी हैं, जो कहते हैं कि जीवन का एक वर्ष कम हो गया। वे ऐसा इसलिए कहते हैं, क्योंकि वे लोग जीवन को खंड में देखते हैं, जबकि वह तो अखंडित होता है। उसे पूर्णता में देखना चाहिए, लंबाई में नहीं। कितने वर्ष जीए, मायने इस बात के नहीं, मायने इस बात के हैं कि कैसे जीए। नया वर्ष जीवन को पूर्णता में देखने और जी लेने का अवसर है। वह दीये की उस लौ की तरह है, जिसके आकार की कोई अहमियत नहीं होती, अहमियत उस लौ से फैलने वाली रोशनी की होती है। संसार जगमगाते आंगन देखता है, लौ नहीं देखता। नया वर्ष हमें इतिहास की देहरी पर एक ज्योतिर्मय दीप बनाकर रख देता है। यह हम पर निर्भर करता है कि हम अपनी लौ को कितना ऊपर उठा पाते हैं। नए वर्ष की यही चुनौती है कि अपने सपनों को पूरा करने के लिए हम कैसे अपने संकल्प की लौ को और ऊपर उठाएं और संसार को ज्योतिर्मय बनाएं। रास्ते बिना प्रकाश के दिखाई नहीं देते, मंज़िल तक तो प्रकाश ही पहुंचाता है। यह प्रकाश वह प्रकाश मात्र नहीं है, जिसमें आंखों की पुतलियां संसार के भौतिक उपादानों को देखकर उन्हें पहचानती हैं। सच्चा प्रकाश तो मन की उन आंखों के पास होता है, जो सूर के पास थीं। जिन्हें अंर्तदृष्टि कहा जाता है, जिनसे सच्चे श्याम की पहचान होती है। जो राधा-माधव की उस जुगल जोड़ी को देखती हैं, जिसने हमारे इतिहास के गलियारों को अपने माधुर्य रस से सींच लिया। हमें वही आत्मप्रकाश चाहिए, जो सार्थक देखे। सार्थक सूर ने देखा था इसलिए सूर की दृष्टि ही सच्ची दृष्टि है और उसमें समाया हुआ आलोक ही सार्थक प्रकाश है।नीरज जी के शब्दों में-

दीप कैसा हो, कहीं हो, सूर्य का अवतार है वह,

धूप में कुछ भी न, तम में किन्तु पहरेदार है वह,

उस सुबह से सन्धि कर लो,

हर किरन की मांग भर लो,

है जगा इन्सान तो मौसम बदलकर ही रहेगा

जल गया है दीप तो अंधियार ढल कर ही रहेगा।

यह सुबह का दूत हर तम को निगलकर ही रहेगा।

जल गया है दीप तो अंधियार ढल कर ही रहेगा।

नया वर्ष यदि हमारा प्रकाश पर्व सिद्ध हो सका तो यह हमारी ही नहीं, पूरे राष्ट्र की, पूरे मनुष्यता की उपलब्धि होगी, क्योंकि सुबह नव वर्ष पर हमारी पलकों पर थपकी देकर उन्हें इसलिए नहीं खोलती कि वे बंदी बन फिर अंधेरे को आत्मसात कर लें, बल्कि इसलिए खोलती है ताकि सूरज के प्रकाश में अपनी यात्रा जारी रखने के लिए रास्ते जगमगा जाएं। नया वर्ष, नए संकल्प, नए स्वप्न और नए सृजन का ही तो साक्षी पर्व है। आइए उल्लास की अंजुरी में उल्लास के भाव पुष्पों से इसका अभिनंदन करें।

सभी चाहते हैं कि सब कुछ शुरू से शुरू हो। बीता साल तमाम आशंकाओं और जीवन की धीमी रफ्तार के साथ गुज़रा तो अब इस नए वर्ष की शुरुआत हम इच्छाओं के नए चबूतरे पर खड़े होकर करना चाहते हैं। हम भीतर ही भीतर यह भी चाहते हैं कि अतीत के सब शिलालेख मिटा दिए जाएं और हम अपने हाथों से नए भविष्य की ऐसी नींव रखें, जिस पर खुशियों का वह साम्राज्य हो, जिसमें सच का साथ देने वाले विजयी हों, झूठ और फरेब में उलङो हुए लोगों को पश्चाताप करना पड़े। हमें अपने लिए ऐसी परिस्थिति चाहिए, जिसमें भले ही कठोर तप हो, संघर्ष हो, लेकिन आनंद की वह माधुरी भी हो, जिसके साथ हमारा जीवन बहता चला जाए।

नए वर्ष की शुरुआत में हम कई लोगों को संकल्प (रेज़्योल्यूशन) लेते हुए देखते हैं, जो अपने आत्मविश्वास को जगाते हैं, लेकिन थोड़ी दूर तक चलने के बाद ही वे भूल जाते हैं कि तय क्या हुआ था। वे फिर उसी पटरी पर चलने लग जाते हैं, जिस पर उन्होंने ठोकरें खाई थीं, संताप किया था और जिसके चलते निराशा ने उन्हें धर दबोचा था। इसमें संदेह नहीं कि उन्होंने एक अच्छा सपना देखा था, लेकिन उसे पूरा करने के अचूक निशाने उनके पास नहीं थे। जिसके चलते होता यह है कि वे आनंद के स्रोत के सामने खड़े रहकर भी रीते के रीते रह जाते हैं।

बीता साल चाहे जैसा भी गुजरा, नए साल के स्वागत की तैयारियों का जोश देखने लायक होता है। यह जोश केवल एक धर्म को मानने वालों में नहीं, बल्कि दुनियाभर के तमाम लोगों में दिखाई देता है। ताज्जुब यह है कि हद से हद चौबीस घंटे तक चलने वाली पार्टी, आतिशबाजी, मौज-मस्ती और धूम के बाद सारा जोश इस तरह ठंडा पड़ जाता है, जैसे नव वर्ष आकर चला गया हो। नए वर्ष का नया सूरज जो संदेश लेकर आता है, हम उसे समझ नहीं पाते। दरअसल, उत्साह के जाग उठने के मुहूर्त में जो शक्तिपात होता है, वह हमारे हाथ से फिसलता चला जाता है और शाम ढलते-ढलते वही सूनापन, वही ढिलाई, वही बेरुखी, वही खालीपन पसर जाता है।

दरअसल, नव वर्ष का ज़ोरदार स्वागत होना चाहिए। ऐसा स्वागत, जैसा घर आई नई-नवेली दुल्हन का होता है, जैसा खेत में उग आने वाले गन्ने और गेहूं की बालियों का होता है या आम की शाखाओं पर झूलने वाली नई-नई मंजरियों का होता है। यह स्वागत एक आरंभ है। यह स्वागत पूरे वर्ष को उत्सव के रंग में ढालने के संकल्प का स्वस्ति वाचन है। स्वागत की इस बेला में कोई एक नया संकल्प हो और उसके साथ नई यात्रा का श्रीगणोश हो, तो आनंद का भाव उपजता ही है। इसके साथ ही पुराने रिश्तों की चाशनी में पगी हुई मीठी-मीठी यादों के सिलसिले हों, तो उम्मीद भरे दिनों के सपने सजने लगते हैं।

21वीं शताब्दी के दो दशक पूरे होने के बाद इस नए वर्ष में महसूस करके देखिए, हमारे अंतरंग में मनुष्य की विजय का आह्वान चल रहा है। समय के कैनवास पर नए रंग भरे जा रहे हैं, जीवन की प्रणाली बदल रही है, परंतु सृजन और प्रलय साथ-साथ झूलते हुए दिखाई पड़ रहे हैं, जीवन के रहस्यों पर पड़े हुए कई पर्दे हटा दिए गए हैं। इस बार यह वर्ष नवनिर्माण की अद्भुत संभावनाएं लेकर आया है। आप और हम सहज ही अनुभव कर सकते हैं कि पिछले साल हमने कड़ी परीक्षा दी और जान-माल की भारी हानि उठाने के बावजूद हम उत्तीर्ण घोषित हुए हैं,पर हमने अनेक अपनों को खोया भी है। यह नया साल उनके गुज़र जाने की टीस देकर जा रहा है, पर यह सीख भी कि अहंकारी मनुष्य से ऊपर कुछ और भी है, जो हमें हमारी बेबसी और लाचारी का आइना दिखा गया है । अब करना क्या होगा, जीवन थोड़ा अनुशासित, संयमित और नियमित करना होगा, तमाम सारे भ्रमों को दूर करते हुए अपने देशज मूल्यों की शरण में लौटना होगा, मां प्रकृति के क्षरण को रोकना होगा, विज्ञान के विध्वंसकारी रूप को समझना होगा और ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’ के अर्थ को समझना होगा। 

नव वर्ष के आगमन की खुशी को एक या दो दिन में समेट लेने का क्या औचित्य? माना खुशी का यही स्तर वर्ष के आखिरी महीने के आखिरी दिन तक ज्यों का त्यों तो नहीं रह सकता, क्योंकि समय करवट लेता रहता है, उतार-चढ़ाव बने रहते हैं और हमेशा हमारे मन की बात नहीं होती, लेकिन उमंग और उत्साह की गर्मी बनाए रखने की पहल तो हर पल की जा सकती है। हमारे पुरखों ने यही पहल की थी, इसीलिए उन्होंने त्योहारों की ऐसी विस्तृत श्रंखला बनाई कि परिवार में रस घुलता रहे और आशाओं के दीप जलते रहें। हमारे मन का विश्वास कमज़ोर न हो और खुशियों की बारात घर-आंगन में आती रहे, ताकि हर दिन नया और चमकदार बने। इसलिए, आइए नई ऊर्जा, नई आशा और नए उत्साह के साथ 2022 का स्वागत करें। हर ओर नया और सकारात्मक देखें। सभी चेहरे को नयी नजर से देखें। हर चीज में नयापन तलाशें। नयी प्रेरणा से देखें। नई आशा से देखें। नई राह की ओर देखें। नये सपने देखें, नए मार्ग बनाएं और उन ओर चलना शुरू करें। इच्छाशक्ति को प्रबल करें। पाखंड का त्याग करें। भरोसा करें, भरोसे लायक बनें। विश्वास करें, विश्वास जीतें। अपनी गरिमा समझें, दूसरे की अहमियत समझें। अपनी स्मृतियों से पूर्वाग्रहों को मुक्त करें। निराशा जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप है। अतः उसे कभी भी अपने ऊपर हावी न होने दें। घर में यदि कोई बुज़ुर्ग हों, तो उसके प्रति तन-मन-धन से समर्पित रहें। परिवार में एक दूसरे के प्रति मान सम्मान एवं आपसी प्रेम-भावना सदैव बनाकर रखें। 

--- मीता गुप्ता


Thursday, 23 December 2021

भारत में स्त्री विमर्श और स्त्री संघर्ष: इतिहास के झरोखे से

 

भारत में स्त्री विमर्श और स्त्री संघर्ष: इतिहास के झरोखे से



 

मैंने उसको

 

जब-जब देखा,

लोहा देखा,

लोहे जैसा--

तपते देखा,

गलते देखा,

ढलते देखा,

मैंने उसको

 

गोली जैसा

चलते देखा!

 

स्त्री विमर्श एक वैश्विक विचारधारा है । हर देश का अपना अलग-अलग बुनियादी सामाजिक ढांचा है। ऐसे आंदोलन वैश्विक विचारधारा के विकास में सहायक हो सकते हैं, लेकिन यह ज़रुरी नहीं है कि हर आंदोलन किसी वैश्विक विचारधारा की सैद्धांतिकी को आधार बना कर चले। किसी एक मुद्दे को लेकर शुरू हुआ आंदोलन अपनी चेतना में कई स्तरों पर न्याय की लड़ाई को समेटे रहता है। भारत में स्त्री संघर्ष और स्त्री अधिकार के आंदोलन को इसी रूप में स्वतंत्रता आंदोलन के परिप्रेक्ष्य में देखने की आवश्यकता है।

राष्ट्रवादी आंदोलन वाला स्त्री आंदोलन: बन गई स्त्री की राष्ट्रमाता छवि

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का मूल ढांचा पितृसत्तात्मक राष्ट्रवाद का है, लेकिन भारत में स्त्री आंदोलन भी इसी ढांचे के साथ विकसित होता हुआ दिखाई देता है। उन्नीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध और बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध के दौरान विकसित होते हुए स्त्री आंदोलन को भारत के तत्कालीन राष्ट्रवादी आंदोलन से अलग करके नहीं देखा जा सकता है। इस संघर्ष की शुरुआत वहीं से स्पष्ट होने लगती है, जब राष्ट्रवादी आंदोलन के अगुआ स्त्री की तत्कालीन दशा में सुधार तो लाना चाहते हैं, लेकिन उसे परंपरागत परिवार के दायरे में सीमित रखकर और सामाजिक स्तर पर स्त्री की राष्ट्रमाता की छवि निर्मित करके। जहां न तो स्त्री का स्वतंत्र व्यक्तित्व है, और न ही उसकी अस्मिता।

स्त्री संघर्ष की भूमिका सीमित थी, अंग्रेजों से लड़ने तक

पंडित रमाबाई जैसी जो स्त्रियाँ इस परंपरागत खांचे में फिट नहीं हो पाईं, इसलिए उन्हें हाशिये पर धकेल दिया गया। तत्कालीन परिस्थिति में स्त्री-संघर्ष को इसी राष्ट्रवादी आंदोलन की ज़मीन से स्वयं को अभिव्यक्त करना पड़ा। उस परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए भारत के राष्ट्रवादी आंदोलन और स्त्री आंदोलन को अन्योन्याश्रित भी कहा जा सकता है, जबकि वैश्विक विचारधारा के अनुसार राष्ट्रवाद और स्त्रीवाद एक-दूसरे पर आश्रित नहीं हैं। जिस प्रकार स्त्री-आंदोलन को राष्ट्रवादी आंदोलन के बीच से ही अपना स्वरुप तलाशना पड़ा और अपना आधार बनाना पड़ा, उसी प्रकार राष्ट्रवादी स्वतंत्रता-आंदोलन को भी अंग्रेज़ों के खिलाफ़ आधी आबादी के संघर्ष की ज़रूरत थी। राष्ट्रवादी आंदोलन के अगुआओं के लिए स्त्रियों के संघर्ष की भूमिका अंग्रेज़ों से लड़ने तक ही थी, न कि उसके साथ स्त्री के अपने सामाजिक और सांस्कृतिक व्यक्तित्व और पहचान के संदर्भ में। स्वतंत्रता के बाद भी स्त्री का पूरा व्यक्तित्व और उसकी अपनी स्थिति पितृसत्तात्मक परिवार के दमघोंटू माहौल से ही बंधे रहने के लिए अभिशप्त रहा है क्योंकि स्त्री के स्तर से इन नेताओं के पास न तो कोई और विकल्प था और न ही उस विकल्प की कोई अवधारणा।

और मंच पर भी संगठित होने लगी स्त्रियाँ, पुरुषवादी मानसिकता के खिलाफ़

उन्नीसवीं सदी तक समाजसुधार और राष्ट्रवाद की ओर उन्मुख स्त्री-संघर्ष बीसवीं सदी के आरंभ में स्त्री अधिकारों के प्रति भी सचेत हुआ। यह समय ऐसा रहा, जब पूरे भारत में स्त्रियाँ राष्ट्रीय स्तर के मंचों पर संगठित हुईं और अनेक स्थानीय संगठन भी इनसे जुड़े। 1908 में हुआ लेडिज़ कांग्रेस का सम्मलेन हो या 1917 में गठित विमेंस इंडियन असोसिएशन, ऐसे ही बड़े संगठन थे। भारत में स्त्रियों के ऐसे संगठनों की सबसे बड़ी विडंबना रही, हिंदू धर्म और उस समय की पुनरुत्थानवादी राष्ट्रीय विचारधारा। एक ओर जहाँ रमाबाई जैसी स्त्री को हिंदू धर्म छोड़ना पड़ा, वहीँ दूसरी ओर होमरूल जैसे आंदोलन का हिंदुत्व से ओत-प्रोत धार्मिक स्वरुप लिए था, जिसमें स्त्रियों की बड़े स्तर पर सक्रिय भागीदारी थी। यही एक बड़ा कारण रहा कि दलित-आंदोलन और स्त्री-आंदोलन की संवेदनात्मक स्तर की दूरी का भी। फिर भी संघर्ष की इस लंबी परंपरा को किसी भी स्तर से नकारा नहीं जा सकता है, जहाँ स्त्रियाँ अपने अधिकारों की मांग के साथ खड़ी हो रही थीं। सरला देवी जैसी पुनरुत्थानवादी स्त्री ने भी विधवाओं की शिक्षा और उनके अधिकारों की मांग की थी। इस रूप में उस समय स्त्रियों की लड़ाई दोहरे स्तर पर चल रही थी, एक तो उपनिवेशवादी ताकतों के खिलाफ़, दूसरे अपने घर में उनकी नियति निर्धारित करने वाली पुरुषवादी मानसिकता के खिलाफ़।

उठने लगी अधिकारों की मांग

1918 ई. के कांग्रेस बैठक में स्त्रियों को दिए गए मताधिकार को भी राष्ट्रवादी आंदोलन की अपनी ज़रूरतों और उसमें से उभरते स्त्री-आंदोलन के संदर्भ में देखने की आवश्यकता है। राष्ट्रवादी ज़रूरतों से तात्पर्य साम्राज्यवादियों की उस विचारधारा से लड़ने के परिप्रेक्ष्य में है, जो मेयो के ‘मदर इंडिया’ में दिखाई देती है। स्त्रियों के अपने अधिकारों की मांग और साम्राज्यवादी ताकतों से लड़ने में उनकी भूमिका इस मताधिकार की पृष्ठभूमि निर्मित करता है। स्त्री का मताधिकार भी स्त्री के हक़ और न्याय की उन तमाम मांगों से जुड़ा हुआ था, जिसके लिए सावित्रीबाई, रमाबाई, काशीबाई कानितकर, आनंदीबाई, मैरी भोरे, गोदावरी समस्कर, पार्वतीबाई, सरला देवी, भगिनी निवेदिता से लेकर भिकाजी कामा, कुमुदिनी मित्रा, लीलावती मित्रा जैसी स्त्रियों ने अनेक स्तरों पर संघर्ष किया और ऐसे हज़ारों नाम इतिहास के पन्ने पर लिखे जा सकते हैं। एनी बेसेंट ने मार्गरेट कूजिंस, सरोजिनी नायडू आदि के साथ स्त्रियों के मताधिकार की माँग की थी। कांग्रेस की राष्ट्रवादी विचारधारा का पूरा प्रभाव एनी बेसेंट और सरोजिनी नायडू जैसी स्त्रियों के ऊपर था।

दूसरे शब्दों में कहें, तो साम्राज्यवाद से लड़ने के लिए एक ऐसी स्त्री राष्ट्रवाद के अंतर्गत गढ़ी जा रही थी, जो एक ओर तो उपनिवेशवाद के खिलाफ़ अपना सर्वस्व झोंक दे, लेकिन दूसरी ओर स्त्रियों के लिए बनाए गए नियमों के आधुनिक रूप में बंधी रहे और स्त्री के स्वतंत्र व्यक्तित्व या अस्मिता से उसका कोई सरोकार न हो। यही कारण है कि सरोजिनी नायडू जैसी महिला ने भारत के स्त्री-आंदोलनों को स्त्रीवादी आंदोलन नहीं माना और उसे पश्चिम में चल रहे स्त्रीवादी आंदोलन से अलगाया। फिर भी स्त्रियाँ अपने हक़ और न्याय की लड़ाई को आगे बढ़ाती रहीं क्योंकि कोई भी आंदोलन कुछ नीतिनिर्धारक तत्वों के आधार पर जीवित नहीं रहता, खासतौर से तब, जब उस आंदोलन की लड़ाई बहुस्तरीय हो। राष्ट्रवादी विचारधारा के आग्रहों के बावजूद स्त्री के सामाजिक अधिकारों के प्रति एनी बेसेंट जैसी स्त्रियों की जागरूकता को नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता है।

अधिकारों के लिए हर कदम पर किया संघर्ष

यह सही है कि पश्चिम में स्त्रियों को मताधिकार के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा और उस रूप में भारत में कोई मताधिकार आंदोलन नहीं चला। इससे यह निष्कर्ष निकालना उचित नहीं है कि भारत में मताधिकार आंदोलन इसलिए नहीं हुआ क्योंकि यहां स्त्रियों में अपने अधिकारों को लेकर कोई चेतना जागृत नहीं हुई। यहाँ भी स्त्रियों को अपने अधिकारों को लेकर कदम-कदम पर संघर्ष करना पड़ा है और यह तभी संभव हो सका, जब उनके भीतर भी स्वाधिकार की चेतना जगी, स्वयं को एक ऑब्जेक्ट के बदले एक संवेदनात्मक इंसान समझने की चेतना जगी और अपनी देह को किसी के उपभोग की वस्तु न बनने देने की चेतना जगी।  

मनुष्यता की पहचान के आधार रचा गया स्त्री संघर्ष का लंबा इतिहास

सुमन राजे ने स्पष्टतः लिखा है कि निरपेक्ष स्वतंत्रता जैसी कोई चीज़ नहीं हो सकती। स्वतंत्रता का मूल अभिप्राय है ‘निर्णय की स्वतंत्रता’ और स्त्री स्वतंत्रता का रूप क्या होगा, यह स्वयं स्त्रियों को ही तय करना है, यह निर्णय कुछ ‘विशिष्ट’ महिलाओं द्वारा नहीं लिया जा सकता। यह भी सच है कि ये विशिष्ट महिलाएं किसी भी सैद्धांतिकी से प्रभावित हो सकती हैं और नया सिद्धांत भी गढ़ सकती हैं, लेकिन साथ ही स्वतंत्रता का एक बड़ा सामाजिक सरोकार है और यहीं से स्त्री-पुरुष के बदले मनुष्यता की ज़मीन तैयार होती है।

ज़रूरी है स्त्री विमर्श के नए आयाम की तलाश

स्त्री विमर्श केवल पूर्वाग्रहों या व्यक्तिगत विश्वासों तक ही सीमित नहीं है। उसके अन्य भी आयाम हैं और इन आयामों को भी तलाशने की ज़रूरत हमारे आलोचकों को है, न कि सिर्फ चंद नामों के आधार पर स्त्री विमर्श को एक खास दायरे में बाँधने की। स्त्री विमर्श की बात करते हुए वर्तमान के सामाजिक जीवन के हर विचारधारात्मक संघर्ष, समय और समाज के परिवर्तनों को भी ध्यान में रखना ज़रुरी है। जहाँ तक हिंदुस्तान में संस्कृति को बदलने की लड़ाई के शुरू होने की बात है, तो वह उसी दिन से शुरू हो गई होगी, जिस दिन पहली स्त्री ने अपने अधिकारों की मांग करके वर्चस्वशाली संस्कृति के समक्ष प्रतिरोधात्मक संस्कृति की शुरुआत की होगी। हम नहीं जानते कि वह स्त्री कौन थी या उसकी माँग क्या थी! हो सकता है उसकी पहली लड़ाई अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर ही रही हो! या फिर सामाजिक दर्ज़े की...! जो भी रहा हो, इससे निश्चित ही एक मज़बूत पृष्ठभूमि हुई है, इसे नकारा नहीं जा सकता। इसी के फलस्वरूप आज भी स्त्री अपने सांस्कृतिक वर्चस्व की लड़ाई के लिए निरंतर प्रयत्नशील है.....और यह मानवता के संतुलित विकास और भावी पीढ़ी के उज्ज्वल भविष्य की बानगी भी है ।

 

 

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Description automatically generated मीता गुप्ता

और न जाने क्या-क्या?

 कभी गेरू से  भीत पर लिख देती हो, शुभ लाभ  सुहाग पूड़ा  बाँसबीट  हारिल सुग्गा डोली कहार कनिया वर पान सुपारी मछली पानी साज सिंघोरा होई माता  औ...