जीवन अमूल्य है
सुंदर हैं विहग, सुमन सुंदर,
मानव! तुम सबसे सुंदरतम,
निर्मित सबकी तिल-सुषमा से
तुम निखिल सृष्टि में चिर निरुपम!
वास्तव में मनुष्य का जीवन बहुत मूल्यवान है। चौरासी लाख योनियों में बड़े ही सौभाग्य से मनुष्य योनि प्राप्त होती है। मनुष्य हैं तो, वीरता, साहस, गंभीरता, संयम, अक्रोध,धैर्य, क्षमा, दया, पवित्रता, नम्रता आदि मानवीय गुण भी हममें समाहित होते हैं। ये गुण ही हमें औरों से अलग व विशिष्ट बनाते हैं। इस संसार में कुछ विशिष्ट कार्यो को संपादित करने के लिए हमारा जन्म हुआ है।
हर मनुष्य की अपनी अलग पहचान होती है। करोड़ों मनुष्यों की भीड़ में भी वह अपने निराले व्यक्तित्व के कारण पहचाना जाता है। लोगों के बीच अपनी अलग शख्सियत व पहचान का होना सुखद अनुभव कराता है। वर्तमान में अधिकतर यही लोग चाहते हैं कि सभी उन्हें पसंद करें। उनकी बातों को ध्यान से सुनें और साथ ही वे स्वयं की नजरों में भी महान बनें। इसके लिए आवश्यक है कि व्यक्ति अपने चरित्र को उज्ज्वल रखे। अपने अंत:करण को पवित्र रखे, जिससे उसका कृतित्व असाधारण हो और वह एक श्रेष्ठ व्यक्तित्व का निर्माण कर सके और मानव से महामानव बन सके। इस प्रकार के गुण अपनाने से आपकी महत्ता व पहचान अपने आप बन जाएगी।
एक दिन एक शिक्षक ने अपने एक विद्यार्थी से पूछा, बेटा बड़े होकर क्या बनोगे? उसने सीधे व सरल शब्दों में उत्तर दिया, एक अच्छा आदमी। एक अच्छा आदमी बनना तभी संभव है, जब आप जो भी कार्य करते हैं, उसे पूरी ईमानदारी से निभाएं। साथ ही कार्य ऐसा भी हो, जो औरों के मुकाबले अधिक बेहतर हो, उसमें आपके व्यक्तित्व की छाप महसूस हो। विश्व-पटल पर ऐसे अनेक व्यक्तित्वों को उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है, जिन्होंने सामान्य मानव की तरह ही बचपन व्यतीत किया, लेकिन इतिहास में नए अध्याय लिख डाले। इनमें प्रसिद्ध दार्शनिक सुकरात, समाज सुधारक संत कबीर, गुरु नानक देव, स्वामी विवेकानंद और पं.राम शर्मा आचार्य आदि अनेक नाम शामिल किए जा सकते हैं। ये सभी साधारण व्यक्ति होने के बावजूद अपने कृतित्व से असाधारण बन गए। शायर नफ़स अंबालवी के शब्दों में-
उसे गुमाँ है कि मेरी उड़ान कुछ कम है,
मुझे यक़ीं है कि ये आसमान कुछ कम है ॥
परिपक्वता- खुद को ऊंचा उठाने व महत्वपूर्ण बनाने का तरीका यह भी है कि हम जल्द से जल्द परिपक्व हों। परिपक्वता के लिए कोई उम्र तय नहीं होती। कहते हैं, इंसान तब बड़ा नहीं होता, जब वह बड़ी-बड़ी बातें करने लग जाएं, इंसान तब बड़ा होता है, जब वह छोटी से छोटी बात को भी बिना कहे समझ जाए तथा जब वह अपनी ज़िम्मेदारी को अच्छी तरह निभाना सीख जाए। हम खुद को समझें, अपने वजूद को समझें, इसके लिए आवश्यक है कि अपने गुणों को बखूबी समझें और उन्हें विकसित करें। कई मनुष्यों में अच्छे गुण जन्मजात होते हैं और कई मनुष्यों को उन्हें विकसित करना पड़ता है। जब तक हम अपने महत्व को नहीं समझेंगे, आत्मविश्वास से भरे नहीं होंगे, तब तक किसी भी कार्य में अपना शत-प्रतिशत योगदान नहीं दे पाएंगे।
स्वयं का आदर-अपना सोचना, कहना व करना आपकी स्वयं की नज़रों में सदैव सम्माननीय होना चाहिए। अपने किसी कार्य में सफल होने के लिए उसे मन से करना व पूरी तैयारी से क्रियान्वित करना आवश्यक है। अपने कार्यो के द्वारा ही हम समाज में, देश में अपना नाम ऊंचा कर सकते हैं। जीवन में आप स्वयं को कितना महत्वपूर्ण मानते हैं, यह तीन तत्वों पर निर्भर करता है, पहला आप स्वयं को क्या मानते हैं और किस दृष्टिकोण से देखते हैं। द्वितीय, आप जो कार्य कर रहे हैं और उसमें कितने सफल हैं। तृतीय, अन्य व्यक्ति आपको क्या मानते हैं और किस दृष्टिकोण से देखते हैं? प्रथम तत्व का यदि मनुष्य निष्ठापूर्वक पालन करे, तो द्वितीय व तृतीय तत्व स्वत: विकसित हो जाते हैं। अपने जीवन व कार्यो का समय-समय पर मूल्यांकन करना बहुत आवश्यक है। स्वयं को प्रेम करना सीखें, स्वयं का ध्यान रखें, स्वयं का सत्कार करें, स्वयं में विश्वास रखें और इस प्रकार आप स्वयं के महत्व का अनुभव कर सकते हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि आत्म सुधार ही संसार की सबसे बड़ी सेवा है तथा आत्मविश्वास ही हमारी सबसे बड़ी पूंजी है।
किसी ने ठीक ही कहा है-
नाम ऐसा करिए कि हर काम हो जाए,
पर उससे भी बढ़कर है कि
काम ऐसा करिए, जिससे, जगत में नाम हो जाए।
छिपी ताकत को पहचानें-इस संसार में जो भी व्यक्ति आया है, वह अपने साथ कोई न कोई विशिष्ट गुण लेकर आया है। कई व्यक्ति इस बात को आरंभिक स्तर पर समझ लेते हैं, कई बाद में समझ पाते हैं। किसी-किसी को इस बात का ज्ञान ही नहीं होता कि उनका इस जीवन में आने का उद्देश्य क्या है। उद्देश्य का ज्ञान होने पर ही व्यक्ति अपनी पहचान बना पाता है। वह अपना महत्व समझ पाता है। यह ज़रूरी नहीं कि आप किसी बड़े ओहदे पर पहुंचें और ढेर सारा धन कमाएं। अपना महत्व समझने का अर्थ अपनी ताकतों को समझना, अपनी कमज़ोरियों को समझना और वक्त रहते उन्हें दूर करने का प्रयास करना है। स्वयं का महत्व जानने के लिए हमें अपने आप को जानना होगा। हमें पता लगाना होगा कि हमारे भीतर क्या विशिष्टता है? उस विशिष्टता को लोगों के सामने लाना होगा।
समझना होगा दायित्व-अभिभावक आम तौर पर अपने बच्चों की तुलना अन्य बच्चों से करने लगते हैं। वे अपने बच्चों की खूबियां देखने के बजाय अन्य बच्चों की खूबियां देखते हैं। अपने बच्चों में उन्हें अन्य बच्चों के मुकाबले जब कमियां नज़र आती हैं, तो वे उन्हें दूर करने प्रयास करने के बजाय तुलना शुरू कर देते हैं। यह बात बच्चों को पसंद नहीं आती। कई बार वे हीनभावना से ग्रस्त हो जाते हैं। आज ज़रूरत इस बात की है कि बच्चों की प्रतिभा निखारने की हरसंभव कोशिश की जाए। उसे उसकी खूबियां गिनाई जाएं। यह दायित्व शिक्षकों के ऊपर सर्वाधिक है। वे बच्चों के भीतर छिपी हुई प्रतिभाओं का आकलन बेहतरी से कर सकते हैं। पढ़ाई के नए-नए तरीकों के माध्यम से वे बच्चों को उसका महत्व बताएं। छात्राओं को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करें।
स्वयं का महत्व समझने के लिए अपने भीतर झांकने की जरूरत होती है। हर व्यक्ति के भीतर असीम शक्तियों का भंडार छुपा हुआ है। बड़े-बड़े वैज्ञानिक, विचारक और शख्सियत वाले व्यक्तियों ने अपनी शक्तियों को पहचाना और शक्तियों को विकसित किया। अपने व्यक्तित्व को विकसित करने के लिए सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि हम कौन हैं और चाहते क्या हैं?
हुनर की पहचान-स्कूल में विद्यार्थियों को किताबी ज्ञान देने के साथ उनके व्यक्तित्व में निखार लाने की कोशिश की जाती है। बच्चों की प्रतिभा के हिसाब से उन्हें आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। स्पोर्ट्स, पढ़ाई के अलावा ललित कलाओं के माध्यम से बच्चों के भीतर छिपे हुए हुनर को सामने लाया जाता है। अगर देखा जाए तो स्कूलों में एक सीमा तक बच्चे की खुद से पहचान कराई जाती है। बच्चे को बताया जाता है कि वह किस क्षेत्र में बढि़या प्रदर्शन कर सकता है और किस क्षेत्र में उसे अभी पकड़ बनानी है। यह भी स्वयं का महत्व जानने की एक प्रक्रिया है। यह प्रक्रिया लगातार चलती रहे तो बच्चे समझ जाते हैं कि ंवे बड़े होकर क्या बनना चाहते हैं और समाज के लिए वे किस दिशा में योगदान दे सकते हैं।
व्यक्तित्व से होगी स्वयं की पहचान-बच्चे जब जन्म लेते हैं, तो वे कच्ची मिट्टी के समान होते हैं। उन्हें जैसा सिखाया जाता है और उनके भीतर जिस तरह के मूल्यों का विकास किया जाता है, वे उसी सांचे में ढल जाते हैं और वैसे ही मूल्य ग्रहण करते हैं। समाज, परिस्थिति और लोगों का व्यवहार भी उनकी सोच का निर्माण करता है। जब व्यक्ति अपने भीतर झांकता है तो कहीं न कहीं समाज से ग्रहण किए गए संस्कार भी उसके व्यवहार में परिलक्षित होते हैं। अगर बच्चे के भीतर मूल्यों का निर्माण करना है तो अभिभावकों और शिक्षकों को वैसा ही व्यवहार करना होगा जैसा वे बच्चों से चाहते हैं। इन्हीं गुणों के आधार पर व्यक्तित्व का निर्माण होगा। बच्चे तभी स्वयं का महत्व समझ पाएंगे।
अतः हमें अपने जीवन के मोल को समझते हुए अपने जीवन को व्यर्थ न गंवाते हुए हमेशा कुछ अच्छा और बड़ा सोचना चाहिए और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने के प्रयास करने चाहिए। जब हम प्रयास करेंगे, तो सफल जरूर होंगे क्योंकि ‘कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती’। हम सफलता की बुलंदियों को छू सकते हैं क्योंकि हम मनुष्य हैं, हम सब कुछ करने में समर्थ हैं। आज के लेख का अंत इस प्रसिद्ध गीत से करना चाहूंगी-
मानुष जनम अनमोल रे,
मिट्टी में ना रोल रे,
अब जो मिला है फिर ना मिलेगा,
कभी नहीं कभी नहीं रे।
मीता गुप्ता
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