सशस्त्र सेना झंडा दिवस पर भारत के वीर बांकुरों को नमन....
घाव बदन पे सहता जा तू,
भारत-भारत कहता जा तू,
पर्वत-पर्वत चढ़ता जा तू,
वीर बहादुर लड़ता जा तू,
शपथ है तुझको इस माटी की,
लड़ना जब तक जान है बाकी,
दम रुक जाए, कदम नहीं,
सिर कट जाए, सौगंध नहीं ।
जय हिंद की सेना !
जय हिंद की सेना !
यूं तो भागदौड़ की ज़िंदगी में शायद ही हमें कभी उन सैनिकों की याद आती हो, जो हमारी सुरक्षा के लिए शहीद हो गए, पर आज के दिन अगर मौका मिले, तो हमें उनकी सेवा करने से पीछे नहीं हटना चाहिए। रेलवे स्टेशनों पर, स्कूलों में या अन्य स्थलों पर आज लोग आपको झंडे लिए मिल जाएंगे, जिनसे आप चाहें तो झंडा खरीद इस नेक काम में अपना योगदान दे सकते हैं।
1949 से 7 दिसंबर को पूरे देश में सशस्त्र सेना झंडा दिवस के रूप में मनाया जाता है ताकि शहीदों और वर्दी में उन लोगों को सम्मानित किया जा सके, जिन्होंने देश के सम्मान की रक्षा हेतु देश की सीमाओं पर बहादुरी से दुश्मनों का मुकाबला किया और अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया है। सैनिक देश की संपत्ति होते हैं, देश का गौरव होते हैं, देश के रक्षक होते हैं। वे राष्ट्र के संरक्षक भी होते हैं तथा किसी भी कीमत पर नागरिकों की रक्षा करते हैं। देश अपने कर्तव्यों को पूरा करने वाले इन वीर सपूतों का ऋणी रहेगा, जिन्होंने मातृभूमि की सेवा में अपने जीवन लगा दिया है। वे सैनिक ही होते हैं, जो खुद अपनी नींद का त्याग करके हमें चैन से नींद लेने देते हैं। हमारी सुरक्षा के लिए अपने प्राण तक न्योछावर कर देते हैं। जब-जब देश पर संकट के बादल छाए हैं, वीर सैनिकों ने बड़ी ही कुशलता और जांबाज़ी से धरती माता की रक्षा की है। यथा-
वीरों का कैसा हो वसंत?
आ रही हिमाचल से पुकार,
है उदधि गरजता बार-बार,
प्राची, पश्चिम, भू, नभ अपार,
सब पूछ रहे हैं दिग्-दिगंत,
वीरों का कैसा हो वसंत?
हमारी सुरक्षा के लिए अपने प्राण त्याग करने वाले सैनिकों को हम नमन करते हैं। भारत सरकार 7 दिसंबर को प्रति वर्ष सशस्त्र बलों की तीन शाखाओं- भारतीय सेना, भारतीय वायु सेना, और भारतीय नौसेना राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति अपने प्रयासों को प्रदर्शित करने के लिए विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन करती हैं।
हमारा कर्तव्य है कि हम न केवल शहीदों और सैनिकों की सराहना करें, बल्कि उनके परिवार की भी प्रशंसा करें, जो इस बलिदान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। देश की सुरक्षा के लिए हमारे सैनिक दिन-रात एक कर अपना कर्तव्य निभाते हैं। एक सैनिक धर्म-जाति-संप्रदाय-वर्ण आदि के तुच्छ सरोकारों से ऊपर उठ कर केवल और केवल देश के हित के बारे में सोचता है ।ऐसे में कई बार देश की सुरक्षा में सैनिकों को अपने प्राणों की भी आहुति देनी पड़ती है और इन सैनिकों के घरवालों के दर्द से गुज़रना पड़ता है। केंद्र तथा राज्य स्तर पर दी जा रही सरकारी सहायता के अलावा यह हमारे देश के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह इनकी देखभाल, सहायता, पुनर्वास और वित्तीय सहायता प्रदान करने की दिशा में स्वैच्छिक योगदान करें। झंडा दिवस देश के लिए बलिदान देने वाले शहीदों, युद्ध वीरांगनाओं, दिव्यांग पूर्व सैनिकों, युद्ध विधवाओं, शहीदों के आश्रितों की देखभाल करने के लिए मदद सुनिश्चित करता है और उनके प्रति हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
07 दिसंबर, 1949 से शुरू हुआ यह सफ़र आज तक जारी है। देश की सीमाओं की रक्षा के साथ-साथ देश की आंतरिक सुरक्षा एवं प्राकृतिक आपदा के समय नागरिकों की सुरक्षा में भी सेना का बहुत बड़ा योगदान है। भारतीय सशस्त्र सेना झंडा दिवस वर्षों से भारत के सैनिकों, नौसैनिक और वायु सैनिक के सम्मान के रूप में इस दिन को मनाने की परंपरा बन गई है।
अंत में मैं श्रद्धानत होकर सभी वीर सैनिकों को नमन करते हुए इस प्रसिद्ध गीत की कुछ पंक्तियां उद्धृत कर रही हूं-
जब देश में थी दीवाली, वो खेल रहे थे होली
जब हम बैठे थे घरों में, वो झेल रहे थे गोली
थे धन्य जवान वो अपने, थी धन्य वो उनकी जवानी
जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुर्बानी
कोई सिख कोई जाट मराठा, कोई गुरखा कोई मद्रासी
सरहद पर मरनेवाला, हर वीर था भारतवासी
जो खून गिरा पर्वतपर, वो खून था हिंदुस्तानी
जो शहीद हुए हैं उनकी, ज़रा याद करो कुर्बानी
मीता गुप्ता
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