क्या करे जब मन हो रहा हो हताश ?
एक बार किसी ने मुझसे पूछा- कि जब चारों ओर घोर अंधेरा हो, कोई मार्ग न सूझता हो तो क्या करें? जब सब तरफ घने बादल हों, बचाव का कोई रास्ता न दिखता हो, तो क्या करें? सामने खड़े पहाड़ को देखकर रास्ता रुकता दिखता हो, तो हम क्या करें? कुल मिलाकर जब हमारा मन घोर हताशा से भर जाए, तो हम क्या करें? मैं समझती हूं, यह सवाल किसी एक व्यक्ति का नहीं, हर व्यक्ति इस सवाल के दौर से कभी-न-कभी ज़रूर गुज़रता है। जीवन का क्रम सहज नहीं होता है, सबके जीवन में ढेर सारे उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। मनुष्य के जीवन में दो ही स्थितियाँ बनती हैं, ज्यों-ज्यों उसे सफलता मिलती है, उसका उत्साह बढ़ता जाता है और जब वह विफल होता है, हताश होने लगता है।
आज बात हिंदी वर्ण-माला के वर्ण ‘ह’ की है। मैं आप सब से केवल यही कहती हूं कि जीवन में कभी हताश मत होना, हताशा को अपने ऊपर हावी मत होने देना। प्रायः जितने भी लोग, आप लोगों को मोटिवेशनल स्पीच देते हैं, वे ये ही सिखाते या बताते है कि अपने अंदर हताशा को प्रवेश न करने दो।
पहला प्रयास तो यह कि यदि हताश होने लगें, तो हताशा आपके ऊपर कितनी हावी हुई और फिर यह कि क्या आपने हताशा के आगे हार तो नहीं मान ली, इसका आकलन ज़रूर करें। हताश होना और हार जाना, इन दोनों में बड़ा अंतर है। हताश कोई भी व्यक्ति हो सकता है, लेकिन जब व्यक्ति अपनी आखिरी उम्मीद भी छोड़ देता है, तो व्यक्ति हार जाता है। आप अपने मन की पड़ताल कीजिए, आपके मन में हताशा कब होती है? सबसे पहला कारण वांछित सफलता न मिलने से हताशा आती है। हमने प्रयास किया, अनुकूल परिणाम नहीं आया, तो हमारा मन हताश हो जाता है। दूसरा कारण, विपरीत परिस्थितियों के कारण व्यक्ति हताश हो जाता है। तीसरा कारण जो मुझे दिखता है, वह है,जब हमारी अपेक्षाओं की पूर्ति नहीं होती, तो व्यक्ति हताश हो जाता है और चौथा कारण लोगों का हमें अनुकूल प्रतिभाव नहीं मिलता, तो मन हताश हो जाता है। बंधुओ! संसार में कई सफल लोग हैं, जिनके जीवन को निकट से झांक कर के देखें, उन्हें भी अनेकानेक बार विफलता के दौर से गुजरना पड़ा है, लेकिन वे विफलता पर विजय हासिल कर पाए, तभी सफलीभूत हुए है। सफलता एकाएक नहीं मिलती, सतत प्रयत्नों के बाद ही कोई व्यक्ति सफलीभूत हो पाता है, यह बात गांठ में बंद करके रखना चाहिए। हम कोई भी कार्य करें, किसी भी कार्य के क्षेत्र में आगे बढ़ें, चाहे लोक हो या लोकोत्तर, हमें उस क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए इस बात को अपने हृदय में अंकित करके रखना चाहिए कि बार-बार बार-बार के प्रयास से ही हम अंतिम परिणाम तक पहुंचते हैं। आप हारिए मत, एक सघन चट्टान हो और उस चट्टान पर कोई घन का प्रहार करे, तो पहले प्रहार से चट्टान टूट जाए, ऐसा सहज नहीं है। एक बार आपने प्रहार किया चट्टान नहीं टूटी, दूसरी बार प्रहार किया चट्टान नहीं टूटी, तीसरी बार प्रहार किया चट्टान नहीं टूटी। प्राय: यह देखने में आता है कि दस बार के प्रहार से जो चट्टान नहीं टूटती, वह ग्यारहवीं प्रहार से चकनाचूर हो जाती है और इस चट्टान को चकनाचूर करने में कौन समर्थ होता है? वही जो लगातार प्रयास करता रहता है, मुझे चट्टान तोड़ना है, तोड़ना है, तभी चट्टान टूटती है।
दूसरा प्रयास यह कि आशा का साथ कभी न छोड़ना, कभी हारना मत और कदाचित हार भी जाओ, तो हार मानना मत। हारना बुरी बात नहीं है, हार मानना बुरी बात है। हम अभी नहीं हारे, अभी तो मुझे जो करना है, वह करना है। जो मेरा लक्ष्य है, वह मुझे हासिल करना है। ठीक है, एक बार में सफलता प्राप्त नहीं हुई, कोई बात नहीं, दूसरी बार में मिलेगी, नहीं मिली, तीसरी बार में मिलेगी, तीसरी बार में भी नहीं मिली, तो क्या? निरंतर प्रयास से मुझे सफलता मिलेगी ज़रूर, यह विश्वास आवश्यक है।
तीसरी बात, परिस्थितियों की मार खाकर के लोग हताश हो जाते हैं। जब भी विपरीत परिस्थिति सामने आती है, मनुष्य का मन टूट जाता है, घबरा जाता है, अब क्या करूं, कोई रास्ता नहीं। ऐसी विपरीत परिस्थिति में जब मन हताश होने लगे कि अब क्या करूं? तो सोचें कि मुश्किलों का सामना करने वाले ही समाधान पाते हैं और मुश्किलों से घबराने वालों को घुटने टेकने पड़ते हैं। जीवन में कोई मुश्किल आए, कोई परेशानी, कोई कठिनाई, कोई विपरीत परिस्थिति, तो देखिए, इस परिस्थिति से उबरने का कोई रास्ता है? नहीं है, तो कोई बात नहीं। मेरी कुशलता इस बात पर है कि उस परिस्थिति से उबरने की कला सीखूं और ऐसा रास्ता चुनूं, जिससे उस परिस्थिति में जीते हुए भी मेरा कम से कम नुकसान हो। सबसे पहले, उस परिस्थिति के प्रति अपना दृष्टिकोण बदलने की ज़रूरत है, यानी दृष्टिकोण सकारात्मक होना ज़रूरी है। कहते है, विपत्ति आती है, तो चारों तरफ से आती है, लेकिन उजाला तो केवल पूरब से आता है, उसी पूरब की ओर देखना है। विपत्ति एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो, तो वही जीवन की उपलब्धि बन जाती है और विपत्ति की चुनौती से दूर भागोगे तो वह तुम्हारे लिए एक बड़ी बला बन जाती है। धैर्य रखो, अधीर मत हो, सब ठीक होगा। थोड़ी देर की बात है, कोई भी, कैसी भी स्थिति होती है, शाश्वत नहीं होती, किसी के ऊपर कितनी भी बड़ी विपत्ति आए, आज नहीं, कल वह बदलेगी, सब बदलेगी। मैं मानना रहा है कि रात कितनी भी काली क्यों ना हो, पर शाश्वत नहीं। यथा-
असफलता एक चुनौती है, इसे स्वीकार करो,
क्या कमी रह गई, देखो और सुधार करो।
जब तक न सफल हो, नींद चैन को त्यागो तुम,
संघर्ष का मैदान छोड़ कर मत भागो तुम।
कुछ किए बिना ही जय जय कार नहीं होती,
कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
चौथी बात, जब भी ऐसी कोई विपत्ति आए, अपने अंदर की आशा को जीवित रखो, आशावादी बनो, आज नहीं कल ठीक हो जाएगा। आशावादी बनने से मनुष्य बहुत आगे बढ़ता है। बदलाव आता है, हम कहते है एक दिन घूरे के भी दिन फिरते है, तो जब घूरा बदल जाता है, तो हम तो मनुष्य हैं, हमारे दिन भी फिरेंगे, आज नहीं तो कल, निश्चित फिरेंगे। आशावादी बने रहें, कर्म-सिद्धांत पर भरोसा रखिए। यह आपके अंदर के उत्साह को बढ़ाए रखेगा, परिस्थितियों की मार से आप कभी हताश नहीं होंगे। कविश्रेष्ठ जयशंकर प्रसाद जी की ये पंक्तियां हमारे मन में आशा का संचार करती है-
लोहे के पेड़ हरे होंगे, तू गीत प्रीत के गाता चल।
नम होगी यह मिट्टी ज़रूर, आंसू के कण बरसाता ।
तो आज मैंने आपसे चार बातें कहीं, उन चारों बातों को आत्मसात करके हताशा से अपने आपको बचाने की कोशिश करें, अपने आप को बचाएं, हर पल उल्लास से जिएं, उमंग से जिएं, उत्साह से जिएं, अपनी जिजीविषा को प्रबल और प्रखर बनाए रखें,क्योंकि इसी से दिशा बदलेगी, और यदि यह दिशा बदलेगी, तो हमारे जीवन की दशा ही बदल जाएगी।
मीता गुप्ता
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