वो एक जादुई पल
वो एक जादुई पल
ज्यों
का त्यों आँखों में आज भी
तुम
मेरे साथ,
तुम
मेरे सामने…
माना
आज धुँधला और अस्पष्ट
पर
मेरे लिए तो
अति
सुंदर,
अति
दुर्लभ
इन
दूरियों और वर्जनाओं को तोड़
कोई
तो आवाज़ सुने मेरी
युग
बीते तुम्हारी खनखनाती आवाज़ सुने,
युग
बीते तुम्हें सपने तक में आए,
युग
बीते जब क्रूर वक़्त के हाथों
छिन
गए थे तुम मुझसे,
तुम
जो मेरा एकांत,
मेरी साधना थे !
धुँधली
पड़ती जा रही है,
तुम्हारी
आवाज़ की सरगम
अलौकिक.....
अभौतिक...
पारलौकिक....
इन
सूने उदास, अलस पलों में
खोई
सी रहती हूँ मैं
काले
उमड़ते बादलों में
कोई
कल्पना नहीं, प्रेरणा नहीं....!
न
कोई रोने, मचलने या प्यार करने को...!
न
कोई बहाना जीने को…
और
तब अचानक....
फिर
वही जादुई पल आ जाता है
तुम
मेरे सामने
तुम
मेरे साथ…
अति
सुंदर,
अति
दुर्लभ !
अलौकिक.....
अभौतिक...
पारलौकिक....!!
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