खुशी
चलो कोई निशाँ ढूँढ़ते हैं,
दिल का बहता हुआ कारवाँ ढूँढ़ते हैं,
मुद्दत हो गयी है मुस्कराए हुए,
चलो, खुशी का कोई जहां ढूँढ़ते हैं।
खुशी एक आकांक्षा और एक वस्तु दोनों
है। सभी स्मार्टफोन, कार, कपड़े और रियल एस्टेट हम पैसों से खरीद सकते हैं, लेकिन फिर भी हम अपनी खुशहाल जगह के
लिए,
ऐसी
जगह जो हमें खुशी दे, के तरस रहे हैं, कहीं इंद्रधनुष से परे। हम सभी खुश रहना चाहते हैं, लेकिन, खुशी, सबसे अच्छे समय में, बहुत कम समय के लिए, और सबसे बुरे समय में, पूरी तरह से मायावी साबित होती है।
जबकि आधुनिक मनोचिकित्सा कभी-कभी रसायनों की बात करती है कि हम केवल तभी खुश होंगे, जब हमारे मस्तिष्क में सही मात्रा में
ऑक्सीटॉसिन और सेरोटोनिन हो ।लेकिन ये आकलन मुझे सतही ही लगता है।
सतह पर, हमारी समस्याएं, उस समय के लिए विशिष्ट होती हैं, जिसमें हम रहते हैं, लेकिन थोड़ी गहराई से सोचें तो पाएंगे, कि मनुष्य सदियों से एक ही प्रश्न को
विभिन्न प्रकार पूछ रहा है कि अच्छा होने का क्या मतलब है? हमारे जीवन का लक्ष्य क्या होना
चाहिए-सुख या संतोष? क्या मुझे दूसरों को पूरा महसूस करवाने की ज़रूरत है? क्या लोग वास्तव में बदल सकते हैं? मैं खुद का सबसे अच्छा संस्करण कैसे बन
सकता हूं?
ये प्रश्न प्रेरक वक्ताओं, स्वयं सहायता गुरुओं और दुनिया के
दार्शनिकों की खोज का मुख्य आधार रहे हैं। उदाहरण के लिए, अरस्तू का मानना था कि "खुश"
होना आपकी अपनी "ज़िम्मेदारी" है।ऐसे विचारकों के दर्शन, वास्तव में असाधारण प्रतिकूलताओं के
खिलाफ़ एक बचाव हैं। ऐसे समय में जब हमें मृत्यु दर और नैतिकता के बारे में उभरते
सवालों का सामना करना पड़ रहा है, हम रूढ़िवाद और अस्तित्ववाद में आराम और सांत्वना पा सकते हैं।
भले ही दार्शनिकों ने खुशी को जीवन का
अंतिम लक्ष्य माना हो, लेकिन उन्होंने इसे कभी भी भौतिक चीजों से नहीं जोड़ा: जैसे कि धन या
एक दीर्घायु। उनके लिए, खुशी का संबंध संतुष्टि से था।
जीवन में संतुष्टि के बिना मन की शांति
नहीं है, और
ना ही आनंद।ना केवल मानसिक, बल्कि शारीरिक सेहत में भी इसकी अहम भूमिका होती है। जो संतुष्ट नहीं
है, वह बेचैन रहता है। पछतावे और चिंता से
भरा हुआ रहता है। कभी वर्तमान पल में नहीं रह पाता है। तनाव के कारण शरीर में
कोर्टिसोल जैसे खतरनाक हॉर्मोन रिलीज़ होते हैं। दिल की बीमारी होने का खतरा बढ़
जाता है। पाचन शक्ति कमज़ोर हो जाती है। कसरत करने का मन नहीं करता। सही से नींद
नहीं आती। इससे व्यक्ति नकारात्मक और निराशावादी हो जाता है।
जैसा कि मैं मानती हूं कि अगर 'पैसे, शौहरत, पावर' की महत्वाकांक्षा है, तब संतुष्टि खेल बिगाड़ देगी। जो
संतुष्ट हो गया, उसे तो शांति मिल गई। उसे मन की शांति के लिए यह सब सामान और उपभोग
चाहिए ही नहीं।समाज के लिए कुछ करने की महत्वाकांक्षा है,
सेक्स, भोजन और शराब आदि सभी चीजें आपको
आनंदित कर सकती हैं,पर एकमात्र परेशानी यह है कि इनमें से कोई भी चीज़ आपको खुश नहीं रख
सकती है। मैं सुख, धन या प्रसिद्धि की खोज का उपहास नहीं करती हूँ, परंतु यह भी ध्यातव्य रहे कि ये सभी
लक्ष्य संयोग से नियंत्रित होते हैं। यदि दुर्भाग्य का एक स्ट्रोक आपके द्वारा
अर्जित धन को खो सकता है, तो शायद यह सबसे अच्छा होगा कि आप अपनी सारी खुशियों को छुपा कर अपनी
अंटी में न रखें।
यदि आप अपने गुणों पर काम करके और अपने
दोषों को नियंत्रित करके खुद को अच्छा बनने के लिए प्रशिक्षित करते हैं, तो आप पाएंगे कि मन की एक सुखद स्थिति
आदतन सही काम करने लगती है। वास्तव में सुख बिना प्रयास के नहीं आ सकता। अच्छा
बनने की कोशिश करने पर ही आप खुश होंगे, और आप तभी अच्छे होंगे, जब आप दूसरों के लिए सही करने की कोशिश करते रहेंगे। यह याद रखना
चाहिए कि हम कर्म करने से कर्मशील, संयमी कार्यों से संयमी और साहसी कार्यों से साहसी बनते हैं। हाँ,दया जैसे गुणों का अभ्यास किया जा सकता
है। यदि आपके आस-पास के अन्य लोग खुश हैं, तो आपके खुश होने की संभावना अधिक है।
मनुष्य खुश तभी हो सकता हैं, जब वो संतुष्ट हो और संतुष्ट होने के
लिए आप को बाहर की यात्रा छोड़कर अंदर की यात्रा शुरू करनी होती है । जिस दिन सुख
को बाहर तलाशना बंद कर दिया, उसी दिन शांति और संतुष्टि से भर जाएंगे। जब आप औरों के काम आते हैं
और बदले में कुछ अपेक्षा नहीं रखते हैं, तब एक गहरी संतुष्टि मिलती है। और चित्त-शुद्धि भी होती है।
अधिकांश लोगों को जीवन का आनंद चीज़ों
को सीखने और दुनिया के बारे में सोचने से मिलता है। हालाँकि, हम दुनिया के साथ कदम मिलाकर चलने और
इसे समझने के लिए बहुत व्यस्त हो सकते हैं, यह मदद भी कर सकता है, अगर हम भौतिक सुखों के साथ-साथ अपने
मानसिक सुखों के लिए भी समय निकालें । अपने आप को एक किताब पढ़ने के लिए प्रेरित
करना,
एक
बार के लिए, हमें
फोन करने से ज़्यादा आनंद दिला सकता है क्योंकि हमारे शरीर की तरह हमारे मन को भी
पोषण की आवश्यकता होती है।
यह कोई नुस्खा नहीं है, बल्कि जीवन का एक दर्शन है जो जीवन को
बेहतर बनने के लिए एक ढांचा प्रदान करता है।"कूल रहने" की हमारी इच्छा, अनिवार्य रूप से, एक अच्छी बात है क्योंकि यह हमें इस
अर्थ के करीब लाता है कि हमारे पास भी महान चीज़ों तक पहुंचने और उन्हें पूर्ण करने
की अपार शक्ति है।
आइए,इन
सभी बातों को समझते हुए इसकी आदत डालें और खुश रहें-
यूं आए ज़िंदगी में कि ख़ुशी मिल गई,
मुश्किल राहों में चलने की वजह मिल गई,
हर एक लम्हा खुशनुमा बना दिया,
मेरी उम्मीद को नई मंज़िल मिल गई।
मीता गुप्ता
हिंदी प्रवक्ता, केवि,पूरे, बरेली
8126671717
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