एक अग्नि-कविता तुम्हारे लिए....
इसे दीये की भांति सहेज लेना,
एक लौ जो शायद,
तुम्हारा हृदय भी लौ कर दे.
अग्नि सर्वस्व भर दे,
उस नाड़ी में,
जिसमें प्रज्ज्वलित हो,
रुधिर भी,
उन साँसों में,
जिनमें यज्ञ का
आह्वान उठे !!!!
उस अग्नि-कविता को अंजुरि में
सहेज लेना,
जब तुम्हारा मुख दीप्तिमान हो,
तुम्हारी प्रकटन कान्ति
उस लौ-हृदय को भीतर
आत्मसात कर लेना,
उन चिंगारियों को कुछ क्षण
अंदर सुलगने देना....
ये पवित्र अग्नि,
जला देगी तम को,
जोअपना विकराल रूप लिए,
अपने नुकीले डैनों से डरा रहा है तुम्हें,
भस्म होगा तम-कंकाल यह,
उजेला फैलेगा चहुँ ओर,
फिर न सताएगा तुम्हें भय,
एक अग्नि-कविता तुम्हारे लिए
एक अग्नि-कविता तुम्हारे लिए.....
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