क्योंकि कविता शब्दों का जाल नहीं है
क्योंकि कविता शब्दों का जाल नहीं है
न ही भावनाओं की उलझन है
कविता छन्दों और मात्राओं का
अनुपात भी नही है
कविता शब्दों के ऊन से बुनी स्वेटर भी नहीं है
कविता दिलों को चीर कर
निकलने को आतुर आवेग है
कविता फूलों पर मंडराती...
फूलों का रस चूसती तितली ही नहींं
यह फूलों के रस में बसी शाश्वती है
यह रंगों की अमिट पावती है
यह केवल यहां-वहां रंग ही नहीं बिखेरती
कविता रंगहीन आसमान को भेद कर
रंगों का अबंध्य अतिरेक है
कविता उफान है उन चीख़ती सांसों का
जो देह से घुस कर हृदय को छलनी कर जाती हैं
कविता उन गिद्धों का चरित्र है
जो नोच लेते हैं शरीर की बोटी बोटी
कविता सिर्फ सौंदर्य का बखान नहीं है
कविता उन आंखों की दरिंदगी भी है जो
कपड़ों के नीचे भी देह को भेद देती हैं
कविता सिर्फ़ नदी की
कल कल बहती धार नहीं है
कविता उन आशंकित नदी के
किनारों की व्यथा भी है
जो हर दिन लुट रहे हैं किसी बेसहारा की तरह
कविता में घने हरे-भरे वन ही नहीं हैं
कविता चिंतातुर जंगल की व्यथा भीहै
जहाँ हर पेड़ पर आरी के निशान हैं
कविता शब्दों के जाल से इतर
तुम्हारी मुस्कराहट की चांदनी है
कविता पेड़ से गिरते पत्तों का दर्द है
कविता झुलसती बस्तियों की पीड़ा है
कविता बहुमंज़िली इमारतों का बौनापन है
विदेश में बसे बेटे की आस लिए बूढ़ी आँखे हैं
कविता दहेज़ में जली बेटी की देह है
कविता रोज़गार के लिए
भटकता पढ़ा लिखा बेटा भी है
कविता देशप्रेम से दहकते हुए कारों में हैं
कविता दलित शोषित के छीने अधिकारों में है
कविता सिर्फ शब्दों का पज़लनामा नहीं है
कविता बेबस घरों में
घुटते अरमानों में है
इसलिए कहती हूँ कि सोच कर लिखना कविता....
क्योंकि कविता सिर्फ़ शब्दों का जाल नहीं है !!!!
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