प्रभावी शिक्षण
शिक्षण वास्तव में एक तकनीक ही है
प्रायः देखा गया है कि किसी विद्यालय में कोई शिक्षक बहुत ही लोकप्रिय होते है तो
कोई खास प्रभावी नही होते इन सबके पीछे यदि गौर से देखे तो हम पाते की ये सब
शिक्षक के शिक्षण के प्रभाव का परिणाम है ऐसा भी पाया गया कि एक विद्यालय के एक ही
विषय के दो शिक्षक होने की स्थिति में एक शिक्षक विद्याथियों को अधिक प्रिय होता
है इसके पीछे की मुख्य वजह शिक्षक का शिक्षण प्रक्रिया के दौरान कक्षा में
विद्यार्थियों पर छोड़ा गया प्रभाव है प्रभावी शिक्षण से ही कोई शिक्षक में लोकप्रिय
बन पाता है इससे ही विद्यार्थियों के सर्वांगीण विकास का प्रादुर्भाव होता है
क्लार्क के अनुसार," शिक्षण
वह प्रक्रिया है जो शिक्षार्थी के व्यवहार में परिवर्तन लाने के लिए नियोजित तथा
संचालित की जाती है|"
शिक्षक यह सुनिश्चित करने के लिए
जिम्मेदार हैं कि सभी विद्यार्थियों को सीखने में पूरी तरह से भाग लेने के लिए
अवसर और सहायता मिले। ऐसा तभी संभव होगा यदि संसाधनों का प्रबंधन प्रभावी ढंग से
और सीखने की प्रक्रिया को सुधारने के स्पष्ट प्रयोजन के साथ किया जाय शिक्षक को
विद्यालयी संसाधन के रूप में मानव संसाधन जैसे साथी शिक्षक, अन्य स्टाफ, विद्यार्थी, माता पिता और समुदाय,शाला प्रबंधन समिति के सदस्यो में सक्रिय व
सकारात्मक समन्वय हो जो सीखने का समर्थन करने के लिए कौशलों और ज्ञान का योगदान कर
सके।
विषय वस्तु के प्रत्येक बिंदुओं को
विद्यार्थी तक पहुंचाने के लिए बाल मनोविज्ञान की परख करके शिक्षण कार्य किया जाना
चाहिए। विषय को बोधगम्य बनाकर प्रस्तुत करना शिक्षक की महत्वपूर्ण विशेषता है।
शिक्षण एवं अध्ययन की क्रिया में बहुत
से कारक शामिल होते हैं। विद्यार्थी जिस तरीके से अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ते हुए
नया ज्ञान, आचार और कौशल को समाहित करता है जिससे
उसके सीखने की शक्ति में विस्तार हो सके, सभी कारक आपस में अन्तरसम्बन्धी होते है
पिछली सदी के दौरान शिक्षण पर विभिन्न
किस्म के दृष्टिकोण उभरे हैं। इनमें एक है ज्ञानात्मक शिक्षण, जो शिक्षण को मस्तिष्क की एक क्रिया के रूप में
देखता है। दूसरा है, रचनात्मक
शिक्षण जो ज्ञान को सीखने की प्रक्रिया में की गई रचना के रूप में देखता है।
वास्तव में ये पृथक पृथक नही है बल्कि इन्हें संभावनाओं की एक ऐसी श्रृंखला के रूप
में देखा जाना चाहिए जिन्हें शिक्षण के अनुभवों में पिरोया जा सके। एकीकरण की इस
श्रृंखला में दूसरे कारकों को भी संज्ञान में लेना जरूरी हो जाता है- ज्ञानात्मक
शैली हमारी तीक्ष्ण बुद्धि का एकाधिक स्वरूप और ऐसा शिक्षण जो उन विद्यार्थियों के
काम आ सके जिन्हें इसकी विशेष जरूरत है और जो अलग अलग पारिवारिक सांस्कृतिक
पृष्ठभूमि से आते हैं।
रचनात्मकता शिक्षण की एक ऐसी रणनीति है
जिसमें विद्यार्थी के पूर्व ज्ञान, आस्थाओं
और कौशल का इस्तेमाल किया जाता है। रचनात्मक रणनीति के माध्यम से विद्यार्थी अपने
पूर्व ज्ञान और सूचना के आधार पर नई किस्म की समझ विकसित करता है।इसमें
विद्यार्थियों को स्वयं जबाब खोजने के अधिक अवसर मिलते है शिक्षक विद्यार्थियों के
जवाब तलाशने की प्रक्रिया का निरीक्षण करता है, उन्हें निर्देशित करता है तथा सोचने-समझने के
नए तरीकों का सूत्रपात करता है धीरे-धीरे छात्र यह समझने लगता है कि शिक्षण दरअसल
एक ज्ञानात्मक प्रक्रिया है। इस किस्म की शैली हर उम्र के छात्रों के लिए कारगर
है। शिक्षण अधिगम प्रक्रिया को सहज,सरल,तथा सक्षम बनाने के लिए नवीन पद्धतियों को
अपनाना आवश्यक है जिनमें से कुछ इस प्रकार हो सकती हैं-
1 *स्वप्रेरित*
2विषय संबंधी ज्ञान
3बालमनोविज्ञान से परिचित
4 *स्थानीय परिवेश के अनुसार अनुकूलन*
5 *विद्यार्थियों की सांस्कृतिक पारिवारिक
परिस्थितियों का ज्ञान*
6 *स्थानीय उपलब्ध शिक्षण अधिगम सामग्री (TLM)*
7 *समेकित शिक्षण *
8. कला समेकन
9. अनुभवजन्य
अधिगम
10.रोल मॉडल बनें
11.स्वयंभू न बनें, सुगमकर्ता बनें
12.नवाचार और नवप्रवर्तन को अपनाएँ
13. अपने अन्य कौशलों का भी विकास करें
14. अधिगम त्रय
15. बाहरी संसार से विषय को जोड़ें
शिक्षण एक कला है , शिक्षक सदैव समाज में पूजनीय रहा है कहीं इसे
शिक्षक ,कहीं गुरु, कहीं अध्यापक, कहीं टीचर
नाम से पुकारा जाता है लेकिन सभी का कार्य समाज का पथप्रदर्शक के रूप में ,मार्गदर्शक के रूप में, सिखाने वाला एवं आदर्श रूप में रहा है शिक्षक
समाज का दर्पण होता है यह राष्ट्र निर्माता होता है शिक्षा का कार्य छात्रों में जीवन
का निर्माण करना होता है शिक्षक अंधकार से उजाले की तरफ ले जाने वाला होता है मात
पिता के बाद यदि इस संसार में कोई पूजनीय है तो वह शिक्षक है प्राचीन काल से ही
शिक्षक के सामने सबसे बड़ी चुनौती कक्षा कक्ष में शिक्षण को प्रभावशाली , रुचिकर बनाए रखना रहा है छात्र शिक्षण को तनाव के रूप में ने लेकर खेल के
रूप में लें, उत्साह के रूप में लें, मनोरंजन के रूप में लें ऐसा वातावरण कक्षा कक्ष में करने के लिए अध्यापक को प्रयास
करने होंगे
• शिक्षार्थियों
से शिक्षक ऐसे घुल-मिल जायें कि वे(शिक्षार्थी एवं शिक्षक) शिक्षण को बोझ न समझकर
कौतूहुल भरा खेल समझें।
• वर्ग
कक्ष के कैद दीवारों से भी निकलकर जरुरत अनुसार खुले पर्यावरण में शुद्ध व मूर्त्त
शिक्षण प्राप्त करें।
• शिक्षण
के लिए सटीक व उपयुक्त वातावरण का निर्माण किया जाए।
• शिक्षार्थियों
के निजी समस्याओं को संदर्भ वस्तु के रुप में महत्त्व देते हुए प्रदत्त विषय वस्तु
का विश्लेषण हो।
• शिक्षक
की भूमिका स्वयंभू न होकर सुगमकर्त्ता का हो।
• शिक्षण
को सदैव जीवन से जुड़ा होना, इसे
सरल ,सरस एवं बोधगम्य बनाता है।
• आगमन
शिक्षण विधि का अधिकतम प्रयोग अवधारणा को प्रतिपुष्ट करता है।
• एक
प्रोत्साहन भरा सहानुभूतिपूर्ण संस्पर्श हृदय परिवर्त्तन के लिए प्रभावी व
चमत्कारिक बूटी है; इसका
उचित समय पर प्रयोग से चूकना भारी भूल हो सकती है।
• हमें
सदैव बालकेन्द्रित शिक्षण पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए, न कि विषय , परीक्षा व स्वयं के अहंपोषण को केन्द्र में
रखते हुए।
No comments:
Post a Comment