तू है प्रखर
*डूबे हैं सब भय में,
दुख में,
देखती हूँ चारों ओर,
हाहाकार है कोर कोर।
फिर एक बार इकट्ठा करती हूँ स्वयं को,
फिर सोचती हूँ,क्यों जीएं यूं डर डर,
बुरा वक्त है ढल जाएगा,
अच्छा वक्त ज़रूर आएगा
समय का चक्र कभी रुकता नहीं,
अच्छा या बुरा कुछ भी टिकता नहीं।*
तू कोशिश तो कर,
बन निर्भय बन निडर ।
समय को दे तू बदल,
हो अभय,
हो मुखर।
रात कितनी भी गहरी हो, अंधेरी हो,
भोर का उजाला आएगा ही प्रथम प्रहर।
बन निडर....
बन मुखर....
हो अभय....
कठिन है डगर......
पर तू है प्रखर....👍
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